400 वर्ष ईसा पूर्व डेमोक्रेटिस ने सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि सभी वस्तुएँ एटम से बनी है और एटम ब्रह्मांड में पाया जाने वाला सबसे छोटा तत्व है। इसे तोड़ कर और छोटा नहीं किया जा सकता। सर अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने आगे चलकर इस थ्योरी की तस्दीक करते हुए इसे सही साबित किया। सन 1807 में जे.जे थॉमसन ने अणु में इलेक्ट्रॉन के होने के सबूत जुटाए और उसके बाद न्यूक्लियस की खोज होने के बाद आधुनिक विज्ञान ने हमे बताया की न्यूक्लियस भी प्रोटोन और न्यूट्रॉन से बने होते है,ये तब तक की अंतिम थ्योरी थी। विज्ञान ने दावा तो किया था कि इन इकाइयों को इससे ज्यादा नही तोड़ा जा सकता। किंतु 1970 में क्वार्क्स की खोज होने के बाद विज्ञान ने बताया कि न्यूट्रॉन और प्रोटॉन क्वार्क्स के संयोजन से बने होते है।
पृथ्वी पर फोर्सेज ऑफ नेचर की खोज करने वाले माइकल फैराडे ने ब्रह्मांड की फील्ड की खोज की, इसे क्वांटम फील्ड कहा गया इसके बाद क्वांटम फिज़िसियस्ट ने अब एक नई थ्योरी पेश की कि एटम, न्यूक्लियस, प्रोटोन, न्यूट्रॉन और इनके सब-पार्टिकल असल में सॉलिड पार्टिकल हैं ही नही, बल्कि ये सब तो वेव यानी तरंग हैं जो बनती हैं क्वांटम फील्ड में होने वाले वाइब्रेशन की वजह से। सितंबर 2012 में नासा ने ग्रहों से आने वाली आवाज़ को रिकॉर्ड किया और हमें बताया कि हमारा हर ग्रह एक ख़ास फ्रीक्वेंसी पर वाइब्रेट करता है, ग्रहों से निकलने वाली रेडिएशन की अलग अलग फ्रेक्वेन्सी होती है और उसकी वजह से पूरे ब्रह्माण्ड में एक संगीत पैदा होता है। इस सिद्धान्त को नाम दिया गया ‘म्यूजिक ऑफ द स्फियर्स’। लेकिन करोड़ो डॉलर खर्च करने के बाद मिला ‘म्यूज़िक ऑफ स्फीयर्स’ का सिद्धांत क्या वाकई आधुनिक विज्ञान द्वारा खोजा गया नया या मौलिक सिद्धान्त है..?
छठी सदी ईसा पूर्व, मशहूर यूनानी दार्शनिक और गणितज्ञ पाईथागोरस ज्ञान की तलाश में मिस्र गए। पाइथागोरस ने मिस्र के प्राचीन पुजारियों और वहाँ के रहस्यमय जादूगरों के स्कूल से ज्ञान प्राप्त किया जिन्हें ‘मोजाय’ कहा जाता था। पाइथागोरस ने मैथ और ज्योमेट्री को संगीत से जोड़ा, आज के पाश्चत्य संगीत की जड़ें पैथागोरस के उसी सिद्धांत से ही जुड़ी हैं। बहरहाल पाइथागोरस ने आज से लगभग ढाई हजार साल पहले संगीत को गणित से जोड़कर ये निष्कर्ष निकाला था कि हमारा ब्रह्मांड और उसमें मौजूद तमाम चीज़े वाइब्रेट करती रहती है। पाइथागोरस ने ही सबसे पहले हमें बताया कि ग्रहों से एक आवाज़ निकलती रहती है जिसके कारण इस पूरे ब्रह्मांड में एक संगीत विद्यमान है। लेकिन सवाल यह है कि ‘म्यूज़िक ऑफ स्फीयर्स’ के सिद्धांत की ये आधुनिक जानकारी जो इतना उपक्रम करने के बाद हमें मिली, पाइथागोरस को प्राचीन काल मे आख़िर कहां से और कैसे हासिल हुई होगी…?
