विश्व दुग्ध दिवस : डेयरी क्षेत्र में स्थिरता, साथ ही पर्यावरण, पोषण और सामाजिक आर्थिक सक्तिकरण

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Dr. BK Singh

डॉ. बीके सिंह

पूर्व जोन प्रबंधक, उ० प्र० पशुधन विकास परिषद, गोरखपूर जोन

विश्व में भारत दुग्ध उत्पादन में अग्रणी है तथा देश में गोवंशीय/महिवंशीय पशुओं का महत्वपूर्ण स्थान है। कहा जाता है, ‘गांवों विश्वस्य जगता प्रतिष्ठा’ गावो विश्वस्य मातरः। इसी कारण हमारे देश में विश्व दुग्ध दिवस की महत्ता बढ़ जाती है। यही नहीं विश्व की भागीदारी के साथ-साथ हम राष्ट्रीय दुग्ध दिवस का भी आयोजन करते हैं। इस दिवस को संयुक्त राष्ट्र संघ और कृषि संगठन द्वारा वैश्विक महत्व के प्रति जागरूक करने के लिये विशेष रूप से इसका आयोजन किया जाता है।

यह दिवस दुनिया में दूध और डेयरी क्षेत्र के महत्व को ध्यान रखते हुए मनाया जाता है। दूध दुनिया में लगभग एक अरब से अधिक लोगो की आजीविका है। भूमिहीन तथा छोटे किसानो के प्रतिदिन के व्यय की आधार शीला है। दूध की तुलना पूर्ण भोजन से की जाती है। दूध में कई पोषक तत्व होते है जो हमारे शरीर के लिए लाभदायक है। देश में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने कई केंद्रीयए परियोजनाएं लागू की है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन द्वारा स्वदेशी गायों का संरक्षण एवं संवर्धन। डेयरी विकास के द्वारा दूध एवं दुग्ध उत्पादित सामानों की मांग बाद रही है। 5.7% प्रति वर्ष की दर से दुग्ध उत्पादन में बढोत्तरी हो रही है। नेशनल डेयरी डेवलपमेंट वाड(NDDB) का आकलन है की 2023 तक देश मे 266.5 मिलियन टन दूध का उत्पादन हो जायेगा। खपत का 57% ग्रामीण क्षेत्रो में होता है। इस प्रकार शहरी क्षेत्रों में खपत प्रति व्यक्ति 592ml है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रो में खपत 404ml है।

 

पोषण पर्यावरण विषय पर ध्यान देने की आवश्यकता है। बाज़ार मे मिलने वाले दूध में एंटीबायोटिक दवाओ की मात्र लगातार बढ़ रही है। पशुओ के हरे चारे में कैल्शियम पस्फोरस मैग्निज़, कोबाल्ट, जिंक आदि की कमी होती जा रही है इसका कारण फसलो पर दिए जाने वाले फर्टिलाइजर तथा इन्सेक्टसाईट ही है। जब जिंक फास्फोरस की मात्र कम होने से पशुओं की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है। यह एक गंभीर समस्या है चारागाह खत्म हो गये शहरी करण से पशुओं को चारा खिलाना महंगा पड रहा है। मिट्टी मे पोषक तत्वों की कमी के कारण हमारा भोजन प्रभावित हो रहा है और मनुष्य का स्वास्थ गिरता जा रहा है। मिट्टी में जिंक लगभग 43%, बोरान 18% , आयरन 12%, मैग्निसियम 5.6%, कापर 5.4% जिसके कारण उत्पादित भोज्य पदार्थो मे भी इन तत्वों की कमी हो रही है। यह कमी परोक्क्ष और अपरोक्ष रुप से पशुओं तथा पशु उत्पादित पदार्थो में भी हो रही है जिसके उपयोग करने से मनुष्यों को विभिन्न बीमारियों से जुजना पड रहा है।

विश्व दुग्ध दिवस के अवसर पर हम पशुचिकित्साविदों का यह दायित्व बनता है कि दूध की आवश्यकता को जनमानस तक ले जायें और गाय को आंगन की आवश्यकता के महत्व को समझाना होगा। गाय के दूध को सम्पूर्ण आहार माना गया है। मनुष्य केवल गाय के दूध से ही स्वस्थ्य रह सकते हैं। मानव शरीर के लिये सभी आवश्यक तत्व इसमें होते हैं। गाय के दूध में 20 प्रकार के एमीनो एसिड, 11 प्रकार एसिड, 6 प्रकार के विटामिन, 8 प्रकार के कीण्व, 25 प्रकार के धातु तत्व, 2 प्रकार के शर्करा, 4 प्रकार के फास्फोरस यौगिक एवं 19 प्रकार के नाईट्रोजन तत्व मौजूद है।

