कहानी : झूठे कहीं के

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प्रतिमा श्रीवास्तव, लेखिका

झूठे कहीं के

” का भई  उठे का नाई का आज ; देर हुई जाई उठतो प्रभु ,  मालती देवी हनुमान जी के मुंह पे घंटी बजाते हुए बे चैनी से अपने सपूत रमन की तरफ मुंह घुमाये उसके सिरहाने रखी घड़ी की तरफ देखते हुए बोलीं, खून न पियो सवेरे सवेरे अबहीं उठेंगे… तुम अपने भगवान का जगाओ जाये : रमन चिढ़ गया, हमका का पड़े रहो बिस्तर तोड़ो अबहीं तुमाये बाप आरती करिहें त झठठ से उठिहो ; मालती देवी बड़बड़ाते हुए ज़ोर-ज़ोर से आरती गाते हुए बीच-बीच लड़के को घूर लेतीं। सोने न देना ….कसम है तुमको अम्मां, अऊर बताये रहे हैं कौनो दिन हनुमान जी परकट होये के तुमहरे हाथ जोड़ लेंहे के ऐ माई माफ करा हमरे मुहें पे घंटी न बजावा करो …जौन चाही हम देब पर हमका माफ करो ‘ – रमन की नींद अब टूट चुकी थी सो .माँ से चुटकी लेते हुए वो उठ गया। मालती देवी खिसिया के चुपचाप चाए बनाने चल दीं।

चाए लेके आईं तो सामने का नजारा देख उनका पारा चढ़ गया… जोशी जी बड़े जोश के साथ दीवान पे चढे ट्यूबलाईट का चोक घुमा-घुमा के चेक करने में पूरी तरह मगन थे के मालती देवी के आने का भी उन्हे पता नहीं चला : “बत्ती काहे पंखा, मोटर मसीन सबही बनाये डारो गुप्ता जी के हुआं भी मोटर खराब है ऊँहुन के हियां चले जाओ बस्ता उठाये केर ..मालती देवी गरजीं; जोशी जी जब से रिटायर हुए तबसे बिजली के सामान का बैग लिए कुछ न कुछ ठीक करते पाये जाते थे, मालती देवी इनकी इस आदत से तंग आ चुकी थीं।

अबही हम काम बताई त दूनों बाप बेटा कान म तेल डाल लेहें …ई सब खुरफात का टैम है हम कहेन के दही लाये देयो त ऊ नाई सुनाई परा….मालती देवी का गुस्सा और बढ़ने लगा…चाए की ट्रे मेज पे पटक के जोशी जी को घूर अपना कप उठा के दोनो पैर ऊपर कर सोफे पे जम गई ….जोशी जी नीचे उतर के जब तक हाथ मुंह धो के आये उनकी चाए ठंडी हो चुकी थी ……मालती देवी की तरफ देख के मुस्कुराये और उनके सामने वाली कुरसी खींच के बैठ गए और लगातार मुस्कराते हुए कभी चाए के कप को तो कभी मालती को देखने लगे।

का है ? हम अब नाय जयबे चाए गरम करे …समझयो ……. तुमार रोजे का काम आये … हम गर्मी म मर मर चाए खाना बनाई तुम दूएनो बाप बेटा हमका कौनो खातिरे म नाय लावत हो …..का मजाल जो हमार कौन काम तुम लोग कै देयो ” मालती देवी रुआंसी होने लगीं
” अरे!…..काहे अबही रज्जो के हियां चले क कहै रहो त गए नाय रहन …जोशी जी छोटी साली साहिबा को याद कर मुस्कियाये …….हाँ बस रज्जो क याद करो पता नहीं हमसे काहे बियाह करे रहो ….. मालती देवी खिसिया के बोलीं …बात त रज्जो से ही चली रहे तुम बीच म आई गईं ..जोशी जी ने तपी हुई पत्नी को और जलाया।

अब मालती देवी को जैसे बिच्छू काटा कप मेज पे धर उठ के जाने लगीं तो जोशी जी उठ के बीच मे खड़े हो गए …..” कहाँ चलीं ?? तुमका का कहूँ जाई …वो तुनक के बोलीं ….ऐसे कैसी जाई चाए त गरम कर लाओ ; जोशी जी ने बीवी को और सुलगाया !!! हम काहे बनाई बुलाओ अपनी चाहेती रज्जो को वही देहें अब चाए खाना तुमका …….मालती देवी की आँख मैं भर आये आंसू अब गालों पे उतर आये ….बुला त लें मुला राजीव आये न देहें ,,, जोशी जी आज पूरी तरह बीवी को सताने के मूड मे थे साढू का नाम लेके मुंह लटकाते हुए बोले ….पूछ लेयो आये दें त हम ले आयें रज्जो का।

अब तक मालती देवी बुरी तरह चिढ़ चुकी थी बिना उत्तर दिये जाने लगीं तो जोशी जी ने हाथ पकड़ के रोक लिया …मालती देवी मुंह दूसरी तरफ घुमा के आंसू रोकने की नाकाम कोशिश करती हुई नाक सूँ सूँ कर हाथ छुड़ा के जाने लगीं ….जोशी जी ने पीछे से पल्ला पकड़ रोकने की कोशिश की तो मालती देवी घूम के कमर पे हाथ धर के घूरने लगीं ….का है ?? अाओ बैठो आये …जोशी जी अब संधि प्रस्ताव रखते हुए बोले ….काहे आयें ?? अरे तुम तो बुरा मान जउती हो बड़ी जल्दी …भले रज्जो को हम पसंद आये थे पर हमका त तुमही पसंद थीं ,,, नाक सुरकती मालती देवी को खींच के सोफे पे बैठाते हुए जोशी जी बगल मे बैठ गए और उनका हाथ पकड़ के बोले।

अरे जाओ महा के झूट्ठे हो तुम …..मालती देवी तनिक मुस्कुराई ……न मानो सच त सच रही … जोशी जी अपने मकसद मे सफल होते देख अपने दोनो हाथ सर के पीछे लगाते हुए बोले…..अब मालती देवी, मुंह नीचे करें मुस्कुरा रहीं थीं ….अच्छा हटो जाये देयो जाई दूसर चाए लाई जाये ….सब जानीत हैं ए सब ड्रामा चाए खातिन किये हो न …..जोशी जी मुस्कर के बोले अब इत्ता कह रही हो त ले आओ ….पी लेई; मालती देवी मेज से कप और ट्रे उठा के जाते हुए मुड़ीं फिर जोशी जी की तरफ देख मुंह बिचका के बड़बड़ाईं ………झूट्ठे कही के।

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