मध्यकालीन भारतीय इतिहास का महानायक हेमू‌ विक्रमादित्य

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आचार्य पं शरदचन्द्र मिश्र, अध्यक्ष- रीलीजीयस स्कालर्स वेलफेयर सोसायटी

जब हम भारत के इतिहास को अपने आने वाली सन्तानों को अवगत कराते हैं तो मध्यकालीन इतिहास में सभी मुस्लिम शासकों की चर्चा करते हैं। उनके गुण और दोषों के बारे में समीक्षा करते हैं। कुछ हिन्दू राजाओं की भी चर्चा कर देते हैं। महाराणा प्रताप, वीर‌ शिवाजी, दक्षिण भारत के विजयनगर के राजाओं और सिक्ख गुरुओं तथा गुरु ‌गोविन्द सिंह जी आदि के विषय में भी कुछ चर्चा कर दी जाती है लेकिन मध्यकालीन भारत में पैदा हुए इस महानायक हेमू विक्रमादित्य की चर्चा नही की जाती है जो भारत के नेपोलियन बोनापार्ट थे। वे अकबर के समय में वीरगति को प्राप्त हुए थे। उनका कोई ऐसा अपना निजी इतिहासकार नहीं था जो उनकी शौर्य गाथा को लिपिबद्ध करे। अकबर चापलूसो और दरबारियों से घिरा रहता था। उसके दरबारियों में हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के व्यक्ति थे।

हेमू विक्रमादित्य

बीरबल और अबुल फजल जैसे लोग उसकी खुशामद करते रहते थे। अकबर के जीवनीकार अबुल फजल ने अपनी पुस्तक अकबरनामा में इस वीर नायक हेमू की चर्चा करते हुए उसे नमक और फेरी लगाने वाले परिवार का बताया है। बाद में जितने भी भारतीय इतिहासकार हुए उन्होंने मुगलों बादशाहों की शौर्य गाथाएं ही गाई है। कुछ हिन्दू इतिहासकार भी हुए जिनको मुस्लिम बादशाहों का आश्रय प्राप्त था उन्होंने भी हेमू की चर्चा करना उचित न समझा। लेकिन आज हेमू के विषय में जब जाना गया तो भारतीय इतिहासकार इस सम्राट को उसका उचित स्थान दे रहें‌‌ हैं जिसके वे पात्र हैं।

हेमू विक्रमादित्य हिंदू राजा थे। जिसने मुगल सेना को हराकर दिल्ली पर कब्जा किया था। हेमू हरियाणा में रेवाड़ी के रहने वाले थे‌ हेमू को मध्ययुगीन भारत में विरोधी मुस्लिम शासकों के बीच एक हिंदू राज्य स्थापित करने का श्रेय प्राप्त हुआ था। उसने अपने पूरे कैरियर में 22 लड़ाइयां जीती थी। इस कारण उसे कुछ इतिहासकारो ने समुद्रगुप्त का खिताब दिया है। हेमू को मध्ययुगीन युग का नेपोलियन भी कहा जाता है। वह एक अच्छे योद्धा थे तथा एक कुशल प्रशासक भी। उनके युद्ध कौशल का लोहा उनके साथियों के साथ उनके विरोधियों ने भी माना है। इतिहासकार आर पी तिवारी अपनी पुस्तक -राइज एंड फॉल आफ मुगल एम्पायर- मे लिखते है कि अकबर के हाथ से हेमू की हार दुर्भाग्यपूर्ण थी। अगर भाग्य ने साथ दिया होता तो हेमू की हार न होती। एक और इतिहासकार आर सी मजूमदार ने अपनी पुस्तक के एक अध्याय में लिखा है कि हेमू एक महान वीर थे।

वे आगे लिखते हैं कि पानीपत की लड़ाई में एक दुर्घटना के कारण हेमू की जीत हार में बदल गई थी, वरना वह दिल्ली में मुगलों के स्थान पर हिंदू राजवंश की स्थापना कर दिये होते। हेमू का जन्म वर्ष 1501 में हरियाणा में रेवाड़ी के गांव कुतुबपुर में हुआ था। उनके परिवार में किराने का काम होता था। अकबर के जीवनीकार अबुल फजल ने तिरस्कार पूर्ण वाक्य का प्रयोग करते हुए उसे फेरीवाला कहा है और यह भी लिखा है कि हेमू के पूर्वज रेवाड़ी की गलियों में रहते थे और नमक बेचा करते थे। उसका पेशा जो भी रहा हो वह शेरशाह सूरी के पुत्र इस्लाम शाह का ध्यान अपनी ओर खींचने में सफल हो गये थे। वह जल्द ही इस्लाम शाह का विश्वासपात्र बनकर उसके प्रशासन मंडल में शामिल हो गए थेऔर प्रशासन में उसका हाथ बंटाने लगे। बादशाह ने उन्हें डाक विभाग का प्रमुख बना दिया था। बाद में इस्लाम शाह ने उनमें सैनिक गुण देख उन्हें अपनी सेना में प्रमुख स्थान दे दिया था।

शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी के समय में जो स्थान ब्रह्मदत्त‌ गौड़ को मिला था वही स्थान इस्लाम शाह के समय में हेमू को प्राप्त हुआ। बाद में इस्लाम शाह के उत्तराधिकारी आदिल शाह के शासनकाल में हेमू को वकीले ए आला यानी प्रधानमंत्री का पद प्राप्त हो गया। जब आदिलशाह को पता चला कि हुमायूं ने वापस आकर दिल्ली पर कब्जा कर लिया तो उसने मुगलों को भारत से बाहर करने के लिए यह जिम्मेदारी हेमू को सौंपी। हेमू 50,000 की सेना जिसमें एक हजार हाथी और 51 तोपें थी उनको साथ लेकर दिल्ली के लिए कूंच कर दिए। उनकी इस विशाल सेना को देखकर कालपी और आगरा के गवर्नर अपना शहर छोड़ कर भाग गए।

