आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र
अध्यक्ष – रीलीजीयस स्कॉलर्स वेलफेयर सोसायटी
इस वर्ष दीपावली पर्व 10 नवंबर दिन शुक्रवार से 15 नवंबर दिन बुधवार तक है। 10 नवंबर दिन शुक्रवार को धनतेरस और धन्वंतरि जयंती, 11 नवंबर दिन शनिवार को नरक चतुर्दशी, 12 नवंबर दिन रविवार को कमला जयंती और दीपोत्सव, 13 नवंबर को स्नान दान की पूर्णिमा, 14 नवंबर दिन मंगलवार को अन्नकूट और गोवर्धन पूजा, 15 नवंबर दिन बुधवार को भैया दूज और चित्रगुप्त जयंती रहेगी।
धनतेरस और खरीदारी
खरीदारी के लिए 10 नवंबर से 11 नवंबर दिन शनिवार को दिन में 1 बजकर 14 मिनट तक का समय ग्राह्म है। क्योंकि त्रयोदशी का मान 11 नवंबर को दिन में 1 बजकर 14 मिनट तक है। दोनों दिन खरीददारी की जा सकती है। इसमें कुछ विशिष्ट मुहुर्त है जो ज्यादा श्रेष्ठ हैं –
11 नवंबर दिन शनिवार को अत्यंत प्रातः काल 3 बजकर 16 मिनट से 4 बजकर 54 मिनट तक चर बेला ( उत्तम)। पुनः 4 बजकर 55 मिनट से 6 बजकर 33 मिनट लाभ बेला (श्रेष्ठ) । प्रातः काल 7 बजकर 55 मिनट से 9 बजकर 17 मिनट शुभ बेला ( उत्तम)।
10 नवंबर को दोपहर 12 बजे से दिन में 1 बजकर 22 मिनट तक शुभ बेला है।( उत्तम)। पुन: सायंकाल 4 बजकर 6 मिनट से सूर्यास्त 5 बजकर 27 मिनट तक चर बेला (उत्तम)। रात्रि में 5 बजकर 27 मिनट से 7 बजकर 6 मिनट तक सायंकाल लाभ बेला (अति श्रेष्ठ)। पुनः 7 बजकर 7 मिनट से 9 बजकर 44 मिनट तक अमृत बेला ( अति श्रेष्ठ)।
धनतेरस
इस वर्ष सन् 2023 ई- में धनतेरस दिन शुक्रवार तारीख 10 नवंबर को है। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 33 मिनट पर और कार्तिक कृष्ण द्वादशी का मान दिन में 11 बजकर 47 मिनट तक पश्चात त्रयोदशी तिथि है। इस दिन हस्त नक्षत्र सम्पूर्ण दिन और रात्रि 12 बजकर 22 मिनट तक और अमृत नामक औदायिक योग भी है। चन्द्रमा की स्थिति कन्या राशि पर है। हस्त नक्षत्र का स्वामी चन्द्रमा और कन्या राशि के स्वामी सौम्य ग्रह बुध होने से तथा अमृत योग होने से यह दिन खरीददारी के लिए उत्तम एवं श्रेष्ठ रहेगा।प्रदोष बेला में त्रयोदशी होने से धनतेरस और धनवंतरि जयंती के लिए यही दिन प्रशस्त और शास्त्रीय दृष्टि से मान्य।
धनतेरस की पौराणिक कथा
एक बाद यमराज ने अपने दूतों से कहा कि तुम लोग मेरी आज्ञा से मृत्युलोक के प्राणियों का प्राण हरण करते हो। क्या उस समय तुम दुःखी हो जाते हो? इस पर यमदूतों ने कहा-” महाराज हम लोगों का यह कार्य अत्यंत क्रूर है, परन्तु किसी युवा आदमी का प्राण भरते समय, वहां का अरूण क्रन्दन सुनकर हम लोगों का पाषाण हृदय भी विचलित हो जाता है।एक बार एक राजकुमार के विवाह होने के चौथे ही दिन हम लोगों को उसका प्राण हरना पड़ा, तै वहां का करुण दृश्य देखकर हम लोग विचलित हो गये थे।
