मिसाल-बेमिसाल
विवेकानंद त्रिपाठी
गोरखपुर। “कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों “प्रख्यात नगमानिगार दुष्यंत की इन पंक्तियों का सीधा सा यही अर्थ है कि कोई भी कार्य कठिन नहीं होता, बस जरूरत है सच्चे मन और पक्के इरादे से काम करने की। अपने नेक इरादे और कड़ी मेहनत से इन पंक्तियों को चरितार्थ कर रहा है गोरखपुर जिले के बड़हलगंज स्थित शबनम मेमोरियल इंटर कॉलेज प्रबंधन। एक पिछड़े क्षेत्र में उच्चगुणवत्तापरक शिक्षा के साथ गंगा जमुनी तहजीब की खुशबू फैला रहा यह कॉलेज हर मायनों में बोमिसाल है।
करीब डेढ़ हजार बच्चों की (प्राइमरी और इंटर कॉलेज मिलाकर) संख्या वाले इस कॉलेज के अनुशासन और पढ़ाई के स्तर का अंदाजा उस समय लगा सकते हैं जब कक्षाएं चल रही होती हैं। लगता है आप किसी कॉलेज में नहीं बल्कि शान्त, सुंदर उपवन में आए हैं। यहां के जर्रे जर्रे से एक ही आवाज आती है हम होंगे कामयाब एक दिन, मन में है विश्वास। आज से कोई 33 साल पहले स्थापित इस शिक्षा संस्थान ने गांव की पगडंडियों और गुरबत के बीच पलकर आए उन बच्चों को अपने सपनों में रंग भरने के लिए उम्मीदों का अनंत आकाश दिया है जिनके सपने सुविधाओं के अभाव में बेमौत मर जाते थे।
ऐसे पड़ी इस संस्थान की नींव :
मरहूम हाजी बशीर अहमद की प्यारी सी पोती और उनके बड़े बेटे इम्तियाज अहमद की बेटी थी शबनम। उम्र कोई 5-6 साल रही होगी। साल 1988-89 में शहर के भीतर ही एक बेलगाम चालक ने सड़क पार करते समय उसे कुचल दिया। शबनम की मौत ने हाजी साहब के पूरे परिवार को हिलाकर रख दिया। बेहद हंसमुख इस बच्ची की मौत ने मानों घर की रौनक ही छीन ली।
इस परिवार के दो होनहार बेटों डॉ. फैयाज अहमद और मुमताज अहमद (पीसीएस) ने उसकी याद को जिंदा रखने के लिए उसके नाम पर तालीम देने के लिए शबनम मेमोरियल शिक्षण संस्थान की बुनियाद रखी। वही शबनम हजारों बच्चों और बच्चियों की सांसों में जिंदा होने के साथ उनके सपने साकार करने का माध्यम बन गई है।
कॉलेज की छुट्टी होने पर जब सैकड़ों की संख्या में नीले ड्रेस में बच्चियां एकसाथ निकलती हैं तो लगता है समूची फिजां में अनेक शबनमों की मुस्कान फैल गई है। डॉ. फैयाज अहमद और हाल में ही उत्तर प्रदेश सरकार में वित्त नियंत्रक पद से अवकाशप्राप्त मुमताज अहमद के समर्पण और कठिन परिश्रम और ईमानदारी के चलते यह शिक्षण संस्थान बड़हलगंज के सुदूर गांवों में गुणवत्तापरक शिक्षा की मिसाल बन गया है।
प्रबंधन कमेटी के नायाब हीरे :
कहते हैं किसी काम को सही नीयत से शुरू किया जाय तो बरकत के रास्ते अपने आप खुलते जाते हैं और समर्पित लोग जुड़ते चले जाते हैं। इस संस्थान के साथ यही चरितार्थ हो रहा है।
प्रबंधक डा. फैयाज अहमद ने इस संस्थान को बुलंदी की ओर ले जाने के लिए संस्थान के सदस्यों इकबाल अहमद,; फैजुलहक, फैयाज अहमद, अब्दुल हई और डॉक्टर परवेज कमल के योगदान की खुले दिल से सराहना की।
कहा उनके समर्पण का यह नतीजा है कि संस्थान दिनोंदिन सफलता के नए कीर्तिमान बनाने की ओर अग्रसर है। उनके कठिन परिश्रम और कुशल मार्गदर्शन से ही यह सब कुछ संभव हो पाया है। हम उनके योगदान के ऋणी हैं।
