मिलिये 126 वर्षीय योग-साधक ‘आधुनिक ऋषि’ पद्मश्री स्वामी शिवानंद से..

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अनिल त्रिपाठी, चीफ़ एक्सिक्यूटिव, न्यूज इंफोमैक्स इंडिया


वाराणसी का दुर्गाकुंड मोहल्ला। इसी मोहल्ले के एक साधारण से घर में रहते हैं असाधारण व्यक्तित्व के धनी पद्मश्री बाबा शिवांन्द जी। समय सुबह साढ़े आठ से नौ के बीच। जेठ माह का चढ़ता सूरज माहौल को पूरी शिद्दत से अपने तपते आगोश में समेटने को बेताब।

NII की टीम खड़ी है बाबा के घर के सामने। लोहे की ग्रिल से घिरे नीले रंग के प्रवेश द्वार के ऊपर एक बोर्ड लगा है। बोर्ड पर लिखा है – ‘126 वर्षीय शिवानंद बाबा’ उसके नीचे की लाइन में लिखा है – ‘बाबा मिठाई, फल, धन, दान ग्रहण नहीं करते हैं।’ हालांकि ये बोर्ड विगत वर्ष लगा था जिसमे ‘126 वर्षीय’ लिखा है। बाबा आने वाले 8 अगस्त 2023 को 127 पूरे कर 128वें साल में प्रवेश कर जायेंगे।

दस्तक देने पर एक बंगाली भद्र महिला दरवाज़ा खोलती हैं। चेहरे पर मृदु मुस्कान सजाये बड़ी आत्मीयता से वो हमारा स्वागत करती हैं – “आइये आइये..कोई दिक्कत तो नहीं हुआ आप लोगों को यहाँ पँहुचने में “। हम अंदर प्रवेश करते हैं ढेर सारे पेड़-पौधों से आच्छादित अहाता। चारों तरह और ऊपर भी लोहे की ग्रिल से घिरा हुआ। पता चलता है ग्रिल का ये जाल बाबा की सुरक्षा के लिये नहीं बल्कि बंदरों के उत्पात से बचाव के लिये है। अहाते में सामने की तरफ एक बैठकनुमा कमरा जिसमें एकदम अनौपचारिक मुद्रा में बैठे अपने काम या बातों में मशगूल कई लोग। अहाते के बाईं तरफ एक सामान्य सी रसोई जिसमें दो-तीन महिलाएँ आती-जाती दिख रही हैं। उसी रसोई के सामने एक मेज रखी है जिसके चारों तरफ प्लास्टिक की कुर्सियां पड़ी हैं। तीन मंजिला मकान में बाबा का कमरा तीसरी मंजिल पर है। बाबा दिन में तीन-चार या अधिक बार भी सीढियां चढ़-उतर के अपने कमरे में आते जाते हैं, वो भी बिना किसी सहारे के।

रसोई की तरफ़ पड़ी एक कुर्सी पर बाबा बैठे हैं। उनके ठीक बगल में एक बाबू मोशाय बैठे हैं जो बाबा की सहायता कर रहे हैं। दूसरी तरफ़ से फोन पर जो कहा जा रहा है वो बाबा को बता रहे हैं। प्रतिउत्तर में बाबा जो बोलते हैं उसे फोन पर दूसरी तरफ़ मौजूद व्यक्ति को बताते हैं। बाद में मालूम होता है ये सज्जन पुरुष मुंबई के स्थापित व्यवसाई संजय जी हैं। बाबा के भक्त हैं, यहाँ आते जाते रहते हैं।

बाबा इशारे से हम सबको बैठने के लिये कहते हैं। फोन पर वार्तालाप का सिलसिला थमता है। मालूम होता है अमेरिका के ‘वाशिंगटन पोस्ट’ के लिये फोन पर बाबा का साक्षात्कार चल रहा था। फोन के कटते ही बाबा पूरी गर्मजोशी से हमारी ओर उन्मुख होते हैं। उनकी निगाह पड़ती है हममें से एक व्यक्ति अभी भी खड़ा है। वो बच्चों जैसी फुर्ती के साथ उठते हैं और अपने पीछे पड़ी एक कुर्सी कुछ उठा कुछ खिसका के हमारे साथी को बैठने के लिये देते हैं। उनकी फुर्ती देख फटी निगाहों से एक दूसरे को देखते हम सब दंग !

