आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र
अध्यक्ष – रीलीजीयस स्कॉलर्स वेलफेयर सोसायटी
14 अप्रैल दिन दिन शुक्रवार को मेष संक्रान्ति का पर्व है। इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बिहार में सतुआ संक्रांति के नाम से जाना जाता है।इस दिन सूर्योदय 5 बजकर 42 मिनट पर , वैशाख कृष्ण नवमी तिथि का मान सम्पूर्ण दिन और रात्रि 9 बजकर 32 मिनट तक,शुभ योग प्रातः काल 8 बजकर 24 मिनट तक, पश्चात साध्य योग और इस दिन आनंद नामक औदायिक योग भी है। सर्वासिद्धियोग प्रातः 5 बजकर 18 मिनट से सम्पूर्ण दिवस विद्यमान रहेगा।हृषीकेश पंचांग के अनुसार इस दिन सूर्य मेष राशि का परित्याग कर, मेष राशि में सायंकाल 5 बजकर 4 मिनट पर प्रवेश कर रहे हैं। भारतीय ज्योतिष के अनुसार इस दिन से नया सौर वर्ष का प्रारंभ माना जाता है। वर्ष में कुछ 12 संक्रांतियां होती है। जिसमें दो संक्रांतियों का सर्वाधिक महत्त्व है प्रथम मेष संक्रान्ति, द्वितीय मकर संक्रांति।
संक्रांति क्या है ? इसके बारे कहा गया है कि सूर्य जिस राशि पर स्थित हो, उसे छोड़कर जब दूसरी राशि में प्रवेश करे,उस समय का नाम संक्रांति है।ऐसी बारह संक्रांतियों में मकर आदि छ: और कर्क आदि छ: राशियों के भोगकाल में क्रमशः उत्तरायण और दक्षिणायन — ये दो अन्य होते हैं। इसके अतिरिक्त मेष और तुला की संक्रांति विषुवत् ,वृष , सिंह, वृश्चिक और कुंभ की संक्रांति विष्णुपदी और मिथुन, कन्या,धनु और मीन की षड्शीत्यायन संज्ञा होती है।अयन या संक्रांति के समय व्रत दान या जपादि के विषय में हेमाद्रि के मत से पहले और पीछे की पन्द्रह – पन्द्रह घटियां और आचार्य बृहस्पति के मत से दक्षिणायन के पहले और उत्तरायण के पीछे की बीस- बीस घटियां तथा आचार्य देवल के मत से पहले और पीछे की तीस- तीस घटिया पुण्यकाल की होती है। पुण्यकाल के विषय में और भी कई आचार्य के भिन्न भिन्न मत हैं। कोई केवल पहले और पश्चात की दस घटिया अर्थात चार घंटा पहले और चार घंटा पश्चात को ही मानते हैं।सामान्य: बीस घटी अर्थात आठ घंटा पहले और पश्चात के समय को पुण्यकाल माना जाता है।
इसकी विशेषता है कि दिन में संक्रांति हो तो पूरा दिन, अर्धरात्रि से पूर्व हो तो उस दिन का उत्तरार्द्ध, अर्धरात्रि के बाद हो आने वाला दिन, ठीक अर्धरात्रि में हो तो पहले और पीछे के तीन- तीन प्रहर और अमन का परिवर्तन हो तो तीन दिन पुण्यकाल के होते हैं।इस वर्ष दिन में संक्रांति होने से सामान्य पुण्यकाल पूरा दिन रहेगा और विशिष्ट पुण्यकाल 10 बजकर 40 मिनट से प्रारम्भ हो जाएगा ( क्योंकि समस्त संक्रांतियों का पुण्यकाल सोलह घटी अर्थात छ: घंटा चौबीस मिनट पूर्व और परा मान्य है)।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार मेष संक्रांति के दिन से सौर कैलेंडर का प्रारंभ होता है। भारत के विभिन्न कैलेंडर जैसे तमिल कैलेंडर, मलयालम, बंगाली कैलेंडर मेष संक्रांति के दिन से शुरू होते हैं।इस दिन को नववर्ष माना जाता है। ओडिशा में मेष संक्रांति के दिन को नववर्ष का पहला दिन मानते हैं। इसे पणा संक्रांति खाते हैं। इस संक्रांति को तमिलनाडु में पुथांडु , केरल में विशु, बंगाल में नबाबर्ष कहते हैं और पंजाब में बैसाखी के नाम से जाना जाता है। इस संक्रांति के दिन सूर्य नारायण की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। स्नान कर सूर्य को अर्घ्य दें और गायत्री मंत्र का जप करें। इस दिन की गेहूं ,गुड़, सतुआ चांदी की वस्तु ,मौसमी फल विशेष तौर पर आम के फल फल का दान शुभकारी माना गया है। स्नान कर सूर्य को अर्घ्य दें। तांबे के पात्र में जल, लाल अक्षत, लाल पुष्प, लाल चंदन रखकर सूर्य को अर्घ्य प्रदान करें। इस दिन सूर्य की उपासना करने से सभी प्रकार का विकास होता है और यश, कीर्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।इसे सत्तू संक्रांति या बोलचाल की भाषा में सतुवान भी कहते हैं।
