आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र
अध्यक्ष – रीलीजीयस स्कॉलर्स वेलफेयर सोसायटी
श्रावण महीने की पुराणों में बहुत महिमा गाई गई है। पुराणों में चार महीने को विशिष्ट बताया गया है। इनका माहात्म्य बहुत अधिक प्रसिद्ध है। ये हैं- वैशाख मास, श्रावण मास, कार्तिक मास एवं माघ मास। इनमें श्रावण मास भगवान शिव को विशेष प्रिय है मां पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए इसी महीने में शिव जी की पूजा अर्चना की थीं।इस माह में पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र विद्यमान रहता है।इसी कारण इस महिने का नाम श्रावण पड़ा। श्रावण महिने में पड़ने वाले सोमवार और मंगलवार का विशेष महत्व है।इसी महीने से सोमवार व्रत के आरंभ का विधान है। इस व्रत को पुरुष और महिलाएं बड़े प्रेम और श्रद्धा के साथ रखते हैं। श्रावण के मंगलवार को मंगला गौरी व्रत के नाम से जाना जाता है। इस दिन मंगल ग्रह की शांति के निमित्त एवं मां पार्वती को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा -अर्चना एवं व्रत किया जाता है इसके अतिरिक्त नागपंचमी, रक्षाबंधन इत्यादि भी इस माह के महत्व को और अधिक बढ़ा देते हैं। शिवपुराण में स्वयं भगवान शिव ने कहा है कि उन्हें द्वादश मासों में श्रावण माह अत्यधिक प्रिय है।जो व्यक्ति इस महिने में उनकी आराधना करता है,उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। श्रावण और भगवान शिव का अटूट संबंध है। श्रावण के आरंभ होते ही शिवालयों में भक्तजनों की भीड़ उमड़ पड़ती है।यत्र तंत्र कांवड़ियों के समूह दिखाई देने लगते हैं। मंदिरों में ऊं नमः शिवाय तथा बम बम की ध्वनियां सुनाई देने लगती है। विद्वान लोग उच्च स्वर से रूद्राष्टाध्यायी का पाठ करते हुए दिखाई देने लगते हैं। श्रावण की महिमा विलक्षण है। ऐसा लगता है जैसे समस्त सृष्टि शिवमय हो गई है। अनेक भक्त गण पूरे सावन भर क्षौर कर्म नहीं कराते हैं एवं कुछ विशिष्ट नियमों का विशेष रुप से पालन करते हैं।इस प्रकार सभी लोग भगवान शिव को यथासंभव प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।सभी अपनी श्रद्धा, भक्ति एवं सामर्थ्य के द्वारा उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
श्रावण महीना का प्रत्येक दिन शिव पूजा के लिए विशिष्ट है। यदि कोई सम्पूर्ण सावन महीने में भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु व्रत रखता है और नित्य शिव जी की पूजा करता है,तो अति उत्तम है। प्रातः काल उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर शिव मंदिर में जाता है और पंचोपचार या षोडशोपचार से पूजन करता है तो उसकी समस्या मनोकामना पूरी होती है।इस पूजन के क्रम में जलाभिषेक अवश्य किया जाए। ऊं नमः शिवाय या शिव जी किसी स्तोत्र का पाठ भी किया जाए।यदि कोई भगवान शिव की विशेष पूजन करना चाहता है तो गंध, पुष्प आदि के अतिरिक्त दूध,दही,घी, शहद और चीनी से शिव पंचायतन का भली भांति मार्जन करे। पश्चात पांच या सात घड़ा जल अर्पण करें।यदि कोई अस्वस्थ ज्यादा रहते हों तो काले तिल की पचास ग्राम मात्रा शिव जी पर चढ़ाएं। इससे स्वास्थ्य लाभ के साथ साथ शनि संबंधी पीड़ा भी दूर हो जाएगा।जो व्यक्ति लक्ष्मी प्राप्ति की आकांक्षा रखते हैं, उसे श्रावण मास में प्रतिदिन शिवलिंग पर गन्ने के रस को अर्पण करना चाहिए। इससे आय में निरन्तर वृद्धि होगी और आर्थिक समस्या का समाधान भी हो जाएगा।
विवाह में हो दिक्कत तो करें यह उपाय :
