अमृत नामक योग में है मकर संक्रांति

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आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र

अध्यक्ष – रीलीजीयस स्कॉलर्स वेलफेयर सोसायटी

15 जनवरी दिन सोमवार को मकर संक्रांति कि महापर्व है। वाराणसी से प्रकाशित हृषीकेश पंचांग के अनुसार इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 42 मिनट पर और चतुर्थी तिथि प्रातः 9 बजकर 30 मिनट पश्चात पौष शुक्ल पंचमी है। इस दिन शतभिषा नक्षत्र और चन्द्रमा की स्थिति कुंभ राशि पर है। इसी दिन सूर्य धनु राशि का परित्याग कर प्रातः काल 9 बजकर 13 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इस दिन अमृत नामक औदायिक योग बन रहा है। अमृत योग में मकर संक्रांति होने से यह दान, पुण्य, स्नान और समस्त धार्मिक कार्यों के लिए अत्यंत पुण्य प्रदायक दिवस के रुप में मान्य रहेगा। इस दिन से ऋतु परिवर्तन भी होगा है। हेमंत ऋतु का अवसान और शिशिर ऋतु के आगमन का भी भी यही दिन है।

संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान और सूर्य को अर्घ्य देने से समस्त पापों का तिरोहित हो जाता है, ऐसी धर्म शास्त्रीय मान्यता है। इस दिन तिल दान, तिल का भोजन, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल की मालिश, तिल का हवन और तिल से तर्पण की भी मान्यता है ‌, इससे पूर्व जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। धर्म सिन्धु के अनुसार संक्रांति पुण्य काल में सफेद तिलों से देवताओं तथा काले तिलों से पितरों का तर्पण करना चाहिए। मकर संक्रांति के दिन शंकर जी के मन्दिर में तिल के तेल का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

संक्रांति के बाद जन्म, मृत्यु दोनों शुभद रहते हैं। धर्म शास्त्र में कहा गया है कि जीवन के सभी शुभ और महत्वपूर्ण कार्य दोपहर के समय, शुक्ल पक्ष और उत्तरायण में करने चाहिए।घाघ भड्डरी के अनुसार सूर्य संक्रांति के चौथे दिन शुभ मुहूर्त होता है। इस दिन शुभ कार्य हेतु मुहूर्त शोधन की आवश्यकता नहीं है। उत्तरायण काल में जन्मे व्यक्ति का जीवन अच्छा रहता है। उत्तरायण काल जीवन ही नहीं बल्कि मृत्यु के लिए भी शुभ मुहूर्त है। इसलिए भीष्म पितामह ने महाभारत के समय देहत्याग हेतु मृत्यु शैय्या पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा की थी। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि उत्तरायण के 6 महिने में मरे हुए योगिजन ब्रह्म को ही प्राप्त होते हैं।

मकर संक्रांति से सूर्य मकर से मिथुन तक की छह राशियों में रहते हुए उत्तरायण कहलाता है। उत्तरायण के छह मासों में सूर्य क्रमश: मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृषभ और मिथुन – उन छह राशियों में भ्रमण करता है। इसलिए उत्तरायण में सूर्य मकर राशि से कर्क की ओर प्रस्थान करता है। परम्परागत धर्म के अनुसार दक्षिणायण के छह मासों को देवताओं की एक रात्रि मानी जाती है।इसी तरह उत्तरायण के छह मासों में देवलोक में दिन‌ रहता है। उत्तरायण के समय पृथ्वी देवलोक के समय सम्मुख गुजरती है, इसलिए स्वर्ग के देवता उत्तरायण काल में धरा पर घूमने के लिए आते हैं और पृथ्वी पर मानव द्वारा दिया गया हविष्यान्न आदि स्वर्ग के देवताओं को प्राप्त हो जाता है। अतः उत्तरायण काल एक पवित्र समय है। दान- पुण्य के कार्य उत्तरायण काल में अत्यंत पवित्र रहते हैं। मकर राशि में पहुंचते ही उत्तरायण प्रारंभ हो जाता है। इसे उत्तरायण पर्व कहा जाता है। सूर्य जब धनु में स्थित होता है तो रातें बड़ी होती हैं और दिन छोटे होते हैं। मकर संक्रांति के बाद दिन के समय में शनै:- शनै: बढ़ोतरी होना प्रारंभ हो जाता है।