यमराज ने अपने दूतों से कहा -” तुम लोगों की कारूणिक बात सुनकर मैं भी विचलित हो गया हूं, परन्तु विधि के विधान से हमें यह अप्रिय कार्य सौंपा गया है।”- दूतों ने कहा -” से स्वामी! कोई ऐसा उपाय बताएं ताकि प्राणियों को अकाल मृत्यु का सामना न करना पड़े और उन्हें मुक्ति प्राप्त हो।”- यह सुनकर यमराज ने कहा-” धनतेरस के दिन मेरे निमित्त दीपदान करने से मनुष्य को कभी अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पड़ता है।
यही नहीं जिस घर में धनतेरस के दिन मेरा पूजन किया जायेगा, उस घर में भी अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पड़ेगा।”- तभी से धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान की प्रथा चली आ रही है। भगवान धन्वंतरि का प्राकट्य धनतेरस के दिन हुआ था, अतः उनकी जयंती के रुप में धनतेरस को उनकी पूजा कर रोग विमुक्त जीवन की याचना की जाती है।
इस दिन समुद्र मन्थन के समक्ष हाथों में कलश लिए धन्वंतरि जी की उत्पत्ति हुई थी।यह पर्व वैद्यों के लिए महत्व का है, क्योंकि धन्वंतरि जी आयुर्वेद के जनक माने जाते हैं धनतेरस के दिन धनाध्यक्ष कुबेर जी की पूजा होती है। इस दिन धातु के बर्तनों को खरीदना समृद्धिदायक माना जाता है। यह पर्व घर में सुख समृद्धि के लिए मनाया जाता है। इसलिए इस दिन किसी को उधार नहीं देना चाहिए और धन का अपव्यय भी नहीं करना चाहिए। सांयकाल मुख्य द्वार के दोनों ओर दीपदान करना चाहिए।यह दीपदान इस दिन से आरम्भ कर भैयादूज तक किसी जाता है।इस दीपदान करने से यमराज प्रसन्न रहते हैं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।
रात को दीपक में तेल डालकर रुई की बत्ती जलाकर एक कौड़ी डालकर, रोली, चावल गुड़ से नैवेद्य अर्पित कर दीप जलाकर यम का पूजन करना चाहिए। दीप दान करते समय निम्न प्रार्थना करनी चाहिए -” मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्या सह। त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज:।।” जो विधिपूर्वक धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त पूजन, दीपदान करेंगे, उनकी असामयिक मृत्यु कदापि न होगी ऐसा पुराणों का कथन है। स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गोशाला, बावली, कुआं, मन्दिर आदि स्थानों पर दीपक जलाना चाहिए। धनतेरस के दिन यमुना स्नान का विशेष महत्व है। यदि स्नान न कर सकें तो भी यमुना जी स्मरण ही कर लें।
दीपावली पर्व का द्वितीय दिन नरक चतुर्दशी
वर्ष के समस्त पापों के उन्मूलन(तिरोहित) के लिए इस दिन किया जाता है, यम तर्पण और दीपदान
दीपावली महापर्व का यह द्वितीय दिवस है। यह 11 नवंबर दिन शनिवार को है। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 34 मिनट पर और त्रयोदशी तिथि का मान दिन में एक बजकर 14 मिनट तक, पश्चात कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी और चित्रा नक्षत्र सम्पूर्ण दिन और रात को 2 बजकर 6 मिनट, अनन्तर स्वाती नक्षत्र और काण नामक औदायिक योग भी है। भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन सायंकाल नरकासुर नामक राक्षस का वध किए थे।इस दिन भले ही प्रातः काल त्रयोदशी तो भी सूर्योदय के पूर्व स्नान करना चाहिए।इसे रुप चतुर्दशी भी कहा जाता है। इसके विषय में मान्यता है कि जो रुप चतुर्दशी के दिन सूर्योदय के पूर्व स्नान करता है, उसे यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता है। नरक न प्राप्त हो तथा पापों की निवृत्ति हो, इस उद्देश्य से प्रदोष काल में चार बत्तियों वाला दीपक जलाएं। इस दिन सूर्योदय के पूर्व शौचादि से निवृत्त होकर तेल मालिश कर सुगन्धित उबटन लगाकर स्नान करें।
