विवेकानंद त्रिपाठी
गोरखपुर (एनआईआई ब्यूरो)। गोरखपुर निवासी कृषि विज्ञानी पद्मश्री डॉक्टर आरसी चौधरी के लिए उम्र एक गिनती भर है। 78 के हो चुके डॉक्टर चौधरी इसे अपने जीवन में पल पल चरितार्थ कर रहे हैं। भारतीय जीवन में रिटायरमेंट के बाद जीवन की गति पर विराम मान लिया जाता है। मगर डॉक्टर चौधरी सच्चे अर्थों में कर्मयोगी हैं। बेहद सरल और सहज हैं। रिटायरमेंट के बाद जो उन्होंने कर दिखाया है उसके लिए समूचा पूर्वांचल उनका ऋणी रहेगा। वजह जान लें। कभी पूर्वांचल की पहचान रही कलानामक धान की किस्म कोई 20 साल पहले दम तोड़ चुकी थी। बस्ती और गोरखपुर के मंडल के जिलों में काला नमक की ऐसी शोहरत थी की इसका चावल जिसने एक बार चख लिया उसे दूसरा कोई चावल पसंद ही नहीं आता। मगर कालांतर में इसकी पैदावार इतनी कम हो गई कि किसान के लिए इसकी खेती घाटे का सौदा हो गई। बस्ती और सिद्धार्थनगर के कुछ किसान इसे सिर्फ अपने खाने के लिए ही उगा रहे थे। इसका रकबा घटकर मात्र 2000 हेक्टेयर तक सीमित हो गया। पूर्वांचल में धान की सिरमौर कही जाने वाली यह किस्म विलुप्त होने के कगार पर आ गई। मगर इसे बचाने के लिए कुछ धरातल पर किए जाने की जगह केवल मिथ्या रुदन ही सुनाई पड़ रहा था।
मगर कोई 10, 12 साल में डॉक्टर आरसी चौधरी ने पूरा परिदृश्य ही बदल दिया। आज की स्थिति यह है कि पूर्वांचल के तीन मंडलों, गोरखपुर, बस्ती और देवीपाटन मंडल में काला नमक का रकबा बढ़कर 80,000 हेक्टेयर हो गया है और साल दर साल इसमें बढ़ोत्तरी ही हो रही है। इसका न केवल रकबा बढ़ा बल्कि उपज भी दुगुनी हो गई और आधा दर्जन देशों में इसका निर्यात भी हो रहा है।
ऐसे बहुरे काला नमक के दिन :
डॉक्टर चौधरी बताते हैं : रिटायरमेंट के बाद गोरखपुर लौटने के साथ जिज्ञासावश कालनामक की खेती करने वाले कुछ किसानों से मुलाकात हुई। सबका यही कहना था, काला नमक में अब न पहले जैसी खुशबू रही न ही वह स्वाद। इसकी खुशबू का तो यह आलम था कि जिस घर में बनता था पूरे मोहल्ले में उसकी महक फैल जाती थी। डॉक्टर चौधरी बताते हैं कि सबसे पहले हमने इस समस्या के निदान के लिए बस्ती, सिद्धार्थनगर और संत कबीरनगर से काला नमक के 250 नमूने एकत्र कराए। पता चला इसकी कोई सुधरी प्रजाति ही नहीं थी, न ही इसका कोई फाउंडेशन सीड उपलब्ध था। किसान जो उगाता था उसे ही अगले वर्ष बीज के लिए इस्तेमाल कर लेता था। इसके साथ जब लागत की तुलना में इसकी पैदावार कम होने लगी तो किसान इसे दूनी उपज देने वाली बौनी प्रजातियों की ओर भागने लगा। इसका व्यावसायिक उत्पादन न के बराबर हो गया। मसलन बाजार में काला नमक के नाम पर ग्राहकों से धोखाधड़ी होती थी। इन सारे हालात का अध्ययन करने और समझने में डॉक्टर चौधरी को 12, 13 साल लग गए। मगर उन्होंने हार नहीं मानी।