कुर्सी देकर वो बैठते नहीं, रसोई में जाते हैं और लगभग डेढ़ दर्जन केला लाकर मेज पर रखते हुए मुझसे कहते हैं –

“सबको दो, और बोलना छिलका उधर डालेंगे, वो बाल्टी रखा है।”

बातचीत का सिलसिला शुरू होता है। ‘बाबा इस उम्र में ये फुर्ती ! कैसे ? बिना किसी भूमिका या लाग लपेट के एक शब्द का जवाब “जोग”। (यानी योग)

अगला सवाल – ‘ लंबी आयु का रहस्य क्या है बाबा ?’

पुनः तत्परता से जवाब – “नो डिज़ायर नो डिज़ीज़”। और कुछ बताने के लिये आग्रह करने पर कहते हैं – “नियमित योग-व्यायाम, अनुशासित दिनचर्या और संयमित आहार। लेकिन सूत्र वाक्य वही है “नो डिज़ायर नो डिज़ीज़”।

मैं आग्रह करता हूँ, ‘अपने बारे में कुछ और बताइये बाबा’।

“क्या बताऊँ बोलो तो। हमारा जनम 8 अगस्त 1896 को हरिपुर गाँव मे हुआ था। ए गाँव बंगाल का श्रीहट्ट जिला में है। हमरा थाना पड़ता था बाहुबल। लेकिन अब तो ए शोब बांग्लादेश में चला गिया है। गुसाईं पोरीबार था हमारा। मेरा मां बाबा भिक्षाटन करके हम बच्चा लोग का पेट भरता था। बहुत गरीबी था तब। अकाल भी था बंगाल में। हम जब छह साल का था तब हमारा माँ-बाबा अउर मेरा बहन सब भुखमरी का शिकार हो के खतम हो गया।

वो तो दू साल पहले जब हम चार साल का था तभी हमारा बाबा हमको बाबा ओंकारनंद गोस्वामी को सौंप दिया था। नबदीप (नवद्वीप) में रहता था ओ। ओई हमारा गुरु। गुरु का पास था हम तो बच गया, अन्यथा हम भी नई बचता। गुरु जी ही हमको अध्यात्म-जोग का शिक्षा दिया। चार साल का आयु से बोई हमको अध्यात्म के बारे में बताना शुरू किया। ठीक से याद नहीं लेकिन 10- 12 साल का उमिर रहा होगा जब गुरु जी जोग शुरू कराया, जो आज तक चालू है।”

बाबा आपके गुरु वैष्णव सम्प्रदाय से थे कि योग परम्परा से ?

” जोग परम्परा नइ..ओ वैष्णव परम्परा से था, इसीलिये तो पहिले अध्यात्म का शुरुआत हुआ।” इसी बीच वो रसोई की तरफ आवाज़ लगाते हैं – “चा होये गेछे की” (चाय बन गई क्या)। हाँ-ना का जवाब आने से पहले ही वो फुर्ती से उठ के रसोई में जाते हैं। नज़दीक बैठे होने के कारण अंदर के वार्तालाप की आवाज़ सुनाई पड़ रही है। रसोई में मौजूद महिला को बाबा बांग्ला में निर्देश दे रहे हैं। जिसका अर्थ है – ‘खाली चाय मत देना। क्या दोगी नास्ता ? ब्रेड मक्खन देना। पता नहीं कुछ खाया है कि नइ ये सब, भूखा होगा, थोड़ा ज्यादा देना। कुछ ही देर में एक बड़ी सी थाली में ख़ूब सारा ब्रेड मक्खन आ जाता है। पीछे से दूसरी महिला ट्रे में चाय के कप लिये आती हैं। बाबा कहते हैं अब पहले चा-पानी कर लो फिर पूछना जो पूछना है। बाबा बताते हैं वो कभी स्कूल नहीं गये। जो कुछ भी सीखा जाना वो सब बस गुरु कृपा है।

बाबा बांग्ला और अंग्रेजी धाराप्रवाह बोलते हैं। हिंदी समझ तो लेते हैं लेकिन बोलने में अटकते हैं। बाबा से बातचीत में बांग्ला भाषा का मेरा अल्पज्ञान भी बहुत सहायक साबित हुआ। चाय ब्रेड-मक्खन का सिलसिला ख़तम होता है। इस बीच बाबा दो बार तस्दीक करते हैं – ” सबको मिला न !” एक बार तो ख़ुद थाली उठा के एक दो लोगों से कहते हैं – ” तुम नइ लिया, लो न !”

