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10 जुलाई से 4 नवम्बर तक रहेगा- भगवान विष्णु का शयनकाल
आज का पंचांग
10 जुलाई को सूर्योदय 5 बजकर 15 मिनट पर और आषाढ़ शुक्ल एकादशी का मान प्रातः काल 9 बजकर 21 मिनट तक, विशाखा नक्षत्र प्रातः 6 बजकर 10 मिनट पश्चात अनुराधा नक्षत्र और शुभ योग सम्पूर्ण दिन रात को 10 बजकर 23 मिनट तक है। इस दिन विष्णुशयनी एकादशी है।
एकादशी, द्वादशी, पूर्णिमा अथवा कर्क की संक्रान्ति
इसमें विधि पूर्वक मनुष्य चार प्रकार से व्रत को धारण करके चातुर्मास का व्रत प्रारम्भ करें। चातुर्मास व्रत के समय साधु, तपस्वी, आदि एक स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं, कहीं आते जाते नहीं। वर्षा ऋतु के इस चौमास में पृथ्वी की जलवायु दूषित हो जाती है, यात्राएं भी दु:कद हो जाती है। अतः इन दिनों एक स्थान पर रहकर ब्रह्मचर्यादि नियमों का पालन करना अनेक दृष्टि से लाभदायक है। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को अखण्ड निद्रा ग्रहण करते हैं और चार महीने के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को निद्रा त्यागते है। पद्मपुराण में कहा गया है –
“आषाढ़े तु सिते पक्षे एकदश्यामुपोषित:। चातुर्मास्य व्रतं कुर्यात् यत्किंचित् नियमों नर:।।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उपवास करके विधिपूर्वक चातुर्मास के व्रत कै आरंभ करें। यह व्रत साधारणतया एकादशी के दिन ही ग्रहण किया जाता है।
तुला राशि का सूर्य होने पर जागृत होते हैं भगवान विष्णु
इसके विषय में पुराणों में कहा गया है – ” एकदश्यां तु शुक्लायामाषाढ़े भगवान हरि:। भुजंगशयने शेते क्षीरार्णवजले सदा।।”
आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष को भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषशैय्या पर शयन करते हैं, अतः इस एकादशी को हरिशयनी वह पद्मा एकादशी कहा जाता है। पुराणों के मतानुसार भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार महीने की अखण्ड निद्रा ग्रहण करते हैं और चार महीने बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को निद्रा त्याग करते हैं। जब सूर्य नारायण कर्क राशि में स्थित हों तो इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु को शयन करना चाहिए। यदि कर्क राशि पर सूर्य न भी हो तो भी इस दिन भगवान का शयन कराया जाता है। अधिक मास के आने पर भी यह विधि इसी प्रकार है। इस एकादशी के दिन शयन कराएं तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तुला राशि के सूर्य आने पर भगवान विष्णु को उठाना चाहिए।
देवशयनी एकादशी का महत्व
एकादशी के दिन व्रत रहकर स्नान ध्यान के अनन्तर सुखद पुष्प शैया पर विष्णु प्रतिमा को शयन कराएं। तद्नतर प्रार्थना आदि करके अपने चार महीनें के एकान्तिक वास का कार्यक्रम बनाने और फलाहार रहें। द्वादशी के दिन पारणा के बाद सांयकाल पूजा करें और चातुर्मास व्रत का संकल्प लें। फूल और फूलमाला से भगवान की प्रतिमा का अर्चन – वन्दन करके प्रार्थना करें- से जगन्नाथ स्वामिन्!
आपके शयन काल में यह पूरा संसार शयन करता है और आपके जग जाने पर सम्पूर्ण संसार जागता है। से अच्युत मुझ पर प्रसन्न हों। निर्विघ्नता पूर्वक इस व्रत को करने की शक्ति दें। मैं आपके जागने तक इस व्रत का पालन करता रहूं। इस बीच में श्रावण में शाक, भाद्रपद में दही, आश्विन मे दूध तथा कार्तिक में दाल न खाने का व्रत पूरा करुं। मेरे नियम का निर्विघ्न पालन हो।
इस एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु होते हैं प्रसन्न
इस एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। अतः इस दिन सुविधि पूर्वक व्रत करना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा या शालिग्राम की तथा विधि षोडशोपचार पूजन किया जाता है। पीताम्बर एवं गद्दे तकिए से सुशोभित हिंडोले अथवा छोटे पलंग पर उन्हें प्रार्थना पूर्वक सुलाना चाहिए।इस एकादशी को फलाहार किया जाता है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चातुर्मास का अनुष्ठान किया जाता है जिसका संकल्प इसी एकादशी के दिन किया जाता है।
चातुर्मास व्रत में धर्मशास्त्रों में अनेक वस्तुओं के सेवन का निषेध मिलता है और उसके विचित्र परिणाम भी बताएं गए हैं। चातुर्मास में गुड़ न खाने से मधुर स्वर, तेल का प्रयोग न करने से सुन्दरता, ताम्बूल न खाने से भोग और मधुर कण्ठ, घृत त्यागने से स्निग्ध शरीर, शाक त्यागने पक्वान्न होगी, दही, दूध और मट्ठा त्यागने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। भूमि पर चटाई या काष्ठासन पर सोना चाहिए। रात दिन ब्रह्मचर्य का व्रत धारण कर अपने मन को आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।