‘जब मृतकों की संख्या कम दिखाने के लिए कारसेवकों की पार्थिव देह को दाह के बजाय दफ़ना दिया गया, या ग़ायब कर दिया गया’
(…चारों तरफ सिर्फ़ ख़ून का घूँट पीती खामोशी का स्यापा छाया था। कहने को तो उस समय भी अयोध्या में कर्फ्यू लगा था लेकिन सड़कों पर हर तरफ लोग घायलों को लेकर दौड़ते भागते नज़र आ रहे थे।…से आगे..)
इस बारे में एक टीवी चैनल से बातचीत करते हुए राम जन्मभूमि थाने के तत्कालीन एस.एच.ओ वीर बहादुर सिंह ने कहा था – “घटना के बाद विदेश तक से पत्रकार आए थे। उन्हें तो हमने आठ लोगों की मौत और 42 लोगों के घायल होने का आंकड़ा ही बताया था। लेकिन हमें सरकार को भी रिपोर्ट देनी थी इसलिए हम तफ्तीश के लिए श्मशान घाट गए, वहां हमने जानकारी ली कि कितनी लाशों का दाह संस्कार हुआ है और कितनी लाशें दफनाई गई हैं। वहाँ हमे दाह के अलावा 15 से 20 लाशें दफ़नाए जाने की भी जानकारी मिली, जिनकी गिनती हमने मृतक कारसेवकों में शामिल नहीं की। इसी आधार पर हमने सरकार को अपनी रिपोर्ट दी। हालांकि हकीकत यही थी कि वे लाशें भी कारसेवकों की ही रही होंगी। सही आंकड़े उपलब्ध न होने की दशा में यह तो कहना मुश्किल है कि कुल कितने लोग मारे गए लेकन ये तय है कि काफी संख्या में लोग मारे गए थे।”
प्रत्यक्षदर्शी कारसेवकों के मुताबिक दाह संस्कार और दफ़नाने के इस गड़बड़झाले के अलावा न जाने कितनी लाशें प्रशासन ने ग़ायब करवा दी थीं। कुछ को सरयू में बहा दिया गया तो कुछ का कहाँ ले जाकर क्या किया गया किसी को नहीं मालूम। उल्लेखनीय है कि रामजन्मभूमि के लिए ऐसा वीभत्स नरसंहार इससे पहले सिर्फ़ मुगलों के दौर में ही हुआ था, अंग्रेजों के ज़माने में भी कभी ऐसी क्रूरता नहीं देखी गई। विशेष बात यह है कि मुगलों के ज़माने में हुए नरसंहारों में रामभक्त यदि बलिदान देते थे तो बड़ी संख्या में मुगल सैनकों को भी हताहत करते थे। यहाँ तो उनका एकतरफ़ा नरसंहार किया गया था। इस कांड के ज़रिये मुलायम सिंह यादव ने मुस्लिम-तुष्टिकरण के लिए हिंदुओं पर बर्बरता और अत्याचार की सारी सीमाएं तोड़ दीं थीं। इस नरसंहार के बाद देश के दूसरे हिस्सों में दंगों की आग भड़क उठी।
जिसमें अयोध्या के अलावा गुजरात में 24 , बिहार में 13, आंध्र प्रदेश में छह,कर्नाटक में चार और राजस्थान में दो लोगों के मारे जाने की ख़बर थी। उत्तर प्रदेश के 42 शहरों में कर्फ्यू लगाने के साथ ही राज्य से गुज़रने वाली बहुत सी रेलगाड़ियों को रद्द कर दिया गया। ख़बरों पर सख़्ती रोक लगाने के अलावा लखनऊ, इलाहाबाद और वाराणसी में सभी अखबारों के सांध्यकालीन संस्करणों को सरकार ने ज़ब्त कर लिया। ज़ाहिरा तौर पर इसके पीछे सरकार का उद्देश्य तनाव को फैलने से रोकना था लेकिन असल उद्देश्य इस ‘ आधुनिक अयोध्याकाण्ड ‘ की असलियत देश दुनिया के सामने आने से पहले मामले की लीपापोती करते मनगढ़ंत रिपोर्ट्स तैयार करवाना था। देशभर में इस जघन्य नरसंहार के कड़े विरोध और राजनैतिक विरोधस्वरूप भाजपा के केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेने के कारण सात दिन बाद ही वी.पी सिंह की सरकार गिर गई।
उसके बाद कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर सरकार बनी। चंद्रशेखर जी ने कई बार कहा कि वो अयोध्या मुद्दे के हल के लिए ठोस कदम उठाना चाहते थे लेकिन उससे पहले ही कांग्रेस के समर्थन वापस लेने से उनकी सरकार चली गई। कुल मिलाकर इतने बड़े कांड के बाद भी रामजन्मभूमि मसला एक बार फिर अनसुलझा ही रह गया। 1991 के लोकसभा चुनाव के दौरान राजीव गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर पर सवार कांग्रेस पुनः केन्द्रीय सत्ता पर काबिज़ होने में कामयाब रही। नरसिम्हा राव के रूप में देश को नेहरू-गाँधी परिवार से बाहर का पहला पूर्णकालिक कांग्रेसी प्रधानमंत्री देखने को मिला। इससे पहले इस परिवार के बाहर से गुलज़ारी लाल नंदा दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे तो अपवाद स्वरूप लाल बहादुर शास्त्री रहस्यमयी आकस्मिक मृत्यु के कारण अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। इधर उत्तर प्रदेश की जनता तो जैसे अयोध्या के बीभत्स नरसंहार कांड के बाद ही मौके की तलाश में ही बैठी थी। प्रदेश में हुए मध्यावधि चुनावों में जनता ने माकूल जवाब हुए मुलायम को उनकी हैसियत बताते हुए उन्हें बुरी तरह पराजित किया। भाजपा ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने।
