- कुछ विद्वान 11 तारीख़ को पड़ने वाली
भद्रा को अशुभ मानते हैं।
उनका मानना है उस दिन पड़ने वाली
पाताल की भद्रा का कोई शास्त्र सम्मत
उल्लेख नहीं,,, तो आइए… शास्त्र सम्मत
समझें भद्रा को, ताकि कोई संशय ना हो…
धर्मसिंधु में स्पष्ट उल्लेख है
जीभद्रायां द्वे न कर्तव्यम् श्रावणी फाल्गुनी वा।
श्रावणी नृपतिं हन्ति,ग्रामों दहति फाल्गुनी
अर्थात भद्रा काल में दो त्योहार नहीं मनाने चाहिए, श्रावणी अर्थात रक्षाबंधन, और फाल्गुनी अर्थात होली।
भद्रा काल में रक्षाबंधन मनेगा तो राजा के लिए कष्टकारी है और होली दहन के समय भद्रा रहेगी तो प्रजा, ग्राम आदि के लिए हानिकारक है। लेकिन #भद्रासदैवअशुभनहींहोती
कहीं-कहीं स्वीकार भी करनी पड़ती है।
खगोलीय परिवर्तन से ही पर्व विवादित
होता है, परंतु धर्म ग्रंथों में इसका स्पष्ट
समाधान भी किया गया है।
जब भद्रा #स्वर्गयापाताललोकमें होगी तब वह शुभ फल प्रदान करने में समर्थ होती है। संस्कृत ग्रन्थ #पीयूषधारा में कहा गया है कि
स्वर्गे भद्रा शुभं कुर्यात पाताले च धनागम।
मृत्युलोक स्थिता भद्रा सर्व कार्य विनाशनी।।
मुहूर्त। मार्तण्ड में भी कहा गया है
“स्थिताभूर्लोख़्या भद्रा सदात्याज्या
स्वर्गपातालगा शुभा”
अतः यह स्पष्ट है कि मेष, वृष, मिथुन, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु या मकर राशि के चन्द्रमा में भद्रा पड़ रही है तो वह शुभ फल प्रदान करने वाली होती है।
श्रावणी उपाकर्म व रक्षा बन्धन का निर्णय
सुप्रसिद्ध धर्म ग्रन्थों निर्णय सिन्धु,धर्म सिन्धु, पुरुषार्थ चिन्तामणि, कालमाधव, निर्णयामृत आदि के अनुसार दिनांक 12 अगस्त को पूर्णिमा तिथि दो मुहूर्त से कम होने के कारण दिनांक 11 अगस्त को ही श्रावणी उपाकर्म व रक्षा बन्धन शास्त्र सम्मत हैं।
भद्रा निर्णय
मुहूर्त चिन्तामणि 1/45 के अनुसार मकर राशि के चन्द्रमा में भद्रा वास पाताल में होने से इस दिन मकरस्थ चन्द्रमा की भद्रा को पीयूषधारा, मुहूर्त गणपति, भूपाल बल्लभ, आदि ग्रन्थों में अत्यन्त शुभ व ग्राह्य बताया गया है (देखिए वृहद् दैवज्ञ-रंजन 26/40) फिर मुहूर्त प्रकाश में तो स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आवश्यक कार्य में मुख मात्र को छोड़कर सम्पूर्ण भद्रा में शुभ कार्य कर सकते हैं । भद्रा का मुख सायं 5:51 बजे से प्रारम्भ हो रहा है अतः पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ प्रातः 10:39 बजे से सायं 05:51 बजे तक का सम्पूर्ण समय श्रावणी उपाकर्म व रक्षा बन्धन के लिए पूर्णरूपेण शुद्ध है।
निर्णयामृत धर्म ग्रन्थ के आधार पर श्रावणी उपाकर्म (जनेऊ धारण) भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा व धनिष्ठा नक्षत्र में नहीं हो सकता है, इस कारण भी 11 अगस्त को ही प्रातः 10:39 से सायंकाल 05:51 के मध्य सम्पूर्ण समय उपाकर्म व जनेऊ धारण के लिए शुभ है। यहाँ भी पूर्ववत् भद्रा का कोई दोष नहीं है ।
निर्णय का सार । दिनांक 11 अगस्त 2022 को प्रातः 10:39 बजे से सायं 05:51 बजे तक बिना किसी संकोच के श्रावणी उपाकर्म (जनेऊ धारण) व रक्षाबंधन निःशंकोच मनायें तथा पर्वों की एकरूपता बनाये रखें।