जानिए क्या है भविष्य ज्ञान की अद्भुत विधा रमल शास्त्र के बारे में

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आचार्य पं शरदचन्द्र मिश्र, अध्यक्ष- रीलीजीयस स्कालर्स वेलफेयर सोसायटी

रमल शास्त्र की उत्पत्ति

रमल शास्त्र को अरब से उत्पन्न माना जाता है। अरब के अतिरिक्त यह विद्या अफ्रीका के कई प्रदेश सहित यूनान और यूरोप में भी अत्यधिक प्रसिद्ध है। 17 वीं शताब्दी तक यूरोप में रमल द्वारा भविष्य कथन काफी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका था। भारत में यह यह विद्या अरब देशों से मुस्लिम शासकों के शासनकाल में आई थी। रमल अर्थात रेत से जुड़ी भविष्य बनाने की विधि जिसे जिओमेन्सी भी कहा जाता है। पृथ्वी से संबंध होने के कारण इसे जिओमेन्सी और अमल के नाम से जाना जाता है । रमल में 16 आकृतियों के आधार पर भविष्य बताया जाता है।भारत में भी भविष्य कथन की यह विधा अत्यधिक प्रसिद्ध है। राजस्थान और पश्चिमी भारत में बहुत से रमलाचार्य है जो इस विधा से फलादेश करते हैं। 17 वीं शताब्दी तक यूरोप में रमल द्वारा भविष्य कथन काफी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका था।

भारतवर्ष में अरबी विद्या और फारसी भाषा में लिखे सूत्रों का संस्कृत में अनुवाद किया गया है। इससे संस्कृत भाषा में रमल शास्त्र का प्रचार प्रसार होने लगा। रमल से किसी भी प्रश्न का उत्तर जाना जा सकता है। इसके लिए निश्चित पद्धति के द्वारा प्रस्तार रमल की कुंडली बनाई जाती है। रमल कुंडली में बिंदु एवं रेखाओं से बनी 16 आकृतियों की स्थिति का अध्ययन करके उसके शुभाशुभ फलों को जाना जाता है। रमल की कुंडली बनाने हेतु सामान्य पाशों का प्रयोग किया जाता है। पाशे उपलब्ध न होने की स्थिति में 1 से 100 अंक के मध्य चार संख्या बुलवाकर रमल की कुंडली बनाई जा सकती है और मन में आए प्रश्नों का उत्तर जाना जा सकता है।

रमल शास्त्र में भविष्यवाणी करने के नियम

रमल के द्वारा भविष्यवाणी करने के संबंध में कुछ नियम और वर्जनाएं भी बताई गई हैं। सूर्योदय से लेकर 12 बजे तक का समय ही पासे डालकर उत्तर जानने के लिए अनुकूल होता है। पाशे डालते समय आचार्य अपने इष्टदेव का ध्यान करता है। रमलाचार्य इस बात का भी अवश्य ध्यान रखता है कि परीक्षा के लिए,यात्रा के समय,पलंग पर बैठकर और दूसरे के घर में इस विद्या का प्रयोग नहीं कर सकता है।

रमल शास्त्र में शक्लों का वर्गीकरण

रमल के पाशे हमेशा शुद्ध एवं पवित्र समतल भूमि पर अथवा लकड़ी के तख्ते पर ही डालने चाहिए। अमल में बनने वाली बिंदु एवं रेखाओं के समन्वय से शक्ल 16 प्रकार की होती हैं जो निम्नलिखित है- लहान, कब्जुल दाखिल, कब्जुल खारिज, जामत ,फरहा, उकला, अकीस, हूमरा, बयाज, नस्रुल खारिज, नस्रुल दाखिल, अतवे खारिज, नकी, अतवे दाखिल, इज्जतमा और तरीक। भारत में इन नामों को क्रमशः वाग्मी, तीक्ष्णांशु, पात, सौम्य दैत्य, गुरु, मन्वग, सौरि, लोहित, विधु, उष्णगु, सूरि, चक्र, आर,कवि, बोधन शीतांशु कहतें हैं।

लहान शक्ल

इस शक्ल को ब्राह्मण, धर्म परायण, कर्तव्यनिष्ठ मधुर वचन बोलने वाली, काले नेत्र तथा लंबे आकार वाली माना गई है। वह मिष्ठान्नप्रिय, सुगंध प्रिय तथा कार्य कुशल मानी गई है। यह ऐसे व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करती है जिसके मुंह में नीचे का एक दांत टूटा हुआ, गंजापन अथवा कोई निशान होता है। इस शक्ल को शुभ माना गया है यह शक्ल पुरुष संज्ञक मानी गई है ।यदि संतान संबंधी प्रश्न हो तथा प्रस्तार के पांचवें घर में यह शक्ल है तो पुत्र जन्म की सूचक होती है।

उकला शक्ल

इसको शुभ माना गया है। यह काले वर्ण, बड़े एवं लम्बे मुख, ऊंची और मोटी नाक,छोटे मुख एवं बड़े दांत, छोटे तथा काले नेत्रों तथा पतले होठों को प्रदर्शित करती है। इसका स्वरूप सुंदर होता है यह लिखने में कुशल, विनोदप्रिय, मिष्ठान भोजी तथा अग्नि तत्व की स्वामिनी होती है। यह पतली नाक वाली, गोल चेहरे पर नीचे की किसी निशान को प्रदर्शित करती है। इसके दाहिने पैर अथवा आंख में कोई दोष होता है। यह स्त्री संज्ञक है। अकीस की शक्ल को अशुभ माना गया है‌ इसका स्वरूप अप्रिय होता है यह काले रंग की कुरूप, वमलिन मुख वाली, छोटी आंखें तथा लंबी ऊंचाई वाली, गृह कार्य में निपुण। सेवक वृत्ति वाली, खट्टी वस्तुओं की प्रेमी, झूठ बोलने वाली, आलस्य युक्त गोल चेहरा तथा बड़े सिर तथा दांतों से युक्त होती है। वह कृषि कार्य में निपुण होती है। इसे लोहे काले रंग की वस्तुओं को एकत्र करने का शौक होता है।