सभी सदस्य पूरी शिद्दत के साथ समर्पित हैं। फैयाज अहमद अंग्रेजी के प्रवक्ता हैं वहीं डॉक्टर परवेज कमल एक मशहूर डॉक्टर हैं। अपने अनुभव और कठिन परिश्रम से सभी सदस्य संस्थान को क्षेत्र ही नहीं देश के मानचित्र पर इसकी अलहदा पहचान बनाने में दिन रात जुटे हैं।
प्रबंधक डॉक्टर फैयाज अहमद कहते हैं हमें फख्र है कि हमारी टीम में इतने काबिल लोग शामिल हैं। जो बिना किसी चाह के पूरी तरह से निःस्वार्थ भाव से जुड़े हैं। उनके बगैर शबनम मेमोरियल शिक्षण संस्थान की कामयाबी अधूरी है।
कॉलेज के प्रचार का कोई इश्तहार नहीं :
मौजूदा समय में जहां अधिकांश शिक्षण संस्थान व्यापार का शक्ल अख्तियार कर रहे हों। प्रचार के लिए इश्तिहारों का अंबार लगा रहे हों ऐसे घोर व्यावसायिक युग में इस संस्थान ने अपनी स्थापना से लेकरआजतक कोई इश्तिहार नहीं लगाया। राष्ट्रकवि ने अपनी कालजयी रचना रश्मिरथी में कर्ण के शौर्य का वर्णन करते हुए लिखा है – तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतलाकर, पाते हैं जग से प्रशस्ति अपना करतब दिखलाकर। ठीक ऐसे ही इस कॉलेज ने अपनी गुणवत्ता के बल पर चहुंओर साख बनाई है। इश्तिहार क्यों नहीं लगाते हैं के सवाल पर मुमताज अहमद मुस्करा देते हैं। कहते हैं यहां पढ़ने वाले बच्चे और यहां का मेहनती स्टाफ अपने आप में इश्तिहार है। हम इश्तिहारों में अपनी तारीफों के पुल बांधकर लोगों को आकर्षित तो कर सकते हैं मगर लोगों के दिलों में नहीं बस सकते हैं। काम बोलना चाहिए। हमारा एकमात्र फोकस है बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा के साथ संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास। हमारा ध्येय व्यावसायिक कत्तई नहीं है। हम आने वाली नस्लों के लिए इसे ऐसा संस्थान बनाने का संकल्प लेकर चल रहे हैं जिससे अभिभावकों और बच्चों दोनों को इस संस्थान का हिस्सा बनने पर फख्र महसूस हो। हमें दुनियाबी और भौतिक संसाधनों को जुटाने की कभी भूख नहीं रही। यह खुदा की हम पर बड़ी नेमत है। हम आखिरी सांस तक इस संस्थान की साख पर आंच न आने देने के लिए कटिबद्ध हैं।
गंगा जमुनी तहजीब का रोल मॉडल :
मौजूदा समय में जहां मजहब के ठेकेदार फिजां में नफरत के बीज बोकर अमन औरआपसी भाईचारे में आए दिन खलल डालने की कोशिश में लगे हैं वहीं इस कॉलेज में आपसी मोहब्बत के इंद्रधनुषी रंग खिलते हैं। दोनों कौमों के बच्चों और शिक्षकों की हिस्सेदारी बराबर की है। बल्कि यूं कह सकते हैं कि इस कॉलेज में हिंदू शिक्षकों और बच्चे बच्चियों की संख्या मुस्लिम की अपेक्षा कहीं ज्यादा है। मगर सबके रगों में हिंदोस्तां की आन बान और शान पर मर मिटने का जज्बा हिलोरे लेता हुआ दिखता है। कॉलेज की कार्यवाहक प्रिंसिपल सरोज सिंह बताती हैं – हमें 28 साल हो गए इस विद्यालय में पढ़ाते हुए, अनुशासन और अपनापन का ऐसा कॉलेज और प्रबंधन मैंने कहीं नहीं देखा। यहां कभी पराएपन का एहसास तक नहीं होता। हमें यहां का शिक्षक होने पर गर्व महसूस होता है।
