राहु, केतु और बृहस्पति 12 और 13 अप्रैल को बदल रहे हैं राशि, जानिए किसकी चमकेगी किस्मत, किस पर होगा संकट

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23 सितंबर सन 2020 ईस्वी से राहु वृष राशि में तथा केतु वृश्चिक राशि में संचार कर रहे हैं। पुनः 12 अप्रैल 2022 ईस्वी को राहु मध्यम गति से दोपहर बाद 3:29 पर मेष राशि में तथा केतु तुला राशि में प्रवेश करेंगे।यह 21 मार्च 2023 ईस्वी तक,इस सम्वत्सर के अन्त तक, इसी राशि में संचार करते रहेंगे। और यह 13 अप्रैल 2022 को मीन राशि में प्रवेश कर रहा है। इसलिए कुम्भ, वृश्चिक, कन्या,कर्क, कन्याओं वृष राशि के लिए अनुकूल रहेंगे। तथा मेष, सिंह और धनु राशि को बुरा फल प्रदान करेंगे। शेष राशियों के लिए मिश्रित फलदाई रहेंगे।

इसी प्रकार विगत वर्षों से बृहस्पति कुंभ राशि में संचरण कर रहे थे।यह 13 अप्रैल 2022 ईस्वी को दोपहर बाद 3:48 पर वृहस्पति राशि मीन में प्रवेश करेंगे और इसी राशि में लगभग 1 वर्ष तक बने रहेंगे। इन दोनों का अगली राशि में प्रवेश करने से जीवन-जगत में बदलाव दिखाई देगा। इन तीनों ग्रहों जीवन पर इसका पूर्ण प्रभाव परिलक्षित होगा। वर्ष पर्यंत तक प्रभावित करने वाले ग्रहों में शनि, राहु, केतु और बृहस्पति हैं। इनका प्रभाव अधिक समय तक रहता है ।यह लोगों के मनोवृति, भाव- भंगिमा, आर्थिक पहलू ,सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करते हैं। यह अनुकूल स्थिति में रहते है, तो अच्छे फल देते हैं। प्रतिकूल होने पर विपरीत फल प्रदान करते हैं।

13 अप्रैल को बृहस्पति का परिवर्तन हो रहा है। बृहस्पति सौर्य मंडल का सबसे विशालकाय और भारी ग्रह है। अपने विशालता के कारण ही से गुरु कहा कहा जाता है। सौर्य मंडल में सूर्य के चारों ओर घूमने वाले ग्रह में बृहस्पति का आकार सबसे बड़ा है। इसकी पृथ्वी से सामान्य दूरी लगभग 48,50,00,000 मील है। आधुनिक वैज्ञानिक की मान्यता के अनुसार गुरु अपनी कक्षा में भ्रमण के दौरान कभी-कभी पृथ्वी से 36,70,00,000 मील की दूरी तक आ जाता है। सूर्य की एक परिक्रमा 11 वर्ष और 9 माह में पूरी करने वाले इस ग्रह का अपनी परिधि पर झुकाव 2- 5 अंश तथा व्यास 9,36,720 मील माना जाता है‌ गुरु लगभग 8 मील प्रति सेकंड की चाल से गति करते हुए सूर्य का चक्कर करता है।

धार्मिक दृष्टि पुराणों के अनुसार महर्षि अंगिरा के पुत्र हैं। गृहों में मंत्री का पद प्राप्त है तथा इनकी स्थिति मंगल ग्रह के ऊपर दो लाख योजन की ऊंचाई पर है। बृहस्पति कभी-कभी वक्री हो जाते हैं। तथा बकरी न हो तो एक राशि को एक वर्ष में पार कर लेते हैं। जन्म कुंडली में किसी अशुभ संबंधों में भी गुरु के अशुभ फल नहीं मिलते हैं बल्कि शुभ फल ही मिलते हैं। ऐसा माना जाता है कि अकेला ही बृहस्पति जन्मकुंडली के लाखों दोस्तों को शांत करने में समर्थ है। राशि चक्र में धनु और मीन राशि का स्वामी है।

कर्क इसकी उच्च नीच राशि तथा मकर राशि का स्थान है। यह कर्क, सिंह वृश्चिक और मेष राशि से मित्रता रखता है ।वही वृष ,मिथुन, कन्या और तुला राशि से शत्रुता रखता है। यह पुरुष जाति, उत्तर दिशा का स्वामी तथा आकाश तत्व है। शरीर में कब,धातु और चर्बी में वृद्धि करता है। रोगों में सूजन, पेट के रोग भी देता है। घर ,विद्या, संतान, पौत्र,स्त्री के लिए पति सुख, राज्य कृपा, जातक में धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक चिंतन एवं प्रगति गुरु की कृपा से ही प्राप्त होता है। यह 12 वर्षों के बाद पुनः उसी राशि पर आ जाता है जहां जन्म के समय था। वहां लगभग 12 वर्ष के समय के बाद आता है। यह लग्न भाव में चंद्रमा के साथ होने से चेष्टा बली का कहलाता है ।गुरु का प्रभाव आमतौर पर जातक पर पिघले हुए सोने के समान होता है जिसे थोड़े से उपाय द्वारा अनुकूल किया जा सकता है।

