विकराल होता प्रदूषण का भस्मासुर और बौना होता नियंत्रण बोर्ड

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विवेकानंद त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार


प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अगले वर्ष अपनी स्थापना के 50 वर्ष पूरे कर लेगा। बढ़ते शहरीकरण, औद्योगीकारण के गर्भ से जन्मे प्रदूषण के भस्मासुर पर अंकुश लगाने के लिए भारत सरकार द्वारा 1974 में प्रदूषण निवारण और नियंत्रण अधिनियम लाया गया। इसी के अंतर्गत देश के प्रत्येक राज्य में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा केंद्रीय स्तर पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की गई। जब यह एक्ट बना और बोर्ड की स्थापना की गई तो देश की आबादी लगभग 61 करोड़ थी। अब यानी की 2023 में यह जनसंख्या बढ़कर 1 अरब 43 करोड़ हो गई है। आबादी के मामले में चीन को पछाड़कर भारत दुनिया में पहले नंबर पर पहुंच गया है। इसी गति से शहरीकरण और औद्योगिकरण भी निरंतर बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप प्रदूषण की मार से नदियों का दम फूल रहा है और भू जल जहरीला होता जा रहा है। धरती की कोख सूखती जा रही है। दिल्ली राजधानी क्षेत्र में आने वाले नोएडा, फरीदाबाद, गुरग्राम आदि अनेक शहरों में तो भूजल का इतना अंधाधुंध दोहन हुआ है कि अधिकांश इलाकों को डार्क जोन घोषित किया जा चुका है। भूजल हर साल एक से डेढ़ मीटर नीचे जा रहा है। भूजल इतना खारा है कि उसे पीया तक नही जा सकता।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इसी तरह के प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण की सबसे बड़ी संस्था है।इसकी स्थापना जल प्रदूषण निवारण और नियंत्रण अधिनियम 1974 की धारा तीन के अंतर्गत 1974 में की गई थी। इसी अधिनियम की धारा चार के तहत राज्य सरकारों ने राज्यों में राज्य बोर्ड का गठन किया। इसे राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कहा गया। इसी क्रम में जल प्रदूषण निवारण एवम नियंत्रण अधिनियम 1974 ने इन राज्य बोर्डों को भी सशक्त बनाने का प्रावधान किया।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के गठन की अवधारणा, उद्देश्य :

70 के दशक में जिस गति से उद्योग धंधों की स्थापना होने लगी और काम धंधों की तलाश में शहरों की ओर पलायन होने लगा उसके साथ प्रदूषण का जहर भी फैलने लगा। क्योंकि शहरों और उद्योगों दोनों के विकास के पीछे नियोजन और वैज्ञानिक तरीके का अभाव था। प्रदूषण पर लगाम लगे और शहरों और उद्योगों का नियोजित तरीके से विकास हो इसके लिए प्रदूषण निवारण अधिनियम लाकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों का गठन हुआ ताकि उद्योगों और शहरी आबादी के अपशिष्ट का वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण किया जा सके। चूंकि जल जीवन है इसलिए उसकी शुद्धता के प्रति प्रतिबद्धता जताते हुए 1974 में ही जल अधिनियम बनाया गया। इसके तहत कानूनी रूप से केंद्रीय और राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को सशक्त बनाया गया। अधिनियम 1974 की धारा 16 केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण के कर्तव्यों से संबंधित है जबकि धारा 17 राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्यों और अधिकारों दोनों से संबंधित है। बोर्ड के कार्यों को जानने समझने के लिए इनके अधिकार और कार्य क्षेत्र को जान लें।

पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्य और अधिकार :