बिना परिचय दिए कॉलेज से निकलते बच्चों का फोटो खींचते हुए देखने पर यहां के अंग्रेजी शिक्षक अभिमन्यु यादव का टोकना यहां के शिक्षकों की प्रतिबद्धता और निगहबानी का अप्रतिम उदाहरण है। अभिमन्यु जी बच्चों बच्चियों की छुट्टियों के समय तबतक बहुत ही मुस्तैदी से हर चीज पर पैनी नजर रखते हैं जब तक कि वे कालेज कैंपस से निकल नहीं जाते। किसी तरह की कोई अफरा-तफरी न मचे इसको देखते हुए लड़के और लड़कियों की छुट्टियों के लिए 15 मिनट का अंतर रखा गया है। अंग्रेजी प्रवक्ता अभिमन्यु यादव भी कॉलेज प्रबंधन की नेकदिली और मृदुल व्यवहार के मुरीद हैं। कहते हैं यहां के जर्रे जर्रे में अपनापन दिखता है।
शत प्रतिशत नतीजे और जिले की मेरिट में स्थान :
अपने ध्येय वाक्य गुणवत्तापरक शिक्षा और इंसानियत के पैगाम पर शत प्रतिशत खरा उतरते हुए यहां के बच्चे लगभग हर साल जिले की मेरिट में अपना नाम दर्ज करा रहे हैं। शत प्रतिशत नतीजे और उनमें भी 80-85 फीसदी प्रथम श्रेणी में सफलता यहां का ब्रांड बन गया है। कोरोना के दो साल के कहर के बावजूद यहां के हाईस्कूल के छात्र अमृतांश ने गणित में 100 में 99 और यहीं इंटर की छात्रा अकीला तस्कीन ने अंग्रेजी में 100 में 99 अंक पाकर रिकॉर्ड बनाया है। यहीं के छात्र इकरामुल हक ने हाईस्कूल की परीक्षा में 90 फीसदी अंक पाकर पूरा कॉलेज टॉप किया है। उनके हर विषय में 90 प्रतिशत अंक हैं।
मेडिकल, शिक्षा और लोकसेवा आयोग में चयन :
यहां प्राइमरी से लेकर इंटर तक की पढ़ाई करने वाले जफर अहमद और अकीला यासमीन मौजूदा समय में डॉक्टर हैं और संस्थान का नाम रोशन कर रहे हैं। डॉ जफर का चयन तो उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग के पीएमएस संवर्ग में हुआ है। वे उन्नाव जिला अस्पताल में पोस्टेड हैं। यहीं से पढ़कर निकले नरसिंह सोनकर पटना में ट्रेड टैक्स ऑफिसर हैं। यहीं से पढ़े अमरनाथ मुराव पुणे में एक नामी कंपनी में साप्टवेयर इंजीनियर हैं। शिक्षा के क्षेत्र में यहां के ढेर सारे छात्रों का चयन हुआ है। उनकी लंबी फेहरिश्त है। यह सिलसिला साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है।
शबनम मेमोरियल प्राइमरी स्कूल :
जो शिक्षक, छात्र औसत के राष्ट्रीय मानक को पूरा करता है। यहां राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप एक कक्षा में 30 बच्चों का ही दाखिला लिया जाता है। गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं। इस साल इस मानक पर छात्रों की संख्या पूरी होते ही प्रबंधन ने दाखिले बंद कर दिए मगर अभिभावकों की दस्तक लगातार जारी है। खास बात यह है कि कोरोना काल के दौरान शैक्षणिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप होने के चलते जो बच्चे काफी पिछड़ गए हैं उनके लिए स्पेशल कक्षाएं चलाने की योजना बनाई गई है। संस्थान के प्रबंधक मुमताज अहमद ने खुद अपनी देख रेख और मार्गदर्शन में इन कक्षाओं के संचालन का जिम्मा उठाने का संकल्प लिया है। कहते हैं हम किसी बच्चे को अकेला नहीं छोड़ेंगे। कोरोना काल में उसकी पढ़ाई का जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई करने के लिए पूरी योजना बना ली गई है। कोरोना के कारण पिछड़े बच्चों की काउंसलिंग और पढ़ाई साथ साथ चलेगी।
सस्ती और गुणवत्तापरक शिक्षा का संकल्प :
