भाग- 11 : श्री राम जन्मस्थान ‘संघर्ष-गाथा’

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अनिल त्रिपाठी

(….केंद्र सरकार के गृह सचिव माधव गोडबोले ने साढ़े नौ बजे के करीब फैज़ाबाद में ही मौजूद भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के महानिदेशक से अपनी टुकड़ियों को तैयार रखने का निर्देश दिया। ..से आगे )

प्रतीकात्मक कारसेवा के लिए विवादित ढांचे के निकट स्थित राम चबूतरे का स्थान नियत था वहाँ पूजन यज्ञ-हवन की तैयारियां चल रही थीं। तैयारियों का जायज़ा लेने के लिए दस बजे के आसपास वहाँ लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और विनय कटियार पँहुचे। इन नेताओं को देखते ही कारसेवकों का जोश उफ़ान मारने लगा वो गगनभेदी नारे लगाने लगे। जायज़ा लेने के बाद ये नेतागण नज़दीक ही रामकथा कुंज की तरफ़ बढ़ चले। वहाँ बने विशाल मंच पर शीर्ष नेता और साधु संतों के ज़ोरदार भाषण चल रहे थे।

लाखों कारसेवकों की मौजूदगी में अतिउत्साह और रामघुन के बीच सब कुछ ठीकठाक चल रहा था। पौने बारह बजे ज़िला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक ने विवादित परिसर का दौरा किया। उन्होंने यज्ञ स्थल पँहुच कर प्रतीकात्मक कारसेवा की तैयारियों का भी जायज़ा लिया। उन्हें कहीं कुछ भी असामान्य नहीं लगा। अधिकारियों को दिशानिर्देश देकर वो चले गए। घटनाक्रम पर निगाह रखने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश पर आई.बी ने कई स्थानों पर ख़ुफ़िया कैमरे लगा रखे थे। मानस भवन में इसका कंट्रोल रूम था। इसी कंट्रोल रूम के ज़रिए केंद्रीय गृह सचिव के मार्फ़त केंद्रीय गृहमंत्री एस.बी चव्हाण को सूचना मिली कि कुछ कारसेवक विवादित ढाँचे के भीतर घुस गए हैं। उन्होंने किसी अनहोनी की आशंका से मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से सम्पर्क कर कारसेवकों को फ़ौरन विवादित ढाँचे से बाहर निकालने का आग्रह किया। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने कमिश्नर फैज़ाबाद से बात करते हुए स्थिति पर नियंत्रण करने को कहा, साथ ही ये हिदायत भी दी कि ध्यान रहे बिना गोली चलाए हालात को संभालना है। धीरे धीरे विवादित परिसर में कारसेवकों की सँख्या बढ़ती देख मौके पर तैनात प्रशासनिक अधिकारियों के माथे पर बल पड़ने लगे। स्थिति बिगड़ती देख फैज़ाबाद के जिलाधिकारी ने दोपहर एक बजे के करीब सी.आर.पी.एफ के डी.आई.जी से केंद्रीय बलों की 50 कम्पनियों की माँग की। इसी बीच डेढ़ बजे अयोध्या कंट्रोलरूम को मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का लिखित संदेश मिला कि विवादित परिसर खाली कराना है किंतु ये काम बिना गोली चलाये ही करना होगा। किसी क़ीमत पर एक भी गोली नहीं चलेगी।