इकीसवीं सदी में फिजियो साइंटिस्ट्स ने ब्रह्माण्ड के निर्माण की आज तक की सर्वमान्य थ्योरी दी ‘सुपर सेमेट्रिक थ्योरी’। इस थ्योरी के अनुसार ब्रह्माण्ड की हर चीज़ ब्रह्माण्ड में फैली एक तरल जैसी किसी रहस्यमय वस्तु से बनी है जिसके वाइब्रेशन से वेव्स यानी तरंग पैदा होती हैं। इसी तरल चीज के बाइब्रेशन से पैदा होने वाली वेव्स को हम फील्ड कहते हैं। लब्बोलुआब यह कि आधुनिक विज्ञान के अनुसार हमारा ब्रह्माण्ड बना है चार सूक्ष्म पार्टिकल से जो हैं – इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रिनो, अप क्वार्क्स और डाउन क्वार्क्स। जबकि हकीकत ये है कि ये चारों पार्टिकल्स हैं ही नही ! बल्कि अपने अपने फील्ड्स में होने वाली बाइब्रेशन हैं ये।
तो निष्कर्ष यह कि हमारे ब्रह्माण्ड की पूरी सरंचना ‘मैटर के चार फील्ड्स’ से हुई है और इसे नियंत्रित करती हैं नेचर की फोर्स ग्रेविटी, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक, स्ट्रांग न्यूक्लियर फोर्स और वीक न्यूक्लियर फोर्स। लेकिन प्रगतिशील और आशावादी विज्ञान का हमेशा से मानना रहा है कि क्वांटम फील्ड्स और फोर्सेज ऑफ नेचर की फील्ड्स दिखती भले अलग अलग हों मगर निकली ये किसी एक ही फील्ड से है। अतः कोई एक ऐसी फील्ड मौजूद है जिसके बाइब्रेशन से ये सारी फील्ड्स पैदा होती हैं। वो एक फील्ड क्या है इसकी खोज होना अभी बाकी है।
एक अन्य शोध में क्वार्क्स को तोड़ कर साइंस ने ब्रह्माण्ड की आज तक की सबसे छोटी इकाई खोज निकाली ‘स्ट्रिंग्स’। और इसके बाद सामने आई एक नई थ्योरी – ‘द स्ट्रिंग थ्योरी’।
स्ट्रिंग्स इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन को देख पाना सम्भव नहीं, किन्तु वैज्ञानिक निष्कर्ष आया कि ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी बना है वो इन्ही स्ट्रिंग से ही बना है, यहां तक कि डार्क-मैटर भी। इन स्ट्रिंग्स के अलग अलग वाइब्रेशन अलग अलग पार्टिकल बनाते हैं असल में वही फील्ड होते है। इसी स्ट्रिंग थ्योरी की बदौलत विज्ञान ग्रेविटी से जुड़े रहस्यों से पर्दा हटा पाया। स्ट्रिंग थ्योरी ही वो थ्योरी है जो थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी और क्वांटम मैकेनिक्स के बीच का विरोधाभास खत्म करती है। लेकिन सवाल एक बार फिर वही कि क्या गहन शोध के बाद विज्ञान द्वारा आज हमें बताई गई ये स्ट्रिंग थ्योरी क्या वाकई नई है, मौलिक है? जवाब है नहीं।
क्यों और कैसे ये जानने के लिए हमें चलना होगा ब्रह्मांड से जुड़े भारतीय वैदिक सिद्धांत की ओर। पाइथागोरस से भी हज़ार साल पहले लिखे गए भारतीय ‘उपनिषदों’ में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति को लेकर उल्लिखित थ्योरी ‘वैदिक रश्मि सिद्धान्त’ उपनिषदों से भी हज़ारों साल पहले से मौजूद है। रश्मि का अर्थ है वेव्स या तरंग। वैदिक रश्मि सिद्धान्त के अनुसार पहली रश्मि ‘महत्तत्व’ एक मूल ईश्वरीय तत्व में वाइब्रेशन से उत्पन्न होती है। इसके बाद क्रमशः मनस्तत्व रश्मि, सूक्ष्म प्राण रश्मि, मरुत रश्मि और अंत मे छंद रश्मि उत्पन्न होती हैं। इसी छंद रश्मि से एटम और उसके पार्टिकल बनते है और एटम से ब्रह्माण्ड। सूक्ष्म प्राण रश्मि से काल तत्व के उत्पन्न होने की बात लिखी गई है जो सम्भवतः नेचर ऑफ फोर्स की ओर इशारा करता है।
