संस्मरण : न्यायमूर्ति जगमोहन सिन्हा का वो ऐतिहासिक फैसला जिसने इतिहास की धारा मोड़ दी

0 0
Read Time:7 Minute, 57 Second
नरेश मिश्र

इमरजेंसी की एक दुखांत कहानी

आज का दिन मुल्क के इतिहास में रोमांचकारी मोड़ के रूप में दर्ज है। आज ही के दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्रीमती इंदिरागांधी के खिलाफ फैसला सुनाया था। वे रायबरेली संसदीय सीट से राजनारायण को हराकर चुनाव में विजयी हुई थीं। राजनारायण ने उनके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया था। सुनवाई जस्टिस जगमोहन लाल सिनहा की कोर्ट में हो रही थी। सुनवाई में इस बिंदु पर भी बहस हुई कि गाय बछड़ा हिंदू धर्म का चिन्ह है कि नहीं। सनातन धर्म का पक्ष रखने के लिए पंडित रघुबर मिट्ठू लाल शास्त्री राजनाराण की ओर से गवाह के रूप में शामिल हुए। इंदिरागांधी की ओर से बीएचयू के संस्कृत विभाग से जुड़े एक दक्षिण भारतीय ब्राह्मण आचार्य ने गवाही दी।

बताते चलें कि पंडित रघुबर मिट्ठू लाल शास्त्री जन्मना कायस्थ थे। वे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के संस्कृत विभाग में प्रोफेसर थे। मेरे स्मृति पटल पर उनका ऋषितुल्य चेहरा आज भी अंकित है। लंबी दाढ़ी, लंबे बाल, बगल बंडी, धोती और गोरक्षक चप्पल पहने वे प्राचीन काल के ऋषियों जैसे प्रतीत होते थे। उन्होंने संस्कृत साहित्य वैदिक साहित्य, उपनिषद दर्शन का गहराई से अध्ययन किया था। वे जब संस्कृत विभाग से पढ़ाकर निकलते तो हम लोग उनके सम्मान में खड़े हो जाते। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में गवाही के दौरान बीएचयू के ब्राह्मण प्रोफेसर की ओर इशारा करते हुए कहा था कि हम दोनों की लकड़ियां श्मशान में पहुंच चुकी हैं। हम दोनों जीवन के चौथे चरण में हैं। ऐसे में हम दोनों को सत्य बोलना चाहिए। आप कैसे गाय बछड़े को सनातन धर्म का प्रतीक नहीं मानते।

न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा

इमरजेंसी की घोषणा हुई तो मैं आकाशवाणी इलाहाबाद में स्क्रिप्ट राइटर के रूप में सेवारत था। राजकाज के दौरान इंदिरागांधी और इमरजेंसी की प्रशंसा करना। आकाशवाणी परिसर से निकलते ही इंदिरागांधी की कड़ी आलोचना करना। रास्ते में अपनी इस विवशता को कोसना कि परिवार के भरण-पोषण के लिए नौकरी क्यों की। यही दिनचर्या थी। कम्युनिस्ट पार्टियों ने इमरजेंसी में इंदिरागांधी का समर्थन किया था। गांधीवादी विचारक आचार्य विनोबा भावे ने इमरजेंसी को अनुशासन पर्व करार दिया था। जनता के लोकतांत्रिक अधिकार छीन लिए गए थे। हजारों नेता जेल की सलाखों में बंद थे। मीसा बंदियों में समाजवादी पार्टी और आरएसएस, जनसंघ के कार्यकर्ताओं, नेताओं की संख्या ज्यादा थी। उनमें एक चेहरा मेरी स्मृति पटल पर आज भी कौंध जाता है। वे थे सत्यव्रत सिन्हा। आरएसएस से जुड़े थे। प्रयाग रंगमंच के संस्थापकों में शुमार थे। थिएटर, नाटक और साहित्य में प्रवीण थे। उनके चेहरे पर मुस्कुराहट की वसंत ऋतु हमेशा देखी जा सकती थी।

उन दिनों आकाशवाणी का ग्राम पंचायत विभाग रुद्रकार्तिकेय के प्रसिद्ध उपन्यास ‘बहती गंगा’ का धारावाहिक प्रसारण कर रहा था। इस उपन्यास का रेडियो नाट्य रूपांतरण सत्यव्रत सिन्हा जी को सौंपा गया था। सप्ताह में एक बार आधे घंटे के लिए लोकायतन कार्यक्रम में इसका प्रसारण होता था। इस सिलसिले में सत्यव्रत जी से उनके तुलाराम बाग स्थित आवास पर मुझे जाना पड़ता था। वे मुस्कुराते हुए मिलते। पहले जलपान कराते, फिर चाय पिलाते। तब नाटक की बात चलती। एक बार मैंने मजाक में उनसे पूछ लिया। सिन्हा जी क्या आप हर मौसम में इसी तरह मुस्कुराते रहते हैं। वे हंसकर बोले मुस्कुराहट जिंदगी की सबसे बड़ी ईश्वरीय देन है। इसलिए इंसान को हर हाल में खुश रहना चाहिए। वह खुश न भी हो तो भी दुनिया को दिखाने के लिए उसे मुस्कुराना चाहिए। सत्यव्रत सिन्हा को गिरप्तार करके नैनी जेल में बंद कर दिया गया। जेल में वे बीमार पड़े। उनका ठीक तरह से इलाज नहीं किया गया।