  • पर्यावरण मानकों को निर्धारित करना
  • राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की गतिविधियों का कोऑर्डिनेशन यानी समन्वय करना और उनके बीच आए विवादों को सुलझाना
  • जल एवम वायु की गुणवत्ता में सुधार से संबंधित सलाह केंद्र सरकार को देना।
  • राज्य बोर्डोंको तकनीकी सहायता और मार्गदर्शन देना
  • जल, वायु प्रदूषण नियंत्रण से जुड़े व्यक्तियों संस्थाओं को ट्रेनिंग देना
  • राज्य बोर्ड के रूप में कार्य संशोधन अधिनियम 1988 के तहत केंद्रीय बोर्ड किसी भी राज्य बोर्ड के ऐसे कार्य कर सकता है जो जल अधिनियम 1974 की धारा 18 (2) के तहत एक आदेश में तय किए गए हैं।
    तकनीकी और सांख्यिकी आंकड़ों का प्रकाशन
  • नदियों और कुओं के लिए मानक निर्धारित करना।
  • जल और वायु प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम और योजना तैयार करता है।

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्य :

जल अधिनियम 1974 की धारा 17 में इसके निम्न कार्य और अधिकार दिए गए हैं –

  • राज्य में नदियों और कुओं के जल की शुद्धता बनाए रखने के लिए व्यापक कार्य योजना तैयार करना।
  • राज्य सरकार को उपरोक्त प्रदूषण को रोकने के तरीके बताना और राज्य सरकार को सलाह देना।
  • जल वायु प्रदूषण के सुधार को जागरूकता अभियान चलाना
  • जांच और शोध को प्रोत्साहित करना।
  • सीवेज या अपशिष्ट प्रवाह के लिए बनाए गए नालों का निरीक्षण और मानक तैयार करना।
  • सीवेज के उपचार के लिए किफायती तरीके तैयार करना

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकार 

  • प्रदूषण निवारण और नियंत्रण अधिनियम 1974 की धारा 33 ए के अंतर्गत
  • प्रदूषण के मानकों की अनदेखी करने वाले किसी भी उद्योग को बंद करने बिजली पानी काटने का निर्देश दे सकता है

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की शक्तियां

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 द्वारा दी गई निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त हैं:

  • सूचना प्राप्त करने की शक्ति (धारा 20)
  • विश्लेषण के लिए अपशिष्टों के नमूने लेने की शक्ति (धारा 21)
  • प्रवेश और निरीक्षण की शक्ति (धारा 23)
  • नए आउटलेट (Outlet) और नए प्रवाहों पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति (धारा 25)
  • किसी उद्योग आदि की स्थापना के लिए सहमति देने से इनकार करने या वापस लेने की शक्ति (धारा 27)
  • कुछ विशेष कार्यों को करने की शक्ति (धारा 30)
  • नदी या कुएं के प्रदूषण के मामले में आपातकालीन परिचालन करने की शक्ति (धारा 32)
  • नदियों या कुओं में पानी के प्रदूषण को रोकने के लिए अदालतों को आवेदन करने की शक्ति (धारा 33)
  • निर्देश देने की शक्ति (धारा 33A)

जाहिर है इतना अधिकार संपन्न होने के बावजूद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड प्रदूषण के खिलाफ अपेक्षित भूमिका का निर्वहन नाही कर पा रहा है।
2018 की रिपोर्ट के मुताबिक नदियों के प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण अशोधित सीवेज का पानी है। रिपोर्ट बताती है कि प्रतिदिन शहरों के सीवेज का 61948 एमएलडी गंदा पानी निकल रहा है। इसमें साल दर साल बढ़ोत्तरी ही हो रही है। हैरत i बात यह है कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट जरूरत का 38 फीसदी ही लगे हैं। इनमे से भी 66 प्रतिशत ही अपनी पूरी क्षमता से कार्य कर पा रहे हैं। नदियों का प्रदूषण किस गति से बढ़ रहा है इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि दो साल के भीतर प्रदूषित नदियों की संख्या 302 से बढ़कर 351 ही गई है। इसी तरह से 28 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में सर्वाधिक प्रदूषित नदियों की संख्या 34 से बढ़कर 45 हो गई है। यह इसलिए हुआ है कि प्रदूषण नियंत्रण संस्थान ने अपनी स्थापना के बीते लगभग 50 सालों में जितनी सक्रियता दिखानी चाहिए थी नहीं दिखाई।