डीएम की माँग पर फैज़ाबाद मुख्यालय से केन्द्रीय बल की टुकड़ियां अयोध्या के लिए रवाना हुईं लेकिन रास्ते मे उन्हें इस कदर विरोध और अवरोध का सामना करना पड़ा कि लाख कोशिशों के बावजूद वो अयोध्या पँहुचने में नाकाम रहीं,उन्हें वापस लौटना पड़ा। केन्द्रीय बलों के वापस लौटने की ख़बर जैसे ही अयोध्या पँहुची कारसेवक दूने उत्साह से नारे लगाते विवादित परिसर की तरफ़ बढ़ चले। वो रास्ते मे लगी बल्ली और लोहे की बैरिकेटिंग तोड़ते जा रहे थे। तभी अचानक कुछ ऐसा हुआ कि सब भौंचक्के रह गए ! विवादित ढाँचे के गुम्बद के एकदम ऊपरी छोर पर चढ़ा एक कार सेवक झंडा लहराते ज़ोर ज़ोर से जय श्री राम के नारे लगा रहा था !!!
उसे देख कारसेवकों का हुजूम जैसे पागल हो उठा। नारे लगाते सब उस ओर दौड़ पड़े।

यह दृश्य देख रामकथा कुंज के मंच पर मौजूद लालकृष्ण आडवाणी, जोशी जी और अशोक सिंहल चिंतित हो उठे। इन सभी ने बारी बारी माइक लेकर उत्तेजित कारसेवकों को नियंत्रित करने का भरसक प्रयास किया बार बार शांति बनाए रखने की अपील की लेकिन हर तरफ से उमड़ रहा रेला उनकी बात अनसुनी करते हुए ज़ोर ज़ोर से नारे लगाते बस आगे बढ़ने पर आमादा था। ‘एक ही नारा एक ही नाम – जय श्रीराम जय श्रीराम’ ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’, ‘एक धक्का और दो…जैसे गगनभेदी नारों के बीच लाउडस्पीकर से की जा रही सारी अपील फ़ीकी पड़ती जा रही थी। सुबह से अब तक अनुशासित कारसेवकों का समूह देखते देखते कब और कैसे उन्मादी भीड़ में तब्दील हो गया किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। अब हर कारसेवक ख़ुद एक नेता था। यह दृश्य देख उस समय मंच पर मौजूद हर नेता बहुत परेशान दिख रहा था बस एक उमा भारती थीं जिनकी ख़ुशी छुपाए नहीं छुप रही थी।

कुछ ही मिनटों में रामजन्मभूमि परिसर में चारों तरफ़ धूल के ग़ुबार और गगनभेदी नारों के बीच एक दूसरे से पहले गुम्बद तक पँहुचने की होड़ मच गई। देखते देखते सैकड़ों की संख्या में कारसेवक गुम्बदों पर चढ़ गए। जैसे जैसे परिसर में कारसेवकों की संख्या बढ़ती गई उनके हौसले बुलंद होते गए। उनके उग्र तेवर को देख परिसर में मौजूद पुलिस और अन्य सुरक्षाकर्मी बेबस लाचार नज़र आए, अधिकांश तो वहां से भाग खड़े हुए। दोपहर होते होते पूरा विवादित परिसर और विवादित ढाँचा पूरी तरह से अनियंत्रित और निरंकुश कारसेवकों के कब्ज़े में था। तीनो गुम्बदों पर सैकड़ों कारसेवक चढ़ चुके थे। रास्तों में पड़ी बैरिकेटिंग को तोड़ते हुए कारसेवक उनमे लगे लोहे के पाइप, रॉड आदि उखाड़ कर अपने साथ लेते आए थे। उन्ही पाइपों को पीट के नुकीला बना के उन्होंने बेलचा-फावड़े का रूप दे दिया था। जिसके हाथ में जो था, वही उस ढांचे को ध्वस्त करने का औजार बन गया।

