कहानी : ‘मायका’

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प्रतिमा श्रीवास्तव, लेखिका

‘मायका’

हर बार फ़ोन की घंटी बजती तो सुम्मी चिहुंक कर फ़ोन को ऐसे देखती ..मानो कोई अनचाहा मेहमान आया हो ! जबसे अम्मा की हालत खराब हुई थी ..सुम्मी के मन मे एक डर सा बैठ गया था, अम्मा से ही तो उसका मायका बचा हुआ था; वरना दादा ने तो पराया करने मे कोई कसर नहीं छोड़ी थी ! सुम्मी के मन मे अपना खुशहाल बचपन की यादें कौंध गईं। अम्मा और बाऊजी दोनो की बेहद लाडली थी वो ..उसके मुंह से निकलने से पहले ही उसकी मांग पूरी हो जाती, दादा कभी कभी नाराज़ हो कर यहां तक कह देते की तू ही इनकी सगी है बस…हमको तो घूरे पर से उठा कर लाये हैं !

सुम्मी का कोमल मन भाई की ऐसी बात से दुखी हो जाता था। अम्मा से कहती तो वो हँस देतीं। दादा को जब भी कुछ चाहिए होता वो सुम्मी से ही कहलाते ..वो कभी समझ नहीं पाई की दादा खुद कभी बाऊजी से बात क्यों नहीं करते ? पर जो भी हो पूरा घर उसके चहकने से गुलजार रहता ! सुम्मी की शादी के बाद से ही दादा के व्यवहार मे बदलाव आने लगा था ; कई बार वो भाई के ठंडे वेलकम से खुद को अपने ही मायके में अजनबी सा महसूस करती .. उनकी शादी के बाद तो हालात और भी असहज हो गए ! भाभी मुंह से तो कुछ नहीं कहती पर कुछ न कुछ ऐसा करती की सुम्मी का वहां रुकने का मन ही नहीं करता था ; अम्मा और बाऊजी सब देख कर सुम्मी को ही समझा कर भेज देते।

बाऊजी के जाने के बाद अम्मा अकेली सी हो गई। दादा तो अब मुंह खोल कर उनसे घर उनके नाम कर देने को कहने लगे थे। ये सब सुन कर उसका मन और दुखी हो जाता …क्या हो गया था दादा को ? घर क्या रिशतों से ज़्यादा ज़रूरी था ? अम्मा ने दादा से साफ कह दिया था के घर पर सुम्मी का भी हक है ; उसके बाद से तो दादा ने उससे बात करना भी बन्द कर दिया !

उनके रूखे व्यवहार से अम्मा अन्दर ही अन्दर घुली जा रही थीं : कई दिनों से उन्होंने खाना भी बन्द कर दिया था ! कुसुम अम्मा की शादी के बाद से ही घर जा काम करने मैं उनकी मदद करती थी …उसी ने सुम्मी को खबर करी की अम्मा की हालत बहुत खराब है आकर देख जाओ। सुन कर सुम्मी का मन भर आया …दादा ने उसे खबर तक नहीं की !

अबके जाऊँगी तो दादा से कह दूँगी रखो घर अपने पास हम अम्मा को साथ लिए जा रहे है ; पर उसकी नौबत ही नहीं आई ” सुम्मी चलो –.अम्मा चली गई ” सुधांशु उसके पास आकर गंभीर स्वर मैं बोले तो उसको लगा की उसके शरीर से आत्मा अलग हो गई ! हत्प्रभ सी वो सुधांशु का मुंह देखती रही “” चलो सुम्मी ” उन्होने स्नेह से उसका हाथ थपका !

घर पर अम्मा का शांत चेहरा देखकर उसको लगा अभी अम्मा तुरंत रसोई में जाकर उसके लिए कुछ खाना बनाने में ल़ग जायेंगी : पर कहाँ उठी, वो वैसे ही अविचल पड़ी रही ; दादा सिर झुकाये उनके पैरों के पास बैठे ना जाने क्या सोच रहे थे ………” हाए! सुम्मी तेरा तो मायका ही खत्म हो गया बिटिया “” छोटी बुआ उसे देख ज़ोर से रोने लगीं ; पर सुम्मी तो चुप खड़ी अम्मा का चेहरा देखे जा रही थी …अम्मा को कब अंतिम संस्कार के लिए ले गए ..कब कौन आया कौन गया ?

उसे कुछ पता ना चला ; एक आंसू भी उसकी आँखों से ना निकला ! कुंवर जी सुम्मी को सदमा ल़ग गया है उसे रुलाओ …उसकी माँ अब नहीं है वो तो हमेशा के लिए चली गई ” छोटी बुआ सुधांशु से कहते हुए रो पड़ी !.पर सुम्मी को तो जैसे अहसास ही नहीं था ..अम्मा के कमरे मे बैठी उनकी साड़ी को प्यार से सहलाते जाने क्या बुदबुदा रही थी ; बस एक वाक्य उसके कानो को चीरे दे रहा था …..तेरा मायका खत्म हो गया सुम्मी ” !

” अब घर चले सुम्मी ” सुधांशु ने धीरे से उसका कंधा हिलाया …….सूनी नज़रों से कमरे को निहारते हुए उसके दिल मे हूक सी उठी ; पर चुपचाप पति के पीछे पीछे चल दी ! ” अच्छा तो हम चले अब ” सुधांशु ने दादा को सामने खड़ा देख दोनो हाथ जोड़े ; सुम्मी चुप खड़ी भाई को देख बिना कुछ कहे मुंह नीचे कर पैर अंगूठे से ज़मीन खुरचने लगी !

” सुम्मी ! मेरी गुड़िया मेरी बहन अपने दादा को माफ कर दे ..मैने ये कभी नहीं चाहा की तू यहां ना आये य़ा अम्मा चली जायें …पाता नहीं मुझे क्या हो गया था अपने दंभ मे डूबा हुआ मैं रिशतों का मान रखना ही भूल गया था …पर जब छोटी बुआ ने कहा की तेरा मायका खत्म हो गया तो ! मेरी आत्मा सिहर उठी ….मुझे अहसास हुआ की मैने क्या खो दिया और क्या खोने जा रहा हूँ ”

” सुम्मी तेरा भाई अभी है …अम्मा और बाऊजी जैसा तो नहीं बन सकता पर कोशिश करूँगा की उनकी कमी तुझे कभी महसूस ना होने दूँ ” चुप खड़ी सुम्मी का हाथ पकड़ अपनी भीगी आँखों से लगाते हुए दादा रो पड़े …अब तक जड़ खड़ी सुम्मी भाई के गले ल़ग कर ज़ोर से रो पड़ी ; निशब्द बहते आंसू दोनो भाई बहन के दिल का मैल धोये डाल रहे थे !

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