अगर फुरसत मिले तो पानी की तहरीरों को पढ़ लेना, हर इक दरिया हजारों साल अफसाना सा लिखता है। ये नदियां सिर्फ जल की संवाहिका नहीं हैं इनकी गोद मे सभ्यताएं पलती हैं संस्कृतियों का हिंडोला हैं नदियां। मगर अफसोस जिस मानव को इन नदियों ने मां की तरह पाला उस मानव की सनक और असीम लालच ने नदियों के साथ साथ खुद का अस्तित्व खतरे में डाल दिया है। यानी वह भस्मासुर बन गया है।
जल प्रदूषण का जहर किस कदर नदियों को अपने गिरफ्त में ले चुका है इसके लिए यह उदाहरण नींद उड़ा देने वाला है। प्रकृति में जितना भी जल भंडार है उसका 2.7 प्रतिशत जल ही शुद्ध और पीने योग्य है। बाकी का 97.3 फीसदी पानी खारा है यानी उससे आप आचमन भी नहीं कर सकते।

इस 2.7 फीसदी शुद्ध उपलब्ध जल में मात्र 0.003 फीसदी जल ही नदियों में है। यानी इस पानी का कुल आयतन 108 क्यूबिक किलोमीटर में ही सिमटा हुआ है। बाकी का शुद्ध जल जिसका आयतन 126070 क्यूबिक किलोमीटर है वह झीलों में है जो की नदियों में उपलब्ध जल से कई गुना ज्यादा है। मगर उसका प्रवाह क्षेत्र सीमित होने के कारण मानव के लिए नदियों की तुलना में बहुत कम उपयोगी है। नदियों में झीलों से कम शुद्ध जल की मात्रा होते हुए भी वह समग्र दुनिया के लिए इसलिए अधिक उपयोगी है क्योंकि नदियों का प्रवाह क्षेत्र बहुत विस्तृत भूभाग में फैला है। इसलिए नदियों के जल का प्रदूषित होना मनुष्य के लिए खतरे की घंटी है। खुद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हालिया रिपोर्ट कह रही है कि नदियों का प्रदूषण स्तर खतरे को पार कर चुका हैं। नदियां दिन प्रतिदिन मर रही हैं। समूचे जनमानस की आस्था का केंद्र बनी गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र ये तीन नदियां भयानक प्रदूषण से हांफ रही हैं।

यह स्थिति तब है जबकि नमामि गंगे के नाम से केंद्र सरकार नदियों को साफ करने का अभियान चला रही है। इसके लिए 20 हजार करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया है। हालत यह है कि खुद प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में गंगा की अविरलता प्रभावित हो गई है। ध्वनि प्रदूषण के लिए निर्णायक लड़ाई लड़ने वाले सत्या फाउंडेशन के अध्यक्ष और वाराणसी निवासी चेतन उपाध्याय कहते हैं कि गंगा कॉरिडोर के चलते वाराणसी में गंगा का अर्थ चंद्राकार स्वरूप नष्ट हो गया है। प्रदूषण नियंत्रण विभाग को अनुमोदन करने वाली ऐसी संस्था करार देते हैं जिसके 90 फीसदी अनुमोदन प्रशासन से अपेक्षित सहयोग और कारवाई के अभाव में ठंडे बस्ते में चले जाते हैं। रिवर इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ और आईआईटी बीएचयू के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर यूके चौधरी गंगा की अविरलता और गंगा सफाई के नाम पर अनियोजित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को लेकर लगातार मुखर हैं और सवाल उठा रहे हैं। इसके लिए प्रदूषण नियंत्रण विभाग और गंगा प्रदूषण से जुड़े इंतजामिया को कठघरे में खड़े कर रहे हैं।

किससे कितना प्रदूषण :