बाबा अपनी दिनचर्या के बारे में बताइये कुछ।

“दिनचर्या ! सुबह में भोर तीन बजे उठता है। निवृत-नहा के पूजा करता है। फिर एक घँटा टहलता है, फिर घँटा डेढ़ घँटा..कभी कभी दो घँटा जोग-प्राणायाम करता है, उसके बाद कुछ खान पान।” बाबा आपके खानपान में क्या रहता है ? और ये आपने गेट के ऊपर बोर्ड लगवा रखा है ”

दूध, मिठाई , फल आदि नहीं लेते आप ! तो ये बस लेते नहीं आप या खाते भी नहीं ? “

फल, दूध-मिठाई नइ खाता। एकदम सादा खाना, तेल मसाला एकदम कम। उबला आलू और दाल जादा खाता है, लेकिन नमक बहुत कम।

बाबा दूध फल मिठाई न खाने की कोई खास वजह ?

” हम बताया न, बहुत गरीब था हमारा पोरीबार। घर घर भिक्षा मांगकर पेट भरता था हम सब। कहाँ से खायेगा गरीब आदमी दूध फल और मिठाई ? तो जो हमारा गरीब मानुष को नइ मिलता ओ सब नइ खाता हम। ए साबित करने के लिये कि हमारा ओ गरीब भाई बहन जिसको दूध फल मिठाई कुछ नइ मिलता ओ भी सादा शाकाहारी भोजन करके जोग और नियमित-संयमित दिनचर्या से सौ साल से भी जादा जी सकता है।”

बाबा पद्मश्री मिलने पर कैसा लगा ?

बहुत अच्छा। हम तो कभी सोचा नइ था कि ऐसा कुछ होगा। लेकिन मिला बहुत अच्छा बात है, जोग का सम्मान है ये। ” बाबा पद्मश्री ग्रहण करने से पहले आपने मोदी जी और राष्ट्रपति महोदय को दंडवत प्रणाम किया। आपके इस कृत्य ने जहाँ देश-दुनिया का मन मोह लिया तो कुछ लोगों ने इसपर भी कटाक्ष किया कि 126 साल के बुजुर्ग उम्र में अपने से कहीं छोटे लोगों के सामने माथा टेक रहे थे। ” उमर से कोई छोटा बड़ा नइ होता। फिर हम किसी आदमी को नइ बल्कि पद को प्रणाम किया जो हमारा संस्कार है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का पद देश मे सबसे बड़ा है। और हाँ हम किसी का सामने माथा नइ टेका, हम तो अपना जोग का नंदी मुद्रा का प्रदर्शन कर रहा था। आखिर जोग के कारण ही तो मिला मुझे ये सम्मान ! तो ऐसा मौका पर जोग का कोई तो प्रदर्शन होना चाइये न ! तो किया हम नंदी मुद्रा।

बाबा देश-दुनिया के युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे ?

“ध्यान ज्ञान और जोग, इसपर जोर देना होगा। इसी में दुनिया भर के युवाओं की सभी समस्याओं का हल हैं।

लंबी आयु प्राप्त करने के लिये उन्हें क्या करना चाहिये ?

“नियमित जोग-व्यायाम, सादा संयमित आहार और अनुशासित दिनचर्या यही मूल मंत्र हैं लंबी आयु के। और सूत्र वाक्य है ‘नो डिज़ायर, नो डिज़ीज़।”

अच्छा बाबा आज वैश्विक स्तर पर बहुत उथल-पुथल है। अशांति और युद्ध आकार ले रहे हैं, ऐसे में दुनिया के लिये आपका क्या संदेश है?

“अपना दुनिया मे रहता है हम। हमको बाहरी दुनिया का ख़बर नहीं रहता, फिर भी हमारा सलाह नहीं अनुरोध है दुनिया के लोगों को जोग करना चाहिए। जोग ही दुनिया मे शांति ला सकता है। दुनिया को एक रखने की ताकत सिर्फ़ जोग में है।” –  स्वामी शिवानंद

बाबा अपनी आयु के पच्चीस वर्ष से उनसठ वर्ष के कालखंड को अपना स्वर्णिम समय मानते हैं। इन चौंतीस वर्षों के दौरान उन्होंने दुनियाभर के छः महाद्वीपों में फैले अनेक देशों की यात्रा कर योग का प्रदर्शन-प्रचार किया। वो कहते हैं व्याख्यान देने में उनकी रुचि नहीं प्रदर्शन अधिक प्रभावी माध्यम है। सौम्यता, सरलता, संयम और सादगी की प्रतिमूर्ति बाबा अपनी सामान्य जीवनशैली को बेजोड़ मानते हैं। कहते हैं दुनिया भर में जहाँ कहीं भी गये हर कोई उनकी जीवनशैली से प्रभावित रहा, इसी के कारण सब उन्हें प्यार करते हैं। जीवन के सर्वाधिक विषादपूर्ण स्मरण के बारे में पूछने पर कहते हैं कि परिजनों की मृत्यु हुई तो अबोध थे। उसके अतिरिक्त उन्हें इतने लंबे जीवन मे कभी कोई विषादपूर्ण क्षण याद नहीं आता। वो कभी दुखी नहीं रहते। दो घँटे की मुलाकात के दौरान कई बार उनकी बालसुलभ हँसी और उन्मुक्त ठहाके इस बात की तस्दीक़ कर रहे थे।