सरकार बनाने के बाद कल्याण सिंह ने पहला करते हुए विवादस्पद ढांचे के सामने की 2.77 एकड़ ज़मीन अधिग्रहित करते हुए इसे विकास के लिए पर्यटन विभाग को सौंप दिया। इसके अलावा राम कथा पार्क के लिए अधिग्रहित 42 एकड़ ज़मीन विश्व हिंदू परिषद को लीज़ पर दी गई।
मुलायम सरकार ने मामले में हिंदुओं का पक्ष कमज़ोर करने के लिए अदालत में जो मनगढ़ंत तथ्य प्रस्तुत कर रखे थे उनमें तथ्यात्मक सुधार के लिए अदालत में नए हलफ़नामे दाख़िल किये गए। सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि पर मंदिर निर्माण का काम शुरू करने के लिए पत्थर तराशे जाने लगे। जुलाई के महीने में निर्माण की प्रतीकात्मक शुरुआत हुई किंतु सुप्रीमकोर्ट के हस्तक्षेप और प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के विशेष आग्रह पर साधु संतों ने इसे स्थगित कर दिया। नरसिम्हा राव सरकार ने इस मसले के समाधान में प्राथमिकता का आश्वासन दिया था किंतु पाँच महीने बीत जाने पर भी इस दिशा में केंद्र द्वारा कोई ठोस कार्यवाई न होते देख आक्रोशित साधु संतों ने दिसम्बर 1992 में एक बार पुनः कारसेवा का फैसला लिया।
इसके बाद आया छह दिसंबर 1992 का वो ऐतिहासिक दिन जो रामजन्मभूमि मुक्ति संघर्ष गाथा का अविस्मरणीय अहम पड़ाव है।
पच्चीस महीना पहले मुलायम सरकार के रहते कारसेवा के दौरान देश ने जो वीभत्स परिणाम देखा था उसे याद करते हुए 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या समेत पूरे देश मे आशंकाओं-उहापोह के बीच हर तरफ बेचैनी और उत्सुकता का माहौल तारी था। क़ानून व्यवस्था के मद्दे नज़र इस बार भी अयोध्या समेत पूरे उत्तरप्रदेश और देश के अन्य हिस्सों में सुरक्षा के व्यापक इंतेज़ाम थे। लाखों की संख्या में अयोध्या पँहुचे कारसेवकों का उत्साह उफ़ान पर था। हर तरफ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ राम मंदिर से जुड़े गगनभेदी नारे गूँज रहे थे। भाजपा, विश्वहिंदू परिषद के अनेक शीर्ष नेताओं के साथ ही अन्य हिन्दू संगठनों के पदाधिकारी और बड़ी संख्या में साधु संतों की उपस्थिति वातावरण को आभामय बनाते ऊर्जा का संचार कर रही थी। किंतु इन सभी स्थितियों के बीच कुछ माथों पर चिंता की लकीरें भी उभर रही थीं, कारण था कारसेवकों की बड़ी संख्या के साथ उनका अतिउत्साही मिजाज़ भांपते हुए किसी अनहोनी की आशंका।
दरअसल विश्वहिंदू परिषद और कल्याण सिंह सरकार ने यह आवश्वासन दे रखा था कि कारसेवा के इस आयोजन से किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होने पाएगा। कारसेवकों को नियंत्रित रखने के उपायों पर मंथन चल रहा था। उधर प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव भी अयोध्या से पल पल की ख़बर ले रहे थे। हालात का जायज़ा लेने के लिए सुबह 7 बजे उन्होंने बजरंगदल नेता विनय कटियार को फोन किया। विनय कटियार ने उन्हें तय कार्यक्रम के मुताबिक प्रतीकात्मक कारसेवा होने की सूचना से आश्वस्त किया। आठ बजे के करीब विनय कटियार के घर पर अशोक सिंहल, बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उनके बीच अपेक्षा से काफ़ी ज़्यादा संख्या में कारसेवकों के जमावड़े पर विचार विमर्श करते हुए उन्हें शांत रखने की योजना बनाई गई।
इसी बीच इन नेताओं से मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने फोन पर बात करते हुए स्थिति पर नियंत्रण रखने का आग्रह किया और आवश्यक सुझाव दिए। बड़ी संख्या में कारसेवकों के जमावड़े की सूचना पाकर वो भी किसी अनहोनी के प्रति चिंतित थे। सारे घटनाक्रम पर नज़र रखने के लिए सुप्रीमकोर्ट ने भी अपने ऑब्ज़र्वर के रूप में तेजशंकर जी को अयोध्या में तैनात कर रखा था सबेरे 9 बजे तेजशंकर जी ने ज़िलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को फैज़ाबाद सर्किट हाउस बुलाकर हालात का जायज़ा लेते हुए उन्हें आवश्यक दिशा निर्देश दिए। उधर केंद्र सरकार के गृह सचिव माधव गोडबोले ने साढ़े नौ बजे के करीब फैज़ाबाद में ही मौजूद भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के महानिदेशक से अपनी टुकड़ियों को तैयार रखने का निर्देश दिया।
क्रमशः –
(तथ्य सन्दर्भ – प्राचीन भारत इतिहास , लखनऊ गजेटियर, अयोध्या गजेटियर ,लाट राजस्थान, रामजन्मभूमि का इतिहास (आर जी पाण्डेय), अयोध्या का इतिहास (लाला सीताराम), बाबरनामा, दरबारे अकबरी, आलमगीर नामा, तुजुक बाबरी, तत्कालीन समाचार पत्र)
( लेखक दूरदर्शन के समाचार वाचक/कमेंट्रेटर/वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्र लेखक स्तम्भकार हैं।)