इस संस्थान का एक ही मिशन है सस्ती और गुणवत्तापरक शिक्षा। यही कारण है कि बच्चों की आर्थिक,सामाजिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए शैक्षणिक शुल्क का ढांचा बहुत ही वाजिब रखा जाता है। यह शुल्क शिक्षा के इस महायज्ञ में आहुति की तरह है न कि उगाही की तरह। प्रबंधन इसके प्रति बहुत संवेदनशीलऔर संजीदा रहता है। गुणवत्तापरक शिक्षा से कोई समझौता न करना पड़े इसके लिए शिक्षकों को बाकी निजी शैक्षणिक संस्थानों से कहीं बेहतर वेतन देना प्रबंधन के उसूलों में शामिल है। शिक्षकों का इस संस्थान में लंबे समय तक रुकना इस हकीकत की तस्दीक करता है।
संघर्षों में तपकर पाया है यह मुकाम :
शिक्षा की यह मशाल यूं ही नहीं अपनी आभा बिखेर रही है। इसका बिरवा रोपने वालों ने जीवन के संघर्षों में अपने को तपाकर यह मुकाम हासिल किया है। जीवन के शुरुआती अभावों ने उन्हें अपने लक्ष्य से डिगाया नहीं बल्कि फौलाद बनाया। ऐसा फौलाद जिसकी नेकनीयती के आगे बड़े से बड़े प्रलोभनों के तूफान भी घुटने टेक दें। ये ओ जियाले सपूत हैं जिनसे सदियां रोशन होती हैं। मुमताज अहमद और उनके बड़े भाई डॉ. फैयाज अहमद के मन में समाज के लिए कुछ करने की इच्छा उस समय से मन में पल रही थी जब वे अपने अस्तित्व के लिए खुद संघर्ष कर रहे थे। वह इच्छा अब फलीभूत हो रही है। उन्होंने जो समाज से लिया उसका कई गुना लौटाने के लिए ही शिक्षा की रोशनी बिखेरने का रास्ता चुना है। मुमताज अहमद ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से फिजिक्स में एमएससी किया है और डॉ. फैयाज अहमद ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से एमएस ( मास्टर ऑफ सर्जरी) की डिग्री हासिल की है। वे पूर्वांचल के बहुत ख्यातिप्राप्त सर्जन हैं।
संस्थान के बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति संजीदगी :
संथान में पढ़ने वाले बच्चों से प्रबंधन का सिर्फ पढ़ाई तक का ही वास्ता नहीं है बल्कि उनके स्वास्थ्य के प्रति भी बेहद संवेदनशील हैं। कॉलेज के बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी जरा सी भी दिक्कत होने पर प्रबंधक डा. फैयाज के अस्पताल का पूरा स्टाफ उनके लिए खड़ा हो जाता है। डॉ. फैयाजअहमद अपने बच्चे की तरह न केवल इलाज करते हैं बल्कि बहुत चिंतित भी हो जाते हैं। एक बच्चे को कॉलेज में टायफाइड क्या हुई कैंपस में आरओ का प्लांट ही लगवा दिया।
स्मार्ट क्लास :
उर्दू के साथ संस्कृत को भी तरजीह
इस कॉलेज में उर्दू और संस्कृत दोनों भाषाएं पढ़ाई जाती हैं। कालेज के स्मार्ट क्लास में ब्लैकबोर्ड पर लिखे संस्कृत भाषा के टेक्स्ट इस बात की गवाही देते हैं। दोनों विषयों के शिक्षकों को वही सम्मानऔर रुतबा यहां हासिल है। यही खासियतें हैं जो इस कॉलेज को भीड़ से अलग करती हैं। प्रबंधन की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं दिखता।
पिछड़े क्षेत्र के बच्चों को सपने साकार करने का अवसर देना लक्ष्य – डॉ फैयाज अहमद
