गोरखपुर ने गढ़ा कलजयी रचनाकार प्रेमचंद का साहित्यिक मानस

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एनआईआई ब्यूरो

गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्रेमचंद जयंती की पूर्व संध्या पर हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा तथा पत्रकारिता विभाग द्वारा अपने शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच ‘गोरखपुर में प्रेमचंद’ विषय पर प्रसिध्द कथाकार मदनमोहन की अध्यक्षता में एक परिसंवाद का आयोजन किया गया। वक्ताओं ने प्रेमचंद के साहित्य और विचारों में गोरखपुर और उसके आस – पास की विभिन्न छबियों एवं सन्दर्भों तथा उनके स्रोतों की विस्तार से चर्चा की। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय सचिव और सामाजिक कार्यकर्ता मनोज कुमार सिंह ने सन 1916 से 1921 के बीच के लगभग साढ़े चार वर्षों के प्रेमचन्द के गोरखपुर के प्रवास – काल में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों, आंदोलनों और जन – संघर्षों के बीच निर्मित हो रहे प्रेमचंद के लेखकीय मानस को अनेक साक्ष्यों के हवाले स्पष्ट करने की कोशिश की। मन्नन द्विवेदी गजपुरी, दशरथ प्रसाद द्विवेदी, फिराक और महावीर प्रसाद पोद्दार के निकट संबंधों के बीच प्रेमचंद की चेतना और रचना के विकास के अनेक महत्वपूर्ण पक्षों पर अत्यंत रोचक और आत्मीय ढंग से मनोज कुमार सिंह को बोलते सुनना श्रोताओं के लिए एक अलग तरह का अनुभव था।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में  कथाकार मदन मोहन ने प्रेमचंद के यथार्थवाद के विकास में गोरखपुर प्रवास के जीवनानुभवों की भूमिका को रेखांकित किया। सेवासदन और बाद में प्रेमाश्रम के कथ्य और साहित्य – दृष्टि में गोरखपुर के दिनों की रचनात्मक अभिव्यक्ति पर उन्होंने विस्तार से प्रकाश डाला। हिन्दी विभाग के प्रो राजेश मल्ल ने प्रेमचंद के साहित्य में स्त्री और किसान जीवन की उपस्थिति को उनके गोरखपुर प्रवास से संबद्ध कर देखे जाने का प्रस्ताव किया और कहा कि प्रेमचंद के पहले के उपन्यासों में जीवन के बहुविध यथार्थ की अभिव्यक्तियां तो सामने आ रही थीं, पर हिंदी में प्रेमाश्रम जैसी किसान प्रश्नों पर केंद्रित किसी औपन्यासिक कृति की रचना प्रेमचंद के यहां ही पहली बार सम्भव हो रही थी। प्रो अनिल राय ने परिसंवाद के विषय पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इसका आशय प्रेमचन्द के समग्र लेखकीय व्यक्तित्व में गोरखपुर की स्थानीयता के योगदान को रेखांकित करना है। उन्होंने यह भी कहा यह उनके विराट उपलब्धियों वाले रचनात्मक महत्व को केवल गोरखपुर के सन्दर्भ में सीमित करना नहीं है।

हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो दीपक प्रकाश त्यागी  ने प्रेमचंद पीठ के हवाले अपने विभाग से प्रेमचंद के विचार और साहित्य के घनिष्ठ सम्बन्धों का महत्व स्पष्ट करते हुए इससे जुड़ी अपनी कई कल्पनाओं की चर्चा की। उन्होंने ‘ गोरखपुर में प्रेमचन्द ‘ जैसे विषय पर आयोजन के लिए प्रसिद्ध आलोचक मैनेजर पाण्डेय के दशकों पूर्व के सुझाव को याद करते हुए बताया कि आज एक संक्षिप्त रूपाकर में एक पुरानी योजना को मूर्त होते देखकर हमारा विभाग आह्लादित है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए हिंदी विभाग के शिक्षक डॉ राम नरेश राम ने प्रेमचंद को हिंदी नवजागरण के दूसरे चरण का साहित्यिक नायक बताया और कहा कि अपने समय के प्रायः सभी सामाजिक आंदोलनों की अनुगूजें प्रेमचंद के लेखन में मौजूद हैं।

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