राहु केतु की महादशा में ये करें :

यदि राहु या केतु की महादशा चल रही हो या उसकी अंतर्दशा हो और गोचर में भी राहु और केतु अनुकूल न हों हो तो राहु और केतु ग्रह की शांति करनी चाहिए ,क्योंकि उस समय विपरीत फल प्राप्त होता है‌ राहु ग्रह की शांति के लिए भूरे रंग का कपड़ा, कंबल, नारियल, सतन्जा दक्षिणा इत्यादि का दान करना कल्याणकारी रहता है। जन्मपत्री अनुशीलन के बाद गोमेद भी धारण किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त राहु के बीज मंत्र का अठारह हजार की संख्या में जप करें या करायें। गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ भी किया आता है। इसी तरह केतु ग्रह की शांति के लिए लोहा, काला वस्त्र, नारियल, कंबल, कस्तूरी,कुष्ठ आश्रम में भोजन की सामग्री, दूध का दान अच्छा माना जाता है। लहसुनिया पत्थर की धारण करना चाहिए। केतु का बीज मंत्र का जप करें। श्री गणेश जी का स्त्रोत का पाठ करना शुभ माना गया है।

आधुनिक विज्ञान नहीं मानता राहु केतु ग्रह का अस्तित्व :

आधुनिक विज्ञान और वैज्ञानिकों के मतानुसार राहु और केतु ग्रहों का सौर परिवार में कोई अस्तित्व नहीं है। यह सूर्य और चन्द्रमा के कटान के उत्तर और दक्षिण की छाया मात्र हैं। अतः इन्हें छाया ग्रह ही कहा जाता है। इसलिए नौ ग्रहों के परिवार में राहु केतु को कोई स्थान प्राप्त नहीं है ।पुराणों से प्राप्त जानकारी के अनुसार राहु की माता का नाम सिंहिका है,जो हिरण्यकशिपु की पुत्री थी, तथा उसका विवाह विप्रचित्ति नामक दानव के साथ हुआ था, अर्थात हिरण का नाती था ।जब देवता और दानव ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो अमृत प्राप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर दानवों को मोहित कर देवताओं को अमृत वितरण वितरण करने का प्रयास किया था।

यह जानकर देवता का रूप बनाकर राहु उसमें बैठ गया और अमृत पाने में सफल हो गया। यह घटना सूर्य और चंद्रमा देख रहे थे। उन्होंने इसे तुरंत भगवान विष्णु को बता दी। भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से राहु के मस्तक को काट दिए। किंतु अमृत पान करने के कारण वह मरा नहीं बल्कि अमर हो गया। दो भागों में विभक्त होने के बाद भी उसके सिर और धड़ दोनों जीवित रहे। जिनमें सिर वाले भाग को‌ राहु और धड़ वाले भाग कौ केतु गया तथा। तब से ही राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा से शत्रुता रखते हैं। समय-समय पर सूर्य और चन्द्रमा को ग्रसित करते रहते हैं। जिन्हें हम ग्रहण के रूप में देखते हैं।

प्राचीन ज्योतिष शास्त्र में मुख्य रूप से 7 ग्रह ही माने जाते हैं। किंतु कालांतर में अदृश्य रुप मे राहु का प्रभाव भी मानव जीवन पर महसूस किया और छाया ग्रह के रुप मे मान्यता दे दिया गया। इस प्रकार वर्तमान ज्योतिष गणना में राहु और केतु के प्रभाव का अध्ययन और उसका प्रभाव भी माना जाता है। कई बातों में इनमें विपरीत ता पाई जाती हैं अर्थात दोनों एक दूसरे के आमने सामने 180 अंश पर होते हैं। अन्य ग्रहों के गति करते हुए ये सूर्य का चक्कर लगाते हैं। विद्वान इसकी पृथ्वी से दूरी लगभग 90, 00,000 0मील तथा व्यास 30,00,000 मील मानते है। एक राशि पर लगभग डेढ़ वर्ष तक राहु केतु रहते हैं। इनके संपूर्ण राशिफल को पार करने में लगभग 18 वर्ष का समय लगता है। चूंकि ये छाया ग्रह है, अतः इन्हें किसी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है।

