केरल को कश्मीर बनने से बचाना है तो करें जनसंख्या नियन्त्रण

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Shrad Chandra mishra
आचार्य पं शरदचन्द्र मिश्र, अध्यक्ष-रीलीजीयस स्कालर्स वेलफेयर सोसायटी

अल बलाग वेबसाट में उद्धृत किये गए एक मुस्लिम धर्म प्रचारक अल क्यूरी ने कहा- इस्लाम में शादी का प्रमुख उद्देश्य सन्तानोत्पत्ति है। इस्लाम अपने अनुयायियों को प्रोत्साहित करना है कि वे ज्यादा अपने समुदाय को बढ़ाने के लिए भारी तादाद में बच्चे पैदा करें। केरल में मुसलमानों की बढ़ती आबादी में बांग्लादेश, मालद्वीव और म्यांमार के प्रवासियों का भी हाथ है। कुछ दिन पहले से ये भी केरल में बस गए हैं।

केरल, बंगाल दोनों की हालत नाजुक :

अगर यह बात दो दशक पूर्व का होता,तो यह केवल बयानबाजी माना जाता। लेकिन आज यह प्रश्न उठ रहा है कि केरल और बंगाल की जो स्थिति आज है ,उसके अनुसार ये दोनों राज्य मुस्लिम बहुल बनने जा रहें हैं ।यह केवल एक बयानबाजी नहीं है। मुस्लिमों की अन्य धर्मावलंबियों से जोर से बढ़ता जनसंख्या आंकड़ा तो यही कह रहा है कि वह दिन बहुत दूर नहीं है जब इन दोनों राज्यों में शरिया आधारित कानून की मांग की जायेगी। इतिहास यही बताता है कि जब मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि होती है तब उनका पहला काम इस्लामी कानून की मांग ही होती है।वे विकास जैसे अन्य विषयों पर कम ध्यान देते हैं।उनका ज्यादा अटेंशन जन्नत की प्राप्ति की होती है।इस लोक और संसार से कम लेना देना रहता है, अधिक ध्यान परलोक का रहता है, और वह बिना शरियत के नियम से आ ही नहीं सकता है।

ऐसा उनका विश्वास है। एक बार जो उनके मस्तिष्क में भर दिया जाता है उसे सर्वोपरि मानते हैं। ज्ञान -विज्ञान से कम लेना देना है। अगर ज्यादा या विशेष प्राप्त करना है,तो कुरान के रास्ते पर चलना होगा। उनके अनुसार भूत, वर्तमान और भविष्य की समस्त वस्तुएं केवल एक ही पुस्तक में हैं। इसके लिए वे कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं। स्वयं मरने के लिए दूसरों को मारने जैसे कार्य को नेक काम मानते हैं। आप बंग्लादेश और पाकिस्तान को ले , जहां धर्म और मजहब के नाम पर प्रतिदिन हजारों लोगों को मारा जाता है। वहां लोकतन्त्र जैसी कोई वस्तु नहीं है। अगर वे दावा करते हैं तो केवल कहने भर की बात है, हकीकत अलग है। एक शरियत के कानून वाले देश में गैर मुसलमान जलील जीवन‌ व्यतीत करते हैं। आज कश्मीर में शान्ति क्यों नहीं है। वहां गैर मुसलमानों ने कौन सा अपराध किया है। यह अनुत्तरित प्रश्न है। मेरे समझ से उनका अपराध यही है कि वे मुसलमान नहीं हैं और शरिया कानून का पालन नहीं करतें हैं।

