एनआईआई ब्यूरो
गोरखपुर। संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग तथा मानव संसाधन विकास केंद्र दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर द्वारा आयोजित 13 वें पुनश्श्चर्या पाठ्यक्रम का समापन सत्र ऑनलाइन माध्यम से संपन्न हुआ। कार्यक्रम के मुख्यातिथि माननीय कुलपति श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली प्रोफेसर मुरली मनोहर पाठक ने पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के विषय संस्कृत काव्यशास्त्र परंपरा के प्राचीन एवं नवीन संदर्भ के अंतर्गत वैदिक संदर्भों के साथ ही सभी छह संप्रदायों पर संक्षिप्त प्रकाश डाला।
उन्होंने वेदों में विद्यमान अलंकारता तथा सौंदर्य पक्ष की सुंदर विवेचना की। उन्होंने कहा कि काव्यशास्त्र के बीज वैदिक सूक्तों में विद्यमान हैं। अध्यक्षीय उद्बोधन में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर पूनम टंडन ने संस्कृत भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला, उन्होंने कहा कि आज संस्कृत के प्रति लोगों में उत्कंठा है। संस्कृत संस्कार की भाषा है, सभ्य समाज के निर्माण में यह भाषा अत्यंत महत्वपूर्ण है। पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए उनको शुभकामनाएं प्रदान कीं।
स्वागत भाषण एचआरडीसी के निदेशक प्रोफेसर रजनीकांत पांडेय ने दिया, उन्होंने कहा कि संस्कृत का भविष्य उज्ज्वल है। उन्होंने प्रतिभागियों को शुभकामनाएं देते हुए संस्कृत के विकास के प्रति जागरूक होने को कहा। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए प्रोफेसर कीर्ति पांडेय अध्यक्ष संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग ने पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के विषय को अत्यन्त उपादेय बताते हुए कहा कि शास्त्र संरक्षा की दृष्टि से यह पुनश्चर्या पाठ्यक्रम अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेगा।
कार्यक्रम में प्रतिवेदन डॉ० सूर्यकान्त त्रिपाठी ने प्रस्तुत किया तथा संचालन डॉ० देवेन्द्र पाल ने किया। प्रतिभागियों में डा० लक्ष्मी सिंह तथा डॉ० वेंकटनाथन ने अनुभव व्यक्त किया। इस अवसर पर संस्कृत विभाग की समन्वयक डॉ० लक्ष्मी मिश्र सहित सभी आचार्य गण एवं एचआरडीसी के सुधाकर मिश्र, संदीप त्रिपाठी तथा सरिता त्रिपाठी आदि उपस्थित रहे।