हिन्दू धर्म में सूर्य को दिव्य और पूज्य माना जाता है। सूर्य का प्रत्येक माह में राशि परिवर्तन होता है।एक राशि 30 अंश की होती है। सूर्य के एक अंश की लम्बाई लगभग 24 घंटे में पूरी होती है। अयनांश चाल के अन्तर के कारण क़रीब 72 वर्ष में एक अंश की लम्बाई की भिन्नता आती है। प्रत्येक वर्ष धनु राशि से मकर राशि में सूर्य का आगमन 30 मिनट पश्चात होता है। अतः प्रत्येक तीसरे वर्ष मकर संक्रांति एक घंटे बाद होता है। इस प्रकार 72 वर्षों में मकर संक्रांति 24 घंटे या एक दिन पश्चात होती है। मकर संक्रांति इन दिनों 14 या 15 जनवरी को मनाई जाती है। इस वर्ष यह 15 जनवरी को मनाई जाएगी। सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में गमन की घटना या समय संक्रांति के नाम से जानी जाती है। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय ही सौर मास के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार प्रत्येक संक्रांति की काल गणना की दृष्टि से उपयोगिता है। संक्रांति से ही ऋतुएं परिवर्तित होती है।

मकर संक्रांति प्रधानत: सूर्योपासना का त्योहार है। भारतीय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परम्परा में सूर्य को विशेष स्थान प्राप्त है। धार्मिक महत्ता से अलग सूर्योपासना की पर्यावरणीय और सामाजिक उपयोगिता है। सूर्योपासना और पवित्र नदियों में स्नान अन्य प्रकार से मानव की प्रकृति पर निर्भरता को ज्ञापित करता है। प्राकृतिक परिवर्तन से मानव में आशावादिता और जीवन्तता का प्रार्दुभाव होता है। यह बदलाव कृषि कार्यों के लिए अत्यधिक फायदेमंद रहता है।

संक्रांति दो ऋतुओं के सन्धि काल का द्योतक होने के साथ ही किसी की विदाई, तो किसी के आगमन का अवसर भी है। सन्धि से पूर्व और पश्चात भावुक क्षणों को सहेजने, समेटने के दरम्यान सुव्यवस्थित तथा उद्यत होना नितांत आवश्यक है। इसमें जहां एक की विदाई होती है वहीं दूसरे का आगमन होता है।जाने वाले के प्रभाव में कमी तथा आने वाले के प्रभाव में वृद्धि होती है, इसलिए इस सन्धि बेला का संयम के साथ स्वागत करना चाहिए। इसके प्रति कृतज्ञता का भाव और जो आने वाला है, उसके प्रति विनय का भाव यही भारतीय संस्कृति का मूल मन्त्र हैं। हमारे वहां भारतीय संस्कृति में न केवल वर्तमान अपितु अतिक्रान्त को भी उपयोगी माना गया है। परिवर्तन के मूल सनातन तत्व को हमारे महर्षियों ने अपने जीवन दर्शन का स्तम्भ माना है। ग्रहों और उपग्रहों की चाल में परिवर्तन से सम्पूर्ण प्रकृति पर प्रभाव पड़ता है, इसलिए व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव सम्भव है।हमें संक्रांति काल के दैहिक और मानसिक दोनों ही तरह के बदलाव का समग्र रुप में सकारात्मक और गुणात्मक उपयोग करना चाहिए। संयम के साथ अपने अन्दर ऐसी दृढ़ता उत्पन्न की जाए,ताकि यह बदलाव हमें बहा न सके।

बदलाव का त्योहार संक्रांति ख़ासतौर पर हमारी संस्कृति की देन है, जिसमें काल की मान्यता चक्र के रुप में दी गई है। संक्रांति, संस्कृति और संस्कार इन तीनों का मिलन, हमें जीवन जीने का सामर्थ्य प्रदान करता है। यदि सन्धिबेला में बुद्धि संतुलित न हो, तो भौतिक, दैहिक और दैविक संताप हो सकते हैं। इसलिए यह मन, बुद्धि और चेतना को शुद्ध करने का अवसर है। संक्रांति परिवर्तन से संलग्न है और परिवर्तन प्रकृति का स्थाई नियम है। अतः हमें प्रकृति के सान्निध्य में रहने की आवश्यकता है। प्रकृति के पास इसका नियम है।