केरल और बंगाल में बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या से वहां के रहने वाले गैर धर्मावलंबियों में भर व्याप्त होता जा रहा है।वे सोच रहे हैं कि कहीं उनका हस्र भी वही न हो,जो कश्मीर में कश्मीरी पण्डितों का हुआ।अगर इसी तरह उनकी जनसंख्या बढ़ती रही तो उदारवादी सेक्युलर लोगों को भी मुस्लिम बहुल राज्य में रहना पड़ेगा।कुछ केरल वासी अपनी झूठी अज्ञानता के कारण अभियान करते हैं और जनता के सामने इसे बेकार का मुद्दा कहकर इसे खारिज कर देते हैं लेकिन जाने कि केरल में सदियों पुराने आबादी में उलट फेर हो रहा है।यह खतरे का संकेत है। यदि आंकड़े को देखें तो इस खतरे को समझ सकते हैं।केरल में आखिरी पूर्ण जनसंख्या की गणना सन् 2011 में हुई थी।उस समय केरल की आबादी 3-34 करोड़ थी जिसमें से हिन्दूओं की आबादी 1–83 करोड़ थी।दूसरे नम्बर पर रहने वाले मुस्लिमों की कुछ जनसंख्या 88–07 लाख थी और ईसाइयों की 61–04 लाख रही। चोदे दर्जे‌ पर बौद्ध या सिक्खों का नहीं, बल्कि धर्म न मानने वालों का था।उनकी जनसंख्या 88000 हजार थी। यह सन् 2001से बढ़कर यहां तक पहुंच गई थी।

केरल की मुस्लिम आबादी में ज्यादा उछाल :

एक सर्वेक्षण बताता है कि मुस्लिम आबादी में ज्यादा उछाल आया है आज मुस्लिम आबादी 73% की दर से बढ़ रही है वहीं अन्य कामों की बढ़ोतरी 35% की दर से है। इस समय पूरे विश्व में मुसलमानों की आबादी 160 करोड़ है।अगले चार दशक में यदि इसी अनुपात से बढ़ता रहा तो वे 280 करोड़ हो जायेंगे। हर तीन व्यक्ति में एक मुस्लिम होगा। इसका कारण मुसलमानों में ज्यादा संतान पैदा करने की लालसा। उच्च प्रजनन क्षमता का श्रेय जाकिर नाइक नफरत फैलाने वाले धार्मिक उपदेश हैं। वे मुसलमानों के लिए जनसंख्या नियंत्रण न करने की सलाह देते हैं।

आज तस्वीर कुछ और है। केरल में ईसाइयों की जनसंख्या तीसरे नंबर पर जा चुकी है। हिंदू 72 प्रतिशत थे। आज 56% के साथ हैं। इस्लाम दूसरे स्थान पर है। 34% के साथ ईसाइयों का तीसरा नंबर हैं। बौद्ध,जैन और यहूदी अन्य समूहों की जनसंख्या 1 प्रतिशत से भी कम है। लेकिन कुछ दशक पहले ऐसी तस्वीर नहीं थी। पिछली सदी में हिंदुओं की जनसंख्या ज्यादा थी जो राज्य की आबादी में 68-05 प्रतिशत का हिस्सा रहता था। मुसलमानों की आबादी 17– 5% के साथ दूसरे नंबर थी। जबकि तीसरा प्रभावशाली समुदाय ईसाई था जिनकी जनसंख्या 14% के आसपास थी ।आने वाले दशकों में हिंदुओं की तुलना में ईसाइयों और मुसलमानों के कई गुना बढ़ गई है। वास्तव में 1961 में ईसाइयों की मुस्लिमों को भी पीछे छोड़ दिया था जबकि हिंदुओं की आबादी में लगातार गिरावट देखी गई है। सन 1961 में हिंदू आबादी गिरती चली गई। मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ती गई।

केरल में अरबी संस्कृति हो रही हॉबी:

