महा शिवरात्रि पर विशेष: दुर्लभ योग में पड़ रही इस वर्ष की शिवरात्रि 

0 0
Read Time:26 Minute, 16 Second
आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र

महाशिवरात्रि व्रत 18 फरवरी दिन शनिवार को समस्त पापों का उन्मूलन होता है महाशिवरात्रि व्रत के दिन शिव जी आराधना से  इस वर्ष 18 फरवरी को अर्धरात्रि में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि होने से यह दिन महाशिवरात्रि व्रत के लिए शास्त्रोक्त मान्य रहेगा। फाल्गुन मास की कृष्ण अर्धरात्रि वाली चतुर्दशी वाली तिथि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। सनातन धर्म में तीन यात्रियों का सर्वाधिक महत्त्व है। इसमें महाशिवरात्रि के अतिरिक्त कृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि और कार्तिक अमावस्या की रात्रि प्रमुख हैं।।ये तीन रात्रियां महारात्रि ,मोहरात्रि एवं कालरात्रि के नाम से नाम से जानी जाती है। वैसे तो चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भी शिव हैं परन्तु इसमें फाल्गुन मास की चतुर्दशी उन्हें बहुत प्रिय है।इस विषय में प्रमाण मिलता है कि इस रात्रि को सर्वप्रथम शिवलिंग प्रकट हुआ था। शिवलिंग न केवल साक्षात शिव है,वरन इसमें सम्पूर्ण विश्व समाया हुआ है। शिवलिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में भगवान विष्णु और उर्ध्व में महादेव स्थित होते हैं।वेदी महादेवी है और लिंग महादेव हैं।

वाराणसी से प्रकाशित हृषीकेश पंचांग के अनुसार 18 फरवरी दिन शनिवार को सूर्योदय 6 बजकर 23 मिनट पर और त्रयोदशी तिथि का मान सायंकाल 5 बजकर 43 मिनट तक पश्चात चतुर्दशी तिथि, उत्तराषाढ़ नक्षत्र दिन में 3 बजकर 34 मिनट तक पश्चात श्रवण नक्षत्र, इस दिन व्यतिपात् योग सायंकाल 5 बजकर 54 मिनट पश्चात विमान योग और चन्द्रमा की स्थिति मकर राशिगत है। सांयकाल 3 बजकर 34 मिनट से सम्पूर्ण रात्रि पर्यन्त सर्वार्थसिद्धियोग भी है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव, लिंग स्वरुप में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि के अर्धरात्रि में पृथ्वी पर अवतीर्ण हुए। इसलिए जिस दिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को अर्धरात्रि में यह तिथि विद्यमान रहती है,उसी दिन महाशिवरात्रि का व्रत और अर्चन सम्पन्न किया जाता है।

भगवान शिव त्रिदेवों में प्रमुख देव हैं। इन्हें सृष्टि का संहार पुरुष माना गया है। ब्रहमा जी सृष्टि को उत्पन्न करने वाले और विष्णु जी पालन करने वाले हैं। वेद और प्रकृति साहित्य में भगवान शिव की पूजा, अर्चना और उपासना का उल्लेख मिलता है। न केवल भारत वरन् विदेशों में भी भगवान शिव के मंदिर व शिवलिंग मिलते हैं। विश्व के प्राचीन सभ्यताओं में भी शिवलिंग पूजन के प्रमाण मिले हैं। इससे सिद्ध होता है कि भगवान शिव की पूजा अनादिकाल से की जा रही है। भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से श्रावण मास में की जाती है परन्तु महाशिवरात्रि के दिन भी उनकी पूजा के लिए महत्वपूर्ण दिन है। महाशिवरात्रि के दिन रात के चारों प्रहारों में भगवान शिव के पूजा के पूजन अर्चन और अभिषेक का विषय पर बताया गया है। प्रथम प्रहर में दूध, द्वितीय प्रहर में दही, तृतीय प्रहर में घृत द्वारा और चतुर्थ प्रहर में मधु द्वारा स्नान कराकर उनका पूजन करने से विशेष लाभ मिलता है।इस दिन व्रती भगवान शिव के निमित्त उपवास कर सम्पूर्ण रात्रि में भगवान शिव का पूजन और अभिषेक करता है।

एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार के लिए गया। वहां अनेक मृगों का शिकार कर लौटते समय मार्ग में वह थका हुआ किसी वृक्ष के नीचे सो गया। नींद खुलने पर वह देखा कि सन्ध्या काल हो चुका। ऐसे में इस भयंकर जंगल से गुजरना सही नहीं था। इसलिए उसने रात्रि को एक वृक्ष पर गुजारने का विचार किया। भाग्यवश‌वह जिस वृक्ष पर बैठा था,वह बिल्व का वृक्ष था।उस वृक्ष के नीचे एक प्राचीन शिवलिंग था और वह रात्रि महाशिवरात्रि थी।ओस की बूंदों से भीगे हुए बिल्वपत्र रात्रि में उस शिकारी के स्पर्श से नीचे शिवलिंग पर गिरे।इस प्रकार उस शिकारी ने अनजाने से ही शिवलिंग की पूजा अर्चना उस महारात्रि में कर ली। चूंकि वह प्रातः काल बिना खाए ही शिकार के लिए निकला था और रात्रि पर्यन्त कुछ भी ग्रहण नहीं करने के कारण उसने जो उपवास किया था,वह भगवान शिव के निमित्त हो गया। इसके फलस्वरूप आजीवन दुष्कर्म करने वाला वह शिकारी भी अन्तकाल में शिवलोक को प्राप्त हुआ। इस दिन की गई पूजा अर्चना एवं अभिषेक से भगवान शिव विशेष रुप से प्रसन्न हो जाते हैं।इस सम्बन्ध में अनेक कथाएं मिलती है, जिससे सिद्ध होता है कि जिस व्यक्ति ने इस रात्रि को भगवान शिव के निमित्त उपवास रखकर उनका पूजन अर्चन किया, उसे शिवलोक प्राप्त हुआ।

भगवान शिव बोले भण्डारी हैं।उनकी पूजा जो व्यक्ति जिस भाव से करता है, वे उससे ही प्रसन्न हो जाते हैं। सर्व सुलभ जल से जब शिवलिंग का अभिषेक करते हैं तो भी शिव जी का विरोध आशिर्वाद प्राप्त होता है।अपने इस प्रकृति के कारण उन्हें शिव और भोलेनाथ जैसी संज्ञा दी गई है।वे सभी का कल्याण करने वाले हैं।इस सृष्टि में उन्हीं की कृपा से मानव जाति का उत्थान हुआ है।उन्हीं के द्वारा प्रकाशित ज्ञान से मानव जाति का बौद्धिक विकास हुआ है।वे समस्त भौतिक सुविधाओं को प्रदान करने वाले और जीवन को सही राह पर चलाने वाले प्रमुख देव हैं।अपने इस गुण के कारण शिव जी सनातन धर्म में एक प्रमुख देव हैं। वैसे तो हम शिव की पूजा सभी करते हैं लेकिन यदि अपनी राशि के अनुसार पूजा करें तो विशेष फल जल्दी ही प्राप्त हो जाता है।

शिव लिंग पर विल्वपत्र के साथ और क्या चढ़ाएं

ऐसे ही अनेक कथा प्रसंग भी मिलते हैं जिसमें किसी ऐसे व्यक्ति ने अपने जीवन में कई बार पाप किए, लेकिन भगवान शिव के संसर्ग में आने पर वह स्वत:‌ही पुण्य आत्मा बन गया। भगवान शिव की पूजा में रुद्राक्ष, भस्म और त्रिपुंड धारण का विशेष महत्व है।ये तीनों वस्तुएं सुलभ हैं।

शिवलिंग पर बिल्वपत्र अर्पित करने का विशेष महत्व है। शिवलिंग पर आक के फूल,कनेर‌के पुष्प,द्रोण पुष्प, अपामार्ग ( चिचिड़ा),कुश‌ के फूल, शमी के पत्ते, नीलकमल,धतूरा एवं शमी के फूल उत्तरोत्तर शुभ माने जाते हैं। भगवान शिव की पूजा में मौलसिरी अर्थात आक के फूल का विशेष स्थान है। भगवान शिव को ऐसे कुछ वस्तुएं अर्पित की जाती है जो अन्य देवताओं को नहीं चढ़ाई जाती हैं। वैसे तो भगवान शिव श्मशान में विराजते हैं लेकिन शिवमन्दिर में उनके साथ उनका सम्पूर्ण परिवार और नन्दी आदि विराजमान रहते हैं। मन्दिर मे जाकर शिवलिंग सहित उनके सम्पूर्ण परिवार का पूजन करने से उनकी विशिष्ट कृपा प्राप्त होती है और इस महाशिवरात्रि पर शिव जी के निमित्त उपवास करते हुए मन, वचन और कर्म से उनके लिए किया गया पूजन कर्म निश्चित रुप से साधन का कल्याण करने वाला होता है।

