6 अप्रैल को हनुमान जयंती पर विशेष 

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आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र

 

मान्यताओं और पुराणों के अनुसार हनुमान जयंती

इस दिन क्या करे

इस दिन प्रातःकाल स्नानादि के अनन्तर नित्य कर्म से निवृत्त होकर हनुमान जी के निमित्त पूजन और जन्मोत्सव का संकल्प ले ऊं अद्य अमुक नामाहं मम सपरिवारस्य हनुमत्प्रीति द्वारा सकल मनोकामना सिद्ध्यर्थं हनुमत् जन्मोपलक्षे हनुत्पूजनं करिष्ये। अमुक के स्थान पर अपने नाम का उच्चारण करें।इस दिन हनुमान जी की प्रतिमा को किसी चौकी या काष्ठासन पर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें, पश्चात सुविधि षोडशोपचार विधि से पूजा, पंचामृत,स्नानादि, श्रंगार, व्रत आदि करें।इस दिन वाल्मिकी रामायण अथवा तुलसीदास कृत रामचरितमानस या सुन्दरकाण्ड अथवा हनुमान चालीसा के अखंड पाठ का आयोजन करें। हनुमान का गुणगान व भजन करना चाहिए। श्रंगार, सिन्दूर आदि और नैवेद्य में भीगा अथवा भुना हुआ चना, गुड़ और बेसन के लड्डू या बूंदी, पेड़ा,फल में केला अवश्य रखें। यदि हो सके तो छप्पन प्रकार के भोग की भी व्यवस्था करें।यदि सम्भव न हो तो केवल चने से निर्मित लड्डू को ही अपने नैवेद्य में सम्मिलित करें। नैवेद्य में चने और केले को रखने कारण है कि यह वानर जाति का प्रिय पदार्थ है और बूंदी और बेसन दोनों चने से ही बनते हैं।चना और गुड़ का योग बल वृद्धि कारक है। इस दृष्टि से बल के प्रधान हनुमान जी के नैवेद्य में गुड़,चना प्रधान है।

हनुमान के जन्म के विषय में दो मत प्रचलित है।एक मत के अनुसार हनुमान जी का जन्म चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को मेष लग्न में हुआ था।दूसरी मान्यता के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमान जी अवतरण हुआ। लेकिन लोक में चैत्र शुक्ल पूर्णिमा की ही महत्ता अधिक है। इसी दिन इनका जन्मोत्सव सर्वाधिक मनाया जाता है।6 अप्रैल दिन बृहस्पतिवार को सूर्योदय 5 बजकर 48 मिनट पर और पूर्णिमा तिथि का मान प्रातः काल 9 बजकर 44 मिनट तक,इस दिन हस्त नक्षत्र दिन में 12 बजकर 32 मिनट तक, पश्चात चित्रा नक्षत्र है।मेष लग्न भी 6 बजकर 12 मिनट से 7 बजकर 49 मिनट तक होने के कारण हनुमान की जयंती इसी दिन आयोजित की जाएगी।

हनुमान जी ऐसे देवता हैं जिनकी पूजा में सावधानी की आवश्यकता है। कहा जाता है कि मंगलवार के दिन या हनुमान जयंती के दिन बरगद के पत्ते को तोड़कर गंगाजल से धोकर हनुमानजी को अर्पित करें हैं तो धन की वृद्धि आरंभ हो जाती है और आर्थिक समस्या से मुक्ति मिलती है। यदि हनुमान जयंती के दिन पान का बीड़ा हनुमान जी को चढ़ाएं और उसके पश्चात लगातार एक वर्ष तक प्रति मंगलवार को अर्पण करें तो रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं और नौकरी में प्रमोशन मिलता है। हनुमान जयंती के दिन केवड़े का इत्र और गुलाब की माला चढ़ाएं तथा लाल रंग का वस्त्र धारण करें।यह हनुमान जी को प्रसन्न करने का सरल उपाय है‌ बूंदी के लड्डू या चने से निर्मित मिठाई को हनुमानजी को अर्पित कर करें तो इससे संतान संबंधी समस्या दूर होती है। उनके मंदिर में या घर पर ही हनुमान जी की मूर्ति के सामने राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से बिगड़े काम बन जाते हैं ।यदि कुछ न कर सके तो हनुमान जयंती के दिन 11 माला राम नाम का जप करें इससे विवाह में आने वाली बाधा समाप्त होती है ।सुंदरकांड का पाठ करें, सरसों के तेल का दीपक जलाएं और हनुमान चालीसा के मंत्र जप या हनुमान जी मंत्र का जप करें तो सर्वविध कल्याण होता है।

