आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र
अध्यक्ष – रीलीजीयस स्कॉलर्स वेलफेयर सोसायटी
सावन का महीना भगवान शिव को बहुत प्रिय है।इस महिने में सनातनी हिन्दू शिव के रंग में रंग जाते हैं। भगवान भोलेनाथ की कृपा प्राप्त करने के लिए पूरे सावन महीने भर भगवान शिव की सेवा और भक्ति में लीन रहते हैं।इस महिने में भी सोमवार का विशेष महत्व है।शिव का एक नाम सोम भी है।इस महिने का समापन श्रवण नक्षत्र में होता है।श्रवण नक्षत्र के स्वामी भी शिव जी है। श्रवण नक्षत्र के कारण ही इसे श्रावण मास कहा जाता है।सोम अर्थात चन्द्रमा भगवान भोलेनाथ के ललाट में विद्यमान रहते हैं। चन्द्रमा उनके शरीर में ही समाहित हैं। इसलिए भगवान को यह दिन अत्यंत प्रिय है। ज्यादातर लोग इस महिने में सोमवार का व्रत रखते हैं।जो वर्ष में सोमवार का व्रत नहीं रखते हैं वे भी इस महिने में सोमवार का व्रत करते हैं। सोमवार व्रत करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
सुहागिन महिलाओं को सौभाग्यशाली होने का आशिर्वाद मिलता है पति की लंबी आयु प्राप्त होती है।यदि कुंवारी कन्या व्रत रखतीं हैं तो सुयोग्य वर कै प्राप्त करती है। श्रावण मास का पुण्यार्जन की दृष्टि से बड़ा महत्व है।यह महीना तपस्या, त्याग, धर्म – कर्म की दृष्टि से सर्वोत्तम महिना माना गया है।इसी महीने में समुद्र मंथन के दौरान देवगणों ने भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। कहते हैं कि समुद्र मंथन के समय समुद्र से कालकूट नामक विष पैदा हुआ और वह समुद्र सहित पृथ्वी की ओर बढ़ने लगा। समस्त जीवों के अस्तित्व के उपर संकट की घड़ी आ गई थी। फलत: भगवान विष्णु के सुझाव पर समस्त देवगण भगवान शिव के पास कैलाश पर्वत पर जाकर प्रार्थना किए।
संसार और जीवों के कल्याण के लिए भगवान शिव ने उस कालकूट नामक विष का भक्षण कर लिया।वह उनके गले तक पहुंचते ही सूख गया। उनका कंठ नीला हो गया। इसलिए नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुए। लेकिन वे विष की ज्वाला के आगोश में थे। इसलिए देवगणों ने उस विष की ज्वाला की शांति के लिए सावन के महिने में पूजन के अनंतर भगवान का जलाभिषेक किए। भगवान शिव के जलाभिषेक की परम्परा का सूत्रीपात उसी समय से प्रारंभ हुआ।ऐसी पौराणिक मान्यता है।
एक और पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव की प्रथम पत्नी मां सती ने जब अपने पिता के यज्ञ में अपने पति का अपमान देखीं तो उन्होंने वहीं अपना शरीर त्याग दिया। पुनः हिमाचल की पुत्री के रुप में जन्म धारण कर शिव को प्राप्त करने के लिए घनघोर तपस्या करने लगीं।जिस महिने में उन्होंने तपस्या प्रारंभ की वह सावन का महिना था।इस महिने में उनकी तपस्या से प्रभावित होकर भगवान शिव ने सोमवार को उन्हें अपनी सहचरी के रुप में अंगीकृत किया था। इसलिए सावन महीने तथा उसमें पड़ने वाले सोमवार का अत्यधिक महत्व है।
शुद्ध श्रावण महीने का शुभारंभ 4 जुलाई दिन मंगलवार से हो रहा है और इसका समापन 31 अगस्त दिन बृहस्पतिवार को हो रहा है। इसमें 18 जुलाई दिन मंगलवार से 16 अगस्त दिन बुधवार तक पुरूषोत्तम (अधिक मास) रहेगा।इस प्रकार शुद्ध श्रावण मास और अधिक श्रावण मास को संयुक्त कर यह महान 59 दिन का रहेगा। इसमें चार सोमवार शुद्ध सावन में और चार अधिक मास वाले सावन में है। परन्तु मान्यता के अनुसार समस्त सोमवार व्रतों का वैशिष्ट्य बना रहेगा।