सबसे चिंताजनक इस जिले का अरबीकरण होना हैं। अधिकांश मुस्लिम महिलाएं यहां सिर से पैर तक बुर्का पहनती हैं और पुरुष लंबी दाढ़ी रखने के साथ टोपी लगाते हैं ।कुछ दशक पहले केरल में यह बात नहीं थी। यहां कई पुरुषों ने धोती और सर्ट के पारंपरिक परिधान को छोड़ दिया है। अब एक पीस वाले गाउन को पहन रहे हैं जैसा कि अरबी लोग पहनते हैं ।कई कारोबारी संस्थानों के नाम अरबी में है। यहां अपने साइन बोर्ड वैसे ही लिखते हैं जैसा कि अरब में लिखा जाता है। अब यहां इस्लाम के पाक महीने रमजान के दौरान जब सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक खाना-पीना बन्द हो जाता है। तब मल्लप्पुरम की हालत किसी भूतिया शहर जैसे हो जाती है। यह भारत के शहर जैसे नहीं लगता है, बल्कि खाड़ी देश के किसी देश जैसा दिखाई देता है। यहां खाने पीने की दुकानें बंद हो जाती है और जीवन घुटनों के बल चलने लगता है। सारे इलाके में शाम के नमाज के बाद लोग जी उठते हैं और सुबह तक वैसे ही रहते हैं, जैसा कि खाड़ी देशों में होता है। अरबीकरण का प्रभाव मल्लपुरम की सीमाओं के बाहर तक फैल चुका है। उनके दिल में दिल्ली, कोलकाता की तुलना में दुबई ज्यादा बसता है। यही नहीं भारत के दूसरे हिस्सों की घटनाओं की जगह खाड़ी देश में होने वाली घटनाओं को ज्यादा जगह देते हैं।

केरल में हिन्दूओं और ईसाइयों की जनसंख्या कम होने का एक और कारण बताया जाता है कि हिन्दू और ईसाई यूरोप और अमेरिकी देशों में बस रहें हैं। यह भी जनसंख्या सन्तुलन बिगाड़ रहा है। इसके विपरीत मुसलमान खाड़ी देश जाते हैं और वहां कुछ वर्ष रहने के बाद पुनः केरल लौट आते हैं। इसलिए सम्भावना बन‌ रही है कि अगले कुछ दशक के बाद केरल मुस्लिम बहुसंख्यक राज्य बन जायेगा।केरल में इस्लाम से जुड़ी बातों पर प्रवचन देने वालों की बड़ी पूछ है। इसके लिए बड़े -बडे पोस्टर और कट आउट सड़को पर और चौराहों पर उसी तरह लग जाते हैं जैसा कि बड़े सितारों के लगाते जाते हैं। हर कुछ दिनों में धार्मिक आयोजन कराते जाते हैं, जिसमें धर्म की कट्टरता का उपदेश दिया जाता हे। जिस तरह से जाकिर नाइक ने टी-वी पर भाषण देकर मजहबी कट्टरता का उपदेश दिया और हजारों मुसलमानों को कट्टर बनाया, ठीक उसी तरह से एम-एम अकबर ने अपनी जगह बनाई है। इस व्यक्ति को केरल का जाकिर नाइक कहा जाता है। जाकिर नाइक की तरह अकबर के भी कई स्कूल हैं जहां सलाफी इस्लाम की शिक्षा दी जाती है।उसने मिस्र के इस्लामी स्कूलों से प्रभावित होकर कई स्कूल स्थापित किए हैं जिसमें अरबी मिडियम स्कूल भी हैं।

अरबी प्रथा और व्यंजनों को महत्व दिया जाता है। भारतीयकरण का यहां नाश हो रहा है। सब कुछ वह शरिया कानून के तहत करते हैं। उनके लिए धर्मनिरपेक्षता नाम की कोई बात नहीं है। यह परिवर्तन आने वाले भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। अतः हमें इस पर गौर करना होगा, नहीं तो केरल आने वाले दिनों में दूसरा कश्मीर बन जाएगा। केरल में मुसलमानों की जनसंख्या दर बढ़ती जा रही है। बढ़ती आबादी के साथ इस राज्य में मुस्लिमों की ताकत राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक तौर पर बढ़ रही है। राजनीतिक तौर पर मुस्लिम लीग इस राज्य में सबसे लंबे समय तक सत्ताधारी गठबंधन में रहा है। आर्थिक तौर पर भी मुस्लिम ज्यादा शक्तिशाली बन गए हैं। क्योंकि उन्होंने पूरे केरल में सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, फाइव स्टार होटल, स्वपोषित शैक्षणिक संस्थान। माल और आधुनिक टाउनशिप बनाए हैं। मल्लप्पुरम में कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत होने के साथ ही इस जिले में जबरदस्त बदलाव आया है।

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