इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन का फैसला 20 को

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एनआईआई ब्यूरो

लखनऊ। इलेक्ट्रीसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2022 के मसौदे पर बिजली उपभोक्ताओं और बिजली कर्मियों से वार्ता किये बिना इसे जल्दबाजी में संसद के मानसून सत्र में न रखा जाये, पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन ने केन्द्रीय विद्युत मंत्री को पत्र भेजकर मांग की, सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र भेजकर बिल रोकने हेतु प्रभावी हस्तक्षेप की अपील, 20 जुलाई को दिल्ली में होने वाली मीटिंग में राष्ट्रव्यापी आन्दोलन का निर्णय ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने केंद्रीय विद्युत मंत्री श्री आर के सिंह को पत्र भेजकर यह मांग की है कि हाल ही में जारी किए गए इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2022 के मसौदे पर सभी स्टेकहोल्डर्स खासकर बिजली उपभोक्ताओं और बिजली कर्मियों से विस्तृत बात किए बिना इस बिल को जल्दबाजी में संसद के मानसून सत्र में पेश न किया जाये। पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को भी पत्र भेजकर यह अपील की है कि दूरगामी परिणाम वाले इस अमेंडमेंट बिल को रोकने के लिए वे प्रभावी हस्तक्षेप करें जिससे बिल पर सभी स्टेकहोल्डर्स की राय लिए बिना इसे जल्दबाजी में संसद से न पारित कराया जाए। दिल्ली में आगामी 20 जुलाई को नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रीसिटी इम्प्लॉइज एंड इंजीनियर्स की बैठक बुलाई गई है जिसमे इस बिल के विरोध में राष्ट्रव्यापी आन्दोलन का निर्णय लिया जायेगा।

ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने आज केंद्रीय विद्युत मंत्री आर के सिंह को भेजे गए पत्र में लिखा है इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2022 का कुछ दिन पहले जारी किया गया मसौदा इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 में संशोधन करने हेतु अपूर्ण और अपर्याप्त है। उन्होंने लिखा है कि इस अमेंडमेंट बिल को अभी तक मिनिस्ट्री आफ पावर की वेबसाइट पर नहीं डाला गया है, अमेंडमेंट बिल में संशोधन के लिए स्टेटमेंट ऑफ ऑब्जेक्ट्स के कारण नही बताए गए हैं और स्टेकहोल्डर्स से न ही कमेंट मांगे गए हैं और न ही कोई कमेंट देने की समय सीमा तय की गई है। उन्होंने आगे लिखा है कि जब इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 बनाया गया था तब इलेक्ट्रिसिटी बिल 2001 को संसद की बिजली मामलों की स्टैंडिंग कमेटी को भेजा गया था और सभी स्टेकहोल्डर्स से दो साल तक लंबी बातचीत की गई थी। अब इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 में अगर किसी संशोधन की आवश्यकता है तो वही प्रणाली अपनाई जानी चाहिए जो इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 बनाने के समय अपनाई गई थी। पूरी पारदर्शिता होनी चाहिए, सभी से कमेंट मांगे जाने चाहिए, सभी से विचार विमर्श किया जाना चाहिए और मात्र कुछ दिन की नोटिस पर जल्दबाजी में संसद में रखकर इसे पारित नहीं कराया जाना चाहिए क्योंकि इस अमेंडमेंट के बिजली उपभोक्ताओं और बिजली कर्मियों पर दूरगामी प्रभाव पड़ने वाले हैं।

उन्होंने आगे कहा कि जहां तक उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति का चॉइस देने की बात है यह पूरी तरीके से छलावा है। वस्तुतः यह बिल उपभोक्ताओं को नहीं अपितु निजी बिजली आपुर्ति करने वाली कंपनियों को चॉइस देगा। बिल में यह प्राविधान है कि सभी श्रेणी के उपभोक्ताओं को बिजली देने की बाध्यता केवल सरकारी कंपनी की होगी। स्वाभाविक तौर पर निजी कंपनियां मुनाफे वाले इंडस्ट्रियल और कामर्सियल उपभोक्ताओं को ही बिजली देंगी और सरकारी वितरण कंपनियां किसानों और आम उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली देने के चलते और घाटे में चली जायेंगी। इस बिल के अनुसार निजी कंपनियां सरकारी डिस्कॉम का नेटवर्क प्रयोग करेंगी जिसके परिचालन और अनुरक्षण तथा क्षमता वृध्दि का भार भी सरकारी डिस्कॉम को ही उठाना पड़ेगा। इस नेटवर्क को बनाने में सरकारी डिस्कॉम ने अरबों खरबों रु खर्च किये हैं और इसके मेंटिनेंस पर हजारों करोड़ रु सरकारी डिस्कॉम खर्च कर रहे हैं। मात्र व्हीलिंग चार्जेस लेकर इस नेटवर्क के इस्तेमाल की अनुमति निजी कंपनियों को देना सरासर अन्यायपूर्ण है और यह सम्पूर्ण बिजली वितरण के निजीकरण का मसौदा है जिसका बिजली कर्मी पुरजोर विरोध करेंगे।

उन्होंने कहा कि यह प्रयोग मुंबई में पहले से ही चल रहा है जहां अदानी पावर और टाटा पावर एक ही क्षेत्र में बिजली आपूर्ति करते हैं। टाटा पावर अदानी पावर का नेटवर्क इस्तेमाल करती है। इसके चलते कई प्रकार के कानूनी झगड़े खड़े हो गए हैं और और उपभोक्ताओं को इस से कोई राहत नहीं मिली है। मुंबई में डोमेस्टिक कंजूमर की बिजली की दरें 12 से 14 प्रति यूनिट तक है जो देश में सर्वाधिक है। अब यही प्रयोग सारे देश पर थोपना आम उपभोक्ताओं के साथ धोखा है। उन्होंने आगे कहा कि सरकारी डिस्कॉम के नेटवर्क का प्रयोग करके जब निजी कंपनियां बिजली आपूर्ति करेंगे तो इसके लिए बनने वाले सॉफ्टवेयर पर अरबों रुपए का खर्च आएगा। ब्रिटेन में यह प्रयोग किया गया था जहां ऐसे सॉफ्टवेयर पर 10 वर्ष पहले 850 बिलियन पाउंड का खर्च आया था और यह खर्च उपभोक्ताओं से उनके बिल में डाल कर वसूल किया गया था। केंद्र सरकार को यह बताना चाहिए कि भारत में यह प्रयोग होने पर अरबों रुपए का यह खर्च उपभोक्ताओं पर डाला जाएगा और निजी कंपनियां मुनाफा कमाएंगे तो इससे आम उपभोक्ताओं का क्या भला होगा। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है कि अब आयातित कोयले का बोझ डिस्कॉम्स पर डाल दिया गया है जो अन्ततः उपभोक्ताओं से ही वसूल किया जाएगा।

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