जानिए भारतीय ज्योतिष ग्रंथों में दर्ज बारिश की सटीक भविष्यवाणी के तरीके और लक्षण

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आचार्य पं शरदचन्द्र मिश्र, अध्यक्ष- रीलीजीयस स्कालर्स वेलफेयर सोसायटी

ज्योतिष के त्रय स्कन्धों‌ के अंतर्गत विभक्त विषय प्रतिपादित है। इन विषयों में मुख्य रूप से प्रकृति में घटित होने वाली विभिन्न प्रकार की घटनाएं मानव जाति को किस प्रकार से प्रभावित करती हैं इसका उल्लेख किया गया है। इन प्राकृतिक घटनाओं में वर्षा की भविष्यवाणी ,भूकंप की भविष्यवाणी ,अकाल की भविष्यवाणी अतिवृष्टि की भविष्यवाणी -इत्यादि विषय प्रतिपादित हैं। इन विषयों में वर्षा का पूर्वानुमान एक ऐसा विषय है जो सभी के लिए महत्वपूर्ण होता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है ऐसे में वर्षा की पूर्व भविष्यवाणी से कृषकों के लिए अपना कार्य करना सुविधाजनक हो जाता है। प्राचीन काल से ही ज्योतिर्विद संहिता ज्योतिष में उल्लिखित सिद्धांतों से वर्षा की भविष्यवाणी करते आए हैं। ऐसी भविष्यवाणियां जिस क्षेत्र में की जाती है वहीं से लगभग 20 किलोमीटर से 100 किलोमीटर तक प्रभावी होती हैं। यह भविष्यवाणियां मेघों के गर्भधारण से लेकर निश्चिंत समय में चलने वाली वायु, मेघों के विभिन्न प्रकार के आकार प्रकारों से संबंधित होती हैं।बृहद्संहिता नामक ग्रंथ में वराहमिहिर ने उल्लेखित किया है कि अगहन शुक्ल में जब प्रतिपदा से आगे चंद्रमा पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में आए तब से आरंभ करते हुए मेघ‌गर्भ लक्षण का विचार करना चाहिए। उक्त समस्त साधनों पर वर्षा की पूर्वानुमान को समझते हैं।

मेघों के गर्भधारण से वर्षा का पूर्वानुमान

किसी भी क्षेत्र में मेघों के गर्भधारण का विचार अगहन मास से प्रारंभ करना चाहिए।जिस नक्षत्र में चंद्रमा के रहने पर गर्भधारण के लक्षण मिले, उस दिन से गिनकर 195 दिनों के पश्चात उसी नक्षत्र में चंद्रमा के रहने पर वर्षा होती है। अर्थात उस दिन मेघ गर्भ धारण का प्रसव होता है।यह गणना सावन मान से करनी चाहिए।

वायु के संचालन से वर्षा की भविष्यवाणी

गर्भधारण के अतिरिक्त निश्चित मुहूर्त समय बहने वाली वायु से भी वर्षा की भविष्यवाणी की जा सकती है। प्रत्येक वर्ष के ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में अष्टमी, नवमी, दसवीं तथा एकादशी- ये चार तिथियां वायु धारण करने वाली कहलाती है। यदि मृदुल, स्निग्ध और बादलों को रोकने वाली वायु चलती है तो यह उत्तम माना जाता है। इन चा दिनों में बिजली चमके, जल की बूंदें की रहे और हवा के साथ धूल उड़े सूर्य और चंद्रमा पर बदली हो जाए तो यह सभी सर्वोत्तम धारण के लक्षण हैं। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में आर्द्रा से नौ नक्षत्रों में वर्षा की परीक्षा करनी चाहिए। यदि इन नौ में बादल छाए तो श्रेष्ठ वर्षा के योग नहीं होते हैं। सावन महीने में पश्चिम की वायु, भादो महीने में पूर्व की हवा, और आश्विन माह में ईशान कोण की हवा चले तो अच्छी वर्षा होती है। यदि सावन महीने में चार दिनों तक पश्चिम की वायु चले तो रात दिन पानी बरसता है। यदि श्रावण मास में पूर्व की, भाद्रपद में पश्चिम की और आश्विन माह में नैऋत्य कोण वायु चले तो वर्षा नही होती है।