स्नान से पूर्व मस्तक पर अपामार्ग ( चिचिहरा) घुमाकर जल में प्रवाहित करें। इससे नरक का भय नहीं होता है। ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि जो मनुष्य इस दिन यमराज के निमित्त दीपदान नहीं करता है, उसके सभी पापों का नाश हो जाता है। स्नान के बाद शुद्ध वस्त्र धारणकर तिलक लगाते, दक्षिणाभिमुख होकर निम्न नाम मन्त्रों से प्रत्येक के नाम से तिल युक्त तीन- तीन जलांजलि देनी चाहिए। इससे वर्ष पर्यन्त के पाप नष्ट है जातें हैं । “ऊं यमाय नमः”, ऊं धर्म राजाय नमः, ऊं मृत्यवे नमः, ऊं अन्तकाय नमः, ऊं वैवस्वताय नमः, ऊं कालाय नमः,ऊं सर्वभूतक्षयाय नमः, ऊं औदुम्बराय नमः, ऊं दध्नाय नमः, ऊं चित्राय नमः, ऊं चित्रगुप्ताय नमः। सन्ध्या के समय देवताओं का पूजन कर के दीपदान के समय निम्न मन्त्र का उच्चारण करें। ” दत्तो दीपश्चतुदर्श्यां नरक मुक्तये मया। चतुवर्ति समायुक्तं सर्वपापनुपत्तये।। इसके बाद मन्दिर, गुप्तगृह, रसोईघर, देववृक्षों के नीचे,सभाभवन, नदियों और सरोवरों के किनारे, चाहर दीवारी, बगीचा आदि पर प्रत्येक स्थान पर दीपक जलाना चाहिए।
दीपावली पर्व का तृतीय दिन कमला जयंती
ऐसी मान्यता है कि इसी दिन मां कमला( लक्ष्मी जी) का प्रादुर्भाव समुद्र मंथन के समय हुआ है। कमला जयन्ती होने से इस दिन मां लक्ष्मी जी की पूजा होती है। इस त्योहार को मनाने के कई कारण हैं। भगवान राम इसी दिन 14 वर्ष का वनवास भोगकर अपने राज्य अयोध्या में आए थे, इसलिए इस दिन दीप जलाकर प्रसन्नता व्यक्त की जाती है। इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। दीपावली की रात्रि को महानिशा की संज्ञा दी गई है। रात्रिकाल में जागरण कर सभी लोग मां लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए तत्पर रहते हैं। लक्ष्मी पूजन के अतिरिक्त इस दिन व्यापारिक स्थलों की पूजा, तुला पूजन , बहीखाता, लेखनी व कुबेर पूजन किया जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजन के अतिरिक्त भगवान गणेश, महाकाली और महासरस्वती का भी पूजन होता है। ये सभी पूजन प्रदोष काल या स्थिर लग्न या शुभ मुहूर्त में किया जाता है। घर में दीपमालिकाएं सजाई जाती है।
दीपावली पर्व का सबसे प्रमुख दिन दीपोत्सव का 12 नवंबर दिन रविवार को है। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 34 मिनट और इस दिन भी चतुर्दशी सांयकाल 2 बजकर 12 मिनट तक, पश्चात अमावस्या तिथि है। इस दिन प्रदोष काल और अर्धरात्रि में अमावस्या होने से दीपावली का प्रमुख पर्व इसी दिन आयोजित किया जायेगा। दूसरे दिन 13 नवंबर को अमावस्या दिन में 2 बजकर 41 मिनट तक है, परन्तु प्रदोष काल, निशीथ का में अमावस्या न होने से दीपावली का मुख्य पर्व एक दिन पूर्व 12 नवंबर को ही मान्य रहेगा।