अत्यंत सहज सामान्य और मृदुभाषी बाबा शिवानंद के घर में दर्जनों लोगों का जमावड़ा देख शुरू से जिज्ञासा थी कि इनमें से बाबा का किसका क्या रिश्ता है ?

जिन भद्र महिला ने द्वार पर हमारा स्वागत किया था बाबा उन्हें मॉमिनी कह के बुलाते हैं।

उन्ही से इस बाबत पूछने पर वो मुस्कराते हुए कहती हैं – “बाबा तो ब्रह्मचारी हैं। ओ तो बिवाह ही नहीं किया। तो परिवार कैसे होगा, बोलो तो ! ये शोब लोग जो इहाँ मोजूद है इनमें से किसी का बाबा से कोई रक्त सम्बंध नहीं। हम सब बाबा का शिष्य या भक्त लोग है। कोई आसाम से है, कोई त्रिपुरा से, कोई कोलकाता बंगाल से तो कोई मुंबई महाराष्ट्र से। अउर भी दूर दूर शोब जगह से आता है। कोई तो स्थायी रूप से बाबा के साथ रहता है तो कोई लोग आबोश्यकता अउर सुविधानुसार आते जाते रहता है। इधर आता है दू दिन चार दिन या हफ्ता दोश दिन बाबा का साथ रह के चला जाते हैं, फिर आने के लिये। सेवा बाबा किसी से लेता नइ, ओ अपना शोब काम ख़ुद ही करता है। बस बाबा के साथ रह के ही हम भक्त लोगों को संतोष करना पड़ता है।”

अचानक बाबा इस बातचीत का सिलसिला भंग करते हैं – “तुम लोग इतना दूर से आया है। चलो अब हम कुछ जोग कर देता है। फोटो -शोटो रिकार्डिंग जो करना है कर लो, फिर अब थोड़ा आराम करेगा हम।” वहीं अहाते में ही चटाई बिछा कर बाबा कई आसन का प्रदर्शन करते हैं। साथ ही हर आसन के विषय मे बताते भी जाते हैं।

बाबा बाहरी दुनिया से मतलब भले न रखते हों लेकिन जानते सब हैं। कहते हैं – “आजकल का बच्चा लोग कम्प्यूटर पर बहुत काम करता है। मोबाइल भी खूब देखता है। उनको ये आसन करना चाहिये जो अब हम दिखाएगा।” इसके बाद बाबा मात्र पाँच मिनट में बैठक, कंधे, गर्दन और आँख से सम्बंधित अत्यंत आसानी से किये जा सकने वाले कुछ आसन प्रदर्शित करने के बाद कहते हैं – “ए करने से पूरा मेंटल और फिजिकल स्ट्रेस दूर होगा। आँख का रोशनी ठीक रहेगा। लगातार बैठने, काम करने से, अउर आँखी फोड़ने वाला शोब बीमारी दूर रहेगा, सबसे बड़ा बात कभी डिप्रेशन नहीं होगा, ओ विषाद हो जाता है न..!, नइ होगा। शबको जरूर करना चाहिये ए।”

प्रदर्शन समाप्त होने पर पुनः आने का वादा लेकर बाबा हम सबको दरवाज़े तक विदा करने आते हैं। मैं भी नंदी मुद्रा में बाबा को दंडवत प्रणाम कर उनसे विदा लेता हूँ। सर पर हाथ रख आशीर्वाद देते हुए बाबा बच्चों की सी किलकारी वाली हँसी के साथ बोलते हैं – “अरे तुम तो नंदी मुद्रा कर लेता है, जोगी है तुम भी।”

बाबा को पुनः प्रणाम करते हम सब हंसते हुए विदा लेते हैं। शतायु तो बाबा हैं ही, ईश्वर से प्रार्थना है कि महान भारत-भूमि की इस अनमोल धरोहर को सदैव स्वस्थ रखें।

 

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