श्रावण माह में पूर्व की, भाद्रपद में पश्चिम की और इसी माह में रविवार को पूर्व की हवा चले तो वर्षा की कमी रहती है। सावन महीने में यदि प्रतिपदा तिथि रविवार को हो और उस दिन तेज पूर्वी हवा चलती हो तो वर्षा का अभाव। आश्विन माह में हो तो बर्षा अवश्य होती है। यदि सावन पूर्णिमा के दिन शनिवार हो और उस दिन दक्षिण दिशा की ओर चलती हो तो वर्षा की कमी आश्विन मास में रहती है ।भाद्रपद प्रतिपदा को प्रातः काल पश्चिमी हवा चले तो भरपूर वर्षा होती है। ऐसी स्थिति में कार्तिक मास तक जल बरसता है। भाद्रपद कृष्ण पंचमी को शनिवार अथवा मंगलवार हो और पूर्वी हवा चले तो हल्की वर्षा होती है। इसी महीने में पंचमी तिथि मैं भरणी नक्षत्र हो और इस दिन दक्षिणी हवा चले तो वर्षा का अभाव रहता है।

आर्द्रा नक्षत्र में बादल दिखे तो देर से होगी वर्षा

इसी प्रकार वैशाख माह में बादल गरजें, बिजली चमके तथा पानी की बूंदे भी गिरे हैं तो उत्तम वर्षा होती है। गर्भ लक्षण गर्भ के पश्चात यदि उल्कापात हो, बिजली गिरे, धूल भरी हवाएं चलें, दिशाएं प्रज्वलित हो, भूकंप आए, धूमकेतु दिखे ऐसी स्थिति में मेघ के गर्भधारण का नाश होता है अर्थात वर्षा काल में बर्षा नहीं हो पाती है। पूर्वाभाद्रपद ,उत्तराभाद्रपद, पूर्वाषाढ़ा, रोहिणी इन नक्षत्रों में गर्भ लक्षण दिखे तो वर्षा काल में पर्याप्त वर्षा होती है। शतभिषा, आर्द्रा, स्वाति, मघा, अश्लेषा- इन पांच नक्षत्रों में गर्भ लक्षण दिखे तो बहुत दिनों तक वर्षा होती है। गर्भधारण के लक्षणों में मुख्य है हवा चलना, वर्षा होना, बिजली कड़कना, बादलों की गड़गड़ाहट, बादल छाए रहना आदि।

चैत माह में मेघ छाएं और बूंदाबांदी हो तो अच्छी वर्षा के आसार

यदि मेघ का गर्भधारण दिन में हो तो प्रसव रात में होता है और गर्भधारण रात में हो तो प्रसव दिन में होता है। इसी प्रकार प्रात: और सायं के फल होते हैं। प्रसव से अर्थ उस दिन होने वाली बरसात से है। मेघ के गर्भधारण का विचार मार्गशीर्ष मास से वैशाख माह तक करना चाहिए। अगहन शुक्ल में यदि मेघ गर्भधारण हो तो वर्षा कम होती है। पौष शुक्ल में अधिक वर्षा की संभावना बनती है। मेघ धारण के कारण मध्यम और शान्त गति की हवा उत्तर, ईशान अथवा पूर्व वाली होती है, आसमान साफ रहता है सूर्य और चंद्रमा में चमक अधिक होती है तथा सूर्य और चंद्रमा के चारों ओर बादलों का एक वलय बन जाता है। गर्भधारण के समय बादल विशाल एवं घने होते हैं। उनका रंग मटमैला एवं काला होता है। बादलों की मधुर गर्जना होती है तथा बिजली कड़कती है।