कुछ ज्योतिषी राहु की उच्च राशि वृष तथा नीच राशि वृश्चिक को मानते हैं। वहीं कुछ अन्य लोग से राहु की उच्च राशि मिथुन राशि और नीच‌ राशि धनु को मानते हैं। साथ ही मेष, वृष, मिथुन, कन्या वृश्चिक तथा कुंभ राशि और दशम स्थान में होने पर शक्तिशाली माना जाता है। नैसर्गिक रूप से यह पापी ग्रह, दक्षिण दिशा का स्वामी होकर जन्म कुंडली के जिस भाव में स्थित रहता है उसके शुभ या अशुभ दोनों प्रकार के फलों को समाप्त कर देता है। यह सप्तम , पंचम और नवम भाव पर पूर्ण दृष्टि रखता है। यह जिस राशि में होता है उस राशि के स्वामी के स्वभाव के अनुसार फल देता है तथा जिस ग्रह के साथ होता है उस ग्रह के फलों में वृद्धि या कमी भी शुभाशुभ अनुसार कर देता है।

राजनीति का कारक होने के साथ ही जातक में हिम्मत , शौर्य,पाप कर्म,व्यय, शत्रुता, दुःख, चिन्ता,दौर्भाग्य,संकट आदि का अध्ययन इस ग्रह द्वारा किया जाता है।। रोगों की दृष्टि से शरीर में मानसिक स्तर के सभी रोगों को दूर करने में सहायक होता है। इसी प्रकार यह उत्पन्न बीमारी, भूत प्रेत, पिशाच, डाकिनी, जादू टोना, तांत्रिक प्रयोग आदि से संबंधित व्याख्या और घटने वाली आकस्मिक दुर्घटनाओं का प्रतिनिधित्व करता है।

राहु का गोचर फल :

राहु गोचर में यदि अनुकूल फलदाता होता है और उत्तम फल देता है।जिन राशियों के लिए छठां, तीसरा या 11 वें होता है उन राशि‌के लौगों का अभ्युदय करता है, तथा जिन राशियों के लिए चौथा,आठवां या बारहवां होता है , उन्हें नेष्ट फल प्रदान करता है शेष राशियों के लिए यह मिश्रित फल देता है। मेष राशि पर राहु के संचार के कारण यह कुंभ ,वृश्चिक और मिथुन राशि वालों के लिए अच्छा फल प्रदान करेगा तथा मां करें कन्या,मकर और वृष राशि वालों के लिए बुरा फल देगा ।शेष राशियों के लिए सामान्य रहेगा।

यदि गोचर में बृहस्पति अनुकूल नहीं है तथा जन्मपत्रिका में केंद्र के स्वामी हैं तो ऐसी स्थिति में उत्तम फल नहीं देते हैं। बृहस्पति की शुभता बढ़ाने के लिए बृहस्पतिवार के दिन ब्राह्मण को भोजन कराना, गुरुवारी अमावस्या तथा गुरुवार का व्रत रखना, पुखराज पहनना पीला वस्त्र, चने की दाल कांस्य पात्र, सोना, शक्कर, केला, लड्डू ,धार्मिक ग्रंथ आदि का दान यथाशक्ति करने तथा गुरु का मंत्र जप करने से गुरु की प्रतिकूलता समाप्त होती है और शुभ फल प्राप्त होता है। गुरु धनु और मीन राशि का स्वामी है। पति सुख की प्राप्ति के लिए स्त्रियों को गुरुवार के बीज मंत्र का जप करना चाहिए। इसके अतिरिक्त वृहस्पति अष्टोत्तर शतनाम, बृहस्पतिवार का व्रत, पुखराज धारण करना और बृहस्पति से संबंधित पीले वस्तुओं का दान लाभदायक रहता है। प्रत्येक बृहस्पतिवार को केसर का तिलक लगाना चाहिए।

बृहस्पति के विषय में भी कहा गया है यदि कुंडली में अनुकूल नहीं है वैवाहिक संबंधों में विलंब देता है विद्या में कठिनाइयां प्राप्त होती हैं। पदोन्नति में बाधा आती हैं। इसके लिए चमेली का फूल, पीला सरसों, गूलर, दमयंती, मुलहठी ,हरिद्रा, मालती पुष्प, सुगंध बाला ,सफेद आक के नवीन पत्ते, गंगाजल आदि मिलाकर बृहस्पतिवार के दिन स्नान कराना चाहिए और इन वस्तुओं का दान भी अच्छा माना गया है। औषधि स्नान के दिन साबुन, सैंपू आदि के प्रयोग से परहेज करना चाहिए। बृहस्पतिवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से भी बृहस्पति जनित दोष समाप्त होता है। गुरु यदि किसी की राशि से दूसरा, पांचवां, सातवां, नौवा या ग्यारहवें भाव में होता है तो उत्तम फल देता है। तथा चौथे, आठवें और बारहवें में नेष्ट फल प्रदान करता हैं। शेष राशियों पर इसका मिश्रित फल मिलता है।

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