(लेखक दूरदर्शन के अंतर्राष्ट्रीय कमेंट्रेटर, वरिष्ठ पत्रकार)
लोकसभा चुनाव में जनता ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को पूर्ण बहुमत देते हुए देश की बागडोर एक बार पुनः नरेंद्र मोदी के हाथ सौंपने का स्पष्ट जनादेश दिया है। किंतु संख्याबल देश की अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा। इसी वजह से विजयी होने के बावजूद राष्ट्रवादी जनमानस में एक अजीब सी मायूसी है। विशेष रूप से अयोध्या में भाजपा की हार मोदी समर्थकों को पचाये नहीं पच रही है। अयोध्या हार की निराशा सोशल मीडिया पर खीझ बनकर उभरती दिखाई पड़ रही है। पिछले दो-तीन दिनों से हमारे अनेक मित्र इस हताशा में अयोध्यावासिसों को अनेक ‘विशेषणों’ से नवाज़ते उन्हें भला-बुरा कहते दिखाई पड़ रहे हैं। यहाँ तक कि कुछ तो इस बात की पुरज़ोर अपील कर रहे हैं कि ‘जो भी रामभक्त रामलला के दर्शन के लिये अयोध्या जायें वो अयोध्या वालों से मिठाई-फल-प्रसाद तो दूर, दाना-पानी तक न ख़रीदें।’
उनसे आग्रह है ऐसा न करें। मैं समझ सकता हूँ कि रामनगरी में रामभक्तों की हार गले उतरने वाली नहीं। किंतु भावावेश में इस तरह की अपील अयोध्या वासियों के प्रति न केवल अन्याय है, निर्ममता है बल्कि कदापि उचित नहीं। ध्यान देने वाली बात है अयोध्या में भाजपा के पराजित प्रत्याशी को करीब पाँच लाख (4,99,722) वोट मिले हैं। निसंदेह इन पाँच लाख वोट में अयोध्याधाम के वो रामभक्तों भी शामिल हैं जो भो वहाँ भोग-प्रसाद , पूजन सामग्री और आगंतुक दर्शनार्थियों की खानपान व्यवस्था से सम्बंधित व्यवसाय या सेवा-प्रकल्प संचालित कर रहे हैं। यहाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि फैज़ाबाद लोकसभा सीट में कुल पाँच विधान सभा क्षेत्र हैं।
निर्वाचन आयोग के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इनमें अयोध्या विधानसभा ही वो एकमात्र क्षेत्र है जहाँ के मतदाताओं ने भाजपा प्रत्याशी को बढ़त दी, हार अन्य विधानसभा क्षेत्रों से हुई है, तो फिर राममंदिर से जुड़े व्यवसाइयों के प्रति इस तरह के रोष का क्या औचित्य..? सत्य तो यह है कि इस हार से अयोध्या विधानसभा क्षेत्र के लोग शेष देश-दुनिया के सनातनियों से कहीं ज़्यादा दुखी हैं, आहत हैं। व्यक्तिगत वार्ता-अनुभव के आधार पर बता रहा हूँ कुछ तो फूट फूट के रोये हैं। वो अपने ऊपर लग रहे अनर्गल आरोप और निरर्थक अपीलों के बावजूद कोई प्रतिकार न करते हुए शालीनता से मौन-शर्मिंदगी प्रकट कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में वो उपेक्षा, बहिष्कार-तिरस्कार नहीं अपितु सहानुभूति के पात्र हैं। उन्हें हमारे आपके स्नेहिल बोल-वचन मरहम की आवश्यकता है। ग़ैरज़िम्मेदाराना हिक़ारतपूर्ण व्यवहार की तो कदापि नहीं।
उत्तर प्रदेश समेत अन्यत्र भाजपा के अपेक्षानुरूप परिणाम न आने का विश्लेषण किसी अन्य लेख में करूँगा किंतु अयोध्या की बात चल रही है तो आइये समझने का प्रयास करते हैं कि यह अप्रत्याशित आख़िरकार घटा कैसे..! राजनैतिक इतिहास दर्शाता है कि फैजाबाद लोकसभा से कोई भी सांसद तीसरी बार जीत का स्वाद नहीं चख पाया। इतना ही नहीं प्रायः दो बार सांसद चुने जाने वाले राजनेता की राजनैतिक पारी की भी इतिश्री हो गई। वो चाहे मित्र सेन यादव रहे हों, निर्मल खत्री या फिर बजरंगी दिग्गज विनय कटिहार, ये सब इस मिथक का शिकार होने के साक्षात दृष्टांत हैं। दूसरी बार सांसद होने के साथ लल्लू सिंह पहले ही इस मिथक की नीम चढ़े बैठे थे, करेला वो हो गये अपने मतदाताओं की उपेक्षा करके।
