एनआईआई ब्यूरो
गोरखपुर। पूर्वी उत्तर प्रदेश में धान गेहूं फसल चक्र प्रमुख है धान की अधिकतर कटाई कंबाइन से होने के कारण खेत में पराली की वजह से गेहूं की बुवाई के लिए खेत को तैयार करने में समय वह श्रम अधिक लगने के कारण किसान पराली जलाने का प्रयास करते हैं लेकिन इससे किसान को प्रति हेक्टेयर लगभग 30 किलोग्राम नत्रजन 12 किलोग्राम फास्फोरस व 87 किलोग्राम पोटाश का जलाने से नुकसान होता है साथ ही 6 किलोग्राम सल्फर भी जलकर राख हो जाती है। यदि किसान धान की फसल अवशेष को ना जलाएं तो वह प्रति हेक्टेयर लगभग 65 किलोग्राम यूरिया 75 किलोग्राम सुपर फास्फेट वह 150 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश की बचत कर सकता है। साथी काफी मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्व व कार्बनिक पदार्थ की मात्रा भी इस पराली को सड़ा कर भूमि में बढ़ा सकता है। कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार गोरखपुर के वरिष्ठ शस्य वैज्ञानिक व अध्यक्ष डॉ एसके तोमर के अनुसार धान की पराली में काफी मात्रा में पोषक तत्व होते हैं जो जलाने से नष्ट हो जाते हैं और गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए हमें अधिक मात्रा में पोषक तत्वों को बाजार से खरीद कर फसल को देना पड़ता है।
भूमि में फसल अवशेष के मिलाने से कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है जिससे फसल को पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है अतः किसान भाइयों से अपील है कि वह धान की पराली के उचित प्रबंधन हेतु पहले खेत में मल्चर चलाएं उसके बाद हैप्पी सीडर सुपर सीडर या जीरो टिल मशीन से गेहूं की बुवाई करें इससे गेहूं की बुवाई का खर्च कम होगा क्योंकि खेत की जुताई में लगने वाला समय व श्रम कम लगेगा। कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार गोरखपुर द्वारा किसानों के खेत पर किए गए परीक्षण में सिद्ध हुआ है कि यदि सुपर सीडर से गेहूं की बुवाई करने के पहले प्रति एकड़ 45 किलोग्राम यूरिया खेत में बिखेर दें तथा सुपर सीडर में 50 किलोग्राम डाई वह 40 किलोग्राम न्यू रेट ऑफ भोपाल डालकर प्रति एकड़ की दर से बुवाई करें तो पराली शीघ्र सड कर खाद का काम करती है क्योंकि पराली को जलाने के लिए जमीन में उपलब्ध बैक्टीरिया को अपना कार्य करने के लिए नत्रजन चाहिए। यदि पर्याप्त मात्रा में नत्रजन जमीन में नहीं होती तो बैक्टीरिया सड़ाने का कार्य धीरे धीरे करता है और इसकी वजह से पौधों को नत्रजन की उपलब्धता 28 से 30 दिन तक कम रहती है जिससे कल्ले कम निकलते हैं तथा फसल का विकास भी कम होती है।जिससे उपज प्रभावित होती है।
पराली को जलाने से वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड कार्बन मोनोऑक्साइड सल्फर डाइऑक्साइड आदि की मात्रा बढ़ती है। जिससे लगभग 84.5% लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पंजाब हरियाणा उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे प्रदेशों में बढ़ती है।एक अध्ययन में पाया गया कि वातावरण में पराली को जलाने से होने वाले दुष्प्रभाव की वजह से 70.8% लोगों को आंखों में जलन 44.8% लोगों को नाक में जलन व 45.5% लोगों को गले में खराश तथा 41.6% लोगों को कफ़ में वृद्धि पाई गई है। पराली जलाने से भूमि की ऊपर की 1 सेंटीमीटर गहराई के तापक्रम में 33.8 से 42.2 डिग्री सेंटीग्रेड की वृद्धि होती है जिससे उसमें उपलब्ध लाभदायक जीवाणु व कवक मर जाते हैं। जिसकी वजह से भूमि में उपलब्ध पोषक तत्वों की पौधों को उपलब्धता घट जाती है। इन सब बातों को देखते हुए सभी किसान भाइयों से अपील है कि अपने खेतों में पराली ना जलाएं। सभी जानते हैं पूर्वी उत्तर प्रदेश में यदि कोई किसान 50 कुंतल धान पैदा करता है तो वह लगभग 50 कुंतल ही पराली भी पैदा करता है और उस पराली के जलाने से एक बहुत बड़ी मात्रा में पोषक तत्वों को हम नष्ट कर देते हैं। अगर हम इसको अपने खेत में सड़ा दें तो यह हमारी जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ा देता है।