आमलकी एकादशी के व्रत से होती है समस्त कामनाओं की सिद्धि

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आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र

3 मार्च दिन शुक्रवार को रंगभरी एकादशी

वाराणसी से प्रकाशित हृषीकेश पंचांग के अनुसार 3 मार्च दिन शुक्रवार को सूर्योदय 6 बजकर 14 मिनट पर और एकादशी तिथि का मान प्रातः काल 9 बजकर 44 मिनट तक पश्चात द्वादशी तिथि है।इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र सायंकाल 4 बजकर 17 मिनट पश्चात पुष्प नक्षत्र और शोभन नामक योग है। प्रातः एकादशी तिथि होने से यह रंगभरी या आमलकी एकादशी गृहस्थ और वैष्णव दोनों के लिए ग्राह्म है।

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली आमलकी एकादशी या रंगभरी एकादशी इस वर्ष 3 मार्च दिन शुक्रवार को पढ़ रही है। यह एकादशी समस्त पापों का नाश करने वाली है। इस दिन व्रत करने वाले मनुष्य पर भगवान नारायण की कृपा बनी रहती है। यह भगवान विष्णु को अति प्रिय है ।अतः इस दिन भगवान की पूजा करने का विशेष विधान है। विष्णु पुराण एवं पद्म पुराण के उत्तर खंड में भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं कि राजा मांधाता के प्रश्न पूछने पर महात्मा वशिष्ठ ने कहा था कि भगवान विष्णु के थूकने पर उनके मुंह से चंद्रमा के समान कांतिमान एक बिंदु पृथ्वी पर गिरा, जिससे आमलकी (आंवले) का महान वृक्ष उत्पन्न हुआ। इसी समय भगवान ने प्रजा की सृष्टि करने के लिए ब्रह्मा को उत्पन्न किया और उन्होंने देवता, दानव, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, नाग तथा महर्षियों को जन्म दिया। ब्रह्मर्षि और देवता और उन्हीं स्थानों पर आए जहां आमलकी का वृक्ष था ।तभी आकाशवाणी हुई है-“हे ब्राह्मणों, यह सर्वश्रेष्ठ आमलकी का वृक्ष है जो भगवान विष्णु को अति प्रिय है इसके समरण मात्र से ही सहस्त्र गोदान का फल प्राप्त होता है।

आवले के वृक्ष का महत्व

आमलकी के वृक्ष का स्पर्श करने से दुगना व फल खाने से तिगुना फल प्राप्त होता है। इस वृक्ष के मूल में विष्णु, ऊपर ब्रह्मा और तने में रुद्र, शाखों में मुनिगण, टहनियों में देवता, पत्तों में वसु ,फूलों में मरूद्गण और फलों में समस्त प्रजापति निवास करते हैं। आमलकी तथा रंगभरी एकादशी के दिन आंवले का सेवन अवश्य करना चाहिए।

व्रत विधि

व्रती को दशमी की रात में एकादशी व्रत के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए शयन करना चाहिए तथा आमलकी एकादशी के दिन प्रातः निम्नलिखित संकल्प लेना चाहिए–” मम कायिक वाचिक मानसिक सांसर्गिक पातकोपपातक दुरित क्षयपूर्वक श्रुतिस्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तये श्री परमेश्वर प्रीतिपूर्वक आमलकीएकादशी व्रतमहं करिष्ये।।

भगवान विष्णु का करें पूजन

इस दिन आंवले के समीप बैठकर विष्णु भगवान का पूजन करने का विधान है। इस वृक्ष की 108 अथवा 28 परिक्रमा की जाती है। भगवान विष्णु का चित्र स्थापित कर उत्तम प्रकार के गंध ,अक्षत ,धूप ,दीप और नैवेद्य अर्पण कर निराजन, आरती करना चाहिए। इस दिन भगवान परशुराम के पूजन का भी विधान है। पूरे दिन भगवान विष्णु का स्मरण करें ।आंवले के वृक्ष के पास जाकर वहां रात्रि जागरण का भी विधान है। जागरण से जो फल प्राप्त होता है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने पर भी प्राप्त नहीं होता है। प्रातः काल द्वादशी के दिन भगवान की आरती कर प्रणाम और प्रदक्षिणा करनी चाहिए।

आमलकी एकादशी कथा

इसकी कथा पद्मपुराण के उत्तरखंड में है – कथा इस प्रकार है -महात्मा वशिष्ठ ने राजा मांधाता को इस पवित्र एकादशी की कथा सुनाई थी। ‌प्राचीन काल में वैदिश नामक नगर में ब्राह्मण। क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र एक साथ वेदाभ्यास किया करते थे। इस देश के राजा चंद्रवंशी पाशबिंदु थे। वह चैत्ररथ नाम से विख्यात थे। उनके राज में दस हजार हाथियों की सेना थी। वह वेद की छह शाखाओं के ज्ञाता थे। वह बड़े धार्मिक, कर्तव्यनिष्ठ तथा वीर थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी थी।राजा के साथ प्रजा भी समस्त धार्मिक पर्व मनाया करती थी। पड़ोसी राज्य में राजा चैत्र की प्रतिष्ठा की चर्चा होती रहती थी। फाल्गुन मास के शुक्र पक्ष की रंगभरी या आमलकी एकादशी के दिन राजा प्रजा के साथ नदी के किनारे गए और स्नान कर नगर के समीप मंदिर में पहुंचे। वहां आंवले का पेड़ था। राजा ने साधुओं सहित उस आंवले के पेड़ को जलयुक्त कलश अर्पित किया। वहां अन्य लोग भगवान परशुराम की पूजा अर्चना कर रहे थे ।राजा ने आदर सहित भगवान की पूजा की और आंवले के वृक्ष से प्रार्थना की कि-हे आमलकी, आप सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाने वाले हैं। आप वास्तव में ब्राह्मण के रूप हैं। एक समय भगवान रामचंद्र जी ने भी आपकी पूजा की थी। आप मेरी ओर से इस रत्न ,आभूषण, हीरे, जवाहरात इत्यादि की यह भेंट स्वीकार करें। ऐसी प्रार्थना कर राजा ने वही व्रत और रात्रि जागरण किया।

