आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र
अध्यक्ष – रीलीजीयस स्कॉलर्स वेलफेयर सोसायटी
हमारे देश में कई धर्मों के लोग निवास करते हैं। यह सनातन धर्मियों का देश है। मुसलमान, ईसाईयत और पारसी धर्म, भारत के बाहर का धर्म है। यहूदी धर्म भी बाहर का धर्म है। इन चारों धर्म के लोगों की यह जन्मभूमि नहीं है। हलांकि कालांतर में भारतीय समुदाय के लोग लोभ और भय के कारण मुस्लिम और ईसाई बन गए हैं। पश्चिम का एक धर्म यहूदी धर्म है। इसके मानने वाले आज इजराइल में रह रहे हैं, हलांकि इन्होंने दो हजार से अधिक वर्षों तक निर्वासन में जीवन व्यतीत किया है। इनका देश इजराइल है। वहीं उनके धर्म की उत्पत्ति हुई है। वहीं उनका पवित्र मन्दिर यरुशलम में बना था, जिसे रोमन और मुसलमानों ने कालान्तर में विध्वंस कर दिया। इतिहास के सतत क्रम में जितनी परेशानी यहूदियों ने झेली, उतना संसार की अन्य कौमों में से शायद ही किसी ने झेली हो।
कहा जाता है कि जब रोमन लोगों ने पहली शताब्दी में यरुशलम पर आधिपत्य स्थापित किया तो उन्हें अपना देश छोड़कर भागना पड़ा और वे एशिया माइनर और यूरोप की ओर चले गए। प्रारंभ में उन्हें ईसाईयों ने प्रताड़ित किया और इस्लाम के उदय के बाद तो मुस्लिमों ने इस बहुत अत्याचार किया। यह क़ौम अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अनेक स्थानों पर निर्वासित होती रही है। बहुत से यहूदी दमन के चक्र में अपने धर्म को छोड़कर ईसाईयत और इस्लाम स्वीकार कर लिए, लेकिन कुछ ऐसे बचें जो अपने पूर्वजों के धर्म को न छोड़ पाए और उसे संजोकर रखे। हिटलर के समय में सबसे ज्यादा अत्याचार यहूदियों पर हुआ। उसके लाखों यहूदियों को अकारण मरवा डाला। हिटलर ईसाई धर्म का था और वह यहूदियों से घृणा करता था।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब संयुक्त राष्ट्र संघ बना तो यहुदियों ने अपने स्वतन्त्र राष्ट्र की मांग रखी और उस समय उन्हें इजरायल सौंपा गया। उस समय इजराइल में फिलीस्तीनी मुसलमानोंका आधिपत्य हो चुका था। वे उसे छोड़ना नहीं चाहते थे। उन्हें भी उसी भूमि में विस्थापित किया गया है। भारत में भी कुछ यहुदी मालाबार तटीय क्षेत्रों में आ गए थे। आज बहुत कम यहूदी भारत में है। उनका देश की जनसंख्या में कोई अनुपात नहीं है। इजरायल का मूल धर्म है यहूदी। तो आज वहां मुसलमान भी है और कुछ ईसाई भी। इनके परमेश्वर का नाम यहोवा है। प्रारंभ में यहूदी एक खानाबदोश कौम थी। इस कौम के लोग बहुत समय तक मिस्र में गुलाम के रुप में रहे। इन कौम में एक महान व्यक्ति पैदा हुआ जिसका नाम मूसा था। उसी ने यहूदियों को, अपने क़ौम को मिस्र की गुलामी से आजादी का बिगुल बजाया था और अपने कौम को मुक्त कर इजराइल लाया और एक नए देश की नींव रखी थी। जब मध्य पूर्वी देशों में वहां के रहने वाले खानाबदोशी की तरह जीवन जी रहे थे। ऐसे समय में मूसा ने अपने कौम के लिए एक राष्ट्र की नींव रखी थी।
