ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को हुआ था शनि का जन्म
भगवान सूर्य और छाया की संतान शनि का जन्म ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को हुआ था। भगवान सूर्य के अन्य पुत्रों की अपेक्षा शनि प्रारंभ से ही विपरीत स्वभाव के थे। कहते हैं कि जब शनि पैदा हुए तो उनकी दृष्टि अपने पिता सूर्य पर पढ़ते ही उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। धीरे धीरे जब शनि बढ़े होने लगे तो उनका अपने पिता सूर्य से मतभेद गहरा होने लगा। सूर्य सदैव अपने पुत्र के प्रति चिंतित रहते थे। वे चाहते थे कि शनि अच्छा कार्य करें और एक आदर्श स्थापित करें। संतानों के बढ़े होने पर सूर्य ने प्रत्येक संतान के लिए पृथक पृथक लोक की व्यवस्था की। किन्तु शनि आपने लोक से संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने समस्त लोकों पर आक्रमण करने की योजना बनाई। सूर्य को शनि की इस भावना से अत्यंत कष्ट हुआ। अब तो शनि के उत्पातों की पराकाष्ठा ही हो चुकी थी। अतः सूर्य ने भगवान शिव जी से निवेदन किए कि शनि को समझाएं। भगवान शिव ने शनि को चेतावनी दी, किन्तु शनि ने भगवान शिव के चेतावनी को भी उपेक्षा की। इस उपेक्षा से भगवान शिव अत्यंत क्रुद्ध हुए और उन्होंने शनि को दंडित करने का निश्चय किए।
घनघोर युद्ध के बाद शिव जी के प्रहार से शनि अचेत हो गए। सूर्य की स्थिति को देखकर सूर्य का पुत्र मोह जागृत हो गया। उन्होने शिव से शनि को जीवनदान देने की प्रार्थना की।शिव जी सूर्य की प्रार्थना को स्वीकार कर शनि को छोड़ दिया। इस घटना से शनि ने भगवान शिव की अधीनता स्वीकार कर ली। शनि ने यह भी इच्छा व्यक्त की कि वे अपनी सेवाएं भगवान शिव को समर्पित करना चाहते हैं। शनि के रणकौशल से अभिभूत भगवान शंकर ने शनि को अपना सेवक बना लिया और अपना दंडाधिकारी नियुक्त किए। यह अधिकार प्राप्त होते ही शनि एक सच्चे न्यायाधीश की तरह जीवों को दंड देकर शिव जी के कार्यों में सहायता करने लगे। लेकिन शनि व्यर्थ ही किसी को परेशान नहीं करते हैं।
शनि की अधोदृष्टि का कारण उनकी पत्नियों द्वारा दिया गया शाप माना जाता है। एक बार ऋतु स्राव से निवृत्त होकर शनि की पत्नी पुत्र अभिलाषा की कामना से शनि की सेवा में गईं।उस समय शनि समाधि में लीन थे। आहत होकर उनकी पत्नियों ने उन्हें शाप दे दिया कि नेत्र ज्योति मंद और नीचे की ओर रहेगी और जिस पर उनकी दृष्टि पड़ेगी वह नष्ट हो जाएगा।
पिप्पलाद मुनि की बाल्यावस्था में उनके पिता का देहावसान हो गया था। यमुना के तट पर तपस्वी जीवन व्यतीत करने वाले उनके पिता को शनि ने अत्यधिक कष्ट दिया था। विपन्नता और व्याधि के निरंतर आक्रमण से पिप्पलाद मुनि के पिता के प्राण चले गए थे। उनकी माता अपने पति की मृत्यु का एकमात्र कारण शनि को ही मानती थी। यह बात जब पिप्पलाद मुनि को हुआ हुए तो शनि के प्रति उनका क्रोध प्रचंड हो गया। उन्होंने शनि को ढूंढना प्रारंभ किया। अचानक एक दिन पीपल के वृक्ष पर शनि देव के दर्शन पिप्पलाद मुनि को हुआ। पिप्पलाद मुनि ने शनि पर ब्रह्मदंड का संधान किया। शनि यह प्रहार सहन करने में असमर्थ थे।वह भागने लगे। ब्रह्म दंड ने तीनों लोगों में उन्हें दौड़ाया। अंततः ब्रह्म दंड ने शनि को लंगड़ा कर दिया। विकलांग शनि भगवान शिव से करुण प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने प्रकट होकर पिप्पलाद मुनि को बोध कराया कि शनि तो सिर्फ सृष्टि के नियमों का पालन करते हैं और मेरे सहायक हैं। तुम्हारे पिता की मृत्यु का कारण शनि नहीं है। वस्तुस्थित जानकर पिप्पलाद मुनि ने शनि को क्षमा कर दिया।