अगहन एवं पौष माह में संध्या काल के समय में आकाश अधिक लाल हों, बादल घिरे हुए हो और अधिक ठंडा मौसम न हो तो आगामी वर्षा के लिए शुभ लक्षण होता है। पौष माह में पाला अथवा बर्फ कम गिरे तो यह आगामी वर्षा के लिए शुभ लक्षण आता है। माघ मास में तेज हवाएं चलें, सूर्य और चंद्रमा का प्रकाश धुंधला हो तथा वातावरण में अत्यधिक कोहरा एवं बर्फ हो तो वर्षा ऋतु में उत्तम वर्षा की सूचना होती है। फाल्गुन माह में रूखी हवाएं चलें उन हवाओं में तेजी हो, आकाश में बादल छाए रहें, सूर्य और चंद्रमा बादलों से ढका रहे, सूर्य तांबे के जैसा पीला सा दिखाई पड़े तो आगामी वर्षा ऋतु में श्रेष्ठ वर्षा के योग होते हैं। चैत्र माह में खूब बादल छाए तथा बूंदाबांदी भी हो तो ये अच्छे गर्भधारण के लक्षण होते हैं।

आषाढ़ी पूर्णिमा से वर्षा की भविष्यवाणी की परंपरा

संहिता ग्रंथ में वायु परीक्षण के लिए सर्वप्रथम सर्वश्रेष्ठ तिथि आषाढ़ी पूर्णिमा को माना गया है। इस दिन वायु परीक्षण द्वारा वर्षा की भविष्यवाणी करने की परंपरा प्राचीन काल से भारतवर्ष में चली आ रही है‌ इसी दिन सायंकाल ऊंचे स्थान पर पताका फहराकर वायु प्रवाह के आधार पर आगामी वर्षा होने की भविष्यवाणी की जाती है। सयदि पूर्वी वायु प्रवाहित हो तो बरसात शुभ और अच्छी होती है, परंतु मरुस्थलीय प्रदेशों में वर्षा नहीं होती है। इसी तिथि को दिन- रात आग्नेय कोण में हवा चले तो उससे अग्नि भय और न्यून वृष्टि होने के संकेत हैं।पश्चिमी दिशा का वायु प्रवाह होने पर अतिवृष्टि होने के योग होते हैं।

वायव्य कोण की आयु न्यूनतम वर्षा को दर्शाती है। उत्तर दिशा की ओर चलने वाली वायु अतिवृष्टि तथा ईशान कोण में हवा से अच्छी वर्षा होती है। ऊर्ध्व वायु से दुर्भिक्ष तथा तेज वायु से वर्षा की समाप्ति समझनी चाहिए। इस दिन पूर्व, उत्तर पश्चिम और दक्षिण के क्रम से वायु का प्रवाह हो तो शुभ होता है। यदि चारों दिशाओं की वायु एक दूसरे को काटती हुई चलें तो खत्म वृष्टि होती है। आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन सायंकाल के समय पूर्व, ईशान एवं उत्तर की वायु चलना शुभ होता है। यदि आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन पूर्व और उत्तर दिशा की वायु बिल्कुल ही न चले और उसी उस दिन जल की बूंदें भी न गिरे तो उस विशेष स्थान पर दुर्भिक्ष समझना चाहिए।

बादलों की आकृतियां और रंग देते हैं कम ज्यादा वर्षा के संकेत

उपर्युक्त विधियों के अतिरिक्त वर्षा काल और मेघों के गर्भधारण के समय मेघों की आकृति तथा अन्य आकृतियों के आधार पर भी वर्षा का पूर्वानुमान लगाया जाता है। पूर्व दिशा में मेघ गर्जन- तर्जन करते हुए स्थित हो तो उत्तम वर्षा होती है । उत्तर दिशा के मेघ भी श्रेष्ठ वर्षा को दर्शाते हैं। दक्षिण और पश्चिम दिशा में मेघों का एकत्र होना वर्षा में अवरोधक होता है। यदि बादल कृष्ण वर्ण, पीले, तांबे अथवा श्वेत वर्ण के हो तो उत्तम वर्षा की सूचना देते हैं। शुभ शगुन और अन्य शुभ चिन्ह सहित यदि बादल हो सभी श्रेष्ठ वर्षा कराते हैं।

