एनआईआई ब्यूरो
गोरखपुर। संत रैदास स्वाधीनता एवं मुक्ति की आकांक्षा के कवि है – प्रो० अनिल राय ने कहा कि रैदास ने मध्यकाल को प्रश्नकाल से जोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि संतों को कवि के रूप में न पढ़कर उन्हें सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक श्रोतों के रूप में पढ़ा जाना चाहिए। जिससे समाज का बेहतर भविष्य स्थापित हो सके। उक्त बातें प्रो० विमलेश कुमार मिश्र ने कही वे शनिवार को गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में संत रैदास जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित सामाजिक सांस्कृतिक चेतना के कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। प्रवर्तन वक्तव्य देते हुए प्रो विमलेश मिश्र ने कहा कि संतो की कथनी- करनी में भेद नहीं होता, जो शांति का अनुभव कराए वही संत है। उन्होंने कहा जिस समय मां-बहनें अपने घरों से निकलने में असुरक्षित महसूस करती थीं, मंदिरों को तोड़ा जारहा था, हिन्दू- मुस्लिम एक-दूसरे का विरोध कर रहे थे, सामाजिक उथल-पुथल, पारस्परिक विभेद तथा सामाजिक अन्यान्य अपने निकृष्टतम स्तर पर था। उस समय संत रैदास आते हैं और अपने विचारों औऱ उपदेश से समाज को नई दिशा देते हैं। सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध कठोर प्रहार करते हुए समाज को उन्नति के रास्ते पर ले जाने का कार्य संत रैदास ने किया। पत्रकारिता विभाग के संयोजक प्रो० राजेश मल्ल ने संतों के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सांस्कृतिक चेतना में संत कवियों ने श्रम की चेतना का संदेश दिया।
उन्होंने कहा कि हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष से ज्यादा भारत में भितरघात से निपटने पर ध्यान देने की आवश्यकता है। संत रविदास भी यही संदेश देना चाहते थे। इसके पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कबीर शोध पीठ के समन्वयक प्रो० दीपक प्रकाश त्यागी ने संत रैदास के चित्र पर माल्यार्पण कर किया।अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए उन्होने संत कबीर शोध पीठ की भूमिका पर प्रकाश डाला और कहा कि पीठ कबीर दास एवं अन्य भारतीय संतो के साहित्य -संस्कृति के अध्ययन का महत्वपूर्ण केन्द्र होगा।प्रो त्यागी ने संत कबीर ऐकेडमी के त्रिधारा कार्यक्रम का उल्लेख करते हुए कहा कि संत रैदास प्रेम,शान्ति एवं सद्भाव के विचारक -चिन्तक हैं। वे मनुष्य की जययात्रा के ऐसे विचारक हैं ,जो समाज की निर्मित करना चाहते हैं।कार्यक्रम का आभार ज्ञापन देते हुए प्रो० दीपक प्रकाश त्यागी ने कहा कि संत रैदास को याद करना अपनी परंपरा का मूल्यांकन करने के साथ ही आत्म मूल्यांकन भी है। मै प्रेम,साहित्य,शान्ति के संत कवि रैदास को शोधपीठ, हिन्दी विभाग एवं विद्यार्थियों की ओर से नमन करता हूं। कार्यक्रम में संत रैदास के छन्द का गायन रोहन,नेहा,प्रखर वसुन्धरा वर्मा ,श्वेता सिंह, शिखा चतुर्वेदी ने किया। संस्कृत विभाग के डाॅ सूर्यकान्त त्रिपाठी ने रैदास को समरसता का कवि कहा और काव्य प्रस्तुति के साथ मध्यकाल में रैदास की भूमिका को याद किया। संचालन डॉ० अखिल मिश्र ने किया। इस अवसर पर प्रो० प्रत्यूष दुबे, डॉ० संदीप यादव, डॉ० नरेंद्र कुमार,डॉ० सुनील यादव,डॉ० अभिषेक शुक्ल,डॉ० देवेंद्र पाल,डॉ० कुलदीपक शुक्ल, डाॅ मृणालिनी,डॉ० सूर्यकांत त्रिपाठी, बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
शोध परिषद कार्यकारिणी गठित हुई
शोध संबंधी गतिविधियों का संचालन,पुस्कालय का संरक्षण एवं संयोजन तथा आखर पत्रिका के प्रकाशन तथा संपादन के उद्देश्य से हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा तथा पत्रकारिता विभाग में शोध परिषद का गठन किया गया। जिसमें वरिष्ठतम आचार्य प्रो० अनिल कुमार राय को संरक्षक और प्रो० दीपक प्रकाश त्यागी को अध्यक्ष और प्रो० राजेश कुमार मल्ल को संयोजक बनाया गया। शोध परिषद में शोध छात्रों की सर्वसम्मति से शोध छात्र नवीन राय को अध्यक्ष, दीक्षा श्रीवास्तव को उपाध्यक्ष पवन कुमार को मंत्री, संध्या पांडेय को कोषाध्यक्ष, राजू मौर्य पुस्तकालय प्रभारी और अद्वैत शांडिल्य को प्रचार मंत्री के पद पर मनोनीत किया गया ।