शनि की दृष्टि के कारण अनेक लोगों को कष्ट प्राप्त हुआ है। शनि के कारण ही पार्वती पुत्र गणेश का शिरोच्छेदन हुआ था। भगवान राम को वनवास हुआ एवं लंकाधिपति रावण का संहार हुआ। शनि के कारण ही विक्रमादित्य जैसे राजा को की कष्टों का सामना करना पड़ा। त्रेतायुग में राजा हरिश्चंद्र कै दर दर की ठोकरें खानी पड़ी। राजा नल और दमयंती को जीवन में कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ा। यह सब शनि की कुदृष्टि के कारण ही हुआ था। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को शनि का जन्म होने के कारण इस दिन शनि की जयंती का आयोजन किया जाता है। इस दिन शनि के निमित्त पूजा,जप, दान आदि उपाय किए जाते हैं इससे शनि देवता जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और उनके दुख तथा कष्टों में कमी करते हुए उन्हें श्रेष्ठ जीवन यापन करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं। इस वर्ष यह 19 मई को है।
पौराणिक कथन के अनुसार शनि दंडाधिकारी हैं। यह मनुष्य को उनके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। यदि हमारे कर्म अच्छे हैं तो प्रतिकूल फल नहीं देते, वरन अच्छे फल की प्राप्ति कराते हैं। जो कुछ हमें प्राप्त हो रहा है वह हमारे सुकर्म या दुष्कर्मों का परिणाम है। शनि ज्योतिष की गणना के अनुसार एक राशि पर लगभग ढाई वर्ष तक संचरण करते हैं। परन्तु जिस राशि पर संचरण करते हैं उसके पूर्व के राशि तथा अपने स्थित राशि के अगले राशि पर पूर्ण प्रभाव रखते हैं। इस प्रकार ज्योतिष की परिभाषा में यह शनि की बृहद कल्याणी या साढ़े साती के नाम से जाना जाता है। किसी की राशि से चतुर्थ और अष्टम में रहने से लघु कल्याणी या ढैया का क्रम चलता है। प्रायः जातकों की कुण्डलियों में शनि की साढ़ेसाती और ढैया कुछ अन्तराल पर चलता रहता है। इसमें जातकों को सुफल और कुफ्र की प्राप्ति होती रहती है। दान पुण्य और नेक जीवन व्यतीत करने वाले लोगों के लिए शनि की साढ़ेसाती और ढैया में विकास और उलझे कार्यों को बनने का सुयोग मिलता है वहीं दुष्कर्म कर्म करने वालों बाधाओं का सामना करना पड़ता है। शनि बुरे ग्रह है यह भ्रामक बात है। शनि की दशा में वैराग्य और जीवन की सच्चाई का बोध भी होता है।
शनि के अनुकूल होने पर सामान्यतः निम्नलिखित लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं – शनि के अनुकूल होने पर राजनीति या समाज में उच्च पद प्राप्त होता है। व्यक्ति जनता का प्रिय होता है। जनता द्वारा उसे मान्यता या प्रमुखता दी जाती है। शनि के अनुकूल होने पर लोहा,चमड़ा,तेल,पत्थर, लकड़ी,खदान अथवा श्रम/श्रमिक सम्बंधी कार्य से लाभ मिलता है। शनि प्रधान व्यक्ति स्वभाव से न्यायप्रिय होते हैं। किसी भी प्रकार का अत्याचार करना या सहन करना उन्हें पसंद नहीं होता है। शनि स्थायित्व का कारक होता है। अतः शनि के अनुकूल होने पर व्यक्ति जो भी कार्य करता है, उसमें उसको स्थायित्व प्राप्त होता है। शनि करीब और निर्धनों का प्रतिनिधित्व करता है। जब यह अनुकूल होता है तो व्यक्ति को इस वर्ग से सहयोग, समर्थन एवं लाभ प्राप्त होता है। शनि के अनुकूल होने पर अंग्रेजी, फ्रेंच या विदेशी भाषा पर व्यक्ति की पकड़ बनती है। उसे इन भाषाओं से