मकर संक्रांति के समय सम्पूर्ण देश के कई भागों एवं स्थानों में भांति – भांति के त्योहार प्रारंभ हो जाते हैं। दक्षिण भारत में दूध और चावल की खीर तैयार कर पोंगल अर्थात पाकोत्सव मनाया जाता है।इसी तरह पंजाब में लोहड़ी मनाई जाती है। इस बहाने शीतकाल में अग्नि जलाकर नाचने गाने तथा तिल, गुड़, मूंगफली खाने की परम्परा भी है। महाराष्ट्र में तिल, गुड़ वितरित किया जाता है।इस अवसर पर कहा जाता है कि तिल, गुड़ लीजिए और मीठा- मीठा बोलिए। बिहार में तिलवा बनाते हैं और बंगाल में पइभे बनाते हैं। उत्तरी भारत के अनेक तीर्थ स्थलों पर नदियों के तट पर स्नान तथा अपने पितरों एवं परिजनों के आत्मा की शान्ति के लिए इकट्ठा होती है। धर्म ग्रन्थों के अनुसार सूर्य का यह सन्धिकाल मृत आत्मा की शान्ति के लिए, पितरों की मुक्ति के लिए तथा अत्यधिक कष्टों के निवारण के लिए है। ग्रन्थों में वर्णित है कि यह समय सुख प्राप्ति और नूतन चेतना के सृजन का काल है। ऐसे में इस दिन बच्चों का जन्म होना सौभाग्य का परिचायक है। ग्रन्थों में उल्लेख है कि द्वापर काल में सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा में भीष्म पितामह ने बहुत दिनों तक बातों की शैय्या पर अपने प्राणों को रोके रखा था‌। सूर्य का प्रतिनिधि तांबा या स्वर्ण है, अतः संक्रांति के कल्याणकारी समय में स्नान करके एक तांबे के लोटे में शुद्ध पानी भरकर, उसमें रोली,अक्षत, लाल फूल,तिल तथा गुड़ मिलाकर, पूर्व दिशा में खड़े होकर दोनों हाथों को ऊंचा करके आराध्य देव सूर्य को आस्था एवं भक्ति भाव से गायत्री मंत्र या निम्नलिखित मन्त्र के साथ अर्घ्य प्रदान करना चाहिए –

” ऊं घृणि: सूर्याय नमः श्री सूर्य नारायणाय अर्घ्यं समर्पयामि।।”

देश के प्रत्येक भाग में इस दिन होने वाले पर्व सूर्य कै उत्तरायण से मिलने वाले सौभाग्य के द्योतक होते हैं। विष्णु के इस मास के देवता होने के कारण गंगासागर के पवित्र जल में स्नान, ध्यान और दान – पुण्य करने से अच्छे भाग्य का संवर्धन होता है। स्नान के समय सूर्य को अर्घ्य देना उपयोगी होता है। सूर्य का मकर राशि में जाने से निश्चित पुण्य काल में स्नान और दान करने वाला व्यक्ति महत पुण्य का अधिकारी होता है।जो पुरुष तीर्थ स्थल में ऐसा करने में असमर्थ होते हैं, उन्हें घर पर सूर्य को अर्घ्य देकर तिलकूट का दान और सूर्य का पूजन कर पुण्य प्राप्त कर सकते है।

उत्तरायण के महीने में 6 महीनों में सूर्य का क्रमशः मकर ,कुंभ, मीन, मेष, वृषभ और मिथुन इन 6 राशियों पर भ्रमण करता है तथा उत्तरायण में सूर्य मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर गमन करता है। सनातन धर्म के अनुसार दक्षिणायन के 6 महीनों को देवताओं की एक रात्रि मानी जाती है और इसी प्रकार उत्तरायण के 6 महीने में देवलोक में दिन रहता है। उत्तरायण के समय पर पृथ्वी देवलोक के सामने से गुजरती है। इसलिए स्वर्ग के देवता उत्तरायण काल में मनुष्यों द्वारा दिया गया हविष्यान्न आदि ग्रहण कर प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए उत्तरायण का काल एक पूर्ण कहा जाता है। शुभ कार्यों के लिए यह उत्तम रहता है। मकर राशि में प्रवेश करते ही सूर्य उत्तरायण हो जाता है। इसे उत्तरायण पर्व कहा जाता है। सूर्य जब धनु राशि में होता है तो रातें बड़ी और दिन छोटे होते हैं और मकर संक्रांति के बाद दिनमान की अवधि धीरे-धीरे बढ़ना शुरू हो जाती है। मकर संक्रांति का पुण्य काल 20 घटी अर्थात 8 घंटे तक रहता है। ऐसा पूर्वकालामृत नामक ग्रन्थ का कथन है।