गुम्बदों के ऊपर चढ़े कारसेवकों ने सबसे पहले गुबंदों के प्लास्टर को तोड़ दिया। गुम्बदों को तोड़ने का प्रयास शुरू ही हुआ था कि तभी कुछ कारसेवक जगह जगह रास्तों को रोकने के लिए बाँधे गए मोटे मोटे रस्से खींच कर ले आये। एक रस्से को ऊपर चढ़े कारसेवकों ने एक गुम्बद के चारों ओर लपेट कर एक बड़ा फंदा सा बना दिया फिर उसमें और रस्से बाँधकर हज़ारो कारसेवकों ने उसे खींचकर गुबंद को गिराने की कोशिश शुरू की, किंतु इस प्रयास में उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने पहले गुम्बद के नीचे की एक दीवार को तोड़ने का फ़ैसला लिया। बैरिकेडिंग से तोड़कर लाए गए लोहे के पाइप और उन्ही से बनाए गए औज़ार लेकर सैकड़ों कारसेवक दीवार को एक तरफ से तोड़ने में जुट गए। कुछ मिनटों में ही दाहिने गुम्बद के नीचे की दीवार लगभग पूरी तरह टूटने को आ गई, उधर गुम्बद के ऊपर फँसे रस्से के फंदे को भी हज़ारों की संख्या में कारसेवक पूरा ज़ोर लगाकर खींच रहे थे।

इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता वो दाहिना गुम्बद धड़ाम से ज़मीन पर आ गिरा। गुम्बद के इस तरह अचानक ढहने से दीवार तोड़ने में जुटे कारसेवकों को सम्हलने का मौका नहीं मिल पाया जिससे बहुत से कारसेवक गम्भीर रूप से घायल हो गए, कुछ के दब के मारे जाने की भी ख़बर थी। इस तरह दोपहर ढलते ढलते पौने तीन बजे के करीब विवादित ढाँचे के तीन में से पहला गुम्बद धराशाई हो चुका था। कारसेवकों को तरीक़ा मिल चुका था, इसी तरह से बाक़ी दोनो गुम्बद भी मात्र एक घण्टे में गिरा दिए गए। सर्वधर्म समभाव की सनातन परंपरा वाले इस देश की आस्था अस्मिता के माथे पर नफ़रत-हिक़ारत और जेहादी वैमनस्यता का पाँच सौ साल पुराना प्रतीक बेलगाम कारसेवकों के उन्माद के बीच मात्र तीन घँटे में ज़मीदोज़ हो चुका था।

आस्थावान हिंदुओं के लिए सदियों के कलंकित इतिहास को 6 दिसम्बर का वर्तमान ‘इतिहास’ होते देख रहा था। धूल के ऊँचे ग़ुबार और चारों तरफ़ अफरातफरी के माहौल के बीच जोश और जुनून में डूबे कारसेवकों का जयघोष हवा में गूँजने लगा। हैरान परेशान बदहवास सुरक्षा अधिकारी हाथों में वायरलेस सेट लिए किसको क्या जानकारी दे रहे थे कुछ पता नहीं। इसी बीच रामकथा कुँज के मंच से आचार्य धर्मेन्द्र और साध्वी ऋतंभरा आदि की गर्जना सुनाई दी ” रामभक्तों यह किसी इमारत का मलबा नहीं, ये आक्रांता बाबर की अस्थि‍यां हैं। विजय चिन्ह के रूप में आप इन्हें अपने साथ ले जाएँ। ” लाउडस्पीकर से बार बार गूंज रहा उनका यह ऐलान सुन कारसेवकों की भीड़ मलबे के ढेर पर टूटी पड़ रही थी। ईंट,पत्थर,प्लास्टर,लकड़ी के टुकड़े आदि जिसके हाथ जो लगा हर कोई अपने साथ निशानी के तौर पर कुछ न कुछ ले जाने को आतुर दिखा।

