आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र
अध्यक्ष – रीलीजीयस स्कॉलर्स वेलफेयर सोसायटी
विक्रम संवत 2080 में श्रावण मास में अधिक मास है। जिस चान्द्र अमान्य मास में सूर्य संक्रांति नही होती है, वह अधिक मास कहलाता है। अधिक मास के अन्तर्गत दो माह होते हैं, एक शुद्ध मास दूसरा मलमास। पूर्णिमान्त पद्धति से प्रथम मास का कृष्ण पक्ष कृष्ण पक्ष एवं द्वितीय मास का शुक्ल पक्ष शुद्ध मास होता है। इस प्रकार इस वर्ष का प्रथम श्रावण मास का कृष्ण पक्ष और द्वितीय शुक्ल पक्ष का श्रावण मास, शुद्ध श्रावण मास के रुप में रहेगा। वहीं प्रथम श्रावण का शुक्ल पक्ष एवं द्वितीय श्रावण का कृष्ण पक्ष मलमास या अधिक मास के रूप में रहेगा। अधिक मास में जन्मतिथि, मरणतिथि, श्राद्ध, व्रत उपवास, स्नान संस्कार, शुभ कार्य आदि के बारे में धर्मशास्त्रीय एवं मुहुर्त शास्त्रीय जो व्यवस्था है,उसका संक्षेप वे कुछ विवरण प्रस्तुत कर रहा हूं।
यदि किसी व्यक्ति का जन्म अधिक मास के अन्तर्गत है, तो उसकी जन्मतिथि उसी मास में मानी जाती है। उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति का जन्म प्रथम श्रावण के शुक्ल पक्ष की पंचमी को होता है तो आगामी वर्ष में उसकी जन्मतिथि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही होंगी।यदि किसी बालक का जन्म पहले किसी ऐसे मास में हुआ है, जो वर्ष विशेष के अन्तर्गत अधिक मिस है, तो उस स्थिति में शुद्ध मास के अन्तर्गत पड़ने वाली तिथि को उसकी जन्मतिथि होगी। उदाहरण के लिए यदि किसी जातक का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी को हुआ है तो इस वर्ष उसकी जन्मतिथि द्वितीय श्रावण के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आएगी। उसे अपना जन्मतिथि शुद्ध मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही मानना चाहिए।
मरण तिथि और अधिक मास
यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु ऐसे किसी मास में होती है जो कि अधिक मास है,तो आगामी वर्षों में उसकी मृत्यु तिथि उसी मास में आएगी। उदाहरण के लिए यदि इस वर्ष यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु प्रथम वैशाख के शुक्ल पक्ष में होती है,तो आगामी वर्ष में श्रावण शुक्ल पक्ष में ही उसकी मृत्यु तिथि मानी जाएगी।यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु किसी ऐसे मास में हुई है, जो कि कालांतर में अधिक मास के रुप में आ जाता है। तो ऐसी स्थिति में उसकी मृत्यु तिथि शुद्ध मास में आएगी। अधिक मास और श्राद्ध व्यवस्था – अधिक मास में विभिन्न प्रकार के श्राद्धों के लिए धर्म शास्त्रीय व्यवस्थाएं निम्न प्रकार से कहा गया है।
नित्य श्राद्ध
अमावस्या, युगादि मन्वादि श्राद्ध इत्यादि नित्य श्राद्ध, शुद्ध मास और मलमास दोनों में किए जाने चाहिए। इस प्रकार इस वर्ष श्रावण महिने में शुद्ध श्रावण और अधिक मास श्रावण – ये दोनों नित्य श्राद्ध के लिए शास्त्रोक्त मान्य रहेंगे। इस प्रकार श्रावण अमावस्या का श्राद्ध प्रथम और द्वितीय दोनों ही श्रावण मासों में किया जाएगा।
मासिक श्राद्ध
व्यक्ति की मृत्यु के बाद प्रथम वर्ष में किया जाने मासिक श्राद्घों के मध्य यदि अधिक मास आ जाए, तो शुद्ध और अधिक, दोनों ही मासों में श्राद्ध किया जाएगा।ऐसी स्थिति में मासिक श्राद्ध में एक श्राद्ध की वृद्धि हो जाती है।
प्रथम वार्षिक श्राद्ध
यदि प्रथम वार्षिक श्राद्ध ऐसे मास में आ रहा हो जो अधिक मास है तो वह मलमास में भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति का प्रथम वार्षिक श्राद्ध श्रावण शुक्ल पक्ष में आता है तो वह श्राद्ध प्रथम वैशाख शुक्ल पक्ष में किया जा सकता है।