राशिवार शिव पूजन करने की विधि

मेष राशि: वाले व्यक्तियों को शिवलिंग पर महाशिवरात्रि के दिन शमी के पुष्प अर्पित करना चाहिए और पंचाक्षर का जप अत्यंत फलदाई माना गया है। इससे सुख शांति, उच्च शिक्षा, वाहन सुख, मातृसुख, भवन सुख इत्यादि की प्राप्ति होती है।

वृषभ राशि: वालों को महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर आक के पुष्प अर्पित करनी चाहिए। इससे बल पराक्रम, कार्य क्षमता में वृद्धि, भाई बहिनों से स्नेह इत्यादि शुभ फल प्राप्त होते हैं।

मिथुन राशि: वालों को शिवलिंग पर शमी के पुष्प और कुश के फूल अर्पित करना चाहिए। इससे परिजनों का सहयोग, सिद्ध वाणी और श्रेष्ठ संप्रेषण क्षमता प्राप्त होती है।

कर्क राशि: वाले लोगों को शिवलिंग पर बिल्वपत्र और अपामार्ग अवश्य चढ़ाना चाहिए, इससे सुख और भौतिक सुख सुविधा सहित मानसिक शांति प्राप्त होती है।

सिंह राशि: वालों को महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर धतूरा और कनेर के पुष्प अर्पित करना चाहिए। इससे मानसिक शान्ति,यश में वृद्धि, ईश्वर के प्रति आस्था में वृद्धि होती है।

कन्या राशि: वालों को शमी के पत्ता और कुश के पुष्प चढ़ाना चाहिए। इससे आर्थिक लाभ,बड़े भाई बहिनों का सहयोग, मित्रों का उत्तम सहयोग और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।

तुला राशि: वाले व्यक्तियों कै शिवलिंग पर आक के पुष्प चढ़ाना चाहिए। इससे पितृ सहयोग, कर्म क्षेत्र में उन्नति, समाज में यश और प्रतिष्ठा जैसे शुभ फल प्राप्त होते हैं।

वृश्चिक राशि: के व्यक्तियों कै शिवलिंग पर शमी के पुष्प अर्पित करने चाहिए। इससे पिता से सहयोग, धन प्राप्ति और जीवन में भौतिक उन्नति जैसे फल प्राप्त होते हैं।

धनु राशि: वाले व्यक्तियों को बिल्वपत्र और कनेर के फूल चढ़ाना चाहिए। इससे समस्याओं से राहत,‌बुजुर्गों का स्नेह, श्रेष्ठ आयु और अरिष्टों से बचाव होता है।

मकर राशि: वालों लोगों को नीलकमल और धतूरा चढ़ाना चाहिए। इसके दाम्पत्य जीवन में प्रेम प्रवर्धन, जीवनसाथी से मतभेद की समाप्ति, शुभ वैवाहिक जीवन, मनोवांछित जीवनसाथी की प्राप्ति और आर्थिक उन्नति के योग मिलते हैं।

कुम्भ राशि: वालों को धतूरे के पत्ते और फूल अर्पण करना चाहिए। इससे शत्रुओं से रक्षा, रोग और पीड़ाओं से मुक्ति और सभी प्रकार के दु:को से मुक्ति मिलती है।इसी प्रकार

मीन राशि: वालों को भी बिल्वपत्र और कनेर का फूल चढ़ाना चाहिए। इससे आत्मविश्वास में वृद्धि और संतानों का विकास और उच्च विद्या जैसे उत्तम फल प्राप्त होते हैं।

शिवरात्रि पर व्रत का फल

Maha Shivratri 2019: महाशिवरात्रि व्रत रखने से क्‍या फल मिलता है? ये व्रत क्‍यों है जरूरी?