सर्वविदित है कि अयोध्याधाम में बड़े पैमाने पर विकास कार्य हो रहे हैं। किसी भी पौराणिक नगर के आधुनिकीकरण का दंश वहाँ के स्थानीय निवासियों को झेलना पड़ता है। अयोध्या के निवासी भी उससे अछूते नहीं हैं। पता नहीं कितने लोगों के मकान टूटे, कितने ही विस्थापित हुए। विकासकार्यों के कारण लंबे समय से रोजमर्रा का आम जनजीवन अस्त-व्यस्त है सो अलग। सूत्र बताते हैं इन सब स्थितियों के बीच जब भी स्थानीय निवासी या व्यवसायी-व्यापारी सांसद के पास अपनी समस्या लेकर जाते तो बजाय उनके प्रति सहानुभूति या सहयोगपूर्ण रवैया अपनाने के उनका टका सा जवाब होता था – ‘इसमें हम क्या करें, सरकार जाने’।
बल्कि यहाँ तक कि उनके बड़बोले बोल राजनैतिक शिष्टता लाँघ धृष्टता की सीमा छूते यहाँ तक फूट पड़ते कि ‘आप सबके ही मुताबिक आपने तो मोदी को वोट दिया है मुझे थोड़े नहीं, तो जाइये अब उन्ही के पास। वही आपकी समस्या का समाधान करेंगे।’ इतना ही नहीं विपक्ष द्वारा संविधान समाप्त करने के फैलाये जा रहे भ्रम को उन्होंने बीच-चुनाव अपने मूर्खतापूर्ण बयान से हवा देते बल प्रदान करने का काम किया। उनके उस विवादास्पद बयान के बाद भाजपा-संगठन के एक उच्च पदस्थ स्वयं-सेवक से मेरी बात हुई थी। उन्होंने निराशा व्यक्त करते कहा था ‘क्या कहें पँडित जी, नियमानुसार हमारे पास अब प्रत्याशी बदलने का विकल्प नहीं है, अन्यथा हम तत्काल ये कदम उठाते। ये ख़ुद तो हारेगा ही अन्य सीटों को भी नुकसान पँहुचायेगा।’ समय रहते यदि भाजपा ने वहाँ कोई और प्रत्याशी उतारा होता तो परिणाम कुछ और होता।
अब आते हैं दूसरे कारण पर। राम मंदिर के भव्य नवनिर्माण के बाद से अयोध्या में सामान्य रामभक्तों का तांता लगा रहने के साथ ही लगातार वीआईपी, वीवीआइपी मूवमेंट बना रहता है। ऐसे में जब-तब जगह जगह बैरियर लगाकर या अन्य रोकटोक से न केवल सामान्य आवागमन अवरुद्ध कर दिया जाता है बल्कि बड़े इलाके के स्थानीय निवासी अपने ही घरों में कैद कर दिये जाते हैं। अपरिहार्य स्थिति में भी यदि कोई स्थानीय निवासी इसका उल्लंघन कर बैठता है तो उसे संवेदनहीन बेलगाम प्रशासन की प्रताड़ना का शिकार बनना पड़ता है। वाहन-चालान में अचानक हज़ारों की तादात में आई बाढ़ इस तथ्य की तस्दीक के लिये पर्याप्त है। एक दो दिन की बात हो तो ये सब धाँधागर्दी कोई बर्दाश्त भी कर ले, लेकिन यही सब जब रोज़मर्रा की बात बन जाये तो कभी कहीं तो गुस्सा फूटेगा न !
तीसरा बड़ा कारण है अयोध्यावासियों को अपने ही शहर में बेगाना बना दिया जाना। अयोध्या आज देश ही अंतर्राष्ट्रीय आकर्षण का केंद्र है। हज़ारों लाखों की तादात में देशी विदेशी दर्शनार्थी, पर्यटक राम लला की एक झलक पाने को लालायित चले आ रहे हैं। अनुशासन बनाये रखने के लिये मंदिर प्रबंधन ने दर्शन की जो व्यवस्था बनाई है उसमें स्थानीय निवासियों का कहीं कोई ध्यान नहीं रखा गया है। वीआईपी वीवीआइपी के लिये तो सुगम दर्शन या अन्य विशिष्ट व्यवस्थाएं हैं किंतु स्थानीय दर्शनार्थी..!
उसे मंदिर प्रबंधन ने सामान्य दर्शनार्थियों की तरह ही ‘सब धान बाइस पसेरी’ केटेगरी में ही छोड़ दिया है। ये सरासर असंगत है, अन्याय है, ग़लत है। उसे और (सीमित संख्या में) उसके घर आने वाले नाते-रिश्तेदारों के लिये प्राथमिकता के आधार पर कोई व्यवस्था होनी ही चाहिये। अन्यथा ये वीआईपी, वीवीआइपी व्यवस्था भी समाप्त कर सबको एक समान श्रेणी में खड़ा कीजिये।
इन सबके साथ ही जातीय समीकरण साधने में चूक और स्थानीय स्तर पर संगठन का मात्र ‘मोदी मैजिक रामभरोसे’ बैठ पल्ले दर्ज़े की शिथिलता बरतना अयोध्या में भाजपा की हार का मुख्य कारण हैं। लेकिन ध्यान रहे ऐतिहासिक-पौराणिक तथ्य गवाह हैं कि अयोध्या बनवास के बाद ही ‘भव्य राज्याभिषेक’ करती है। कहीं 24′ में अयोध्या में भाजपा की हार 29′ में उसके दिग्विजय का संकेत तो नहीं! बहरहाल, भगवान के लिये रामभक्त अयोध्य्वासियों पर उपेक्षापूर्ण कटाक्ष के साथ उनका तिरस्कार करना बंद कीजिये।