अन्य वार्षिक श्राद्ध
प्रथम के अलावा अन्य वार्षिक श्राद्ध केवल शुद्ध मास में ही किया जाएगा। यदि किसी व्यक्ति वार्षिक श्राद्ध श्रावण शुक्ल पक्ष में आना है, तो वह इस वर्ष उसका वार्षिक श्राद्ध द्वितीय श्रावण के शुक्ल पक्ष में किया जाता चाहिए।
अन्य श्राद्ध
तीर्थ श्राद्ध, प्रेत श्राद्ध, अलभ्य योग के श्राद्ध, दैनिक श्राद्ध इत्यादि के लिए मलमास की वर्जना नहीं है। महालय श्राद्ध, अष्टका श्राद्ध आदि केवल शुद्ध मास में किया जाता चाहिए।
संस्कार एवं अधिक मास
जिन संस्कारों को एक निश्चित अवधि में या समय पर किया जाना आवश्यक है, वे अधिक मास के दौरान मलमास में भी किए जा सकते हैं। ऐसे संस्कार जैसे – गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार, सीमंत संस्कार, जातकर्म संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार और अंतिम संस्कार। इस प्रकार यदि किसी शिशु का अन्नप्राशन संस्कार श्रावण शुक्ल पक्ष में किया जाना आवश्यक है तो उसे प्रथम श्रावण शुक्ल पक्ष में किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य संस्कार केवल शुद्ध मास में ही किए जाने चाहिए। ऐसे संस्कार पूर्णिमांत पद्धति के अनुसार प्रथम श्रावण के कृष्ण पक्ष और द्वितीय श्रावण के शुक्ल पक्ष में किए जाने चाहिए।
व्रत -उपवास एवं स्नान
अधिक मास में व्रत या उपवास का आरंभ करना निषिद्ध है। इसे शुद्ध मास में ही करना चाहिए। पूर्व में आरंभ किए गए नित्य प्रकृति के व्रत एवं उपवास दोनों ही मासों में किए जाते हैं। नैमित्तिक व्रत एवं उपवास शुद्ध मास में ही किए जाते हैं। मासिक स्नान शुद्ध और मलमास दोनों में ही होते हैं। इस प्रकार इस वर्ष किया जाने वाला श्रावण मास का स्नान प्रथम श्रावण और द्वितीय दोनों श्रावण में होगा। व्रत का उद्यापन, वेदव्रत, चातुर्मास का आरंभ इत्यादि केवल शुद्ध मास में किए जा सकते हैं।
शुभ कार्य एवं अधिक मास
गृहारंभ, गृहप्रवेश, प्रथम बार वधू प्रवेश, देव प्रतिष्ठा, विष्णु शयन, गया और गोदावरी को छोड़कर अन्य किसी क्षेत्र की प्रथम बार तीर्थ यात्रा, यज्ञ, 16 महादानों में कोई दान, राज्याभिषेक इत्यादि केवल शुद्ध मास में ही किए जा सकते हैं, मलमास में इसका निषेध है।
मलमास में निषिद्ध कार्य
अग्नयाधान, देव प्रतिष्ठा, यज्ञ, दान ( सोलह महादान), तुला पुरुष, कन्या, गजदान, व्रत ( नया व्रत आरंभ), वेदव्रत, वृषोत्सर्ग, चूड़ाकरण, उपनयन, तीर्थ यात्रा (उस तीर्थ की यात्रा जहां पहली बार जाना हो रहा है), विवाह, राज्याभिषेक, यान निर्माण कार्यारंभ ( आधुनिक परिप्रेक्ष्य में वाहनादि का क्रय), गृहारंभ, सोमयागादि कर्म, चातुर्मास आरंभ, महालय श्राद्ध, अष्टका श्राद्ध, प्रथम उपाकर्म, व्रत का उद्यापन, महोत्सव, गृहप्रवेश, वापी कुंआ, तालाब आदि का निर्माण, द्वितीय वार्षिक श्राद्ध, अपूर्व देवता का दर्शन, निष्क्रमण,पाप प्रायश्चित, ईशान देवता की बलि, प्रथम बार वधू प्रवेश, दुर्गा इन्द्र का स्थापन और उत्थापन, देवता आदि की शपथ ग्रहण करना, विशेष कार्य का परिवर्तन करना, विष्णु शयन और सर्प बलि ये मलमास में निषिद्ध हैं।
मलमास में विहित कार्य
तीर्थ यात्रा, दर्श श्राद्ध, प्रेत श्राद्ध, सपिण्डीकरण, ग्रह स्नान, गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार, सीमंत संस्कार, जातकर्म संस्कार, नामकरण संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार, नैमित्तिक कार्य, मासिक कर्म, अलभ्य योग में श्राद्ध, मन्वादि तिथियों का दान, दैनिक दान, अतिथि सत्कार, विधिवत स्नान, प्रथम वार्षिक श्राद्ध, राजसेवा विषयक कार्य, गया गोदावरी की तीर्थ यात्रा इत्यादि मलमास में ग्राह्म हैं।