दिल्ली के मुगल गवर्नर कादी खां ने हेमू को रोकने का प्रयास किया। मगर असफल रहा। 6 अक्टूबर 1556 को हेमू दिल्ली पहुंचे और उन्होंन तुगलकाबाद में सेना के साथ डेरा डाल दिया। दूसरे दिन युद्ध हुआ। मुगलों की सेना पराजित हुई और कादी खां जान बचाकर पंजाब की ओर भागा ,जहां अकबर की सेना पहले से मौजूद थीं। हेमू ने विजेता के रुप में दिल्ली में प्रवेश किया और सिर के उपर छत्र लगाकर विक्रमादित्य की पदवी धारण की। वैदिक मन्त्रों से उसे महाराज के रुप में मान्यता प्राप्त हो गई‌।उसने अपने नाम से सिक्के भी ढलवाए और दूर दराज के प्रदेशों में गवर्नर भी नियुक्त किए।

इधर जब हेमू को मालूम हुआ कि मुगल सेना जवाबी हमला की तैयारी कर रही है तो उसने पहले ही अपनी तोपें पानीपत की और भेज दी। बैरम खां ने अली कुली के नेतृत्व में 10,000 सैनिकों को पानीपत की ओर रवाना किया। अली कुली शैबानी एक उजबेक था और उसकी गणना उस समय के मशहूर लड़ाकों में होती थी। अबुल फजल जो अकबर का जीवनीकार है उसने लिखा- हेमू ने बहुत तेजी के साथ दिल्ली छोड़ दी। पानीपत दिल्ली से 100 किलोमीटर की दूरी पर है। उस समय उस क्षेत्र में सूखा पड़ा था इसलिए उस क्षेत्र के लोग भागकर दूसरे स्थानों पर चले गए थे। क्षेत्र में आदमियों का नामोनिशान नहीं था‌ हेमू की सेना में 30,000 अनुभवी घुड़सवार और 1500 तथा हाथियां थी। उनके सूंड में तलवारे और बरछियां लगी थीं। हाथियों के पीठ पर तीरंदाज सवार थे। इससे पहले मुगल सेना ने इतने बड़े हाथी नही देखे थे। उनके पास तेज दौड़ने वाले घोड़े थे।

अकबर को इस युद्ध में पीछे रखा गया और बैरम खान भी लड़ाई के मैदान में नहीं गया। यह काम उसने अपने खास लोगों को सौंपा था। इधर गलती से हेमू बिना कवच धारण किए हुए युद्ध के मैदान में उतर गया था। वह अपने साथियों का उत्साह बढ़ा रहा था जो हाथियों पर सवार थे। इसलिए हाथी का सहारा लिया ताकि हाथी पर सवार लोग उसको देख सकें। बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। मुगलों की सेना में खलबली मच गई और मुगल सेना भागने लगी। आमने सामने की लड़ाई में वे कमजोर पड़ने लगे। सेना को किनारे ले जाकर युद्ध करने लगे ।सीधा हमला करने की उनकी ताकत न थी‌। वे तिरछा हमला करने लगे ताकि हाथी पर सवार सैनिकों को गिराया जा सके। अचानक एक तीर हेमू की आंख में आकर लग गया जो आंख को चीरता हुआ खोपड़ी की ओर चला गया। हेमू उस तीर को अपनी आंखों से निकालकर पूरी बहादुरी से युद्ध करने लगा।

वह अपने आंखों पर कपड़ा बांध कर युद्ध करता रहा लेकिन अधिक रक्त निकल जाने के कारण वह हाथी पर ही बेहोश होकर गिर गया। जब सेनापति ही गिर गया तो उसके लोगों में युद्ध करने की चाहत कम हो गई और हेमू की सेना पलायन करने लगी। अकबर की सेना की विजय हो गई‌।वे जश्न मनाने लगे। कुछ देर के बाद अकबर के सेना ने एक भटकते हुए हाथी को देखा जिस पर कोई सवार नहीं था। वे सोचने लगे कि एक यह कैसा हाथी है जो इधर उधर भटक रहा है और उसका महावत नहीं है। वह उस हाथी के पास गए और देखे कि हाथी के सौदे में एक व्यक्ति घायल पड़ा हुआ है। ध्यान से देखने पर उन्हें पता चला कि वह हेमू ही हैं। वे उस हाथी को अकबर के पास लाए और अकबर को हेमू के बारे में बताया।

बैरम खां

उस समय हेमू घायल अवस्था में पड़ा था। 20 युद्धों का विजेता हेमू रक्तरंजित अवस्था में 14 वर्ष के अकबर के सामने पेश किया गया। बैरम खां ने बादशाह अकबर से कहा कि वह अपने दुश्मन हेमू का अपने हाथों से कत्ल करें। घायल को देखकर अकबर ठिठका। बैरम खां ने कहा कि वह उसके टुकड़े टुकड़े कर दे। बैरम खां द्वारा हेमू के कत्ल के लिए बार-बार उकसाने पर अकबर ने हेमू का सिर काट लिया। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि अकबर ने अपने तलवार से उसके शरीर को स्पर्श किया और बैरम खां ने उसका सिर काट दिया। हेमू एक कुशल शासक थे। उन्होंने हिंदू और मुसलमानों में भेद नहीं किया। उनकी सेना में दोनों कौम के लोग शांतिपूर्वक रहते थे। उन्होंने प्रजा के हित के लिए कार्य किया था। यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि उनकी पराजय हुई ।यदि वह रह गए होते तो भारत पर मुगलों का अधिपत्य न हुआ होता।

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