वैदिक रश्मि थ्योरी में ईश्वर नियंत्रित मूल प्राकृतिक- रश्मि सहित कुल छः रश्मियों अर्थात फील्ड्स की अवधारणा है और विशेष ध्यान देने वाली बात है कि विज्ञान भी अभी तक स्ट्रिंग फील्ड सहित कुल पाँच क्वांटम फील्ड्स की अवधारणा दे चुका है। अब विज्ञान ने एक कदम और बढते हुए स्ट्रिंग से भी छोटी इकाई होने के प्रारम्भिक सबूत ढूंढ निकाले है जिसे ‘टेक्योन’ नाम दिया गया है। टेक्योन स्ट्रिंग्स से भी छोटी फील्ड है जिसे अभी तक देखा तो नहीं गया है पर वैज्ञानिकों का दावा है कि इसका अस्तित्व है और इसकी पहचान आने वाले समय मे कर ली जाएगी। टेक्योन ब्रह्माण्ड में प्रकाश की गति से भी तेज चलने वाली इकलौती और सबसे सूक्ष्म इकाई होगी। इसकी मदद से समय-यात्रा भी की जा सकती है, जिसके ज़रिए मनुष्य भविष्य में दूसरे आयामों में जा सकता है , यदि ऐसा हुआ तो शायद हम ब्रह्माण्ड के किसी आयाम में मौजूद ‘टाइप थ्री सिविलाइजेशन’ से भी मिल सकते हैं। तब शायद हम मिल सकें अपने ‘ईश्वरों’ से भी, जो सम्भवतः उन्ही 11 आयामो में किसी एक में रहते है जिनकी बात स्ट्रिंग थ्योरी करती है। यहाँ एक रोचक तथ्य का उल्लेख करना समीचीन होगा कि कहीं ये वही आयाम तो नहीं, जिसकी प्रतिकृति की अवधारणा पर आधारित एक पवित्र मन्दिर प्राचीन भारत में बनाया गया था।
प्राचीन हिन्दू सम्राज्य विजय नगर की तात्कालिक राजधानी हम्पी में तुंगभद्रा नदी के किनारे प्राचीन वास्तुकला और अद्भुत खण्डहरों के बीच स्थित है विट्ठल मन्दिर। ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि विष्णु लोक के एक महल को ध्यान में रख उसी की प्रतिकृति के रूप में धरती पर बिट्ठल मन्दिर बनाया गया था। इस मंदिर से जुड़ा एक ‘रंग मंडप’ है जिसमे 12 फुट ऊंचे 56 स्तम्भ बने है जिनसे अलग अलग वाद्य यंत्रों की ध्वनि गुंजायमान होती है । ये 56 स्तम्भ सरगम के विभिन्न सुरों पर ट्यून हैं । वही सरगम, जिस पर हजारों साल पुराना भारतीय संगीत आधारित है। सभी खम्भों को आश्चर्यजनक रूप से अलग अलग वाद्य यंत्रों की ध्वनि तरंग के अनुसार बनाया गया है, और यह सब कोई कपोल कल्पना नहीं बल्कि प्रमाण सहित जीता जागता सच है।
जब भारत पर अंग्रेज़ो का शासन था तब उन्होने उत्सुकतावश एक स्तम्भ काट कर जानना चाहा कि इन्हें कैसे बनाया गया है। अथक परिश्रम और उपक्रम के बाद भी वो मात्र ये जान पाए कि ‘ ये स्तम्भ ग्रेनाइट के बने हैं ‘। इसके अतिरिक्त वो कुछ और ढूंढ पाने में सफल नहीं हुए। दरअसल इन खम्भों को ग्रेनाइट में सिलिकेट के कण और कई धातुओं के मिश्रण से बनाया गया था जिसे आधुनिक विज्ञान के अनुसार ‘जियो पॉलीमर ब्लेंड तकनीक’ के नाम से जाना जाता है। अब सवाल उठता है कि ‘जियो पॉलीमर तकनीक’ की खोज तो 1950 में सोवियत संघ में हुई किन्तु ये मंदिर तो इसके सैकड़ो साल पहले बनाया गया था ! तब सैकड़ो साल पहले आवाज़ से जुड़ा ये अद्भुत तकनीकी ज्ञान भारतीयों को कहाँ से मिला ?
क्योंकि पाश्चत्य विद्वानों के अनुसार वो तो मूर्ख थे..! हाल के वर्षों में 2012 में जब नासा ने अंतरिक्ष की आवाज़ रिकॉर्ड की तो वैज्ञानिकों के बड़े समूह ने उस आवाज़ को बिल्कुल शंख से निकलने वाली ध्वनि जैसा पाया। आश्चर्य का विषय है कि ‘भगवान विट्ठल’ के लिए जो बिट्ठल मन्दिर बनाया गया था वो भगवान विष्णु के ही एक अवतार थे। और अचंभित करने वाला सत्य या संयोग यह भी है कि भगवान विष्णु के हाथ में भी एक शंख है जिससे एक ध्वनि निकलती है, और वो ध्वनि है – ‘ॐ’ । वैदिक रश्मि थ्योरी में उल्लिखित सबसे सूक्ष्म मूल-ईश्वर नियंत्रित इकाई भी ‘ॐ’ ही है । वैदिक रश्मि सिद्धांत के अनुसार इस ‘ॐ’ से जनित-ध्वनित कम्पन भगवान शिव के उस डमरू से पैदा होता है जिसे पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वो बजाते रहते हैं।