यह व्रत फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को किया जाता है।इसको प्रतिवर्ष करने से नित्य और किसी कामना पूर्ति के लिए करने से काम्य होता है।प्रतिपदादि तिथियों के स्वामी अग्नि आदि होते हैं।जिस तिथि का जो स्वामी हो ,उसका व्रत उस तिथि में करना अत्यंत उत्तम माना जाता है। चतुर्दशी के स्वामी भगवान शिव हैं, अथवा यों कह सकते हैं कि शिव की तिथि चतुर्दशी है। अतः उनकी रात्रि में व्रत किया जाने से इस व्रत का नाम शिवरात्रि हो जाना सार्थक हो जाता है। यद्यपि प्रत्येक मास की कृष्ण तिथि शिवरात्रि होती है और शिवभक्त कृष्ण चतुर्दशी का व्रत करते हैं। किन्तु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के निशीथ ( अर्धरात्रि) में ” शिवलिंगतयोद्भूत कोटि सूर्य समप्रभ:”। ईशान संहिता के अनुसार इस फाल्गुन कृष्ण के रात्रि में ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था।इस कारण यह महाशिवरात्रि मानी जाती है।” शिवरात्रिव्रतं नाम सर्वपाप प्रणाशनम्।आचाण्डाल मनुष्यणां मुक्ति मुक्ति प्रदायकम्।।”के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अछूत,स्त्री पुरुष और बाल ,युवा, वृद्ध – ये सब इस व्रत को कर सकते हैं और प्रायः सभी करते ही हैं। इसके न करने से दोष होता है।जिस प्रकार राम, कृष्ण, वामन एवं नृसिंह जयंती एवं प्रत्येक एकादशी उपोष्ण है,उसी प्रकार यह भी उपोष्ण है।

क्या किया जाए महाशिवरात्रि को

Mahashivratri 2022 why do jagran jane dharmik aur vegyanik karan kee - Mahashivratri 2022: महाशिवरात्रि पर क्यों किया जाता है जागरण, जानें धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व – News18 हिंदी

महाशिवरात्रि पर रात्रि जागरण किया जाए। शास्त्रों में विधान है कि रात्रि जागरण के विना महाशिवरात्रि व्रत अधूरा है।रात्रि जागरण में ही चार प्रहर की पूजा हो सकती है।इस दिन भगवान शिव का रूद्राष्टाध्यायी मन्त्रों से अभिषेक करें।यदि रात्रि जागरण में चार प्रहर की पूजा नहीं कर सकते हैं तो भगवान शिव के अष्टोत्तर शतनाम की ही 108 आवृत्ति करें।यदि यह भी कठिन प्रतीत होता है तो शिव चालीसा या तथा शक्ति जो आवृत्ति बन सके ,वहीं पाठ करें। रात्रि जागरण में भजन कीर्तन भी आयोजित कर सकते हैं।रात्रि जागरण के दौरान भगवान शिव के किसी मंत्र का जप कर सकते हैं।इस दिन दान का विशेष महत्व है।इस दिन अवश्य ही कुछ न कुछ दान करना चाहिए।यदि कुछ ज्यादा न कर सकें तो आटा और चावल का ही दान करें।इस दिन भी तीर्थ स्नान का बड़ा महत्व है। आसपास में जो तीर्थ हो वहां जाकर स्नान करें।यदि ऐसा न कर सकें तो सामान्य जल में गंगा मिश्रित कर ही स्नान करें।

प्रदोष व्रत का महात्म्य

प्रदोष व्रत महात्म्य-Pradosh Vrat Mahatmya by Govindtanay - Amol Prakashan - BookGanga.com