बादलों की आकृतियां कई प्रकार की हो सकती हैं जैसे-मनुष्य, अस्त्र- शस्त्र,कुर्सी, पशु पक्षी इत्यादि। इनमें क्रूर पशु पक्षियों वाले आकृति वाले बादल अशुभ होते हैं।स्निग्ध और शुभ आकृति वाले मेघ शुभफलकारी होते हैं। इन मेघों के लक्षण ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी से आषाढ़ पूर्णिमा तक देखना चाहिए। इन माहों में कृष्ण,श्वेत वर्ण के मेघ हों और कहीं कुंडली आकार में स्थित हो ,कहीं बिजली चमकती हुई आंखों में दिखाई पड़े ,कहीं कुमकुम और टेशू के फूल के समान रंग के बादल सामने दिखाई पड़े तो अच्छी वर्षा के संकेत होते हैं।

वर्षा पूर्वानुमान की प्राचीन विधियां

उक्त विधियों के अतिरिक्त संहिता ज्योतिष में अन्य कई प्रकार की विधियां है, जिनसे वर्षा का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। इनमें देश, स्थान, मनुष्य, पशु -पक्षी के प्रसंग आदि भौतिक वस्तुओं एवं प्राणियों के द्वारा वर्षा का ज्ञान भौम निमित्त कहलाता है । विद्युत गर्जन- तर्जन वायु, बादल, संध्या, दिग्दाह, प्रतिसूर्य, पृथ्वी, सूर्य, तारा, वायु धारण, कुंडल, आधी, इंद्रधनुष आदि से होने वाला वर्षा ज्ञान अंतरिक्ष निमित्त कहलाता है। संक्रांति, ग्रहों का उदयास्त, सूर्य के चिन्ह, सप्तनाडी चक्र, पुच्छल तारे, तथा चंद्र ग्रहण ग्रहण आदि से होने वाला वर्षा ज्ञान दिव्य निमित्त कहलाता है।

कार्तिक से लेकर आश्विन माह के बारह महीनों में प्रत्येक महीनों के विशिष्ट मुहूर्त, विशेषकर होली, अक्षय तृतीया, आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन होने वाले शकुन और प्रतीकों से होने वाले वर्षा ज्ञान को मिश्र निमित्त कहते हैं। इन निमित्तों में भौम निमित्त का फल 20 किलोमीटर तक, अंतरिक्ष निमित्त का एक जिले तक, दिव्य निमित्त का एक प्रान्त तक तथा मिश्र निमित्त का सम्पूर्ण देश के लिए होता है। प्राचीन काल में देश‌ पांच सौ किलोमीटर से अधिक नही होते थे।

सूर्य का आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश के आधार पर वर्षा, क़ृषि एवं वायुमंडल विचार

सम्वत् 2079 वर्ष 2022 में सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में आषाढ़ कृष्ण नवमी को तदनुसार 22 जून 2022 , बुधवार के दिन दोपहर 11 बजकर 42 मिनट पर रेवती नक्षत्र,शोभन योग तथा मीन राशि स्थित चन्द्रमा कालीन सिंह लग्न में प्रवेश किए हैं। स्थिर राशि, पूर्व दिशा तथा अग्नि कारक लग्न सिंह में सूर्य का आर्द्रा प्रवेश हुआ है ( स्थिर और अग्नि तत्वकारक)। वायुतत्व कारक राशि मिथुन में स्थित है। इस कारण उपयोगी वर्षा की कमी रहेगी जलीय ग्रह शुक्र दक्षिण दिशा के स्वामी, वृष राशि में है इसलिए भारत के दक्षिण और पूर्व में वर्षा पर्याप्त होगा।

भारतवर्ष के पश्चिम हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में यथेष्ठ वर्षा का अभाव बन रहा है ।खंड वर्षा के योग हैं और इस वर्ष वर्षा में विलंब हो सकता है। आकाल की स्थिति बन रही है। खड़ी फसलों को नुक्सान की सम्भावना बन रही है, रोगों का प्रकोप बढ़ सकता है। पैदावार प्रभावित होगी। इस वर्ष रोहिणी का वास समुद्र में होने से समुद्र तटीय प्रदेशों में वर्षा उत्तम और समुद्र तट से दूर दराज के क्षेत्रों में कम वर्षा के योग हैं। पूर्वांचल में न्यून वर्षा के योग हैं।

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