‘जब मुलायम ने निहत्थे कारसेवकों पर चलवाई गोलियाँ’
(……विवादित परिसर में विराजमान रामलला समेत अन्य मूर्तियों को भी वहाँ से हटाने के भी सुझाव दिए गए। ऐसे सुझावों का जवाब देते हुए महंत अवेद्यनाथ ने गोरखपुर में कहा कि सामान्य मन्दिर-मस्जिद का स्थान तो बदला जा सकता है किंतु श्रीराम का जन्म स्थान कैसे बदला जा सकता है !…से आगे -)
इस घोषणा के बाद 5 अप्रैल 1987 को रामभक्तों के विशाल जनसमूह ने अयोध्या में एकत्रित होते हुए पवित्र सरयू के तट पर खड़े होकर प्रतिज्ञा ली, कि हम किसी भी क़ीमत पर श्री रामलला की मूर्ति नहीं हटने देंगे बल्कि इसके लिए अब तक दिए गए बलिदानों की परम्परा कायम रखते हुये अपना भी बलिदान देकर राम जन्मस्थान पर ही भव्य मन्दिर का निर्माण कराएंगे। 19 अक्टूबर 1988 को अयोध्या के सरयू के तट पर पर प्रतीकात्मक रूप से सात ईंटों का विधिवत पूजन करके यज्ञशाला की सात परिक्रमा करते हुए श्रीराम जन्मभूमि पर मन्दिर निर्माण का संकल्प लिया गया।
रामजन्मभूमि आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन और हिन्दू जन जागरण को देखते हुए सभी राम विरोधियों के ज़रिये सुलह समझौते की बातचीत के साथ ही देश भर के मुस्लिमों को लामबंद करते हुए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति भी चलती रही। रामजन्मभूमि विवाद देशव्यापी ज्वलंत मुद्दा बन चुका था। हिन्दू संगठनों के दृढ़ संकल्प और आक्रामक रणनीति के कारण किसी भी राजनीतिक दल के लिए इसकी अनदेखी करना सम्भव नहीं था। इस द्वंद में कांग्रेस दोनो नावों की सवारी करने की मंशा पाले जहां उहापोह की स्थिति में थी तो वहीं भाजपा हर कदम पर खुलकर मंदिर आंदोलन के साथ खड़ी दिखाई दी। इसी क्रम में भारतीय जनता पार्टी ने 11 जून 1989 को पालमपुर कार्यसमिति में एक प्रस्ताव पास करते हुए माँग रखी कि अदालत इस मामले का फ़ैसला नहीं कर सकती इसलिए सरकार को समझौते या संसद में क़ानून के माध्यम से राम जन्मस्थान हिंदुओं को सौंप देना चाहिए। कांग्रेस भाजपा के इस राजनैतिक दाँव की काट खोजने लगी। उसे अच्छी तरह मालूम था कि रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन अब एक राष्ट्रीय राजनीतिक मुद्दा बन चुका है जिसका असर अगले लोकसभा चुनाव पर पड़ना तय है।
उत्तर प्रदेश की कांग्रेस सरकार के ज़रिए हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करते हुए अनुरोध किया गया कि वह इस विवाद से सम्बंधित सभी चारों मुक़दमे फ़ैज़ाबाद से अपने पास मँगाकर इस मामले में जल्दी से जल्दी फ़ैसला कर दे। कांग्रेस की माँग मानते हुए हाईकोर्ट ने 10 जुलाई 1989 के अपने एक आदेश के ज़रिए सभी सम्बन्धित मामले अपने पास मंगा लिए। 14 अगस्त को एक स्थगनादेश जारी करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में फ़ैसला आने तक विवादित ढांचे समेत सभी विवादित भूखंडों की वर्तमान स्थिति में कोई फ़ेरबदल न करते हुए यथास्थिति बनाये रखी जाय। इसी बीच विश्व हिंदू परिषद ने 9 नवंबर को राम मंदिर के शिलान्यास के लिए देश भर में शिलापूजन यात्राएँ निकालने की घोषणा कर दी।
इस घोषणा का दबाव कितना ज़बरदस्त था इस का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आगामी आम चुनावों के लिए कांग्रेस के चुनाव अभियान की शुरुआत राजीव गांधी ने रामराज्य की स्थापना के नारे के साथ फ़ैज़ाबाद से ही की। कांग्रेस की इस घोषणा से उत्साहित विश्व हिंदू परिषद ने विवादित ढांचे से कुछ दूर स्थित भूखण्ड पर शिलान्यास के लिए झंडा गाड़ दिया। 7 नवंबर को हाईकोर्ट ने कहा कि सम्बन्धित भूखंड 14 अगस्त को दिए उसके स्थगनादेश में यथास्थिति वाले भाग में ही शामिल है किंतु उत्तर प्रदेश सरकार ने यह स्पष्ट किया कि शिलान्यास के लिए प्रस्तावित स्थान पैमाइश में विवादित क्षेत्र से बाहर है इसलिए शिलान्यास की अनुमति दी जाती है। सरकार की इस सहमति में संत देवराहा बाबा की बड़ी भूमिका थी। इस तरह विवादित ढाँचे से 200 फुट दूर शिलान्यास तो हो गया किंतु सरकार ने आगे का निर्माण रोक दिया।