यहूदी, ईसाई और इस्लाम-इन मोनो धर्मों को इब्राहिमिक धर्म कहा जाता है क्योंकि ये तीनों इब्राहिम को अपना पूर्वज मानते हैं। देखा जाए तो इनके मान्यताओं में बहुत समानता है। मुसलमान और ईसाई भी अपने धर्म ग्रन्थ में इब्राहिम,आदम,याकूब, इसहाक, नूह का उद्धरण देते हैं। ये जब ईसाईयत और इस्लाम का जन्म नहीं हुआ था तो ये यहूदियों के पूर्वज के रूप में मान्य रहे हैं। धर्म शास्त्र के विद्वानों का कथन है कि नब्बे प्रतिशत कुरान की मान्यताएं यहूदियों के ग्रन्थ तोराह से ली गई है। कुरान में कुछ अरबी प्रथाओं को मिलाकर एक नया धर्म बना दिया गया है। इस्लाम कोई नया धर्म ही नहीं है वह तो यहूदी मान्यता पर आधारित एक पंथ हैं। यदि उसमें से यहूदी मान्यताओं को निकाल दिया जाए तो उसमें कुछ भी नहीं बचता है।वह शून्य और निर्जीव है।
लगभग चार हजार वर्ष पहले की बात है एक उर नाम का नगर पश्चिमी एशिया में था।वहां। की जनसंख्या करीब ढाई लाख के आसपास थी। सारांश का रहने वाला तेराह उसी नगर में आकर बस गया। कुछ दिन वह वहां रहा। पुनः अपने तीनों बेटों, अब्राम, नाहोर और हारान को लेकर वह उर नगर को छोड़कर कनान प्रदेश में आ गया। कुछ समय के बाद वह सारांश देश में बस गया। वह वहीं मर गया। पुरानी बाइबल ( यहुदी ग्रंथ) में लिखा है कि उसके परमेश्वर यहोवा ने अब्राम से कहा कि वह अपने जन्मभूमि, देश और पिता के घर को छोड़कर उस देश में जाए, जहां वह उसको शिक्षा देगा।इसके बाद वह कनान देश में आ गया। अब्राम शेकेम में बसा।शेकेम यरुशलम से 27 मील उत्तर है। फिर वह पहाड़ी प्रदेश नेगेव की ओर बढ़ा। उसने कुछ लोगों को अपने नए यहोवा धर्म में दीक्षित किया। कनान के रहने वालों ने अब्राम को इब्री कहा। इब्री का अर्थ होता है कि वे लोग जो दजला और फरात नदी के उस पार से आए हैं। इब्री का कुटुंब कहलाता इब्रीस। इब्रीस शब्द का ही बिगड़ा रुप से हिब्रू ।
यहोवा ने अब्राम से कहा कि तेरा वंश तारों की तरह अनगिनत होगा। मै तुम्हे नील नदी से पफरात नदी तक का सम्पूर्ण भूभाग देता हूं। अब तेरा नाम अब्राम से इब्राहीम- सबका पिता- होगा। मेरे वचन के प्रतीक अपना, अपने वंश वालों का और अपने दासों का खतना करा। बच्चे के पैदा होने के बाद आठवें दिन यह संस्कार कर। इब्राहिम का बेटा हुआ इसहाक और याकूब। याकूब इसरायल कहलाया। याकूब के 12 पुत्र हुए। उसका छोटा बेटा था युसूफ। एक था यहूदा। उसी से सारी जाति का नाम पड़ा यहूदी। यसूफ मिस्र चला गया। वहां वह मंत्री भी रहा लेकिन वह अपने यहोवा धर्म को मानता रहा। उसके बाद कुछ समय के लिए यहूदियों का कोई नेता नहीं हुआ। वे नागरिक अधिकारों से वंचित रहकर गुलामों जैसा जीवन व्यतीत करने लगे थे।