देखते ही देखते मलबे का विशाल ढेर विलुप्त हो गया। भीड़ अभी भी टूटी पड़ रही थी जिसे कुछ नहीं मिला वो मुट्ठियों में वहां की मिट्टी ही उठाकर जेबों में भरते या पोटली बांधते दिखा कुछ बैरिकेटिंग में लगे पाइप भी उठाते दिखे। नारों के जयघोष भागदौड़ अफरातफरी के बीच दूसरी तरफ विश्व हिंदू परिषद, बजरंगदल के कार्यकर्ताओं के साथ महंत रामचन्द्र परमहंस जी गिराए गए ढाँचे में ठीक गर्भगृह वाले स्थान को साफ कर रामलला का अस्थायी मंदिर बनाने की तैयारी में जुट गए। दूसरी तरफ़ हज़ारों कारसेवक रामजन्मभूमि मंदिर की ओर आने वाली हर सड़क हर गली के हर मोड़ पर अवरोध बनकर खड़े हो गए। उन्होंने किसी क़ीमत पर बी.एस.एफ और सी.आर.पी.एफ के जवानों को विवादित परिसर तक पँहुचने से रोके रखा। थोड़ी ही देर में वहाँ तंबू तान के एक अस्थायी मन्दिर का निर्माण हो गया।

आनन फ़ानन आवश्यक वैदिक रीतिरिवाज़ और मंत्रोच्चार के बीच वहाँ महंत रामचन्द्र परमहंस जी द्वारा रामलला की मूर्ति विराजमान करते ही जन्मभूमि के चारों ओर गगनभेदी जयघोष के साथ अभूतपूर्व हर्षोल्लास व्याप्त हो गया। अब जो दृश्य था वो हतप्रभ करने वाला था।

अस्थायी मंदिर में विराजमान रामलला के दर्शन के लिए सुरक्षाबलों की लंबी कतारें लग गईं। हालांकि उनके उच्चाधिकारी इन्हें बार बार ऐसा न करने की चेतावनी देते भी देखे गए लेकिन जवानों के अंदर बैठे ‘ रामभक्त ‘ पर इन चेतावनियों का कोई असर होता नहीं दिखा।

और तो और दर्शन के लिए लाइन में लगे और अस्थायी मंदिर के आसपास तैनात जवानों में से किसी के भी पाँव में जूते नहीं दिख रहे थे। श्रद्धा से उनमे से बहुतों की आँखे भर आईं थीं। आँखे तो उस समय भी तमाम जवानों की भर आईं थीं जब मुलायम सिंह के कहने पर उन्होंने रामभक्तों पर गोलियां बरसाई थीं लेकिन तब वो आँसू बेबसी के थे लाचारी के थे मलाल के थे आत्मग्लानि के थे। जबकि आज ये आँसू विशुद्ध श्रद्धा के थे। सुरक्षा बलों की ये श्रद्धा और उनके नंगे पाँव इस देश की नस नस में बसी शास्वत सनातन आस्थावान भावना का वास्तविक दर्शन करा रहे थे। विश्व हिंदू परिषद नेता चम्पत राय के शब्दों में ‘मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवेद्य नाथ कहा करते थे कि ‘ जब वह राम जन्मभूमि को देखते हैं तो उनको लगता है कि किसी ने उनके पिता की हत्या कर लाश को पेड़ पर टांग दिया है। कोई उनको चुनौती देता है कि उतार कर उनका संस्कार कर दो। 500 साल संस्कार नहीं कर पाए, 6 दिसंबर 1992 को संस्कार करना पड़ा’। वस्तुतः देश के अधिसंख्य हिंदुओं की भावना महंत अवेद्य नाथ की भावना जैसी ही थी, विशेषकर उनकी जिन्होंने राम जन्मभूमि के वास्तविक इतिहास और संघर्ष गाथा के बारे में पढ़ा-समझा है। अलबत्ता कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें मालूम तो सारा सच है लेकिन जानबूझकर अनजान बन सिर्फ़ स्यापा फैलाने को अभिशप्त हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऑब्जर्वर नियुक्त कर रखा था। केंद्रीय गृहमंत्रालय और रक्षा मंत्रालय ने अपरिहार्य स्थिति से निपटने के लिए बड़ी संख्या में सुरक्षा बल और सेना के साथ हेलीकॉप्टर और ट्रांसपोर्ट जहाज तक तैयार रखे थे। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने भी विवादित ढाँचे को नुकसान न पँहुचने देने का आश्वासन दिया था। रामकथा कुँज के मंच से भाजपा के शीर्ष नेताओं ने कारसेवकों से शांत रहने और ढाँचे को कोई नुकसान न पंहुचाने की बार बार अपील की। लेकिन किसी बात का कोई असर नहीं हुआ। सारा इंतज़ाम धरा का धरा रह गया। आक्रोशित उद्वेलित उन्मत्त कारसेवकों के जन उफ़ान ने मात्र तीन घण्टे में देश की सनातन अस्मिता के माथे पर लगे 500 वर्षों के कलंकित इतिहास को इतिहास बना डाला। विवादित ढाँचे के ढहने की सूचना मिलते ही साढ़े चार बजे के आसपास घटना की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए कल्याण सिंह ने राज्यपाल के पास अपना इस्तीफा भेज दिया।