इसके व्रतकालादि का निर्णय भी उसी प्रकार किया जाता है। सिद्धांत रुप में आज के सूर्योदय से कल के सूर्योदय तक रहने वाली चतुर्दशी शुद्धा और अन्य विद्धा मानी जाती है। उसमें भी प्रदोष ( रात्रि का आरंभ) और निशीथ( अर्धरात्रि) की चतुर्दशी ग्राह्म होती है। अर्धरात्रि पूजा के लिए स्कन्द पुराण में लिखा है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को रात्रि के समय भूत प्रेत पिशाच शक्तियां और शिव जी स्वयं भ्रमण करते रहते हैं, अतः इस समय पूजा करने से मनुष्य के पाप दूर हो जाते हैं।यदि यह शिवरात्रि (13–14–30)- इन दोनों का स्पर्श हो तों अधिक उत्तम होती है। इसमें भी सूर्य या भौमवार का योग ( शिवयोग) और भी अच्छा है।फार्म के लिए”व्रतान्ते पारण और तिथिभान्ते पारण इत्यादि वाक्यों के अनुसार फार्म किया जाता है, किन्तु शिवरात्रि के व्रत में यह विशेषता है कि  तिथिनामेव सर्वासामुपवास व्रतादिषु।तिथ्यान्ते पारणं कुर्याद् विना शिवचतुर्दशीम्।।  शिवरात्रि के व्रत का पारण चतुर्दशी में ही करना चाहिए।व्रती को चाहिए को फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को प्रातः काल की संध्या आदि से निवृत होकर ललाट पर भस्म का त्रिपुंड तिलक और गले में रूद्राक्ष की माला धारण करके हाथ में जल लेकर  शिवरात्रि व्रतं ह्येतत् करिष्येऽहं महाफलम् । निर्विघ्नमस्तु में चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।। यह मंत्र पढ़कर जल को छोड़ दें और दिनभर शिव कै स्मरण करते हुए मौन‌ रहे । तत्पश्चात सायंकाल शिवमन्दिर में जाकर या अपने पूजा स्थल पर ही पूर्व मुख या उत्तर मुख बैठे और तिलक तथा रुद्राक्ष धारण करके ममाखिलपाप क्षयपूर्वक सकल अभिष्ट सिद्धये शिवपूजनं करिष्ये यह कहकर संकल्प करें। इसके बाद ऋतुकाल के अनुसार गंध, पुष्प, बिल्वपत्र, धतूरे के फूल, घृत मिश्रित गुग्गुल का धूप, दीप, नैवेद्य इत्यादि आवश्यक सामग्री को समीप रखकर रात्रि के प्रथम प्रहर में पहली, द्वितीय प्रहर में दूसरी, तृतीय में तीसरी और चतुर्थ में चौथी पूजा करें।चलो प्रहर में पूजन पंचोपचार, षोडशोपचार या जो भी वस्तु उपलब्ध हो, उससे करें।साथ में रूद्रजपादि भी करें।इस प्रकार करने से पाठ, पूजा, जागरण और उपवास -सभी सम्पन्न हो सकते हैं। पूजा की समाप्ति में निराजल, मंत्र पुष्पांजलि और अर्घ्य देकर परिक्रमा करें। स्कन्द पुराण का कथन है कि महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले का पुनर्जन्म नहीं होता है।वह इस व्रत और पूजन के प्रभाव से शिवलोक प्राप्त करता है। इस दिन मंदिर अवश्य जाएं और शिव जी को जलाभिषेक करें।शिव जी से सम्बन्धित साहित्य का पाठ करें।यदि विवाह में विलम्ब हो रहा हो या दाम्पत्य जीवन में मधुरता का अभाव हो तो पार्वती मंगल स्त्रोत का पाठ करें।यदि यह भी सम्भव न हो तो रामचरित मानस के कुछ अंश का ही पाठ करें।इस दिन मंदिर में या अपने घर पर ही शिव जी को दूध, दही,घी, मधु और शक्कर से स्नान कराएं।यदि रुद्राभिषेक न कर सकें तो शिव सहस्त्रनाम का पाठ शिव जी के सम्मुख करें।यदि वैदिक मंत्र न जानते हों और वेदपाठी विद्वान का अभाव हो तो -ऊं नमः शिवाय- मंत्र से ही अभिषेक करें।

ज्योतिष की अनेक विधाओं के प्रवर्तक हैं शिव

ज्योतिष - Astrology

ज्योतिष शास्त्र में शिवोपासना-भगवान‌ शिव को ज्योतिष की अनेक विद्याओं का प्रवर्तक माना जाता है।यामल ग्रंथों में ज्योतिष की अनेक विषयों का उल्लेख है।वे ग्रंथ भगवान शिव और पार्वती के संवाद के रुप में है। ज्योतिष शास्त्र में प्रचलित अष्टकवर्ग पद्धति के जन्मदाता शिव जी ही माने जाते हैं। भगवान शिव जी इसे पार्वती जी के समक्ष उद्घाटित किया था।स्वरोदय शास्त्र के प्रवर्तक भगवान शिव को ही माना जाता है।अंगलक्षण, पूर्व जन्म के शाप या शापों का फ़ल, कर्म विपाक संहिता आदि भी शिव द्वारा ही प्रवर्तित है।फलित शास्त्र के अनेक ग्रंथ ऐसे हैं जो शिव पार्वती संवाद में ही लिखे गए हैं।वे भी शिवकृत माने जाते हैं।अनेक ज्योतिष शास्त्र एवं चक्रादि भी शिव प्रदत्त माने जाते हैं। ग्रन्थों के रचयिता और अनेक ज्योतिष सिद्धांतों के प्रतिपादक भगवान का ज्योतिष में अरिष्ट निवारण की दृष्टि से भी अग्रगण्य स्थान है। भगवान शिव को अरिष्टों के निवारण हेतु निर्देशित किया गया है।