  • सीवेज से सर्वाधिक                             30 फीसदी
  • वायु प्रदूषण                                        20 फीसदी
  • खेतों की मिट्टी और गाद से                   20 फीसदी
  • ऑफशोर ऑयल से                              10 फीसदी
  • आद्योगिक वेस्ट वाटर                        5 फीसदी
  • मरीन ट्रांसपोर्टेशन                               10 फीसदी

5 प्रतिशत अन्य

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हिंडन नदी जिसका प्राचीन नाम हरनंदी है। यह प्रदूषण की मार से सीवेज के रूप में बदल चुकी है। इसको प्रदूषण मुक्त करने के नाम पर अनेक अभियान चलाए गए मगर हाल वही ढाक के तीन पात। हिंडन नदी की सफाई के तमाम दावों के बीच प्रदूषण से राहत नहीं मिल पा रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रमुख नदी होने के बावजूद नदी का पानी साफ नहीं हो पा रहा है। आकंडों के मुताबिक हिंडन का पानी सिंचाई या जलीय जीव के लायक नहीं है। चार साल में ही हिंडन में बीते साल कोरोना के कारण लागू हुए लॉकडाउन में ही पानी की गुणवत्ता में कुछ सुधार हुआ था। इससे साफ है कि कारखानों से निकलने वाला अपशिष्ट हिंडन के पानी को प्रदूषित करने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हर साल हिंडन नदी की सफाई को लेकर दावे करता है। सहारनुपर से लेकर गौतमबुद्धनगर तक प्रदेश के कई जनपदों से होकर गुजरने वाली हिंडन का पानी इतना प्रदूषित है कि यह जलीय जंतुओं के लायक भी नहीं है। पानी में घुलनशील ऑक्सीजन और जैव रसायन ऑक्सीजन यानि बीओडी का स्तर खतरनाक है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समय-समय पर हिंडन नदी के पानी की गुणवत्ता की जांच करता है, जिसमें अधिकांश बार पानी की गुणवत्ता बेहद खराब ही आती है। बीते साल जनवरी के मुकाबले हिंडन साल के आखिर तक आते-आते ज्यादा प्रदूषित हो गई।

क्या कहते हैं अधिकारी ?

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी उत्सव शर्मा का कहना है कि गाजियाबाद में ही तीन स्थानों पर हिंडन के पानी की जांच कर नतीजों के आधार पर लगातार हिंडन साफ रखने का प्रयास है।

इन स्थानों पर मापा प्रदूषण

बोर्ड की टीम ने हिंडन के उदगम से लेकर उसके यमुना में मिलने तक के रुट पर कुल सात स्थानों पर पानी का नमूना लेती है। इसमें सहारनपुर में महेशपुर, मेरठ में सरधना एवं बागपत रोड, गाजियाबाद में करहेड़ा, जीटी रोड स्थित हिंडन पुल के पास और दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस वे पर छिजारसी पुल के पास नदी के पानी का नमूना लिया गया। इसके साथ ही नोएडा में कुलेसरा से हिंडन के पानी का नमूना लिया गया।

हिंडन का हाल(प्रतिवर्ष/औसत) स्थान-करहेडा, गाजियाबाद              

वर्ष

डीओ बीओडी टोटल कोलीफोर्म

2022

0.71 20.9

2.85 लाख

2021

1.5 18.9

2.34 लाख

2020

1.6 17.2

6.20 लाख

2019

2.25 21.3

1.84 लाख

2018 1.66 31.9

28.36 हजार

मानक

डीओ-घुली हुईआक्सीजन

5 मिलीग्राम/लीटर

बीओडी-जैव रसायन आक्सीजन मांग

3 मिलीग्राम/लीटर

टोटल कोलीफोर्म

5000/लीटर

इसी तरह से हिंडन की सहायक नदी है कृष्णा। महज 153 किलोमीटर का ही इसका प्रवाह क्षेत्र है। मगर जहां जहां से गुजर रही है जानलेवा बीमारियां बांट रही है।

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