लिविंग लीजेंड लखनऊ निवासी और ख्यातिप्राप्त शिक्षाविद डॉ. भूमित्र देव चार विश्वविविद्यालयों- गोरखपुर, बरेली, आगरा और अलीगढ़ विश्वविद्यालयों में कुलपति रहे हैं। हाल में उनकी पुस्तक “CHALLENGES OF IMPROVING UNIVERSITIES” प्रकाशित हुई है। डॉक्टर साहब के अनुसार 109 पृ. (पेपरबैक मूल्य -225/-) की इस पुस्तक को लिखने में उन्होंने तीन वर्ष का समय लगाया। पुस्तक में विश्वविद्यालयों की स्थितियों और उनके समाधान के विषय में उन्होंने अपनी बात कम लेकिन सारगर्भित शब्दों में कहा है। श्वविद्यालयों के कुलपतियों को इसे अवश्य पढ़ना चाहिए।
डॉ. भूमित्र देव जी से प्रायः मेरी बात होती है। हर बार विश्वविद्यालय की स्थितियों को लेकर वह अवश्य चर्चा करते हैं। उनकी विशेषता कम शब्दों में बड़ी बात कहने की है। उनकी यह पुस्तक इस बात का प्रमाण है। पुस्तक से एक उदारहण अपने शब्दों में दे रहा हूं। जब वह बरेली विश्वविद्यालय के कुलपति थे उनकी मुलाकात उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर से हुई. कुलपतियों की मुलाकातें गवर्नरों से होती ही रहती हैं. बरेली विश्वविद्यालय के पास 200 एकड़ भूभाग था, लेकिन उसका विकास नहीं किया गया था. उसमें घास, जंगली पौधे, झाड़ियां और कांस आदि उगे हुए थे. डॉ. देव ने गवर्नर साहब से पूछा”
“क्या हमने किसानों से अधिकृत 200 एकड़ से अधिक ज़मीन इसलिए ली थी कि हम 17 सालों तक उस पर घास और कांस उगाएंगे?”
गवर्नर साहब ने तल्खी से पूछा, “आप क्या चाहते हैं?” कुलपति (डॉ. भूमित्र देव) ने तपाक से कहा, “मैं चाहता हूं कि कुलपति अपने कार्यकाल के बाद उन पेड़ों से छोटा लगे जो उसने परिसर में लगवाए थे।” मात्र तीन मिनट बाद गवर्नर साहब के सचिव महोदय ने कुलपति से कहा, “निर्णय ले लिया गया है कि आपके बरेली लौटने से पहले ही काम शुरू हो जाएगा। “और उस 200 एकड़ से अधिक भूभाग में लगभग 20,000 पेड़ लगवाए गए, जिससे परिसर हराभरा हो गया था।
पुस्तक समीक्षा :
- रूप सिंह चंदेल
- नवनीत मिश्र