गीता प्रेस शताब्दी वर्ष समारोह का भव्य शुभारंभ
एनआईआई ब्यूरो
गोरखपुर। शनिवार को गीता प्रेस के शताब्दी वर्ष समारोह का देश के प्रथम नागरिक और भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने विधिवत शुभारंभ किया। इसअवसर पर उन्होंने आर्ट पेपर पर मुद्रित 300 रंगीन चित्रो वाले रामचरित मानस और गीताप्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयंदका द्वारा लिखित गीता तत्व विवेचनी के परिवर्धित संस्करण का विमोचन भी किया। गीता प्रेस परिसर में आकर राष्ट्रपति वहां चतुर्दिक फैली आध्यात्मिक शुचिता से इतने अभिभूत हुए कि उन्होंने कहा “ गीता प्रेस में आना उनके पूर्व जन्मों के पुण्यों का फल ही हो सकता है”। गीता प्रेस के इतिहास में किसी राष्ट्रपति के आने का यह दूसरा अवसर है। इसके पहले 1955 यानी आज से 67 वर्ष पूर्व तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का आगमन हुआ था। उन्हीं के कर कमलों द्वारा गीता प्रेस के भव्य प्रवेश द्वार और ऐतिहासिक लीला चित्र मंदिर का उद्घाटन हुआ था।
इसके पूर्व शनिवार दोपहर को गोरखपुर एयरपोर्ट पर अपनी धर्मपत्नी सविता कोविंद के साथ पहुंचे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेलऔर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुष्प गुच्छ देकर स्वागत किया। इसके बाद राष्ट्रपति ने गोरखपुर सर्किट हाउस में विश्राम किया और वहां से शाम 4:45 पर गीता प्रेस के लिए प्रस्थान किया। गीता प्रेस पहुंचने पर वहां के सत्संग भवन में गीताप्रेस के सभी कर्मचारियों ने उनका अभिनंदन किया और उनके साथ तस्वीर भी ली। राष्ट्रपति ने उनके सेवा भाव की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। कहा गीताप्रेस के इस मुकाम पर पहुंचाने में उनके अहम योगदान की जितनी भी सराहना की जाय वह कम है। सत्संग भवन के बाद राष्ट्रपति ने गीताप्रेस के ऐतिहासिक चित्र मंदिर का अवलोकन किया।
वहां के हस्तनिर्मित चित्रों को देखकर वे विह्वल हो गए। उसी कक्ष में छह सेंटीमीटर वृत्ताकार सीडी पर गीता के 700 श्लोकों की हाथ से लिखावट देखकर उनके मुंह से बरबस निकल पड़ा ऐसा कलात्मक लेखन बिना भगवत प्रेरणा के संभव ही नहीं है। ऐसी कृति स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपने इस भक्त पर कृपा बरसाते हुए खुद ही लिखवाई होगी। लीला चित्र मंदिर में उन्होंने राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, सीएम योगी आदित्यनाथ सहित गीताप्रेस के ट्रस्टी व अन्य अधिकारियों के साथ सामूहिक तस्वीर भी खिचवाई। लीला चित्र मंदिर की अतिथि पुस्तिका में उन्होंने लिखा कि ऐसा मनोरम चित्रांकनऔर गीताप्रेस जैसे प्रतिष्ठान की संस्थापना मौजूदा समय में संभव नहीं।
लीला चित्र मंदिर से वे सीएम और राज्यपाल के साथ गीताप्रेस प्रांगण में आयोजित समारोह स्थल पर पहुंचे।यहां उनका गीता प्रेस के ट्रस्टी व अन्य पदाधिकारियों द्वारा भव्य स्वागत किया गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को भी पुष्पगुच्छऔर अंगवस्त्र देकर अभिनंदन किया गया। मंच पर इन प्रमुख अतिथियों के साथ गीता प्रेस के प्रमुख ट्रस्टी बैजनाथ अग्रवाल भी थे। श्री अग्रवाल बीते 72 वर्षों से गीताप्रेस की अनवरत सेवा में संलग्न हैं। यह एक सुखद संयोग ही है कि 1955 में जब तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद आए थे तब भी वे उस अवसर के साक्षी बने और आज राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का भी आतिथ्य करने का उन्हें सुअवसर मिला। कार्यक्रम के शुभारंभ और समापन पर आरपीएफ बैंड ने राष्ट्रगान की धुन बजाकर माहौल को देशभक्ति से ओतप्रोत कर दिया।
स्वागत की औपचारिकताओं के बाद राष्ट्रपति ने अपने भावपूर्ण उद्बोधन में गीताप्रेस के इस समारोह का साक्षी बनने पर अपने को सौभाग्यशाली बताया। कहा वे यहां आकर खुद गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। कहा “ ऐसा संयोग से हुआ है या दैवयोग से मैं यह नहीं जानता पर इतना जरूर कहूंगा कि पूर्व जन्म में कोई पुण्य किया होगा तभी गीताप्रेस में आने का अवसर मिला है। उन्होंने कहा कि अभी उनकी यह यात्रा अधूरी है। वे ईश्वर से प्रार्थना करेंगे कि शीघ्र ही दूसरी बार यहां आने का अवसर दे तभी उनकी मंशा पूरी होगी।