दीपोत्सव का चतुर्थ दिन
यह दीपावली पर्व का चतुर्थ दिन है। यह 14 नवंबर दिन मंगलवार को है। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 35, मिनट पर और कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का मान दिन में 2 बजकर 37 मिनट तक है पश्चात द्वितीया तिथि, अनुराधा नक्षत्र और शोभन नामक योग है। इस दिन अन्नकूट और गोवर्धन पूजा का दिन है। भगवान श्रीकृष्ण के पहले इस दिन इन्द्र की पूजा की जाती थी। परन्तु भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन गोवर्धन की पूजा आरम्भ करवाई थी। इस दिन घरों में गोवर्धन की रचना गोबर से करके, उसकी पूजा की जाती है और उसे नैवेद्य अर्पण किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन नौ मुहुर्त से कम प्रतिपदा न हो।
हेमाद्रि में इस दिन गोक्रीड़ा और बलिपूजा का भी विधान मिलता है।देश के कई संभागों में इसी दिन से नये वर्ष का आरम्भ भी माना जाता है। भगवान के नैवेद्य ( भोग) में नित्य के नियमित पदार्थ ( दाल,बात, कढ़ी,साग, हलवा,, पूरी, खीर,लड्डू, पेड़ा, बर्फी, जलेबी, केला, नारंगी, अनार, सीताफल, फल, फूल, बैंगन, मूली, सागपात, रायता, भूजिया, चटनी, मुरब्बा, अचार- अर्थात कच्चा, पका, मीठा, खट्टा, मीठा, चरपरा- अनेक प्रकार के व्यंजन अर्पण किया जाता है।
गोवर्धन पर्वत को मानवाकार बनाया जाता है। कहीं- कहीं गोबर की प्रतिमा के साथ गाय, बछड़े, गोप गोपियों के चित्र भी बनाए जाते हैं और इन सबको गुलाल, रंग, मोरपंख, पुष्प, पत्तियों से सजाया जाता है, तदुपरान्त उसे दूध, दही, पक्वान्न आदि का भोग लगाया जाता है। इस दिन गोवर्धन का निर्माण करने के बाद पूजन के अनन्तर सात परिक्रमा करने का विधान है। पुनः प्रार्थना करें-” से गोवर्धन गिरि! तुम ही गौओं की रक्षा करने वाले हो, तुम देवरुप और सुखदाई हो, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं।”- इस प्रकार प्रार्थना करने के बारे में कहा गया है।
पौराणिक मान्यता है कि जब भगवान श्रीहरि ने श्रीकृष्ण के रुप में अवतार लिया था, उस समय तक व्रज में इन्द्रदेव का पूजा होता था जिसे इन्द्रोज कहा जाता था। भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन गाय एवं गोवर्धन की पूजा प्रारंभ करवाई।इससे इन्द्र रुष्ट हो ग्रे और उन्होंने व्रज क्षेत्र में भारी वर्षा आरम्भ की। उस वर्षा से रक्षा करने के लिए श्रीकृष्ण ने पर्वत को उठाया था।- इसलिए इस दिन कामधेनु और गायों का भी पूजन किया जाता है। शास्त्रों में इस दिन गोक्रीड़ा का भी विधान मिलता है जो वर्तमान में प्रचलित नहीं है। इसके अतिरिक्त इस दिन राजा बलि की भी पूजा होती है। देश के दक्षिण प्रान्तों में विशेष कर मलयाली समुदाय मे राजा बलि की पूजा में अनेक समारोह आयोजित किए जाते हैं और वे लोग आज ही के दिन नवीन पंचांग के फल भी सुनते हैं।
