बंगाल के विद्वान महापुरुष थे ईश्वरचंद विद्यासागर। उन्होंने वेदशास्त्रों का गहराई से अध्ययन किया था। वे वैदिक सनातन परंपरा के परम ज्ञानी थे। उन्होंने बंग समाज में फैली कई कुरीतियों का विरोध किया। वे पहले ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने विधवा विवाह का पुरजोर समर्थन किया था। परंपरा यह थी कि विधवाएं वाराणसी और वृंदावन भेज दी जाती थीं।वहां वे कंटकाकीर्ण जीवन बिताती थीं। विद्यासागर ने शास्त्रों से प्रमाण देकर विधवा विवाह का समर्थन किया। उन्होंने ब्राह्मण समाज में फैले कुलीनता के भ्रम को भी दूर किया।कुलीन ब्राह्मण अक्सर कई विवाह कर लेते थे। वे अपना समय बारी बारी ससुराल में बिताते थे। उनकी पत्नियां उनका इंतजार करती थीं। वे आराम से ससुराल में भोजन करते और पत्नी का सुख भोगते। कुछ समय बाद वे अगली पत्नी के पास चले जाते।
इस कुरीति का विद्यासागर ने डटकर विरोध किया। वे एक पत्नीव्रत के समर्थक थे। एक दिन वे बंगाल के एक रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर टहल रहे थे। एक अंग्रेजी लिबास में लिपटा हिंदुस्तानी ट्रेन से नीचे उतरा। उसने आवाज लगाई, कुली कुली। उसके हाथ में एक सूटकेस था। सूटकेस का वजन भी ज्यादा नहीं था लेकिन वह अपनी शान बघारने के लिए कुली की मदद लेना चाहता था। विद्यासागर उसके पास पहुंचे। उन्होंने सूटकेस हाथ में लिया और पूछा आप कहां जाना चाहते हैं। हिंदुस्तानी अंग्रेज ने जवाब दिया मैं विद्यासागर जी के घर जाना चाहता हूं। क्या तुम मुझे वहां पहुंचा दोगे। विद्यासागर ने कहा उनका घर दूर नहीं है। मैं वहां तक आपको पहुंचा दूंगा।
विद्यासागर ने वह हल्का सूटकेस अपने सिर पर रख लियाऔर कहा, मेरे पीछे चले आइए। बाजार में सड़क पर लोगों ने विद्यासागर का यह रूप देखा तो हैरत में पड़ गए। वे कुछ पूछते उससे पहले ही विद्यासागर ने अपने होठों पर उंगली रखकर उन्हें चुप रहने का संकेत दिया। वे अपने घर पहुंच गए। उन्होंने सूटकेस सिर से उतारा और कहा यही विद्यासागर जी का घर है। हिंदुस्तानी अंग्रेज ने पूछा तुम्हारी मजदूरी कितनी हुई। विद्यासागर ने कहा जल्दी किस बात की है अभी आप विद्यासागर जी से बात करके स्टेशन जाएंगे तब मैं आपसे मजदूरी ले लूंगा। विद्यासागर अपने घर के पिछले दरवाजे से अंदर गए। उन्होंने आगंतुक को पास आने को कहा। हिन्दुस्तानी अंग्रेज विद्यासागर को देखकर हैरत में पड़ गया। उसने पूछा आप ही विद्वान विद्यासागर हैं। आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया।मैं अपनी करनी पर शर्मिंदा हूं।
विद्यासागर ने कहा आपने मुझे कुली समझा इसकी शर्मिंदगी आपको नहीं होनी चाहिए। शर्मिंदगी तो इस बात की होनी चाहिए कि आप इतना हल्का सूटकेस उठाने के लिए भी कुली चाहते थे। आत्मनिर्भरता हर एक के जीवन का अंग होना चाहिए। हिंदुस्तानी को अंग्रेजों की नकल नहीं करनी चाहिए। अंग्रेज यहां शासन करने के लिए आए हैं। वे झूठी शान बघारते हैं। हिंदुस्तानी अगर उनकी नकल करने लगे तो यह देश स्वतंत्र कैसे होगा। हिंदुस्तानी अंग्रेज शर्मिंदा हो गया। उसे विद्यासागर जी की बात का मर्म समझ में आ गया। विद्यासागर संस्कृत व्याकरण के प्रकांड विद्वान थे। उनकी रचना संस्कृत व्याकरण सारिणी मैंने हाईस्कूल में पढ़ी थी। आज उस पुस्तक की याद करते हुए मुझे उस महापुरुष को नमन करने का अवसर मिला।