इस वर्ष श्रावण माह में आठ सोमवार होंगें= (चार शुद्ध सावन और चार पुरुषोत्तम मास में)-
प्रथम सोमवार – यह शुद्ध श्रावण कृष्ण पक्ष के अष्टमी के दिन दिनांक 10 जुलाई को है।इस दिन अष्टमी तिथि और शुभ नक्षत्र रेवती है। मातंग नामक औदायिक योग हैं।इस दिन व्रत से व्यापार में अभिवृद्धि के साथ सर्वोतोमुखी उन्नति के योग प्राप्त होंगे।
द्वितीय सोमवार – यह शुद्ध श्रावण अमावस्या तिथि दिनांक 17 जुलाई को है।इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र और धूम्र नामक औदायिक योग है। अमावस्या तिथि के कारण इस दिन के व्रत से समस्त पितरों की कृपा प्राप्त होगी।साथ ही साथ धन लाभ के सुअवसर भी मिलेंगे। आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।
तृतीय सोमवार – यह अधिक श्रावण शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि दिनांक 24 जुलाई के दिन है।इस दिन हस्त नक्षत्र और शिव योग है।इस दिन के व्रतार्चन से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी,फलत: समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होगी।
चतुर्थ सोमवार – यह भी अधिक श्रावण शुक्ल पक्ष में चतुर्दशी तिथि दिनांक 31 जुलाई को है।इस दिन पूर्वाषाढ़ नक्षत्र और विष्कुंभ नामक योग है। चतुर्दशी के स्वामी स्वयं शिव ही हैं। अतः इस दिन के व्रत से विद्या की समुन्नति और सदाचार की वृद्धि होगी।
पंचम सोमवार – यह अधिक श्रावण कृष्ण षष्ठी तिथि दिनांक 7 अगस्त को है।इस दिन रेवती नक्षत्र और मातंग नामक औदायिक योग है।इस दिन के व्रतार्चन से समस्त बाधाओं का उन्मूलन होगा।ग्रह कृत दोष समाप्त होंगे।
छठवां सोमवार – यह अधिक श्रावण कृष्ण त्रयोदशी दिनांक 14 अगस्त को है।इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र और सिद्धि योग है।इस दिन के व्रतार्चन से संतानों की सर्वविध उन्नति को योग बनेगा।
सातवां सोमवार – यह शुद्ध श्रावण शुक्ल पंचमी दिनांक 21 अगस्त को है।इस दिन चित्रा नक्षत्र और शुभ योग है। नागपंचमी के दिन होने से राहू,केतु,शनि सहित समस्त ग्रह जन्य दोषों का उन्मूलन होकर परिवार में सामंजस्य और सौहार्द की वृद्धि होगी।
आठवां सोमवार – यह शुद्ध श्रावण शुक्ल द्वादशी दिनांक 28 अगस्त को है।इस दिन उत्तराषाढ़ और आयुष्मान योग है।इस दिन के व्रतार्चन से आयुष्य की वृद्धि प्राप्त होगा।
अधिक मास में जन्मतिथि, मरणतिथि, श्राद्ध, व्रत उपवास, स्नान संस्कार, शुभ कार्य आदि के बारे में धर्मशास्त्रीय एवं मुहुर्त शास्त्रीय जो व्यवस्था है, उसका संक्षेप वे कुछ विवरण प्रस्तुत कर रहा हूं। विक्रम संवत 2080 में श्रावण महीने में अधिक मास है।जिस चान्द्र अमान्य मास में सूर्य संक्रांति नही होती है,वह अधिक मास कहलाता है।अधिक मास के अन्तर्गत दो माह होते हैं,एक शुद्ध मास दूसरा मलमास। पूर्णिमान्त पद्धति से प्रथम मास का कृष्ण पक्ष कृष्ण पक्ष एवं द्वितीय मास का शुक्ल पक्ष शुद्ध मास होता है।इस प्रकार इस वर्ष का प्रथम श्रावण मास का कृष्ण पक्ष और द्वितीय शुक्ल पक्ष का श्रावण मास ,शुद्ध श्रावण मास के रुप में रहेगा।वहीं प्रथम श्रावण का शुक्ल पक्ष एवं द्वितीय श्रावण का कृष्ण पक्ष मलमास या अधिक मास के रूप में रहेगा।