सूर्य का एक माह में राशि परिवर्तन होता है। सूर्य एक अंश की राशि 24 घंटे में पूरा करता है। अयनांश गति में भिन्नता के कारण लगभग 72 वर्षों में एक अंश की दूरी का अन्तर आ जाता है। प्रतिवर्ष धनु राशि से मकर राशि में सूर्य का प्रवेश 20 मिनट देर से होता है। इसलिए प्रति तीसरे वर्ष मकर संक्रांति एक घंटा देरी से होता है।इस प्रकार 72 वर्षों में मकर संक्रांति 24 घंटे या एक दिन बाद होती है। दैनिक निर्णय ग्रह सारणी में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति को सूर्य के अंशों पिछले वर्ष की तुलना में 6 अंशो तक का अन्तर आ जाता है। यहां यह बता देना समीचीन होगा कि वर्तमान में अंयनाशों‌ की गति बढ़ रही है। यह बात पंचांग द्वारा सिद्ध है। यदि पिछले वर्ष संक्रांति रात को बारह बजे हुई तो यों तो इस वर्ष प्रातः 6 बजे के बाद ही होगी। पंचांग गणित सिद्धांत के अनुसार प्रति 6 घंटा बिलम्ब से होती हुई, संक्रांति प्रत्येक चौथे वर्ष में 24 घंटे अर्थात एक दिन की देरी से होती है। परन्तु अंग्रेजी तारीख के अनुसार चौथे वर्ष में 15 तारीख की , आंठवे वर्ष में 016 तारीख की और बारहवें वर्ष में 17 तारीख को की संक्रांति अंकित नहीं होती है, क्योंकि वर्ष की गणना सौर दिनों पर आधारित है। एक वर्ष में 365 दिन 6 घंटे होते हैं।यह 6 घंटे प्रति वर्ष जुड़ते- जुड़ते चौथे वर्ष में एक दिन के बराबर हो जाते हैं। अतः अंग्रेजी कैलेंडर में प्रति चौथा वर्ष 366 दिन का होता है। 366 दिन होने पर वह वर्ष दीप ईयर के नाम से जाना जाता है।दीप ईयर में फरवरी का महीना 28 के स्थान पर 29 दिन का होता है।

मकर संक्रांति का राशिगत प्रभाव

मेष राशि –

सुख सम्पत्ति में वृद्धि का योग है। व्यापार में वृद्धि होगी। घर में खुशहाली के आगमन होगा। दांपत्य जीवन में मधुरता का आगमन होगा।

वृष राशि-

धन‌ लाभ, आर्थिक स्थिति सशक्त होगी। अवरुद्ध कार्य पूरे होंगे। जीवन के प्रगति की रफ्तार में इजाफा होगा।

कर्क राशि –

संतोष का आगमन होगा। समय का अनुकूल साथ मिलेगा। मित्रों की सहायता से कार्य पूरे होंगे।

सिंह राशि –

आर्थिक संसाधनों में वृद्धि, नयी योजना को पूर्ण करने का समय और नौकरी में प्रगति और उत्थान की सम्भावना बनेगी।

कन्या राशि –

धन हानि की सम्भावना, कुछ अवरोधों का सामना करना पड़ेगा। प्रगति की रफ्तार मंद रह सकती है।

तुला राशि –

व्यापार और कारोबार में लाभ, नई योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए बेहतर समय।

वृश्चिक राशि –

धार्मिक लाभ प्राप्त होगा। आध्यात्मिक गतिविधियों की रफ्तार और परिवार में सुख शांति का आगमन होगा।

धनु राशि –

कष्ट, मौसमी बिमारियों का प्रकोप, कुछ लाभ में न्यूनता।

मकर राशि –

सम्मान की प्राप्ति होगी। कार्यों का अच्छा मूल्यांकन होगा। सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।

कुंभ राशि –

भयदायक रहेगा। अशांति, घरेलू समस्याओं का सामना की स्थिति।

मीन राशि –

ज्ञान वृद्धि, विद्यार्थियों को बहुत अनुकूल समय रहेगा। प्रतियोगी परीक्षा में सफलता की प्राप्ति। पठन पाठन में अभिरुचि बनी रहेगी।

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