जागरण के दौरान एक भूखा और थका हुआ शिकारी आया। उसे दिन भर कोई शिकार नहीं मिला था। वह दुराचारी था। वह अपने कुटुंब का पालन हिंसा द्वारा किया करता था ।भूख से बेहाल शिकारी मंदिर में रुका और प्रजा की भीड़ के कारण वह खाने पीने की सामग्री प्राप्त नहीं कर सका था। उसे मंदिर के कोने में रहकर रात जागते हुए व्यतीत करनी पड़ी। जब सभी लोग चले गए तब शिकारी भी उठकर अपने घर चला गया और वही भोजन भी किया। कुछ दिनो बाद उसकी मृत्यु हो गई। एकादशी के दिन अनजाने में जागरण करते हुए उससे निराहार व्रत हो गया। इसलिए व्रत के प्रभाव से उसने वसुरथ के रुप में महाराज विदुरथ के महल में जन्म लिया। जिसने आगे चलकर जयंती नामक राज्य का शासन किया। एक दिन एक हिरण का पीछा करते हुए जंगल में दूर निकल गया और रास्ता भूल गया। रात्रि हो जाने के कारण थक कर एक पेड़ के नीचे सो गया। वहां उसे शत्रु जंगली जानवर उसे मारने के उद्देश्य से एकत्र हो गए। राजा को अकेला देखकर- मारो मारो- की आवाजें लगाते हुए उन्हें मारने दौड़े। लेकिन राजा को स्पर्श भी नहीं कर पाए। तभी राजा के शरीर से एक दिव्य सुंदर स्त्री प्रकट हुई। उसके तेज से चारों ओर ज्वाला निकल रही थी ।उसके हाथ में चक्र और अनेक अस्त्र-शस्त्र थे। उस देवी ने सभी जंगली म्लेच्छों को मार गिराया। जब राजा सुबह उठा तो उसने पाया कि उसके चारों ओर लाशों का ढेर है। वह सोच में पड़ गया कि उन्हें किसने मारा ? तभी आकाशवाणी हुई- हे राजन, इस संसार में केशव के अतिरिक्त कोई नहीं है जो तुम्हारी सहायता कर सके। आमलकी एकादशी के व्रत के प्रभाव से तुम्हारी शत्रुओं से रक्षा हुई है। राजा वसुरथ ने प्रसन्न होकर भगवान का स्मरण किया और अपने राज्य में लौट आया और उसने प्रजा को आमलकी एकादशी का महत्व सुनाया। व्रत के प्रभाव से राजा ने इंद्र की भांति निष्कंटक शासन किया और प्रजा को भी सुखी रखा।

व्रत का विधान

इस दिन प्रातःकाल उठ जाएं और भगवान विष्णु या उनके किसी भी अवतार की पूजा करें। दिन प्रातः काल उठकर सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य प्रदान करें। भगवान विष्णु की पूजा सुविधि करें। पूजन में पंचामृत ,पीले फूल और तुलसीदल का प्रयोग करें। इस दिन भगवान विष्णु के स्त्रोत्रों का पाठ करें यदि न कर सके तो भगवान विष्णु से संबंधित मंत्रों का जप करें। सर्वोत्तम मंत्र -“ओंम नमो भगवते वासुदेवाय ” कहा गया है। यदि अभी न कर पाते हैं तो सीताराम के नाम उच्चारण करते रहें। गीता का पाठ ।रामचरितमानस का पाठ एवं भागवत का पाठ सर्वोत्तम माना जाता है। फलाहार दिन में केवल एक ही समय ग्रहण करें। फलाहार में तिन्नी के चावल का प्रयोग न करें ।उपवास में केवल दूध या फलों का ही प्रयोग करें ।विशेष बात है कि पारण के दिन भी भगवान विष्णु की पूजा करें। तत्पश्चात् निर्धनों को दान करें। दान करने के पश्चात ही पारण करें। इस व्रत के दिन में मन में क्रोध न लाएं । असत्य भाषण से अपने को बचाएं। हिंदू धर्म शास्त्र में शरीर और मन को संतुलित रखने के लिए और उपवास के विधान बताए गए हैं। इनमें एकादशी व्रत सर्वोत्तम है। महीने में यह दो बार पड़ती है। एकादशी व्रत से आरोग्यता की वृद्धि होती हैं। इस संसार में सुख प्राप्त होता है और पुनः परलोक में भी से सद्गति मिलता है- ऐसा शास्त्रों का कथन है।

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