विवेकानंद त्रिपाठी
(वरिष्ठ पत्रकार)
जब विज्ञान का अध्येता किसी ऐसे विषय पर लेखनी चलाता है जो उसके अध्ययन क्षेत्र से इतर हो तो वह “फैक्ट और फिक्शन” दोनो का बड़ा संतुलित प्रयोग करता है ताकि विवादों के व्यूह में न फंस सके। वह भी ऐसा विषय जो इतिहास, प्राचीन कथाओं, पौराणिक आख्यानों से जुड़ा हो तब तो यह सावधानी और बढ़ जाती है।
भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी, दूरदर्शन के प्रमुख महानिदेशक और प्रसार भारती के मुख्य अधिशासी अधिकारी (CEO) रह चुके इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र और फिजिक्स के टॉपर रहे मयंक अग्रवाल की पुस्तक “देवों का उदय” और अंग्रेजी में “The Rise of the Devas” सुधी पाठकों के बीच चर्चा का विषय है। यह पुस्तक मयंक अग्रवाल और उनके बड़े भाई आलोक अग्रवाल की संयुक्त कृति है। आलोक अग्रवाल प्रोजेक्ट प्रबंधन और जल विद्युत के विशेषज्ञ हैं।
हरिद्वार वासी संस्कृत के प्रोफेसर स्वर्गीय डॉक्टर कृष्ण कुमार अग्रवाल के इन दोनों बेटों को भारतीय सनातन परंपरा और संस्कृति के संस्कार मां और पिता से विरासत में मिले हैं। यही वजह है कि वे अपनी जड़ों से जितना गहरे जुड़े हैं उतना ही वैज्ञानिक तर्कों और अनुसंधानों के आग्रही हैं। इनका rational mind प्राचीन कथाओं और पौराणिक आख्यानों को जबतक तर्क की कसौटी पर कसकर संतुष्ट नहीं हो जाता तबतक इनकी खोज जारी रहती है।
यही वजह है कि जीवन के जिस भी पार्श्व को उन्होंने छुआ उसमें अव्वल ही रहे। औपन्यासिक लेखन का यह उनका पहला प्रयास है और जो विषय उन्होंने उठाया है वह भी असीम है। मगर जिस कौशल के साथ उन्होंने इसे बुना है वह आपको उनके लेखन का मुरीद बना देगा। पुस्तक की सफलता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं की अमेजन के प्लेटफार्म पर बहुत ही अल्प समय में पचासों पाठकों के बहुत उत्साहवर्धक कमेंट आ चुके हैं। यह पुस्तक बेस्ट सेलिंग की श्रेणी में शामिल होने की राह पर है। जो यह कहते हैं कि पाठकों की कमी है, फिलहाल इस पुस्तक के प्रति लोगों का उत्साह इस आकलन को झूठा साबित कर रहा है। अब फिर पुस्तक के कंटेंट पर आते हैं।
इस तरह के विषयों के प्रति अग्रवाल ब्रदर्स का आकर्षण और उसमें उठने वाले प्रश्नों के वैज्ञानिक और तार्किक उत्तर जानने की उनकी अकुलाहट बाल्यावस्था में ही शुरू हो गई थी। जिसका उत्तर वे अपने संस्कृत के उद्भट विद्वान पिता के विशाल पुस्तकालय की आलमारियों में रखी वैदिक युग की रोचक कहानियों में खोजा करते। उनका जिज्ञासु बाल मन पिता से ढेर सारे सवाल करता। पूछते, पिताजी क्या इन कहानियों में कोई सत्य है, हमे तो यह काल्पनिक लगता है की प्राचीनकाल में ऋषि और देव होते थे और वे जिससे खुश होते वरदान देते और नाराज होने पर श्राप। अगर इतने सामर्थ्यवान थे तो साधारण मानव की तरह वे भी राग, द्वेष जैसे मनोभावों से क्यों ग्रसित थे ?