हनुमान प्रसाद पोद्दार ( भाई जी) को स्मरण करते हुए श्री कोविंद ने कहा कि जिस तरह से रामायण और महाभारत काल में हनुमान ने सात्विक शक्तियों को विजय दिलाई उसी तरह से गीता प्रेस को इस मुकाम पर पहुंचाने में हनुमान प्रसाद पोद्दार के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत एक धर्मप्राण देश है।यहां राजसत्ता और धर्मसत्ता दोनों एक दूसरे की पूरक रही हैं। यह कितना अच्छा संयोग है कि योगी जी के हाथ धर्म दंड और राजदंड दोनों हैं। वे इन दोनों धर्मों का बहुत ही निष्ठा और जनकल्याण की भावना सर्वोपरि रखते हुए बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। वे सबके लिए अनुकरणीय हैं।
अपने भावुक उद्बोधन का समापन श्री कोविंद ने गीता के 18वें अध्याय के उन 68वें 69वें श्लोक से की जिससे प्रेरित होकर गीताप्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयंदका ने इतने बड़े प्रकल्प की आधारशिला रखी।
गीता के 18वें अध्याय का 68, 69 श्लोक
य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति।
भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशय:।।
न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तम:।
भविता न च मे तस्मादन्य: प्रियतरो भुवि।।
(गीता में भग्वान श्रीकृष्ण कहते हैं जो व्यक्ति मुझसे परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीता शास्त्र को मेरे भक्तों के बीच कहेगा, वह मुझको ही प्राप्त होगा। इसमें कोई संदेह नहीं। इस एक श्लोक का कितना महत्व है इसे इस बात से जान लेना चाहिए कि भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि ऐसा करने वाला व्यक्ति मेरा परम प्रिय होगा। तात्पर्य यह कि गीता का प्रचार करने वाले से बढ़कर भविष्य में भी हमारा कोई प्रिय नहीं होगा। इन दो श्लोकों ने गीता प्रेस जैसे महान और विशाल सद्साहित्य प्रकाशन संस्थान की बुलंद नींव रख दी।)
उन्होंने कहा कि उनकी इच्छा है कि गीताप्रेस के प्रमुख प्रकाशन विदैशों में मौजूद भारतीय समुदाय तक पहुंचे। इसके लिए उनका सचिवालय हर तरह से मदद को तैयार है।
गीताप्रेस सबकी धरोहर – आनंदी बेन
प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि गीता प्रेस ने अपने सौ साल की इस महायात्रा में अनेक उतार चढ़ाव देखे मगर अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। सनातन धर्म के जिन उदात्त मूल्यों और धार्मिक साहित्य को जन जन तक पहुंचाने की उसकी संकल्प यात्रा अप्रतिहत बनी रहे यह जन जन का कर्तव्य भी है। उन्होंने गीताप्रेस को सनातन धर्म की ध्वज पताका चहुंओर फहराने की शुभकामनाएं दीं।
भारतीय सनातन मूल्यों का सजग प्रहरी है गीता प्रेस – योगी
राज्यपाल के उद्बोधन के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारतीय संस्कृति और सनातन मूल्यों के ध्वजवाहक गीताप्रेस ने 90 करोड़ से अधिक धार्मिक ग्रंथों को छापकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है। इसकी यह यश पताका निरंतर नई उंचाईयों को छुए ऐसी उनकी कामना है। वह उपलब्धियों का पहाड़ लेकर गौरवशाली शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है। उन्होंने कहा कि देश का शायद ही कोई सनातन धर्मावलंबी परिवार होगा जिसके घर में गीताप्रेस द्वारा मुद्रित कोई न कोई धार्मिक ग्रंथ न उपलब्ध हो। घोर व्यावसायिक युग मे भी न्यूनतम मूल्यों पर धार्मिक साहित्य उपलब्ध कराकर गीताप्रेस ने भारतीय जनमानस में सनातन मूल्यों की प्राण प्रतिष्ठा की है।
योगी ने कहा कि यह विलक्षण संयोग है कि जब पहली बार राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी गीताप्रेसआए थे तो उस समय मेरे दादा गुरु महंत दिग्विजयनाथ उस अवसर के साक्षी बने थे आज यह सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कल्याण पत्रिका के सूत्रधार हनुमान प्रसाद पोद्दार (भाई जी) का खासतौर पर स्मरण किया और गीताप्रेस को पुष्पित पल्लवित करने में उनके योगदान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। उनके साथ गोरखपुर में गीताप्रेस की स्थापना के लिए घनश्यामदास जालान और महावीर प्रसाद पोद्दार के अवदानों को विशेष रूप से रेखांकित किया।
गीताप्रेस मार्च 2022 तक 16 करोड़ 88 लाख 85 हजार से अधिक श्रीमद्भगवद्गीता की प्रतियां और 3 करोड़ 62 लाख रामचरितमानस की प्रतियां छाप चुका है। इस अवसर पर गीताप्रेस के ट्रस्टी देवीदयाल अग्रवाल ने गीता प्रेस का संक्षिप्त परिचय दिया। पूरे समारोह का कुशल संचालन किया गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने। इसअवसर पर राज्य सभा सदस्य डॉ. राधामोहन अग्रवाल, सांसद रविकिशन, गीता प्रेस के सेक्रेटरी, प्रेस के प्रमुख इंजीनियर आशुतोष उपाध्याय, गीता प्रेस के सभी ट्रस्टी और समस्त स्टाफ न केवल मौजूद रहे अपितु दिन रात श्रम कर इस समारोह को सफल बनाया।