हालाँकि शाम छह बजे के आसपास केंद्र ने उनकी सरकार बर्ख़ास्त करने का दावा किया, किन्तु सच यह है कि इससे पहले ही वो प्रेस को भी सम्बोधित करते हुए अपने इस्तीफ़े की घोषणा कर चुके थे। अपने इस्तीफ़े के बाद मीडिया से मुखातिब होते हुए कल्याण सिंह ने कहा था ” मुझे बाबरी ढाँचा ढहाए जाने का कोई दुख नहीं है, कोई मलाल नहीं है। मैं राम मंदिर के लिए मुख्यमंत्री की ऐसी सौ कुर्सियों को क़ुर्बान कर सकता हूं।” शाम सात बजे केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उत्तरप्रदेश विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी। 10 दिन बाद 6 दिसम्बर के घटनाक्रम और उसमें नेताओं समेत अन्य लोगों की भूमिका की जांच के लिए प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव ने जस्टिस लिब्रहान की अगुवाई में एक जांच कमीशन का गठन किया। सी.बी.आई जांच भी शुरू हुई। जांच के बाद सी.बी.आई अदालत में जिन नेताओं के विरूद्ध षड़यंत्र रचने का आरोप लगाया गया उनमे लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, विष्णु हरि डालमिया, चम्पत राय बंसल, सतीश प्रधान, धर्मदास, महंत नृत्य गोपालदास, महामण्डलेश्वर जगदीश मुनि, रामविलास वेदान्ती, बैकुंठ लाल शर्मा और सतीश चन्द नागर आदि शामिल थे। जबकि विवादित ढाँचे की रक्षा न कर पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कल्याण सिंह को एक दिन की सज़ा सुनाते हुए उनपर बीस हज़ार रुपये का ज़ुर्माना लगाया, जिसे कल्याण सिंह ने क़ानून का सम्मान बताते हुए सहर्ष शिरोधार्य किया।

लिब्राहन आयोग ने करोड़ों रुपए फूंक कर 17 साल बाद 2009 में अपनी हज़ार पन्ने की रिपोर्ट दी। सी.बी.आई ने भी हर मुमकिन कोशिश की लेकिन सारी कवायद के बाद भी यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका कि ढाँचा विध्वंस के लिए ज़िम्मेदार कौन है, एक भी कारसेवक को सज़ा नहीं हो पाई।

क्रमशः –

(तथ्य सन्दर्भ – प्राचीन भारत इतिहास , लखनऊ गजेटियर, अयोध्या गजेटियर, लाट राजस्थान, रामजन्मभूमि का इतिहास (आर जी पाण्डेय), अयोध्या का इतिहास (लाला सीताराम), बाबरनामा, दरबारे अकबरी, आलमगीर नामा, तुजुक बाबरी, तत्कालीन समाचार पत्र)

( लेखक दूरदर्शन के समाचार वाचक/कमेंट्रेटर/वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्र लेखक स्तम्भकार हैं।)

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