देश को एकता के सूत्र में बांधने के लिए बाबा साहब ने पूरा जीवन अर्पित किया

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एनआईआई ब्यूरो

गोरखपुर।  बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने देश को एकता के सूत्र में बांधने के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया। इस क्रम में वे कई बार दो कदम पीछे भी हटे।’ यह बात दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के मुख्य नियंता एवं राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. गोपाल प्रसाद ने कही। वे आज विश्वविद्यालय के हिंदी एवं पत्रकारिता विभाग में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की 132 वीं जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित ‘संवाद श्रृंखला’ कार्यक्रम में ‘राष्ट्र निर्माण में भीमराव अंबेडकर की भूमिका’ विषयक कार्यक्रम को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। प्रो. प्रसाद ने कहा कि अब वह आ समय गया है कि सब लोग समान हैं। राजा की सर्वोच्चता अब एक लुप्त विचार है। यह समानता का विचार बाबा साहब ने संविधान के माध्यम से दिया है। प्रो. प्रसाद ने कहा कि बाबा साहब विश्व के सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी थे। वे मानते थे कि हिंदू धर्म की रूढ़ियों को दूर किया जाना चाहिए। हिंदू धर्म छोड़ते समय उनके पास कई विकल्प थे परंतु उन्होंने इस देश के ही एक धर्म बौद्ध को चुना।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पत्रकारिता पाठ्यक्रम के संयोजक प्रो. राजेश कुमार मल्ल ने कहा कि डॉ. अंबेडकर की पुस्तक ‘जाति उन्मूलन’ दलित वैचारिकी का मेनिफेस्टो है। जब हम किसी समस्या को पहचानते हैं तभी उसका निराकरण हो सकता है, जाति भेद ऐसी ही समस्या है। इसे बनाए रखते हुए किसी प्रकार का निर्माण संभव नहीं है। प्रोफ़ेसर मल्ल ने कहा कि डॉ. अंबेडकर वैकल्पिक समाज का आख्यान प्रस्तुत करते हैं जिसका आदर्श समता और बंधुत्व है। डॉ. अंबेडकर महिलाओं के उत्पीड़न पर बात करने वाले पहले चिंतक हैं। बतौर कानून मंत्री वे इसके लिए कानूनी प्रावधान करने के लिए प्रयासरत रहे। इसके पूर्व हिंदी एवं पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष प्रो. दीपक प्रकाश त्यागी ने इस आयोजन के लिए विभागीय शोध परिषद की प्रशंसा करते हुए कहा कि विभाग की प्रगतिशील दृष्टि के कारण ही परास्नातक पाठ्यक्रम में दलित विमर्श शामिल किया गया है। प्रो. त्यागी ने ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता ‘शब्द कभी झूठ नहीं बोलते’ के माध्यम से डॉ. अंबेडकर को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वे वंचित समुदाय के गौरव के नायक थे। आज उनकी दूर दृष्टि के चलते ही ही जातिगत भेदभाव जैसी समस्या समाप्त हो रही है। उन्होंने यह भी कहा कि विभाग में ऐसे कार्यक्रम नियमित तौर पर आयोजित होते रहेंगे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिंदी विभाग के वरिष्ठ एवं आचार्य प्रो. अनिल कुमार राय ने कहा कि डॉ. अंबेडकर को केवल दलित चिंतक मानना उनका अल्पीकरण है। उन्हें केवल दलित चिंतक राजनीतिक कारणों से प्रचारित किया गया है। प्रो. राय ने कहा कि अंबेडकर का आह्वान ‘शिक्षित बनो, संगठित बनो, संघर्ष करो’ एक महाकाव्यात्मक नारा है उन्होंने भारत को सोचने की दृष्टि दी। उनके अनुसार मजदूरों के दो शत्रु हैं- वर्ण व्यवस्था और पूंजीवाद। प्रो. राय ने डॉ. अंबेडकर और राहुल सांकृत्यायन की साम्यता पर ध्यान दिलाते हुए कहा कि विपरीत जातिगत पृष्ठभूमि के बावजूद दोनों में अद्भुत समानता दिखती है। उन दोनों ने अपनी जिंदगी का एक-एक क्षण का सार्थक इस्तेमाल किया,दोनों मनुष्यता की मुक्ति का स्वप्न देखते थे। कार्यक्रम में हिंदी की शोध छात्र नेहा यादव ने अपना काव्य पाठ प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की शुरुआत के पूर्व अतिथियों, शिक्षकों और उपस्थित छात्रों ने डॉक्टर अंबेडकर के चित्र पर पुष्प अर्पण किया। कार्यक्रम का संचालन विभाग के सहायक आचार्य डॉ. नरेंद्र कुमार और धन्यवाद ज्ञापन शोध परिषद के महामंत्री पवन कुमार ने किया। इस अवसर पर विभाग के सभी शिक्षक एवं शोध छात्रों के साथ ही अन्य छात्र-छात्राएं तथा नगर के बुद्धिजीवी भी उपस्थित रहे।

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