- विश्वविद्यालय के यूजीसी-एचआरडीसी के पुनश्चर्या पाठ्यक्रम में व्याख्यान का आयोजन
एनआईआई ब्यूरो
गोरखपुर। भारतीय परंपरा में ज्ञान की एक जागतिक भूमिका है। भारतीय समाज की ज्ञान परंपरा समाज उन्मुख रही है।
प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रश्नाकुल मन का निर्माण करता था। समाज निर्माण में ज्ञान की एक सुदीर्घ परम्परा हमारा मार्गदर्शन करती रही है। हमारे ज्ञान की पूरी परम्परा औपनिषदिक, प्रोक्त और वाचिक है। यह ज्ञान व्यावहारिक एवं समाजोन्मुखी था। गुरु, वैद्य और पुरोहित का सम्मान था। बाद में आक्रांता और औपनिवेशिक काल में ज्ञान की यह परंपरा सत्ता केंद्रित हो गई। लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति से विश्वविद्यालय ब्रिटिश शासन को मजबूत करने के लिए कर्मचारी वर्ग तैयार करने के कारखाने बन गए। मैकाले की शिक्षा नीति के फलस्वरूप विश्वविद्यालयों ने समाज की प्रश्नाकुलता को एक अदद खुशामदी मन में बदल दिया।
समाज की आवश्यकताओं के अनुसार हमें ज्ञान को बदलना होगा। समाज की आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन का तर्क विश्वविद्यालयों तक आना चाहिए। नए विश्वविद्यालयों ने समाज निरपेक्ष ज्ञान का निर्माण किया जिसे न बदला गया तो अधिकतम बीस वर्ष में विश्वविद्यालय समाप्त हो जाएंगे, इसलिए समय रहते विश्वविद्यालयों को बदलना होगा और ज्ञान की समाज केन्द्रितता को जागृत करना होगा। उक्त वक्तव्य दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के यूजीसी-एचआरडी सेंटर द्वारा आयोजित गुरु-दक्षता कार्यक्रम (फैकल्टी इंडक्शन प्रोग्राम) के एक सत्र को सम्बोधित करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय में आचार्य प्रो. चन्दन कुमार चौबे ने ज्ञानकेन्द्रित ‘समाज और विश्वविद्यालय’ विषय पर बोलते हुए दिया।
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने नई शिक्षा नीति (एनईपी 2020)का भी जिक्र किया एवं इस बात पर प्रकाश डाला कि शिक्षा प्रयोग धर्मिता को बढ़ावा देने वाली समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को पूरा करने वाली होनी चाहिए, जिसे एन ई पी 2020 मे संदर्भित किया गया है। उन्होने अपने व्याख्यान में शिक्षा को नॉलेज सेंट्रिक सोसाइटी से नॉलेज सेंट्रिक इकोनॉमी बनाने की बात की। कार्यक्रम में अतिथि का स्वागत कोर्स समन्वयक प्रो. शरद कुमार मिश्र एवं आभार ज्ञापन सह समन्वयक डॉ. मनीष पाण्डेय ने किया। यूजीसी एचआरडीसी के निदेशक प्रो. रजनीकांत पाण्डेय ने कार्यक्रम का अवलोकन किया। इस दौरान देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के 40 से अधिक शिक्षकों ने प्रतिभाग किया।