दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है भारत

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Dr. BK Singh
डॉ0 बी0के0 सिंह 

पूर्व जोन प्रबन्धक, उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद, गोरखपुर जोन, गोरखपुर


विश्व में भारत दुग्ध उत्पादन में अग्रणी है तथा देश में गोवंशीय/महिवंशीय पशुओं का महत्वपूर्ण स्थान है। कहा जाता है, “गावों विश्वस्य जगता प्रतिष्ठा” “गावो विश्वस्य मातरः”। इसी कारण हमारे देश में विश्व दुग्ध दिवस की महत्ता बढ़ जाती है। यही नहीं विश्व की भागीदारी के साथ-साथ हम राष्ट्रीय दुग्ध दिवस का भी आयोजन करते हैं। इस दिवस को संयुक्त राष्ट्र संघ और कृषि संगठन द्वारा वैश्विक महत्व के प्रति जागरूक करने के लिये विशेष रूप से इसका आयोजन किया जाता है।

विश्व दुग्ध दिवस के अवसर पर हम पशुचिकित्साविदों का यह दायित्व बनता है कि दूध की आवश्यकता को जनमानस तक ले जायें और गाय को आंगन में लाने की आवश्यकता के महत्व को समझाना होगा। गाय के दूध को सम्पूर्ण आहार माना गया है। मनुष्य केवल गाय के दूध से ही स्वस्थ्य रह सकते हैं। मानव शरीर के लिये सभी आवश्यक तत्व इसमें होते हैं। गाय के दूध में 21 प्रकार के एमीनो एसिड, 11 प्रकार पेप्टी एसिड, 6 प्रकार के विटामिन, 8 प्रकार के कीण्व, 25 प्रकार के धातु तत्व, 2 प्रकार के सूगर, 4 प्रकार के फास्फोरस यौगिक एवं 19 प्रकार के नाइट्रोजन तत्व मौजूद हैं।

आवश्यकतानुसार समायानुक्रम में पशु वैज्ञानिकों तथा सरकार ने विशेष ध्यान दिया जिसका परिणाम यह है कि आज हम दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान रखते हैं। दुग्ध क्रान्ति के फलस्वरूप भारत में जहाँ पर वर्ष 1970 में 22 मिलियन टन था वह बढ़कर वर्ष 2020-21 में 209.96 मिलियन टन हो गया। वर्ष 2024-25 तक दुग्ध उत्पादन को 300 मिलियन टन करने का लक्ष्य रखा गया है। परन्तु, जहाँ पर हमने दुग्ध उत्पादन पर विशेष ध्यान देते हुए क्रॉसब्रीडिंग के कार्यक्रम को चलाया, वहीं हम दुग्ध की गुणवत्ता को भूल गये। यूरोपियन गायों में ए-1 मिल्क पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा भारतीय नस्ल की गायों में ए-2 मिल्क पाया जाता है, जो स्वस्थ्य
वर्धक है।

पशु प्रजनन नीति के तहत हमने भारतीय नस्ल की गायों को लगभग समाप्त ही कर दिया है। आवश्यकता है भारतीय नस्ल के गायों का संरक्षण एवं संवर्धन करने की, प्रजनन नीति में परिवर्तन करने की। अब तो हमारी गायें इनब्रीडिंग की शिकार हो रही हैं, जिस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। विश्व के छः बिलियन लोग दूध एवं इसके उत्पादों का ही सेवन करते हैं। बढ़ता हुआ शहरीकरण, गावों से होने वाला पलायन, बदलती हुई जीवन शैली अधिक प्रोटीन युक्त सामानों की मांग के फलस्वरूप देश में दूध एवं इसके उत्पादों की मांग बढ़ी है। बढ़ी मांग पूर्ति करने के लिए लगातार प्रयास भी सराहनीय है किन्तु, साथ ही बढ़ी मांग की पूर्ति हेतु बाजार में मिलावटी दुग्ध एवं उससे बने पदार्थों की मात्रा भी बढ़ी है।

डब्लू0एच0ओ0 की सलाह के अनुसार, यदि दुग्ध एवं उससे बने मिलावटी पदार्थों पर भारत सरकार ने रोक नहीं लगाया तो वर्ष 2025 तक देश की लगभग 87 प्रतिशत जनसंख्या खतरनाक एवं जानलेवा बीमारियों से ग्रसित हो जायेगी। दुग्ध उत्पादन एवं रोजगार सृजन एक दूसरे के पूरक हैं। भविष्य में हम सभी को उत्पादकता बढ़ाने, पशुओं के स्वास्थ्य एवं प्रबन्धन, रोगनियंत्रण, दुग्ध एवं दुग्ध उत्पाद पदार्थों की फूड सेक्योरिटी एवं सेफ्टी के लिये उचित कार्यवाही, पशु अस्पतालों व प्रयोगशालाओं को आधुनिक तकनीकि व्यवस्था देकर अधिकारियों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। वर्तमान् में पशु अस्पतालों का बुनियादी ढ़ांचा 60-70 के दशक का ही है, जो आज के आधुनिक परिवेश में सफल नहीं हो पा रहा है।

सभी पोषक तत्वों से युक्त स्वास्थ्यपरक तथा उपयोगी खाद्य पदार्थ के रूप में दूध की सच्चाई को समझाने के लिये यह आवश्यक है कि, हम जन जन में दूध के महत्व के प्रति जागरूकता अभियान चलायें। सरकारी नीतियों के क्रियान्वन के लिये जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में लगातार नाकाम साबित हो रहे हैं, जबकि सरकार पशुपालन एवं डेयरी उत्पाद हेतु विशेष ध्यान दे रही है। दुग्ध उत्पादक दूध का सही मूल्य नहीं पा रहे हैं। जिससे गोवंशीय/महिवंशीय का पालन-पोषण करने वाले अब अन्य विकल्पों की तालाश में हैं। आवश्यकता यह है कि, हमें नीतियों के क्रियान्वयन पर विशेष ध्यान देना होगा, जिससे पशुपालकों का ध्यान अन्य विकल्पों की ओर न जाये तथा आजीविका के मुख्य श्रोत के रूप में यह व्यवसाय फलीभूत हो।

 

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