इस क्रम में काला नमक में म्यूटेशन, सेग्रिगेशन और क्रॉसिंग के चलते इसकी गुणवत्ता और प्रकृति में बदलाव की प्रक्रिया सामने आई। इस दौरान उन्होंने जो 250 नमूने एकत्र किए थे उसने उसमे सिद्धार्थनगर के गोठवा गांव के किसान फूलचंद के काला नमक धान का नमूना सबसे बेहतर पाया गया और इसमें कुछ बदलाव करके उस किस्म को K -3 ( काला नमक 3) नाम दिया गया। और इस किस्म को भारत सरकार से नोटिफाई भी करा लिया गया। इस तरह काला नमक को पहली दफा प्रामाणिक किस्म का नाम मिला। इसके पहले यह सिर्फ काला नमक के नाम से ही जाना जाता था।
इस तरह काला नमक को संरक्षित करने के प्रयास के पहले चरण में उसका स्वाद और सुगंध तो वापस आ गए लेकिन पैदावार में कोई इजाफा नहीं हुआ। और इसके तने की लंबाई भी पहले की तरह ढाई मीटर ही रही। इससे बालियां निकलने पर जब बारिश के साथ हवा चलती थी तो पूरी फसल गिर जाती थी। इससे किसान का काफी नुकसान हो जाता था।
दूसरा चरण :
इसके बाद डॉक्टर चौधरी की टीम ने इसके आकार को छोटा करने की दिशा में प्रयास शुरू किया।अंततः 2016 में काला नमक की पहली बौनी प्रजाति तैयार करने में सफलता मिल गई। इसे भी भारत सरकार से नोटिफाई कराकर इस प्रजाति को बौना काला नमक 101(ड्वार्फ काला नमक 101) नाम दिया गया। यहां बता दें कि दो चरणों में काला नमक की सुगंध स्वाद का लक्ष्य प्राप्त हुआ। इसका कद छोटा हो गया मगर छिलके का रंग काला न होने से कुछ लोगों को काला नमक की इस सुधरी नस्ल पर संदेह हो जाता था।
तीसरा चरण :
आखिरकार तीसरे चरण में इसके जीन में सुधार के बाद इसकी भूसी भी काली हो गई और काला नमक की इस तीसरी किस्म को नाम दिया गया “काला नमक 102” ।
चौथा चरण :
डॉक्टर चौधरी ने काला नमक की किस्मों में सुधार की प्रक्रिया निरंतर जारी रखी और 2019 में काला नमक की चौथी किस्म विकसित की। भारत सरकार से नोटिफाई होने के बाद इस किस्म को नाम दिया गया “काला नमक किरण”। इस किस्म की खास बात यह है कि अपनी पूर्ववर्ती किस्मों की तुलना में इसकी उपज तो दूनी हुई ही इसके पोषक तत्वों में भी इजाफा हो गया।
इस तरह काला नमक की अब चार किस्में उपलब्ध हैं :
- के 3
- बौना काला नमक 101
- काला नमक 102
- काला नमक किरण
काला नमक किरण विश्व का सर्वश्रेष्ठ चावल :
डॉक्टर चौधरी कहते हैं कि यह दुनिया की अकेली चावल की किस्म है जिसमे “विटामिन ए ” मिलता है साथ ही डायबिटीज के मरीज भी इसे पेट भरकर खा सकते हैं।
इसके अलावा बासमती से दूना इसमें 11 फीसदी प्रोटीन है। बासमती से तिगुना आयरन है। बासमती के चार गुना जिंक है। यह बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है।
शुगर फ्री :
- इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स 49 से 52 फीसदी है। यहां बता दें कि कोई खाद्य वस्तु कितनी शुगर फ्री है उसे ग्लाइसेमिक आधार पर ही जांचा जाता है। इसके उलट बासमती का ग्लाइसेमिक इंडेक्स 85 फीसदी है।
- डॉक्टर चौधरी ने काला नमक की चार किस्में विकसित कर इसे अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई। अब काला नमक चावल होम बुद्धा नाम से जापान,कोरिया, श्रीलंका, म्यांमार, कंबोडिया, वियतनाम आदि देशों में पीआरडीएफ ( participatory Rural Development Foundation) के जरिए निर्यात किया जा रहा है।
होम बुद्धा के नाम से निर्यात क्यों ?