क्षेत्र के लोकप्रिय, मशहूर सर्जन और शबनम मेमोरियल शिक्षण संस्थान के प्रबंधक डॉ. फैयाज अहमद कहते हैं ,” इस शैक्षणिक संस्थान की स्थापना के पीछे हमारा मकसद इस क्षेत्र के उन लोगों की धारणा और भ्रम को तोड़ना है जिनके मन में यह बात घर कर गई है कि पढ़ाई लिखाई से कुछ नहीं होता। शायद इसी वजह से वे अपने बच्चों को खुद पढ़ाई लिखाई के प्रति हतोत्साहित करते हैं। शायद इसके पीछे उनकी मजबूरी और संसाधनों का अभाव है। हम उनकी उसी मजबूरी और अभाव को उनकी ताकत बनाना चाहते हैं। ऐसे लोग बेधड़क अपने बच्चों को यहां भेजने का साहस कर सकें इस बात का पूरा ख्याल रखते हुए चल रहे हैं। हमारा यह मानना है कि पढ़ाई ही वह जरिया है जिससे हम आने वाली नस्लों को शिक्षित करने के साथ साथ बेहतर इंसान बना सकते हैं। उनको गुरबत से मुक्ति दिला सकते हैं। पढ़ाई का लक्ष्य सिर्फ नौकरी पाना नहीं बल्कि काबिल बनना होता है। अगर किसी बच्चे में काबिलियत है तो उसके लिए ढेर सारे अवसर हैं। हम ऐसे ही काबिल बनाने का इरादा लेकर आगे बढ़ रहे हैं। शिक्षा के नजरिए से पिछड़े इस इलाके में यह अवसर उपलब्ध कराकर बहुत सुकून और संतुष्टि मिल रही है। इससे ऐसे तमाम गांव देहात के बच्चों को अपने सपने पूरे करने का अवसर मिल रहा है जिनके सपने असमय दम तोड़ देते थे।
प्रबंध कमेटी के दो सितारे इकबाल अहमद और फैजुलहक :
डा. फैयाज अहमद ने इस संस्थान को बुलंदी की ओर ले जाने के लिए संस्थान के दो प्रमुख सदस्यों इकबाल अहमदऔर फैजुलहक के योगदान की खुले दिल से सराहना की। कहा उनके समर्पण का यह नतीजा है कि संस्थान दिनोंदिन सफलता के नए कीर्तिमान बनाने की ओर अग्रसर है। उनके कठिन परिश्रम और कुशल मार्गदर्शन से ही यह सब कुछ संभव हो पाया है। हम उनके योगदान के ऋणी हैं।
हमारा मकसद ऐसी शिक्षा देना है जो मुकम्मल इंसान बनाए : मुमताज अहमद
संस्थान के विजन के बारे में पूछने पर प्रबंधन के प्रमुख सदस्य और उत्तर प्रदेश सरकार में वित्त नियंत्रक रहे मुमताज अहमद कहते हैं आज के दौर में शिक्षा के संस्थान तो बहुतेरे हैं मगर हमें उस अंधी दौड़ में शामिल नहीं होना है न ही सफलता का कोई शॉर्टकट रास्ता ही अपनाना है। हमारा एक ही मकसद है यहां से पढ़े हुए बच्चे काबिल और मुकम्मल इंसान बनकर निकलें। इसके लिए हम बेहतर से बेहतर शिक्षकों को अपनी टीम में शामिल कर रहे हैं। बच्चों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा विकसित हो इसके लिए अनेक तरह के एकेडमिक कंपटीशन आयोजित किए जा रहे हैं। हम वह हर बेहतर शैली और तरीके अपना रहे हैं जिससे बच्चे सीखें और कैंपस से निकलते समय सीखने की वह खुशी उनके चेहरे पर साफ नजर भी आए। यहां से पढ़ने वाले बच्चे जिंदगी के जिस किसी भी क्षेत्र में जाएं यहां से मिली शिक्षा और संस्कारों की छाप छोड़ें और देश के निर्माण में अहम भूमिका निभाएं। सिर्फ यही एक चाहत है और इसके लिए हम अपना सारा समय और इल्म देने के लिए तत्पर हैं। वे अपने संकल्पों को कुछ यूं बयां करते हैं –जब टूटने लगे हौसले तो बस याद रखना, बिना मेहनत के हासिल तख्तो ताज नहीं होते, ढूंढ़ लेना अंधेरों में मंजिल अपनी, जुगनूं कभी रोशनी के मोहताज नहीं होते। खुशबू बनकर गुलों से उड़ा करते हैं, धुंआं बनकर पर्वतों से उड़ा करते हैं, ये कैचियां खाक हमें उड़ने से रोकेंगी, हम परों से नहीं हौसलों से उड़ा करते हैं। यही हौसला हम बच्चों में भरना चाहते हैं ताकि जीवन के बड़े से बड़े झंझावात को मात देकरआगे बढ़ सकें।