आवश्यक्तानुसार समायानुक्रम में पशु वैज्ञानिकों तथा सरकार ने विशेष ध्यान दिया जिसका परिणाम यह है कि आज हम दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान रखते हैं। दुग्ध क्रान्ति के फलस्वरूप भारत में जहाँ पर वर्ष 1970 में 22 मिलियन टन था वह बढ़कर वर्ष 2020-21 में 209.96 मिलियन टन हो गया। वर्ष 2024-25 तक दुग्ध उत्पादन को 300 मिलियन टन करने का लक्ष्य रखा गया है। परन्तु जहाँ पर हमने दुग्ध उत्पादन पर विशेष ध्यान देते हुए क्रॉसब्रीडिंग के कार्यक्रम को चलाया। वहीं हम दुग्ध की गुणवत्ता को भूल गये। यूरोपियन गायों में ए-1 मिल्क पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा भारतीय नस्ल की गायों में ए-2 मिल्क पाया जाता है। जो स्वस्थ्य वर्धक है। पशु प्रजनन नीति के तहत हमने भारतीय नस्ल की गायों को लगभग समाप्त ही कर दिया है। आवश्यकता है भारतीय नस्ल के गायों का संरक्षण एवं संवर्धन करने की प्रजनन नीति में परिवर्तन करने की। अब तो हमारी गायें इनब्रीडिंग की शिकार हो रही है जिस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। विश्व के छ बिलियन लोग दूध एवं इसके उत्पादों का ही सेवन करते हैं।

 

बढ़ता हुआ शहरीकरण, गांव से होने याला पलायन बदलती हुई जीवन शैली अधिक प्रोटीन युक्त सामानों की मांग के फलस्वरूप देश में दूध एवं इसके उत्पादों की मांग बढ़ी है। बढ़ी मांग पूर्ति करने के लिए लगातार प्रयास भी सराहनीय है किन्तु साथ ही बढ़ी मांग की पूर्ति हेतु बाजार में मिलावटी दुग्ध एवं उससे बने पदार्थों की मात्रा भी बढ़ी है। डब्लू0एच0ओ0 की सलाह के अनुसारए यदि दुग्ध एवं उससे बने मिलावटी पदार्थों पर भारत सरकार ने रोक नहीं लगाया तो वर्ष 2025 तक देश की लगभग 87 प्रतिशत जनसंख्या खतरनाक एवं जानलेवा बीमारियों से ग्रसित हो जायेगी। दुग्ध उत्पादन एवं रोजगार सृजन एक दूसरे के पूरक हैं। भविष्य में हम सभी को उत्पादकता बढ़ानेए पशुओं के स्वास्थ्य एवं प्रबन्धन रोगनियंत्रण, दुग्ध एवं दुग्ध उत्पाद पदार्थों की फूड सेक्योरिटी एवं सेफ्टी के लिये उचित कार्यवाही पशु अस्पतालों व प्रयोगशालाओं को आधुनिक तकनीकि व्यवस्था देकर अधिकारियों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। वर्तमान में पशु अस्पतालों का बुनियादी ढांचा 60.70 के दशक का ही है। जो आज के आधुनिक परिवेश में सफल नहीं हो पा रहा है।

सरकार उमंग (UMANG) ‘Unifield Mobile Application of New – age’ के द्वारा सरकारी सेवाओं की पहुच जनता तक सुनिश्चित करा रही है। गोपाल एप का लांच करना, डेयरी विकास कार्य क्रम राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम, राष्ट्रिय कृत्रिम गर्माधान कार्य क्रम पशु आहार गोकुल ग्राम की स्थापना, गोपाल रत्न पुस्कार राष्ट्रिय पशुधन मिशन द्वारा चारा विकास कार्य क्रम में पोष्टिक आहार की व्यवस्था आदि पोषण एवं उत्पादन कार्य में सरकार द्वारा कार्य क्रम चलाये जा रहे है। पोष्टिक आहार मे दूध का अत्यधिक महत्व है। सभी पोषक तत्वों से युक्त स्वास्थ्यपरक तथा उपयोगी खाद्य पदार्थ के रूप में दूध की सच्चाई को समझाने के लिये यह आवश्यक है कि हम जन जन में दूध के महत्व के प्रति जागरूकता अभियान चलाये।

सरकारी नीतियों के क्रियान्वन के लिये जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारियों को निमाने में लगातार नाकाम साबित हो रहे हैं, जबकि सरकार पशुपालन एवं डेयरी उत्पाद हेतु विशेष ध्यान दे रही है। दुग्ध उत्पादक दूध का सही मूल्य नहीं पा रहे हैं। जिससे गोवंशीय/महिवंशीय का पालन-पोषण करने वाले अब अन्य विकल्पों की तालाश में हैं। आवश्यकता यह है कि हमें नीतियों के क्रियान्वयन पर विशेष ध्यान देना होगाए जिससे पशुपालकों का ध्यान अन्य विकल्पों की ओर न जाये तथा आजीविका के मुख्य श्रोत के रूप में यह व्यवसाय फलीभूत हो।

 

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