इस सवाल पर डॉक्टर चौधरी कहते हैं ” काला नमक का मूल उदगम ही भगवान बुद्ध के आविर्भाव स्थल सिद्धार्थनगर से हुआ है इसलिए यह सामान्य चावल न होकर बुद्ध का प्रसाद हो गया है। जिन देशों को यह निर्यात किया जा रहा है वहां बौद्ध मत का प्रभाव है इसलिए इस नाम से वहां के लोग एक कनेक्ट फील करते हैं।” डॉक्टर चौधरी के इस प्रयास को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी सराहा और उन्हें सम्मानित भी किया। काला नमक को उन्होंने अपने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट में शामिल भी किया है।
पूर्वांचल के काला नमक उत्पादक जिले :
सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, देवीपाटन, गोंडा बहराइच, श्रावस्ती प्रमुख हैं।
डॉक्टर चौधरी ने अपने जीवनकाल में उपलब्धियों का पहाड़ खड़ा किया है। इसके साथ उन्हें कृषि क्षेत्र के बड़े सम्मान से नवाजा गया है। इसी माह उन्हें पद्मश्री देकर समूचे पूर्वांचल का मान बढ़ाया है।
उपलब्धियों के आईने में डॉक्टर आरसी चौधरी :
- अपने कार्यकाल के दौरान डॉक्टर चौधरी ने भारत में धान की 21, कंबोडिया में 12, के साथ एशिया, यूरोप, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में 90 धान की किस्में विकसित की हैं।
- वह रेजिस्टेंस ब्रीडिंग में जर्मनी से पोस्ट डॉक्टोरल हैं
- आई आर आर आई फिलिपींस से रेनफेड राइस ब्रीडिंग में पोस्ट डॉक्टोरल किया है।
- संयुक्त राष्ट्र संघ में मुख्य तकनीकी अधिकारी (10 वर्ष)
- चीफ टेक्निकल एडवाइजर / प्रोजेक्ट मैनेजर, यांगून, म्यामार, (7 वर्ष)
- आईआरआरआई, मनीला, फिलिपींस में ग्लोबल कोऑर्डिनेटर और प्लांट ब्रीडर वर्ष (10 वर्ष)
- नाइजीरिया में विश्व बैंक की ओर से राइस प्रोडक्शन स्पेशलिस्ट (4 वर्ष)
- राजेंद्र एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पटना (बिहार) रीजनल डायरेक्टर/चीफ साइंटिस्ट/प्रोफेसर प्लांट ब्रीडिंग (5 वर्ष)
- जीबी पंतनगर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी में एसोसिएट प्रोफेसर,सीनियर रिसर्च ऑफिसर (2 वर्ष)
- पंतनगर यूनिवर्सिटी में ही जूनियर रिसर्च ऑफिसर, असिस्टेंट ऑफिसर और प्रोफेसर प्लांट ब्रीडिंग (8 वर्ष)
- इसके साथ देश विदेश की कृषि शोध और विपणन से जुड़ी 17 संस्थाओं और संस्थानों के सदस्य हैं।
अवार्ड:
- पद्मश्री (2024)
- डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद अवार्ड (आई वी ए आर)
- लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड ( बायोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंब्रिज, यू के)
- गोल्ड मेडल ऑफ प्राइम मिनिस्टर ऑफ़ कंबोडिया
- काला नमक सेवियर अवार्ड
- डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद अवार्ड ऑफ आईसीएआर ( हिंदी में प्लांट ब्रीडिंग के परिचयात्मक सिद्धांत की पुस्तक के लिए, यह यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए उपयोगी पुस्तक है, इसे ऑक्सफोर्ड प्रकाशन ने छापा है)
इसके साथ प्लांट ब्रीडिंग पर उन्होंने दर्जन भर पुस्तकें और बुलेटिन लिखी हैं। उनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति है। गांधी अभय और एसबी मिश्र के साथ उन्होंने रिवाइज मैनुअल ऑफ ऑर्गेनिक प्रोडक्शन ऑफ काला नमक राइस प्रकाशित की है। इसके साथ दर्जन भर से अधिक अन्य राष्ट्रीय, प्रदेश और जनपद स्तरीय पुरस्कारों से उन्हें नवाजा गया है।
डॉक्टर आरसी चौधरी से इन संपर्क साधनों से उन्हें बधाई दे सकते हैं या मेल भेज सकते हैं।
Mob no : 9450966091 ; Email : ram.chaudhary@gmail.com , Prdf2008@gmail.com