दीपावली पर्व का पंचम दिवस
इस दिन यमद्वितीया के नाम से जाना जाता है।इस दिन चित्रगुप्त का पूजन होता है। यह 15 नवंबर दिन बुधवार को है। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 36 मिनट और कार्तिक शुक्ल द्वितीया का मान दिन में 2 बजकर 4 मिनट तक है। ज्येष्ठा नक्षत्र सम्पूर्ण दिन, अतिगंड योग और ध्वांक्ष नामक औदायिक योग है। शास्त्रों के अनुसार भैयादूज या यमद्वितीया को मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किया जाता है।इस दिन बहनें भाई को आमन्त्रित कर (अपने घर पर) या भाई के घर जाकर उन्हें तिलक करती हैं और भोजन करातीं हैं। बहन – भाई यमुना स्नान करते हैं। यदि यमुना स्नान न कर सकें तो भी किसी पवित्र नदी में स्नान करें और यमुना जी को स्मरण ही कर लें तो भी पुण्य प्राप्त होता है।भाई के मंगल के लिए बहिनें कुछ मांगलिक विधान भी करती हैं। इस दिन भाई बहन का समवेत भोजन( एक साथ भोजन करना) कल्याण कारी माना जाता है।
व्रत के सम्बन्ध में पौराणिक कथा
सूर्य को सन्ध्या नाम की पत्नी से दो सन्ताने हुई- पुत्र यमराज और पुत्री यमुना। सन्ध्या सूर्य का तेज संज्ञान न करने के कारण अपनी छाया से मातृ पितृ का निमार्ण कर उसे ही अपने पुत्र और पुत्री को सौंप कर चली गईं। छाया को यह और यमुना स किसी प्रकार का लगाव नहीं था। यमुना अपने भाई यमराज के वहां जाती और उनके सुख , दुःख की बात पूछा करती थी। यमुना अपने भाई यमराज को अपने घर आने के लिए कहती, किन्तु व्यस्तता और उत्तरदायित्व बोझ के कारण वे उसके घर न जा पाते।एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के घर जा पहुंचे। बहन यमुना ने अपने भाई का बड़ा आदर सत्कार किया। विभिन्न व्यंजन बनाकर उन्हें भोजन कराया तथा उनके ललाट पर तिलक लगाया। यमराज अपनी बहन के द्वारा किए सत्कार से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने यमुना को अनेक प्रकार के भेंट की सामग्री प्रदान की।जब वह वहां से चलने लगे, तब उन्होंने से कोई मनोवांछित वर मांगने का अनुरोध किया।
तब यमु ने उनके आग्रह को देखकर कहा-“भैया! यदि आप वर देना चाहते हैं, तो यही वर दिजिए कि आज के दिन आप प्रतिवर्ष मेरे वहां आया करें और मेरा आतिथ्य स्वीकार करें।इसी प्रकार जो भाई अपने बहन के घर जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करें तथा उसे भेंट दे, उसकी सब अभिलाषाएं आप पूरा करें और उसे आप का भय न हो।”- यमराज ने यमुना की प्रार्थना स्वीकार कर ली।तभी से भाई- बहन का यह त्योहार मनाया जाने लगा। वस्तुत: इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य है- भाई – बहन के मध्य सामंजस्य और सौमनस्य का पावन प्रवाह, अनवरत प्रवाहित रखना तथा एक दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रोत्साहित करना। इस दिन यमलोक में लिपिक का कार्य करने वाले देवता चित्रगुप्त का पूजन, कलम- दावात, पंजिका का भी पूजन किया जाता है।ऐसी मान्यता है कि चित्रगुप्त का अवतरण इसी दिन हुआ था।