पूजन में स्नान का जल यदि गंगाजल हो तो उत्तम अन्यथा किसी तीर्थ का जल और अभाव में तीर्थ जल मिश्रित जल से स्नान कराएं। वस्त्र में लाल की कौपीन उत्तम, पीताम्बर गंध में केसर मिला हुआ चंदन, फूलों में कनेर और अन्य पीले पुष्प,धूप में अगर- तगर,दीपक में गोघृतपूर्ण बत्ती और नैवेद्य में घी से बनाया हुआ मालपुआ को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।इस दिन हनुमान जी को नीराजन(आरती), नमस्कार, पुष्पांजलि और प्रदक्षिणा के बाद प्रार्थना की जाए।जो भी नैवेद्य अर्पण करें उसे भक्तों में वितरित करें और यदि समय और सामर्थ्य हो तों ब्राह्मण भोजन या रामभक्तों को भी भोजन कराएं। दिन और रात्रि दोनो समय स्त्रोत पाठ,गायन वादन और संकीर्तन से जागरण करें।

हनुमत कथासार- कथा इस प्रकार है

सूर्य के वर से सोने के बने हुए सुमेरू में केसरी का राज्य था ।उसकी अति सुंदर अंजना नाम की स्त्री थी। एक बार उसने शुचि वस्त्र धारण कर सुंदर वस्त्र और आभूषण धारण किए । उस समय पवनदेव ने उसके कानों हमें प्रवेश कर आश्वासन दिया कि तुझे सूर्य, अग्नि और स्वर्ण के समान तेजस्वी, वेद वेदांगो का मर्मज्ञ, विश्व वंदनीय महाबली पुत्र होगा। ऐसा ही हुआ। चैत्र पूर्णिमा के दिन अंजना के गर्भ से हनुमान जी उत्पन्न हुए। सूर्योदय होते ही उन्हें भूख लगी। माता अंजना फल लाने गई। दो प्रहर व्यतीत होने पर हनुमान जी को भूख लग गई। इधर वन के वृक्षों में लाल वर्ण के बालक ने सूर्य को फल मानकर हनुमान जी उसको लेने के लिए आकाश में उछल गए। उसी दिन सूर्य को ग्रसने के लिए राहु आया परंतु उनको दूसरा राहु मानकर भाग गया ।तब इंद्र ने हनुमान जी पर वज्र प्रहार किया। उससे उसकी ठोड़ी टेढ़ी हो गई। जिससे वे हनुमान कहलाए। इंद्र की इस अशिष्टता का दंड देने के लिए उन्होंने प्राणी मात्र का वायु रोक दिया। तब ब्रह्मा आदि देवों ने उन्हें अलग-अलग वर दिए। ब्रह्मा जी ने अमित आयु का, इंद्र से वज्र के निस्कृय होने का, सूर्य ने अपने शतांश तेज से युक्त और संपूर्ण शास्त्रों के विशेषज्ञ होने का, वरुण ने पाश और जल से अभय रहने का, यम ने यमदंड से अभय होने, कुबेर ने गंदा से नि:शंक होने का, शंकर जी ने योद्धाओं के ऊपर विजय प्राप्त करने का और विश्वकर्मा ने मय के बनाए हुए सभी प्रकार के शस्त्र से क्षति न होने का वरदान दिया। इस प्रकार के वर्षों के प्रभाव से हनुमान जी ने अमित पराक्रम के कार्य किए।इस प्रकार पुराणों के अनुसार हनुमान जी के अन्दर बुद्धि और बल का समावेश हो गया।ये विश्व वंदनीय हैं। हनुमान जी ध्यान,उपासना, व्रत आदि से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं।राम जानकी और हनुमान जी के प्रसन्न होने से उपासक का कल्याण होता है।

हनुमान जी पराक्रम ,बुद्धि तथा वीरता के प्रतीक माने गए हैं। संकट के समय हनुमान जी को ही स्मरण किया जाता है अतः वे “संकट मोचक” भी कहलाते हैं। हनुमान जी को शिव अर्थात रुद्र का अवतार भी माना जाता है। हनुमान शब्द में “ह” ब्रह्मा का,” न “शब्द अर्चना का ” मा” शब्द लक्ष्मी का तथा” न” शब्द बल का परिचायक है। हनुमान जी को समस्त देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त है। विष्णु पुराण के अनुसार रुद्रों की उत्पत्ति ब्रह्मा की भृकुटी टेढ़ी होने से हुई थी। हनुमान जी पवन देव के पुत्र हैं। हनुमान जी को जब ऋषि की व्यथा की जानकारी मिली तो उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया तथा अपनी रामकथा वाली शिला उठाकर समुद्र में फेंक दिए, ताकि लोग वाल्मीकि की रामायण ही पढ़ें और उसी की महिमा करें। समुद्र में फेंकी गई हनुमान जी की रामकथा वाली शिला राजा भोज के समय में निकाली गई तथा दामोदर मिश्र ने उसे लेखबद्ध किया।कहां जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास जी राजापुर गांव से 3 कोश नादीतौरा में हनुमान जी की मूर्ति की पूजा उपासना करने जाया करते थे।जब बरसात का मौसम आता तब तुलसीदास जी को वहां पहुंचने के लिए नदी नाले पार करने पड़ते थे, जिससे उनको बेहद परेशानी झेलनी पड़ती थी । अपने भक्त तुलसीदास की परेशानी देखकर हनुमान जी स्वप्न में तुलसीदास जी से कहे कि आप नदी पार जाने की परेशानी मत लें । आप किसी पत्थर पर चंदन से मेरी आकृति बनाकर अराधना करें। स्वप्न में मिली हनुमान जी की आज्ञा को शिरोधार्य कर तुलसीदास ऐसा करने लगे। प्रतिदिन नातीतौरा में हनुमान जी का रेखाचित्र चंदन से बनाते और पूजा अर्चना करने के पश्चात उसे पानी से मिटा देते। एक दिन पूजा अर्चना करने के पश्चात गोस्वामी जी हनुमान जी का चित्र मिटाना भूल गए और चित्र पत्थर पर उभर आया।वह आज भी ज्यों का त्यों है। शांत मुद्रा वाली हनुमान जी की यह मूर्ति संकटमोचन के नाम से जानी जाती है।