यदि विवाह सम्बन्ध बने कई वर्षो व्यतीत हो गया और आपको पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही है तो सावन के महीने में प्रथम बृहस्पतिवार से प्रारंभ करते हुए नित्य भगवान शिव को श्रीफल अवश्य चढ़ाना चाहिए। यदि श्रीफल नहीं है तो कोई भी गोल फल अर्पित करें। पश्चात एक माला -ऊं नमः शिवाय-मंत्र का जप करें और इसके पश्चात भगवान शिव जी को तीन घड़ा जल अर्पित करें। इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर भगवान शिव से अपने पूर्व जन्म की गलतियों के लिए क्षमा प्रार्थी प्रार्थी हो पुत्र सुख प्रदान करने की प्रार्थना करें। इस प्रयोग से आपको शीघ्र ही पुत्र की प्राप्ति हो जाएगी। यदि मानसिक रूप से बेचैनी चिंता या भय का अनुभव करते हैं, अथवा सदैव कोई न कोई पारिवारिक चिंता से ग्रसित रहते हैं तो दूध में चावल, चीनी मिलाकर-ऊं नमः शिवाय- मंत्र का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर अर्पित करें ।शीघ्र ही आप देखेंगे कि कैसे आपकी मानसिक चिंताएं दूर हो जाती हैं और आप पहले की अपेक्षा अधिक प्रसन्न रहने लगेंगे। जिन कन्याओं को या पुरुषों को विवाह संबंधी चिंता सता रही है या विवाह संबंध में बाधाएं आ रही हैं तो उनकी मनोकामना भी श्रावण महीने में शिव की आराधना से पूर्ण हो जाती है । इसके लिए नित्य शिव पार्वती का पूजन करने के पश्चात मां पार्वती के चरणों और हाथों में हल्दी एवं मेहंदी लगाकर शिव पार्वती के मध्य कलावा से सात बार गठबंधन करें। शीघ्र ही भगवान गौरीशंकर आपकी प्रार्थना को सुनेंगे और आपकी इच्छा पूर्ण हो जाएगी।
बिल्वपत्र को उल्टाकर भगवान शिव को करें अर्पित:
बेलपत्र के संबंध में विशेष बात यह है कि सभी वस्तुएं सीधी अवस्था में भगवान पर चढ़ाए जाते हैं। लेकिन बिल्वपत्र ही एक ऐसी वस्तु है जो उल्टा रखकर भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है। बिल्वपत्र को पुनः धोकर भी चढ़ाने का विधान है। इसमें किसी प्रकार का दोष नहीं लगता है।यदि नित्य बिल्वपत्र प्राप्त करना संभव नहीं है तो मंदिर में अन्य भक्त जनों द्वारा चढ़ाए गए बिल्वपत्र को श्रद्धा के साथ धोकर चढ़ाया जा सकता है। लेकिन जहां आसानी से उपलब्ध हो जाता है वहां ताजा बिल्वपत्र ही चढ़ाना चाहिए। मंदिरों में अर्पित किसी भी सामग्री का पुनः प्रयोग वर्जित है किंतु बेलपत्र इसका अपवाद है। इसके लिए यह विचार किया जा सकता है कि भगवान शिव अपने किसी भी भक्तों को अपनी कृपा से वंचित रखना नहीं चाहते हैं। इसलिए बिल्वपत्र के पुनः चढ़ाना अनुचित नहीं माना गया है। इतना ही नहीं श्रावण माह में भगवान शिव का चिंतन ,मनन उनके तीर्थ की यात्रा, जो साधक करता है, उसे भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद मिलता है। अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार प्रत्येक शिवभक्त को श्रावण महीने में भगवान की आराधना अवश्य करनी चाहिए।
यदि विरोधियों से आप ही परेशान रहते हैं और विरोध आदि से आप परेशानी का अनुभव करते हैं, तो सावन के महीने में शिव पूजन के पश्चात सरसों के तेल से भगवान शिव का अभिषेक करें। इस प्रयोग से कुछ ही समय में आपके विरोधी परास्त हो जाएंगे और आपको शत्रु बाधा से मुक्ति प्राप्त होगी। बिल्वपत्र का भगवान शिव के पूजन में विलक्षण महत्व है।भगवान शिव बेलपत्र से अति प्रसन्न होते हैं। शास्त्रों में तो यहां तक कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति राजोपचार पूजन करता है और अन्य व्यक्ति भगवान शिव को एक ही बेलपत्र अर्पित करता है तो बिल्वपत्र के अर्पण से उत्पन्न पुण्य राजोपचार के पूजन से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। पुराणों के अनुसार बेलपत्र के अर्पण से तीन जन्मों के पाप नष्ट हो होते हैं। आपको भी अपनी नित्य पूजा में बिल्वपत्र का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। नित्य पूजा में कम से कम पांच,सात या ग्यारह बेलपत्र शिवलिंग पर -ऊं नमः शिवाय- का उच्चारण करते हुए अर्पित करना चाहिए। यदि आपकी कोई विशेष मनोकामना है और उसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है या फिर आपके हाथों से जघ्न्य अपराध हो गया है और आप उससे परेशान हैं तो इस दोष के निवारण के लिए भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित करें। सामान्य पूजन में पांच या सात बिल्वपत्र ही पर्याप्त है।