बहुत दिनों के बाद मूसा पैदा हुए। मिस्र में रहने वाले यहुदियों की दयनीय दशा को उसने देखा और उसने यहूदी जाति का उद्धार किया और उन्हें अपने देश इजराइल लौटा लाया।मूसा ने सिनाई पर्वत पर यहोवा का दर्शन हुआ और उसने दस पवित्र आदेश दिए। मूसा ने उसी आधार पर अपनी व्यवस्था रची। मूसा के कुछ दिन बाद फिलीस्तीन पर इजरायलियों का राज्य रहा। लेकिन सामरिया और जूड़ा का राज्य बहुत दिनों न चल सका। बहुत दिनों तक लड़ाई झगड़े चलते रहे और यहूदी लोग संसार में जगह जगह जाकर बस गए। उन पर जगह जगह अत्याचार हुए लेकिन अपने धर्म को उन्होंने न छोड़ा। मातृभूमि में लौटने की भावना यहूदियों में धीरे धीरे पनपती गई। बीसवी सदी के आरंभ में ने आंदोलन ने जोर पकड़ा। अंत में वे सफल हुए और 15 अगस्त 1948 को नये राष्ट्र का उदय हुआ।उसका नाम रखा गया -इजरायल।
एक बार की बात है कि कनान में अकाल पड़ गया तो अब्राम उससे बचने के लिए अपनी कौम कै लेकर मिस्र चला गया। वहां मिस्र के राजा फरोहा ने उसे धन अन्न वगैरह देखकर विदा किया।वह पुनः नेगेव नगर को लौट आया। वहां वह हेब्रोन के पास मेमरे के मैदान में अंतिम रुप से बस गया। यही पर उनके परमेश्वर यहोवा ने उसे दर्शन दिया और कहा- मै वही यहोवा हूं जो तुझे उर नगर से निकल कर यहां लाया और यहां का अधिकार तुम्हें दे रहा हूं।-
मैनै ओल्ड टेस्टामेंट का बारीकी से अध्ययन किया। उसमें जो मान्यताएं हैं। लगभग वही मान्यता मुसलमानो ने यहूदियों से ले लिया है। क्या हराम है? क्या हलाल है? यह सब यहूदियों के पेंटाटीच में लिखा हुआ है। मूसा की संहिता इस्लाम के उदय से बहुत पहले का है। इतिहासकारों के अनुसार मूसा मुहम्मद से एक हजार वर्ष पहले हुए हैं। लगभग सभी बातें और मान्यताएं उन्हीं से ली गई है। खतना की प्रथा पेगन लोगों में नहीं थी। यह मिस्र के कुछ भागों और यहूदियों में थी जिसे मुसलमानो ने ग्रहण कर लिया। यदिआप दोनों धर्म के पुस्तक को देखें तो पाएंगे कि सब कुछ उनसे उधार लेकर एक नया धर्म निर्मित किया गया। उपर से कुछ नहीं आया जो इस्लाम में आया वह यहूदियों से आया। पहले यहूदी बहुत कट्टरपंथियों होते थे लेकिन वैज्ञानिक सोच के होने के कारण वे आज लिबरल है। वे सभी धर्म का आदर करते हैं और अपने सोच को किसी दूसरे पर आरोपित नहीं करते हैं और न ही दूसरों को यहूदी बनाने के लिए बेताब ही रहते हैं।
यहूदियों ने इस संसार को बहुत कुछ दिया है। यहूदियों में अनेक वैज्ञानिक सोच के लोग पैदा हुए हैं जिसने तकनीकी क्षेत्र और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कुछ नया दिया है। मुसलमानो को चाहिए कि कुरान के अध्ययन के पहले यहूदियों के ग्रन्थ ओल्ड टेस्टामेंट का अध्ययन करे। यदि वे उनके ग्रंथ को पढ़ लेंगे तो उनके समझ में आ जाएगा कि इस्लाम की उत्पत्ति कैसे हुई है। पुरानी बाइबल जिसे ओल्ड टेस्टामेंट कहते हैं, वह यहूदियों का मूल धर्म ग्रंथ है। उसके तीन भाग हैं -तोरा,नबी और नविश्ते। तोरा में पुरानी बाइबल के पांच अध्याय है – उत्पत्ति, निर्गमों, लैव्य व्यवस्था, गिनती और व्ययस्था विवरण। सिनाई पर्वत पर यहोवा ने मूसा खोजों दस आदेश दिए थे, उनके अलावा 600 से उपर अनन्य आदेश है। खान पान, धार्मिक उत्सव, पर्व, त्योहार, अपराध, दंड आदि अनेक विषय इसमें आए हैं।