विवाह के लिए शिव आराधना की विधि

जातक का विवाह नहीं हो पा रहा है तो ऐसी स्थिति में शिव और गौरी की उपासना करवाना चाहिए। सोमवार के स्वामी भगवान शिव हैं। कन्याओं के लिए सोलह सोमवार का व्रत एवं शिव जी की उपासना कारगर उपाय के रुप में माना गया है।ऐसी पौराणिक मान्यता है कि सीता जी ने श्रीराम जी को वर‌के रुप में प्राप्त करने के लिए और रुक्मिणी ने भगवान श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की अर्धांगिनी मां पार्वती की उपासना की थी।माता लक्ष्मी जी भी अश्वयोनि के शाप से मुक्त होने के लिए एवं पुनः भगवान विष्णु को पति के रुप में पाने के लिए भगवान शिव की उपासना की थी।पुत्र और संतान की प्राप्ति के लिए भी शिव जी की उपासना का प्रचलन है।यह उपासना श्रीकृष्ण ने भी की थी।गौरी और शिव जी की संयुक्त पूजा से संतान की प्राप्ति सम्भव है।

कुंडली के दोषों को ऐसे करें दूर

mangalwar ke upay do these remedies on Tuesday it will help you from mangal dosh |Tuesday Remedies: कुंडली में मंगल दोष दूर करने के अचूक उपाय, हनुमान जी को ऐसे करें खुश |

बृहज्जातक में सूर्य, चन्द्रमा एवं गुरु के अधिदेवता क्रमशः अग्नि, जल एवं इन्द्र बताए गए हैं।इसकी व्याख्या करते हुए टीकाकार रुद्रभट्ट ने लिखा है कि सूर्य के लिए प्रयुक्त अग्नि शब्द से अग्नि तथा रुद्र दोनों ही विवक्षित हैं। चन्द्रमा के लिए प्रयुक्त जल देवता का आशय है जल धारा से जलाभिषेक करना।क्रूर राशि में शिव जी का, शुभ राशि में विष्णु का और द्विस्वभाव राशि में दुर्गा जी का अभिषेक करना चाहिए।अष्टकूट मेलापक के अंतर्गत यदि नाड़ी दोष विद्यमान है तो महामृत्युंजय जप एवं वेदपाठी ब्राह्मण को सुवर्ण की दक्षिणा एवं दान देकर इस दोष का निवारण किया जा सकता है।

Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %

Blog ज्योतिष

साप्ताहिक राशिफल : 14 जुलाई दिन रविवार से 20 जुलाई दिन शनिवार तक

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र अध्यक्ष – रीलीजीयस स्कॉलर्स वेलफेयर सोसायटी सप्ताह के प्रथम दिन की ग्रह स्थिति – सूर्य मिथुन राशि पर, चंद्रमा तुला राशि पर, मंगल और गुरु वृषभ राशि पर, बुध और शुक्र, कर्क राशि पर, शनि कुंभ राशि पर, राहु मीन राशि पर और केतु कन्या राशि पर संचरण कर रहे […]

Read More
Blog national

तीन दिवसीय राष्ट्रीय पर्यावरण संगोष्टी सम्पन्न

द्वितीय राष्ट्रीय वृक्ष निधि सम्मान -२०२४ हुए वितरित किया गया ११००० पौधों का भी वितरण और वृक्षारोपण महाराष्ट्र। महाराष्ट्र के धाराशिव ज़िले की तुलजापुर तहसील के गंधोरा गाँव स्थित श्री भवानी योगक्षेत्रम् परिसर में विगत दिनों तीन दिवसीय राष्ट्रीय पर्यावरण संगोष्टी का आयोजन किया गया। श्री भवानी योगक्षेत्रम् के संचालक गौसेवक एवं पर्यावरण संरक्षक योगाचार्य […]

Read More
Blog uttar pardesh

सनातन धर्म-संस्कृति पर चोट करते ‘स्वयंभू भगवान’

दृश्य 1 : “वो परमात्मा हैं।” किसने कहा ? “किसने कहा का क्या मतलब..! उन्होंने ख़ुद कहा है वो परमात्मा हैं।” मैं समझा नहीं, ज़रा साफ कीजिये किस परमात्मा ने ख़ुद कहा ? “वही परमात्मा जिन्हें हम भगवान मानते हैं।” अच्छा आप सूरजपाल सिंह उर्फ़ भोलेबाबा की बात कर रहे हैं। “अरे..! आपको पता नहीं […]

Read More
error: Content is protected !!