दिनेश श्रीनेत, तेलुगु फिल्म ‘विराट पर्वम्’ 17 जून को रिलीज़ होगी। नेटफ्लिक्स इसका ऑफीशियल स्ट्रीमिंग पार्टनर है तो कुछ समय बाद यह वहां भी देखने को मिलेगी। ‘विराट पर्वम’ एक प्रेम कहानी है, जो 1990 में तेलंगाना क्षेत्र में नक्सलवाद के बैकड्रॉप में बुनी गई है। अंदाज़ ठेठ तेलुगु सिनेमा वाला है। ‘उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक’ और ‘अनेक’ के एक्शन कोरियग्रॉफर हॉलीवुड के स्टीफन रिक्टर का एक्शन, खूबसूरत फोटोग्रॉफी और भव्य लोकेशन।
नायिका साई पल्लवी एक नक्सलवादी लीडर कामरेड रावण (राणा दग्गुबाती) की कविताएं पढ़कर उससे प्रेम करने लगती हैं। प्रसंशक से प्रेमिका या प्रेमी बनने की कहानियां लंबे समय से साहित्य और सिनेमा में जगह पाती रही हैं। साई अपने सहज हावभाव के कारण बिल्कुल आस-पास की लड़की ही दिखती हैं।
फिल्म के ट्रेलर और गीतों में वे बहुत सहज और सुंदर लगी हैं। साइकिल के करियर पर कविताओं की किताबें, सुबह की रोशनी में दीवार पर हंसिया-हथौड़ा की आकृति बनाना या खुद को कृष्ण की मीरा समझना। वह एक जगह कहती है, “मैं लाल रंग में डूबी तितली हूँ !” ट्रेलर के अंत में एक लाल रंग की तितली हंसिए हथौड़े के निशान पर मंडराती दिखती है।
इस फिल्म की पटकथा निर्देशक वेणु की वारांगल स्थित बचपन की स्मृतियों पर आधारित है तो शायद ड्रामेटिक होने के बावजूद कहानी हकीकत के करीब होगी। अच्छी बात यह है कि दक्षिण का सिनेमा एक लोकप्रिय विधा के रूप में राजनीतिक गतिविधियों को दर्ज कर रहा है। इससे ठीक पहले ‘जय भीम’ और ‘श्याम शंकर रॉय’ जैसी फिल्में आ चुकी हैं, जिसमें लेफ्ट की पॉलीटिक्स या उसकी पक्षधरता को बहुत साफ तरीके से दर्शाया गया। केरल, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में वाम राजनीति के अच्छे खासे दखल के बावजूद इन पर फिल्में नहीं बनी हैं या फिर बहुत बच-बचकर इस विषय को छुआ गया है।
राजनीति और हिंसा को अपना विषय बनाने के बावजूद यह फिल्म पूरी तरह से साई पल्लवी की है। किसी लोकगीत जैसा मधुर और कच्ची आवाज़ में गाया फिल्म का “नागादारि-लो” गीत अब तक 20 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है। इसे पल्लवी की सुंदर छवि और अभिनय के लिए भी देखा जा सकता है। “चलो-चलो” गीत कल रिलीज हुआ है।