अधिक मास के धर्मशास्त्रीय एवं मुहुर्त शास्त्रीय विधान
मरण तिथि और अधिक मास
यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु ऐसे किसी मास में होती है जो कि अधिक मास है,तो आगामी वर्षों में उसकी मृत्यु तिथि उसी मास में आएगी। उदाहरण के लिए यदि इस वर्ष यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु प्रथम वैशाख के शुक्ल पक्ष में होती है,तो आगामी वर्ष में श्रावण शुक्ल पक्ष में ही उसकी मृत्यु तिथि मानी जाएगी।यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु किसी ऐसे मास में हुई है, जो कि कालांतर में अधिक मास के रुप में आ जाता है।तो ऐसी स्थिति में उसकी मृत्यु तिथि शुद्ध मास में आएगी। अधिक मास और श्राद्ध व्यवस्था –अधिक मास में विभिन्न प्रकार के श्राद्धों के लिए धर्म शास्त्रीय व्यवस्थाएं निम्न प्रकार से कहा गया है।
नित्य श्राद्ध : अमावस्या, युगादि मन्वादि श्राद्ध इत्यादि नित्य श्राद्ध, शुद्ध मास और मलमास दोनों में किए जाने चाहिए।इस प्रकार इस वर्ष श्रावण महिने में शुद्ध श्रावण और अधिक मास श्रावण – ये दोनों नित्य श्राद्ध के लिए शास्त्रोक्त मान्य रहेंगे।इस प्रकार श्रावण अमावस्या का श्राद्ध प्रथम और द्वितीय दोनों ही श्रावण मासों में किया जाएगा।
मासिक श्राद्ध : व्यक्ति की मृत्यु के बाद प्रथम वर्ष में किया जाने वाले मासिक श्राद्घों के मध्य यदि अधिक मास आ जाए, तो शुद्ध और अधिक, दोनों ही मासों में श्राद्ध किया जाएगा।ऐसी स्थिति में मासिक श्राद्ध में एक श्राद्ध की वृद्धि हो जाती है। प्रथम वार्षिक श्राद्ध -यदि प्रथम वार्षिक श्राद्ध ऐसे मास में आ रहा हो जो अधिक मास है तो वह मलमास में भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति का प्रथम वार्षिक श्राद्ध श्रावण शुक्ल पक्ष में आता है तो वह श्राद्ध प्रथम वैशाख शुक्ल पक्ष में किया जा सकता है। अन्य वार्षिक श्राद्ध -प्रथम के अलावा अन्य वार्षिक श्राद्ध केवल शुद्ध मास में ही किया जाएगा।यदि किसी व्यक्ति वार्षिक श्राद्ध श्रावण शुक्ल पक्ष में आना है,तो वह इस वर्ष उसका वार्षिक श्राद्ध द्वितीय श्रावण के शुक्ल पक्ष में किया जाता चाहिए।-अन्य श्राद्ध –तीर्थ श्राद्ध, प्रेत श्राद्ध,अलभ्य योग के श्राद्ध, दैनिक श्राद्ध इत्यादि के लिए मलमास की वर्जना नहीं है।महालय श्राद्ध,अष्टका श्राद्ध आदि केवल शुद्ध मास में किया जाता चाहिए।
यदि किसी व्यक्ति का जन्म अधिक मास के अन्तर्गत है,तो उसकी जन्मतिथि उसी मास में मानी जाती है। उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति का जन्म प्रथम श्रावण के शुक्ल पक्ष की पंचमी को होता है तो आगामी वर्ष में उसकी जन्मतिथि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही होंगी।यदि किसी बालक का जन्म पहले किसी ऐसे मास में हुआ है, जो वर्ष विशेष के अन्तर्गत अधिक मास है, तो उस स्थिति में शुद्ध मास के अन्तर्गत पड़ने वाली तिथि को उसकी जन्मतिथि होगी। उदाहरण के लिए यदि किसी जातक का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी को हुआ है तो इस वर्ष उसकी जन्मतिथि द्वितीय श्रावण के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आएगी।उसे अपना जन्मतिथि शुद्ध मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही मानना चाहिए।
