एनआईआई ब्यूरो
गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय और भारतीय शिक्षण मंडल गोरक्षप्रांत के संयुक्त तत्वावधान में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020ः अकादमिक समुदाय द्वारा जागरूकता’ का सृजन विषयक आनंदशाला/कार्यशाला का आयोजन सोमवार को संवाद भवन में किया गया। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि भारतीय शिक्षण मंडल गोरक्षप्रांत के महासचिव उमा शंकर पचौरी ने कहा कि भारत पवित्र भूमि है। जहां, संतों ने अध्यात्म के बल पर वर्षों के अनुसंधान के बाद जीवन की आधारशिला के प्रतिमान स्थापित किए। इसी मार्ग को नई शिक्षा नीति भी उजागर करती है। योजना पूर्वक अंग्रेजों ने हमारी शिक्षण व्यवस्था में प्रशिक्षण, कार्यशाला, वर्कशॉप जैसे शब्दों को डाला। ये हमारे इतने अंदर तक बैठ गया है कि इसके बिना काम नहीं चलता है।
हमारा ऐसा मानना है कि प्रशिक्षण केवल जानवरों को दिया जा सकता है। जिनके पास सीमित विकल्प होते हैं। एक मानव के पास किसी बिंदु पर अनंत विकल्प होते हैं। इसे देखते हुए ही आनंदशाला की जरूरत पड़ती है। नई शिक्षा नीति भी इसी व्यवस्था पर फोकस करती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो राजेश सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय ने सबसे पहले नई शिक्षा नीति के अंतर्गत स्नातक- परास्नातक और पीएचडी के कोर्स में सीबीसीएस पैर्टन को प्रदेश भर में सबसे पहले लागू किया है। शिक्षकों के सहयोग से कोर्स को रिवाइज कर लागू किया गया। अब कोर्स कंटेट पर हम पब्लिकेशन भी करने जा रहे हैं। नई शिक्षा नीति वर्ष 2020 में लागू हुई है।
अभी इसका असर विश्वविद्यालयों का शिक्षण व्यवस्था पर कैसे होगा ये देखना बाकी है। सरकार से भी गुजारिश है कि वो इसे लागू करने के दौरान जो समस्याएं आ रही हैं। उसे दूर करने भी अपेक्षित मार्गदर्शन करे। राज्य विश्वविद्यालयों में ही 80 फीसदी से ज्यादा विद्यार्थी अध्ययन करने आते हैं। मगर, आईआईटी, आईआईएम, केंद्रीय विश्वविद्यालयों को ही प्राथमिकता के आधार पर सरकार से मदद मिलती है। जबकि, वहां महज 10 फीसदी विद्यार्थी ही प्रवेश के लिए जाते हैं। डॉ. कौस्तुभ नारायण मिश्रा ने विषय की प्रस्ताविकी को रखा। कार्यक्रम संयोजक प्रो. विनय कुमार सिंह ने अतिथियों का स्वागत एवं अतिथि परिचय दिया। संचालन की भूमिका डॉ. अमित उपाध्याय और आभार ज्ञापन संस्कृत विभाग के आचार्य डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी ने की।
द्वितीय सत्र को संबोधित करते हुए भारतीय शिक्षण मंडल के सहायक कोषाध्यक्ष देवेंद्र पवार ने कहा कि शिक्षा की उन्नति से ही आर्थिक उन्नति एवं देश की उन्नति हो सकती है। भारत की शिक्षा परंपरा बहुत उन्नत रही है इस को पुनः परम वैभव के स्थान पर पहुंचाना है। कार्यशाला को संबोधित करते हुए शुक्ला जी ने कहा कि शिक्षा में मूल्यों का गिरावट हुआ है। इससे देश विनाश के मार्ग पर जाता है। इसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैं। द्वितीय सत्र के अध्यक्ष प्रोफेसर मनोज दीक्षित ने सुझाव दिया कि शिक्षकों को शिक्षार्थियों की मौलिक चिंतन को बाहर निकालने में योग्य बनाना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर ममता मणि त्रिपाठी जी ने किया एवं कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉक्टर सर्वेश कुमार के द्वारा दिया गया।