कब्जुल दाखिल शक्ल

को क्षत्रिय वर्ण, गेहूंआ रंग,काले नेत्र युक्त, मधुर भाषी, चतुर, बड़े सिर तथा मध्यम कद वाला बताया गया है। इसे बोलने में हाजिर जवाब, शिल्प विद्या में निपुण, मिली हुई भौहों वाली तथा लंबी गर्दन वाली माना गया है। इससे प्रभावित व्यक्ति क्रय विक्रय में कुशल, सुंदर वस्त्र एवं आभूषण का संग्राहक होता है। उसका पेट बड़ा होता है जिसमें बल पढ़ते हैं। यह स्त्री संज्ञक शक्ल है और यह शुभ मानी जाती है। इसका निवास धर्मस्थल अथवा दुकान आदि होता है। संतान संबंधी प्रश्न में यदि यह शक्ल पांचवे भाव में हो तो निश्चित ही कन्या का जन्म होता है।

बयाज शक्ल

गोरे रंग वाली, ब्राह्मण वर्ण वाली, छोटे गोल मुख तथा बड़े नेत्रों वाली, मधुरभाषी, सुगंधित पदार्थों की प्रेमी, देवों की पूजा करने वाली, पेट पर जले के निशान से युक्त, अच्छे वस्त्र पहने वाली तथा वृक्ष आदि स्थानों में रहने वाली, मिष्ठानभोजी है। यह पत्थर की संग्राहक होती है ।यह शक्ल शुभ मानी जाती है। प्रसार के नवे घर में यह शक्ल आने पर अच्छी होती है तथा भाग्य मे वृद्धि मिलने की सूचना देती है।

नस्रुल खारिज शक्ल

गोरे रंग, क्षत्रिय वर्ण वाली, लंबी शरीर तथा विशाल नेत्रों वाली, गोरे रंग की, छोटी नाक छोटा सिर, चौड़ी छाती ,पतली उंगलियां ,आस्तिक, सुंदर सभा वाली, सुरुचिपूर्ण वस्तुओं से युक्त तथा अच्छा भोजन करने वाली है। इसके मुख पर तिल मस्सा आदि होता है। इसकी आवाज कड़क होती है। यह राज्य कार्य में निपुण होती है। प्रस्तार के दसवें घर में आने पर यह स्वगृही हो जाती है। यदि राज्य पक्ष जुड़ा हुआ प्रश्न हो तो रफ्तार के दसवें घर में यह कार्य सिद्धि देती है।

नस्रुल दाखिल शक्ल

गोरे रंग की, गोल चेहरे वाली, शीलवान, दीक्षित, बड़े नेत्रों वाली, बड़ी नाक, बड़े सिर वाली है। पैर में किसी प्रकार का निशान, छोटे शरीर तथा मन में शांति में होती है‌ यह ब्राह्मण वर्ण, तपस्वी, अध्ययनप्रिय, उत्तम सलाहकार, मूल्यवान वस्तुओं की संग्राहक स्वादिष्ट भोजन करने वाली होती है। प्रस्तार में सातवें घर में शक्ल पुरुष तथा सभी घरों में स्त्री संगत मानी जाती है।

अतवे खारिज शक्ल

शुभ नहीं होती है। यह म्लेच्छ वर्ण, लंबे, दुर्बल और छोटे एवं चोट, घाव आदि के निशानों से युक्त शरीर वाली, कान्तिहीन, पीले नेत्र, मुख में दुर्गंध, मुख में नीचे का दांत टूटा हुआ अथवा विकार युक्त, नीचे का धड़ बड़ा एवं पतली गर्दन, छोटे सिर वाली होती है। इसका निवास पर्वत, वन अथवा किले में माना गया है। यह ऊनी वस्त्र पहने वाली, निम्न स्तरीय कार्यों में संलग्न मानी गई है। नकी शक्ल गौर वर्ण, मध्यम कद, कमजोर शरीर, छोटे मुंह, बड़े नाक व होंठ, तथा विकार युक्त दांत, पीले नेत्र वाली होती है। इसके केश लाल होते हैं। यह जुझारू, शस्त्रधारक, युद्ध में कुशल, क्षत्रिय वर्ण वाली होती है। इसका निवास जल के समीप अंधेरे स्थानों पर होता है। अतवे दाखिल शक्ल गेंहुआ शरीर वाली, सुंदर गोल चेहरे पर तिल, पृथक भौहों वाली, काले नेत्र तथा पांव पर चिह्न युक्त होती है। इसे उत्तम पदार्थ प्रिय होते हैं। इसका निवास वृक्षों की जड़ों में अथवा वृक्षों से गिरे हुए स्थान पर होता है।

इज्जतमा शक्ल

शुद्र वर्ण वाली मानी गई है। यह लिपिक कार्य करने वाली, गुणवान, गेहुएं वर्ण वाली, मुंह पर बांयीं‌ओर चिह्न वाली, छोटी नासिकाक्ष तथा छोटे दांतों वाली, कोमल स्वभाव तथा मूल्यवान वस्तुएं समीप रखने वाली होती है। इसका निवास स्थल पाठशाला में माना गया है। यह सुंदर दाढ़ी वाली, रंगीन वस्तुओं के प्रति अनुराग रखने वाली, गणना एवं ज्योतिषी कार्य में निपुण होती है।

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