हनुमान जी के पंचमुखी अवतार की कथा

हनुमान जी भक्तों पर आने वाले सभी प्रकार के कष्ट को हर लेते हैं इसी कारण हनुमान जी को संकट मोचन के नाम से जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार वैसे तो हनुमान जी भगवान श्री रामचंद्र की अनन्य भक्त हैं और सदैव उनके नाम का स्मरण करते रहते हैं लेकिन एक बार भगवान श्री राम के संकट में पड़ जाने से वह पंचमुखी अवतार लेकर उन्हें भी संकट से उबार थे। रामायण के प्रसंग के अनुसार लंका के युद्ध के समय रावण के भाई अहिरावण अपनी माया शक्ति से श्री राम और लक्ष्मण को मूर्छित कर पाताल लोक ले कर चला गया था । अहिरावण को वरदान था कि पांच दिशाओं में पांच दीपक जलाकर रखें वह उसकी रक्षा करेगा। उसे यह भी वरदान प्राप्त था कि इन पांचों दिशा में दीप को एक साथ नहीं बुझाएगा तब तक उसका वध नही हो सकता । अहिरावण को समाप्त करने के लिए हनुमान जी ने पांचो दिशाओं में पांच मुख बनाकर पांचो दीपों को एक साथ बुझा दिया और उसका वध कर दिए। इसके पश्चात भगवान श्रीराम और लक्ष्मण अहिरावण के बंधन से मुक्त हुए थे।

हनुमान जी की उत्पत्ति

हनुमान जी की उत्पत्ति कैसे हुई । इस संदर्भ में अलग-अलग मान्यताएं है ।एक मान्यता के अनुसार एक बार जब पवन देव ने अंजनी को वन में देखा तो भी उस पर आसक्त हो गए। फलस्वरूप हनुमान जी की उत्पत्ति हुई। दूसरी मान्यता के अनुसार वायु देव ने कान के माध्यम से अंजनी के तन में प्रवेश किया, जिससे वह गर्भवती हो गई। एक अन्य कहानी है कि महाराजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ से प्राप्त जो भवियान्न था उसको अपनी रानियों को खाने के लिए दिया था उसका एक हिस्सा एक चील उठाकर ले गई और उसे पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या कर रही अंजनी की हथेली पर रख दिया।उसे खाने से अंजनी गर्भवती हुई और उसके पुत्र के रूप में हनुमान हुए।

एक मान्यता के अनुसार हनुमान जी का जन्म रांची जिले के गुमला प्रखंड में ग्राम अंजन में हुआ था। कर्नाटक के लोगों का विश्वास है कि हनुमान जी का जन्म इसी राज्य में हुआ था।पम्पा और किष्किंधा भग्नावेश हम्पी में देखे जा सकते हैं। फादर कामिल बुल्के ने अपनी राम कथा में इसका उल्लेख किया है कि कुछ लोग के अनुसार हनुमान जी वानर वंश में उत्पन्न हुए। यह वंश भारतवर्ष में पुरातन काल से चला आ रहा है। हनुमान जी आदर्श सेवक, राजदूत,नीतिज्ञ, व्याकरण के ज्ञाता, वक्ता, कलाकार, नर्तक,गायक और वेदवेत्ता थे। शास्त्रीय संगीत के तीन संगीताचार्यो में हनुमान जी भी एक माने जाते हैं‌।अन्य दो‌ शार्दूल और कहाल हैं। संगीत पारिजात नामक शास्त्र हनुमान जी के संगीत सिद्धांत से संबंधित है। हनुमान जी विलक्षण वक्ता और अनुपम कलाकार थे। सबसे पहली राम कथा हनुमान जी ने लिखी थी वह रामकथा शिलाओं पर लिखी गई थी जो हनुमान अष्टक की नाम से विख्यात हुई थी। जब वाल्मीकि जी ने अपनी रामायण तैयार कर ली तो उन्हें ‌लगा कि यह हनुमान के पुस्तक के समक्ष टिक न सकेगी और उनके ग्रंथ को कोई न पढ़ेगा।

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