संस्कार एवं अधिक मास
जिन संस्कारों को एक निश्चित अवधि में या समय पर किया जाना आवश्यक है, वे अधिक मास के दौरान मलमास में भी किए जा सकते हैं।ऐसे संस्कार जैसे – गर्भाधान संस्कार,पुंसवन संस्कार,सीमंत संस्कार,जातकर्म संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार और अंतिम संस्कार।इस प्रकार यदि किसी शिशु का अन्नप्राशन संस्कार श्रावण शुक्ल पक्ष में किया जाना आवश्यक है तो उसे प्रथम श्रावण शुक्ल पक्ष में किया जा सकता है।इसके अतिरिक्त अन्य संस्कार केवल शुद्ध मास में ही किए जाने चाहिए।ऐसे संस्कार पूर्णिमांत पद्धति के अनुसार प्रथम श्रावण के कृष्ण पक्ष और द्वितीय श्रावण के शुक्ल पक्ष में किए जाने चाहिए।
व्रत-उपवास एवं स्नान
अधिक मास में व्रत या उपवास का आरंभ करना निषिद्ध है। इसे शुद्ध मास में ही करना चाहिए। पूर्व में आरंभ किए गए नित्य प्रकृति के व्रत एवं उपवास दोनों ही मासों में किए जाते हैं।नैमित्तिक व्रत एवं उपवास शुद्ध मास में ही किए जाते हैं। मासिक स्नान शुद्ध और मलमास दोनों में ही होते हैं। इस प्रकार इस वर्ष किया जाने वाला श्रावण मास का स्नान प्रथम श्रावण और द्वितीय दोनों श्रावण में होगा। व्रत का उद्यापन, वेदव्रत, चातुर्मास का आरंभ इत्यादि केवल शुद्ध मास में किए जा सकते हैं।
मलमास में निषिद्ध कार्य : अग्नयाधान,देव प्रतिष्ठा,यज्ञ, दान (सोलह महादान),तुला पुरुष, कन्या, गजदान, व्रत ( नया व्रत आरंभ), वेदव्रत, वृषोत्सर्ग, चूड़ाकरण,उपनयन, तीर्थ यात्रा (उस तीर्थ की यात्रा जहां पहली बार जाना हो रहा है), विवाह, राज्याभिषेक,यान निर्माण कार्यारंभ ( आधुनिक परिप्रेक्ष्य में वाहनादि का क्रय), गृहारंभ,सोमयागादि कर्म, चातुर्मास आरंभ,महालय श्राद्ध,अष्टका श्राद्ध, प्रथम उपाकर्म, व्रत का उद्यापन, महोत्सव, गृहप्रवेश,वापी कुंआ, तालाब आदि का निर्माण, द्वितीय वार्षिक श्राद्ध, अपूर्व देवता का दर्शन, निष्क्रमण,पाप प्रायश्चित, ईशान देवता की बलि, प्रथम बार वधू प्रवेश, दुर्गा इन्द्र का स्थापन और उत्थापन,देवता आदि की शपथ ग्रहण करना, विशेष कार्य का परिवर्तन करना, विष्णु शयन और सर्प बलि ये मलमास में निषिद्ध हैं।
शुभ कार्य एवं अधिक मास – गृहारंभ , गृहप्रवेश, प्रथम बार वधू प्रवेश,देव प्रतिष्ठा,विष्णु शयन,गया और गोदावरी को छोड़कर अन्य किसी क्षेत्र की प्रथम बार तीर्थ यात्रा, यज्ञ,16 महादानों में कोई दान, राज्याभिषेक इत्यादि केवल शुद्ध मास में ही किए जा सकते हैं, मलमास में इसका निषेध है।
मलमास में किए जाने वाले कार्य – तीर्थ यात्रा, दर्श श्राद्ध,प्रेत श्राद्ध, सपिण्डीकरण, ग्रह स्नान, गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार,सीमंत संस्कार,जातकर्म संस्कार, नामकरण संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार,नैमित्तिक कार्य, मासिक कर्म,अलभ्य योग में श्राद्ध, मन्वादि तिथियों का दान, दैनिक दान, अतिथि सत्कार,विधिवत स्नान, प्रथम वार्षिक श्राद्ध,राजसेवा विषयक कार्य,गया गोदावरी की तीर्थ यात्रा इत्यादि मलमास में किए जा सकते हैं।