रात्रि में कृत्रिम प्रकाश : प्रकाश प्रदूषण का जनक

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प्रोफेसर दिनेश कुमार सिंह
( पूर्व विभागाध्यक्ष जूलॉजी, और पर्यावरण विज्ञानी डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी)

विगत एक दशक में” जगमगाते शहर और गांव “अब दुनियाभर के वैज्ञानिकों का प्रकाश प्रदूषण के प्रभाव पर ध्यान आकर्षित करने लगे हैं। 2022 स्टेट ऑफ द साइंस, साइंस एडवांस जर्नल और साइंटिफिक अमेरिकन में प्रकाशित अध्ययन ,जिसमें दुनिया भर के हजारों वैज्ञानिकों का 160 से अधिक जंतुओं और पौधों पर रात्रि में अत्यधिक प्रकाश के शोध परक अध्ययन को विस्तार से बताया गया है। 2013 से 2018 तक मेरे चार विद्यार्थियों ने प्राणि विज्ञान गोरखपुर विश्वविद्यालय के मैलेकोलाजी प्रयोगशाला में प्रकाश के विभिन्न स्पेक्ट्रेल कलर का पौधों के क्लोरोफिल और जंतुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है का अध्ययन किया और उसे 15 अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं मैं प्रकाशित भी किया है।
वैज्ञानिकों का मत है कि 2012 के बाद से पृथ्वी पर प्रकाश प्रदूषण तेजी से दो परसेंट हर वर्ष की गति से बढ़ रहा है। वर्तमान में औसतन दुनिया की 80 % आबादी और अमेरिका और यूरोप की 99% आबादी प्रकाश प्रदूषण के प्रभाव में आच्छादित है। ऐसा माना जा रहा है कि सोडियम लाइट की तुलना में लाइट ईमीटिंग डायोट(एल ई डी) लाइट का रात्रि आकाश में और घर के बाहर प्रयोग से कम तरंग की अधिक ऊर्जा का तेज प्रकाश उत्सर्जन हो रहा है जो पर्यावरण के नुकसान के साथ-साथ जीव जंतु पौधे और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं। इस प्रभाव को बादल और बर्फ कई गुना बढ़ा देते हैं।

वर्तमान में एलईडी लाइट सस्ता और कम ऊर्जा खपत पर अधिक प्रकाश देने के कारण पूरे विश्व में इसका प्रयोग घरों में ,फैक्ट्रियों में, दुकानों में मॉल में सड़कों पर और घर के बाहरी स्थानों में पूरे विश्व में पिछले एक दशक में कई गुना बढ़ गया है। इसका प्रयोग आवश्यकता से अधिक लोग कर रहे हैं। वैज्ञानिकों ने इसके दुष्परिणाम को बहुत ही विस्तार से बताया है। रात्रि में अधिक प्रकाश से पौधों और जंतुओं के जागने छिपने ,शिकार करने ,उड़ने और मेटाबॉलिज्म पर प्रभाव पड़ रहा है। उनके जीवन के प्राकृतिक चक्र में बदलाव पूरे पृथ्वी पर पड़ रहा है। प्रकाश प्रदूषण का प्रभाव खगोलीय और रिमोट सेंसिंग अध्ययनों पर भी पड़ रहा है। प्रकाश प्रदूषण का प्रभाव पृथ्वी के स्थलीय और समुद्र के भीतर सैकड़ों ‌मीटर अंदर तक विभिन्न मछलियों, स्तनधारियों, उभयचर सरीसृप और पक्षियों के जीवन चक्र पर पड़ रहा है। जंतुओं के आपस में संवाद, प्रजनन, भोजन, देशांतर गमन पर विशेष रूप से पढ़ रहा है। पक्षी जो रात्रि में तारों के कंपास की सहायता से भोजन और प्रजनन के लिए अपना देशांतर गमन करते हैं अत्यधिक प्रकाश के कारण नहीं कर पा रहे हैं।

कृषि के क्षेत्र में रात्रि परागण करने वाले बहुत से इंसेक्ट अत्यधिक प्रकाश से दिग्भ्रमित हो करके अपना कार्य नहीं कर पा रहे हैं इसलिए अनाज उत्पादन पर इसका असर पड़ रहा है। रात में चलने वाले जुगनू की प्रजातियां समाप्त हो रही हैं। रात्रि में तेज प्रकाश से गौरैया कौवा बगुला आदि पक्षी शहर छोड़ रहे हैं। पालतू जानवरों जैसे कुत्ते, बिल्ली के काटने की घटनाएं अधिक हो रही हैं। दुधारू पशुओं में नींद पूरी ना होने से दूध का उत्पादन कम हो रहा है।

रात्रि में अधिक प्रकाश का प्रभाव वन्य जीवो पर भी पढ़ रहा है। अत्यधिक प्रकाश में रहने से मानव शरीर पर भी नकारात्मक प्रभाव अब दिखने लगे हैं। मानव में कोशिका संकेतांको के माध्यम से शरीर के विभिन्न कार्यों के संपादन में बदलाव देखने को मिल रहा है। एलईडी लाइट से कम तरंगदैर्ध्य की नीली लाइट से एपीजेनेटिक्स प्रभाव मानव डीएनए पर है। रात्रि प्रकाश का मिलेट्रोनिन हार्मोन स्रावण पर भी प्रभाव पढ़ रहा है जो मानव में अनिद्रा का कारण बन रहा है । अत्यधिक रात्रि प्रकाश से मोटापा, डायबिटीज, कैंसर (विशेषता ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर), कैंसर के फैलाव में तेजी, प्रतिरोधक क्षमता का कम होना, रक्त नालिका का कड़ा होना, संक्रामक रोगों का बढ़ना, डीमेशिया और आटिशम, उच्च रक्तचाप की वृद्धि मानव स्वास्थ्य में पाई गई है।

यद्यपि रात्रि प्रकाश ट्रैफिक सेफ्टी और क्राइम रोकने के लिए कुछ हद तक सहायक है लेकिन इसके अत्यधिक प्रयोग से 1.5 परसेंट विश्व ऊर्जा उपभोग का हम व्यर्थ में प्रयोग कर रहे हैं जिससे पर्यावरण बदलाव पर प्रभाव पड़ रहा है। एक अध्ययन के अनुसार अमेरिका में पाया गया है कि अत्यधिक रात्रि प्रकाश का प्रभाव सामाजिक व्यवस्था में सबसे अधिक एशिया और ब्लैक अमेरिकन पर है। इसके अलावा अंतरिक्ष मैं अत्यधिक सैटेलाइट छोड़ने से भी पृथ्वी पर लाइट रात्रि में बढ़ रहे और यह एक नए प्रकार के प्रदूषण को बढ़ावा दे रहा है।

आत: रात्रि में समुचित कृत्रिम प्रकाश का प्रयोग करने की आवश्यकता है । विश्व में अत्यधिक रात्रि प्रकाश को रोकने हेतु आंदोलन शुरू हो रहा है जैसे अपने देश भारत में 2016 और 2017 में मुंबई के निलेश देसाई और सुमेरा अब्दुलाली ने एलईडी लाइट के खिलाफ आवाज उठाई। जर्मनी ने 2020 में कीटो पर संकट के कारण फ्लड लाइट पर रोक लगा दी। अमेरिका में उत्तरी कैरोलिना ने होटल के बाहर तेज रोशनी लगाना रोक दिया, पेंसिल्वेनिया में पुलो और सड़कों पर कम रोशनी वाले बल्वो का प्रयोग किया जाने लगा।

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