पिता को उनकी प्रश्नकुलता अच्छी लगती। वे उन्हें कभी इन पौराणिक, मिथकीय और वैदिक चरित्रों में देवत्व या चमत्कार स्वीकार करने को बाध्य नहीं करते। बल्कि उन्हें तर्क और बुद्धि की कसौटी पर कसने को प्रेरित करते। कहते देवताओं को उनके समय के असाधारण व्यक्तियों के रूप में देखने का प्रयत्न करो। उस समय की कथाओं के गर्भ में एक गौरवशाली इतिहास छिपा है। उस पर से मिथ और अंधविश्वासों की जो धुंध है उसे हटाकर वास्तविकता उजागर करो। समय का रथ अपनी द्रुत गति से जीवन पथ पर पंख लगाकर उड़ने लगा।
मगर बाल्यावस्था की वो कहानियां और उन पर होने वाली चर्चाओं के बीज तो अंतर्मन में कहीं गहरे संचित हो गए थे। उन चर्चाओं का ही प्रतिफल यह पुस्तक है। उन्होंने इन पौराणिक कथाओं की संभावित वास्तविकताओं और कुछ कल्पनाओं का सहारा लेकर एक कथानक के रूप में आकार दिया है। अपनी इस पुस्तक के शोध के क्रम में उन्हें कुछ ऐसे रोचक तथ्य मिले जिसे उनकी कल्पना को ठोस जमीन मिल गई। इस क्रम में उन्हें पता चला कि लगभग 3400 वर्ष पूर्व वर्तमान तुर्की के अनातोलिया और उत्तरी सीरिया क्षेत्र में मितानी और हित्ती शासकों के मध्य एक संधि हुई थी। यह संधि इंद्र, वरुण, मित्र अश्विन आदि देवताओं के नाम पर की गई थी। इतिहासकार मितानी संस्कृति को वैदिक संस्कृति के करीब मानते हैं। इस उद्धरण का तात्पर्य यहां केवल इतना स्पष्ट करना है की पश्चिम से पूर्व तक की संस्कृतियों में मिल रहे समानताओं के तंतुओं ने उन्हें इस कथानक को प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया।
लगभग 50 वर्ष पूर्व पिता से मिली प्रेरणा के फलस्वरूप अपने सेवाकाल के व्यस्ततम समय में मयंक जी ने अपने अग्रज के साथ मिलकर इस अनुपम कृति देवों का उदय ( हिंदी में) और Rise of Devas (अंग्रेजी) में सृजन किया है।
खास बात यह है कि इन दोनों भाषाओं में समान अधिकार से लिखा है। भाषा का लालित्य,प्रवाह और कथानक की स्पष्टता में कहीं कोई अवरोध नहीं आता। इसके साथ ही देश की संस्कृति, सभ्यता, इतिहास और साहित्य में उनकी गहन रुचि और उसके ज्ञान का जीवंत दस्तावेज भी है यह पुस्तक। उनकी साहित्यिक दृष्टि पर भी वैज्ञानिकता तिरोहित नहीं होती। उनकी नवीन कृति के कथानक में भारतीय सभ्यता और संस्कृति के उद्भव और विकास के 5000 साल की झलक और अभिनव दृष्टि मिलती है।
पुस्तक का सारांश कुछ इस तरह है :
“हजारों वर्ष पूर्व सुरों की कुछ शाखाएं अपने मूल निवास हिमालय की तराइयों से निकलकर सुदूर पश्चिम में बस गई। धीरे धीरे वे आज के भारत से लेकर पश्चिम एशिया तक स्थान स्थान पर फैल गए। नई सभ्यताओं ने जन्म लिया और आवागमन के नए नए मार्ग स्थापित हुए। विश्व के बड़े भूभाग पर शासन करने वाले सुरों ने देव की उपाधि धारण कर ली। समय के साथ सुर दो भागों में विभाजित हो गए। एक वो जो सुरों की कठिन नियमो और सिद्धांतों वाली जीवन पद्धति से सहमत नहीं थे, उन्होंने असुर नाम अपना लिया।
सुरों और असुरों के बीच प्रायः झड़पें होती रहती थीं। मगर समुद्री मार्गों की खोज के लिए उन्होंने साथ मिलकर समुद्र मंथन का अभियान चलाया जो उन्हें आश्चर्यों और रहस्यों के लोक में ले गया। इसी रहस्य लोक में उन्हें मिला सोम नाम का अमृत जिस पर अधिकार को लेकर एक बार फिर सुरों और असुरों में विवाद उत्पन्न हो गया। इसी कथानक को इंसानी विकास की गाथा बताते हुए कल्पना और हकीकत के चटख रंगों से कैनवस पर उकेरा गया है।
लेखक अग्रवाल ब्रदर्स की पुस्तक “देवों का उदय(Rise of Devas)” इन्हीं प्राचीन कथाओं आख्यानों को लेकर लिखा गया एक रोचक उपन्यास है। जिसमें लेखक ने हजारों वर्ष पूर्व सुरों और देवों की एक नई उभरती हुई और विकसित सभ्यता की कल्पना की है।” भारत भूमि अनादिकाल से जिज्ञासुओं, मनीषियों और अन्वेषकों की भूमि रही है। इस सभ्यता और संस्कृति की आधारशिला रखने वाले, जीवन मूल्य गढ़ने वाले और दूसरी ओर उनको ध्वस्त करने वाले कोई आसमानी लोग नहीं थे बल्कि इसी धरा के मनुष्य थे जिन्हें उनके बाद की पीढ़ियों ने उनके गुण दोष के आधार पर कालांतर में देव और दानव की श्रेणियों में विभक्त कर दिया।
भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों ने बाहर निकलकर मध्य पश्चिम एशिया और यूरोप तक की यात्राएं की। उधर से भी लोग बड़ी संख्या में भारतीय उपमहाद्वीप में आए और इस प्रकार संस्कृतियों का मिलन हुआ और वे एक दूसरे से प्रभावित हुईं। मयंक अग्रवाल का यह उपन्यास इसी मान्यता और विश्वास को पुष्ट करता है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता को देखने का एक नया विमर्श देता है। तीन खंडों में विभक्त इस पुस्तक में कुल 25 चैप्टर हैं जो पुस्तक को पढ़ने की दृष्टि से बहुत सहज बना देते हैं। पुस्तक में वर्तनी दोष न के बराबर है। रोचकता आद्योपंत बनी रहती है।