या विदेश के किसी व्यक्ति से ज्ञान लाभ मिलता है। इस प्रकार घर से दूर रहकर भी अधिक लाभ प्राप्त होता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं। तुला राशि में 20 अंश तक शनि परमोच्च एवं कुंभ राशि में 20 अंश तक मूल त्रिकोण में होता है। इसकी तृतीय,सप्तम और दशम स्थान पर पूर्ण दृष्टि होती है। दक्षिणायन और रात्रि में जन्म होने पर ये बली होते हैं। सभी ग्रहों के गोचर में शनि के गोचर को अमंगलकारी होता है। विंशोत्तरी दशा के अनुसार इनकी महादशा 19 वर्ष तक चलती है। विंशोत्तरी दशा के अनुसार पुष्य, अनुराधा एवं उत्तराभाद्रपद नक्षत्रों पर इसका अधिकार होता है। यदि शनि लग्नेश होकर या लग्न भाव में स्थित होकर व्यक्तित्व का कारक बनें,तो जातक लंबें,पतले शरीर वाला,मोटे दांतों वाला,उभरी हुई नसों से युक्त,सांवले वर्ण का शर्मीली प्रकृति वाला होता है। शनि के प्रतिकूल होने पर निम्न परिस्थितियां बनती है – शनि के प्रतिकूल होने पर व्यक्ति की संगति पर और व्यवहार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसा व्यक्ति कुसंगति या दुर्व्यसन के कारण अपने शरीर एवं धन का नाश करता है।
शनि के प्रतिकूल होने पर स्वभाव में आलस्य की अधिकता आ जाती है। ऐसे व्यक्ति को काम को टालने की आदत आ जाती है। वह अपना किया हुआ वादा भूल जाता है। इस प्रकार के आलस्य के कारण वह स्वच्छता पर ध्यान नहीं देता है। उसके बाल,दाड़ी एवं नाखून आदि बड़े हुए रहते हैं। शनि के प्रतिकूल होने पर मकान बनाने के साथ उसके बुरे दिन प्रारंभ हो जाते हैं। प्रतिकूल शनि पर विवाह होने के बाद उसके ससुराल में आर्थिक क्षति प्रारंभ हो जाती है। उसको उसके अध्ययन का लाभ नहीं मिलता है। रूकावटों का सामना करना पड़ता है।बना बनाया काम खराब होने लगता है। उसके नेत्रों में विकार आ जाता और अस्थि की बिमारी का सामना करना पड़ता है।
महापुरुष योगों में शश योग माना जाता है। जिसकी कुंडली में शनि केन्द्र में अपनी स्वराशि मकर, कुंभ में स्थित होता है उसको शश योग है। इस योग में जन्मे व्यक्ति भले ही निर्धन परिवार में पैदा हों, परन्तु कालांतर में वे सफल व्यक्ति बन जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों का शरीर सुंदर और आकर्षक होता है। यदि वृषभ लग्न में चंद्रमा हो,दशम में शनि, चतुर्थ में सूर्य तथा सप्तमेश गुरु हो तो राजयोग होता है। ऐसा जातक सेनापति, पुलिस कप्तान या विभाग का अध्यक्ष होता है।
यदि शनि और चन्द्रमा एक राशि में साथ हों तो विष योग बनता है। इसी तरह यदि चन्द्रमा पर शनि की दृष्टि पड़ती हो तो भी विषयों बन जाता है। ज्योतिषियों के अनुसार विष योग निर्मित होने से जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। चन्द्रमा मन का स्वामी है। शनि की युति या प्रभाव होने से विवाह में विलंब होता है। 55 वे वर्ष के बाद स्वास्थ्य प्रभावित होता है। शिक्षा प्राप्त के बावजूद रोजगार के अवसर सुगमता से नहीं मिलता है।
यदि लग्न और षष्ठ भाव पाप ग्रह से युक्त हो और शनि और राहु एक साथ हों तो व्यक्ति सदा रोगी रहता है। इसी प्रकार शनि से अनेक अच्छे और बुरे योग बन जाते हैं। शनि के कोप से बचने के लिए शनि स्त्रोत का पाठ किया जाए। शनिवार के दिन दान पुण्य किया जाए। निर्धनों की सहायता करने से शनि के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। शनिवार के दिन छाया पात्र दान करने से शनि के कुप्रभाव बचा जा सकता है।