अंत में हेमवतीनंदन बहुगुणा के पैरवी करने पर उन्हें मुश्किल से रिहाई मिली। लेकिन जीवन की डोर उनका साथ छोड़ चुकी थी। जेल से रिहा होने के बाद वे कुछ ही दिन जीवित रहे। उनका देहावसान इमरजेंसी की सबसे बड़ी ट्रेजेडी थी जो मुझे मेरे अंतस को भेद गई। बाद में एक डॉक्युमेंट्री निर्माण के सिलसिले में मैं निवर्तमान जस्टिस जगमोहन सिन्हा का इंटरव्यू लेने उनके आवास पर गया। वे रात में ही झांसी से वापस लौटे थे। उनके बेटे ने मुझसे कहा आप किसी दिन दोबारा इंटरव्यू के लिए आइएगा। अभी जज साहब सो रहे हैं। हम रेकॉर्डिंग मशीन लेकर वापस लौट रहे थे। तभी सीढ़ियों से आवाज आई। रुकिए! चाय पीजिए, मैं अभी दस मिनट में आता हूं। वे जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा थे। इसका विश्वास करना कठिन था। दस मिनट बाद वे नीचे उतरे इंटरव्यू दिया।

इंटरव्यू खत्म हुआ तो मैंने ऑफ द रिकॉर्ड पूछ लिया। आपने इंदिरागांधी के खिलाफ फैसला क्या सोचकर सुनाया। वे हंसकर बोले। जस्टिस कोई फैसला सुनाते समय किसी इंसान की शख्सियत और हैसियत का विचार नहीं करता। वह संविधान और कानून पर विचार करता है। जो ऐसा नहीं करता उसे न्यायमूर्ति कहलाने का हक नहीं है। हमारा लोकतंत्र सुरक्षित है क्योंकि हमारे कोर्टों में जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा की बात का समर्थन करने वाले न्यायमूर्तिगण मौजूद हैं। उनकी टिप्पणियां तल्ख हो सकती हैं। वे परंपरा और तथ्य का उल्लंघन भी कर सकते हैं। ऐसे कई उदाहरण मैं दे सकता हूं। लेकिन कुल मिलाकर उनका नजरिया जनहित में होता है।

Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %

Blog ज्योतिष

साप्ताहिक राशिफल : 14 जुलाई दिन रविवार से 20 जुलाई दिन शनिवार तक

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र अध्यक्ष – रीलीजीयस स्कॉलर्स वेलफेयर सोसायटी सप्ताह के प्रथम दिन की ग्रह स्थिति – सूर्य मिथुन राशि पर, चंद्रमा तुला राशि पर, मंगल और गुरु वृषभ राशि पर, बुध और शुक्र, कर्क राशि पर, शनि कुंभ राशि पर, राहु मीन राशि पर और केतु कन्या राशि पर संचरण कर रहे […]

Read More
Blog national

तीन दिवसीय राष्ट्रीय पर्यावरण संगोष्टी सम्पन्न

द्वितीय राष्ट्रीय वृक्ष निधि सम्मान -२०२४ हुए वितरित किया गया ११००० पौधों का भी वितरण और वृक्षारोपण महाराष्ट्र। महाराष्ट्र के धाराशिव ज़िले की तुलजापुर तहसील के गंधोरा गाँव स्थित श्री भवानी योगक्षेत्रम् परिसर में विगत दिनों तीन दिवसीय राष्ट्रीय पर्यावरण संगोष्टी का आयोजन किया गया। श्री भवानी योगक्षेत्रम् के संचालक गौसेवक एवं पर्यावरण संरक्षक योगाचार्य […]

Read More
Blog uttar pardesh

सनातन धर्म-संस्कृति पर चोट करते ‘स्वयंभू भगवान’

दृश्य 1 : “वो परमात्मा हैं।” किसने कहा ? “किसने कहा का क्या मतलब..! उन्होंने ख़ुद कहा है वो परमात्मा हैं।” मैं समझा नहीं, ज़रा साफ कीजिये किस परमात्मा ने ख़ुद कहा ? “वही परमात्मा जिन्हें हम भगवान मानते हैं।” अच्छा आप सूरजपाल सिंह उर्फ़ भोलेबाबा की बात कर रहे हैं। “अरे..! आपको पता नहीं […]

Read More
error: Content is protected !!