इस घटनाक्रम से साफ़ था कि कांग्रेस दोनो नाँव की सवारी करना चाहती है। एक तरफ रामराज्य के नारे और शिलान्यास की अनुमति देकर हिंदुओ को बरगलाना चाहती थी तो वहीं आगे का निर्माण रोककर मुस्लिमों को भी साधे रखना चाहती थी। इसी उहापोह के बीच उसकी नाँव तब भवँर में अटक गई जब बोफोर्स के मामले में कांग्रेस से बाग़ी हुए वी.पी सिंह के नेतृत्व में तीसरी राजनीतिक शक्ति के रूप में जनता दल नाम का धूमकेतु ऐसा उभरा कि कांग्रेस चुनाव हार गई। भाजपा और उनके विपरीत ध्रुव वामपंथी दलों के सहयोग-समर्थन से वी.पी सिंह देश के प्रधानमंत्री बन गए।
वी.पी सिंह और जनता दल सरकार का रुझान मुस्लिम-तुष्टिकरण का दिखने लगा। इसलिए विश्व हिंदू परिषद और अयोध्या आंदोलन का विरोध करने वाले समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। इस कदम से उत्तेजित भाजपा ने राम मंदिर आंदोलन पूरी तरह अपने हाथ मे लेते हुए देशव्यापी अभियान चलाने का निर्णय लिया।
जो राम का नहीं – वो किसी काम का नहीं , बच्चा बच्चा राम का – जनम भूमि के काम का , कसम राम की खाते हैं – हम मन्दिर वहीं बनाएंगे..जैसे नारों की गगनभेदी गूँज के बीच लालकृष्ण आडवाणी 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ मंदिर से अयोध्या तक की जनजागरण रथयात्रा पर निकले।
इस यात्रा के 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुँचने का कार्यक्रम था। किंतु रथयात्रा के बिहार पँहुचने पर लालू प्रसाद यादव ने आडवाणी को गिरफ़्तार करवा दिया। आडवाणी की गिरफ़्तारी से रथयात्रा तो स्थगित हो गई लेकिन मुलायम सरकार की लाख कोशिशों और तमाम पाबंदियों को धता बताते हुए लाखों की सँख्या में कार सेवक 30 अक्टूबर तक अयोध्या पहुँच चुके थे। हिन्दू जनजागरण की दृष्टि से यह घटनाक्रम अभूतपूर्व था। ये सच है कि इस अभियान की शुरूआत भाजपा,विश्व हिंदू परिषद के साथ ही अन्य हिन्दू संगठनों ने की थी किंतु देश के कोने कोने से करोड़ों की संख्या में स्वतःस्फूर्त हिंदू जैसे इसे अपना अभियान बना चुका था। मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों को चुनौती भरे अंदाज़ में ललकारा कि ‘ अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता ‘ अपनी इस चुनौती को पूरा करने का उन्होंने हर सम्भव जतन किया।
लेकिन इसके बाद भी कारसेवक रामभक्तों को अयोध्या पँहुचने से नहीं रोक सके तो अपनी खीझ उतारने के लिए उन्होंने राजनैतिक और संवैधानिक मर्यादा को तार तार करते हुए बर्बरता की सारी सीमाएं तोड़ दीं। हज़ारों गिरफ़्तारियों के साथ ही पूरे प्रदेश में जहाँ-तहाँ निहत्थे कारसेवकों पर जम कर लाठियाँ बरसाई गईं।
बड़ी संख्या में कारसेवकों के अयोध्या पँहुचने से वो इस कदर आग बबूला थे कि निहत्थों पर सिर्फ़ लाठी चलवाकर उन्हें सन्तुष्टि नहीं मिली। आज़ाद हिंदुस्तान में मुगलकालीन घटनाक्रम और तौर-तरीक़ों की पुनरावृत्ति करते हुए उन्होंने अयोध्या में मौजूद कारसेवकों पर भीषण गोलीबारी करवा दी।
तत्कालीन समाचार पत्रों और उस समय अयोध्या में मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इस गोलीबारी में सैकड़ों की संख्या में कारसेवकों ने अपना बलिदान दिया,जिनमे से अधिकांश की मृत देह सरयू में बहा दी गईं।
उस वक्त प्रकाशित विशेषांकों में इस बात की पुष्टि हुई कि उस दिन सरयू का जल भी लाल दिखा। किंतु सरकार ने अपने इस वीभत्स कांड में सिर्फ़ सोलह कारसेवकों के मारे जाने की पुष्टि की। जो सत्य से कोसों दूर था।
क्रमशः –
(तथ्य सन्दर्भ – प्राचीन भारत इतिहास , लखनऊ गजेटियर, अयोध्या गजेटियर ,लाट राजस्थान , रामजन्मभूमि का इतिहास (आर जी पाण्डेय) , अयोध्या का इतिहास (लाला सीताराम) ,साहिफ़ा-ए-चिली नासाइ बहादुर शाही, बाबरनामा, दरबारे अकबरी, आलमगीर नामा, तुजुक बाबरी। तत्कालीन समाचारपत्र, अदालती दस्तावेज)
( लेखक दूरदर्शन के समाचार वाचक/कमेंट्रेटर/वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्र लेखक स्तम्भकार हैं।)