ब्रह्मपुराण और स्कंद पुराण में संक्रांति के दिन कुछ विशिष्ट विधान बताए गए हैं। कहा गया कि प्रात:का स्नान के पश्चात लाल अक्षत से अष्टदल बनाएं।उस पर स्वर्ण या तांबे से निर्मित सूर्य की मूर्ति को स्थापित करें। उसे षोडशोपचार या पंचोपचार से पूजन करें और इस पितृ तर्पण और दान करें तथा ब्राह्मण भोजन भी कराएं। इससे अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है और व्रत करने वाले को सूर्य लोग की प्राप्ति होती है। संक्रांति के समय सूर्य के निमित्त दीपदान करें तो व्यक्ति के तेज की अभिवृद्धि होती है। यदि इस संक्रांति से प्रारंभ कर वर्ष में आने वाले प्रत्येक संक्रांति को सूर्य पूजन और दान करें तो उसके तेज,आयु और आरोग्य था आदि की वृद्धि होती है। लक्ष्मीनारायण संग्रह में कहा गया है की मेष संक्रांति के पुण्यकाल में पंचगव्य का सेवन और छाया पात्र दान करने से समस्त व्याधियों से छुटकारा मिलता है और शरीर में सुंदरता की अभिवृद्धि होती है।
मेष संक्रान्ति के दिन यदि हो सके तो किसी पवित्र नदी में स्नान करें।यदि ऐसा संभव न हो तो घर पर ही गंगा जल मिलाकर स्नान कर लें और लाल वस्त्र धारण कर सूर्य की उपासना करें। सूर्य को सात बार अर्घ्य देने का विधान है।यदि आपकी कुंडली में सूर्य नीच के है या सूर्य की महादशा में सामंजस्य अच्छा नहीं है तो इस दिन निर्धनों को गेहूं,जुते,मसूर,गुड़ और सूर्य से सम्बन्ध रखने वाले वस्तुएं जैसे तांबे का वर्तन, लाल रंग का कपड़ा,लाल चंदन इत्यादि का दान करें। इससे सूर्य जनित दोषों सुख विमुक्ति मिलती है और भगवान सूर्य नारायण की कृपा प्राप्त होती है।
इस दिन खरमास का समापन होता है और यदि शुक्र या बृहस्पति अस्त न हों तो शुभ कार्य जैसे विवाह, गृहप्रवेश गृहारंभ और अनेकानेक शुभ कार्य इस दिन से प्रारंभ हो जाते हैं। इस दिन घर में भोजन बनाने की परंपरा नही है। घर के सभी सदस्य सत्तू का दान करते और शत्रु का सेवन करते हैं ।वास्तव में सौर कैलेंडर के अनुसार सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ गर्मी के मौसम की शुरुआत हो जाती है। इसी से लोग ऐसा आहार लेते हैं जो शीतल हो और सुपाच्य भी रहे।इस दृष्टिकोण से सत्तू सेवन को उत्तम माना गया है। प्रातः काल स्नान के बाद जल मिट्टी के घड़े और सत्तू का दान करें। काले तिलों द्वारा पितरों का तर्पण और भगवान की उपासना का विशेष महत्व है। आम के फलों का सेवन इसी दिन से करने की मान्यता है। पवित्र नदियों में स्नान और दान पुण्य के लिए अच्छा अवसर है और पंखा का दान किया जाता है। भगवान को जौ और चने के सत्तू का भोग लगाया जाता है। बही खातों को लाल कपड़े में लपेटकर भगवान के पास रखा जाता है , ऐसा विश्वास किया जाता है कि इससे व्यापार वृद्धि के लिए भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन सूर्य देव की विधिवत पूजा करें। तेल का दीपक जलाएं, गुरुकुल का धूप करें, भगवान सूर्यनारायण लाल को कि रोली,केसर, सिन्दूर अर्पण करें। गुड़ में बने हलवे का भोग लगाएं।ऊं घृणि: सूर्यास्त नमः का जप करें।यदि हो सके तो सूर्य से सम्बन्धित स्त्रोत का पाठ या सूर्य चालीसा का पाठ करें। कुछ और भी मान्यताएं इस दिन है जैसे सूर्य को छुहारा या किसमिस चढ़ाने से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।ऐसे ही लक्ष्मी जी का मंत्र लिखकर सूर्य को अर्पण करने से वर्ष पर्यंत व्यापार में आने वाली बाधाएं समाप्त होती हैं।
संक्रांति और सूर्योपासना का गहरा सम्बन्ध है। मनुष्य प्रकृति का एक अंग है।जब यह प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर जीवन यापन करता है तो स्वस्थ रहता है। सूर्य, वायु, पृथ्वी, वनस्पतियां,जल में मानव के जीवन के स्रोत है।हमारे पूर्ववती मनीषी उनसे सामंजस्य बनाकर जीते थे। सूर्योपासना वहीं खड़ी का एक हिस्सा है। प्राकृतिक चिकित्सा में सूर्योपासना और सूर्य नमस्कार का बड़ा महत्व माना जाता है।योग दर्शन और वैदिक साहित्य मे सूर्य को परम ब्रह्म माना गया है।देश और विदेशों में ऐसे अनेक औषधालय स्थापित किए जा रहे हैं जहां सूर्य की किरणों और प्रकृति में निहित वस्तुओं से चिकित्सा की जा रही है। आज भी विश्व के अनेकों जनजातियां है जो प्रकृति पूजक है। प्रकृति ही परमात्मा का स्वरुप है। भारतीय चिंतक उन कारकों को परमात्मा की संज्ञा दिए हैं जो मानव अस्तित्व के कारक है। ऋग्वेद के समय जब ऋषियों ने किया तो आकाश मंडल में स्थित सूर्य के गरिमा को समझा और कृतज्ञता के भाव से उनका स्तवन किया।