- 1.2 करोड़ हेक्टेयर उपजाऊ मिट्टी हर साल खराब हो रही भारत में
- 33% जमीन का उपजाऊपन तेजी से घटा है पूरी दुनिया में
- 24 अरब टन सालाना की दर से मिट्टी की उर्वरा क्षमता घट रही
- 2 सेंटीमीटर मोटी मिट्टी की परत बनने में पांच सौ साल लग जाते हैं
एनआईआई ब्यूरो। बीते लगभग 40 सालों में दुनिया की एक तिहाई जमीन की उर्वराशक्ति काफी क्षरित हुई है। अनाज की बढ़ती जरूरतें पूरी करने के दबाव में मिट्टी से छेड़छाड़ इसकी बड़ी वजह है। संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से हुए एक नए अध्ययन के बाद यह दावा किया गया है।रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की पर्याप्त या अच्छी गुणवत्ता वाली खेतिहर जमीन धीरे-धीरे बंजर होने की ओर बढ़ रही है। धरती की सेहत बिगड़ने की यह दर उपजाऊ मिट्टी के निर्माण से लगभग सौ गुना अधिक है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इसे रोका न गया तो भविष्य में दुनिया की बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए खेती के अलावा दूसरे संसाधनों पर निर्भरता बढ़ेगी। अध्ययनकर्ताओं ने आशंका जताई है कि 2050 तक दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका को सबसे ज्यादा चुनौती का सामना करना होगा। जिस रफ्तार से दुनिया की आबादी बढ़ रही है उसे देखते हुए 2050 में वर्तमान की तुलना में डेढ़ गुना अधिक अनाज की जरूरत पड़ेगी।
पिछले 40 सालों में : आबादी बढ़ी, खाद्यान्न उपलब्धता घटी
दुनिया में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता 500 ग्राम के आसपास आंकी गई है। भारत में यह दर 2017 में 485 ग्राम होने का अनुमान है। पिछले दो दशक में कृषि उत्पादन में तो लगभग तीन गुना वृद्धि हुई लेकिन आबादी तेजी से बढ़ने से प्रति व्यक्ति उपलब्धता को कोई खास सुधार नहीं हुआ।
अगले 40 सालों में : 50% अधिक भोजन बढ़ाना होगा
दुनिया में खाद्यान्न की मांग तेजी से बढ़ रही है। 40 साल बाद दुनिया की तत्कालीन आबादी का पेट भरने के लिए 50% अधिक भोजन बढ़ाना होगा। दूसरी तरफ, अनुमान के अनुसार दुनिया में मौजूदा बंजर खत्म होने में दो सौ वर्ष लगेंगे। जमीन जिस तेजी से अपने गुण खो रही है उससे अनुपजाऊ जमीन ढाई गुना अधिक बढ़ जाएगी।
भारत
साल आबादी खाद्यान्न उपलब्धता
- 1977 65 करोड़ 465 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन
- 2017 1.32 अरब 485 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन
- 2057 1.74 अरब 460 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन
दुनिया
साल आबादी खाद्यान्न उपलब्धता
- 1977 4.21 अरब 475 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन
- 2017 7.5 अरब 500 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन
- 2057 10.06 अरब 480 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन
(2057 का अनुमान वर्तमान जनसंख्या वृद्धि दर और कृषि उत्पादन दर को स्थिर मानकर)
दुनिया में कहां कैसे हालात
अफ्रीकी महाद्वीप के नौ देशों में जमीन की हालत दुनिया में सबसे खराब है। पिछले कई दशकों से भूमि सुधार के तमाम प्रयासों के बावजूद खेतिहर जमीन की उत्पादकता आबादी के अनुपात में बेहद कम है। चीन, भारत, अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के ज्यादातर देशों में जमीन की उर्वराशक्ति बेहतर है और इन देशों में मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए सरकारी, गैर सरकारी और सामुदायिक स्तर पर लगातार प्रयास किए गए हैं।
यूपी-बिहार में भी तेजी से बंजर हो रही जमीन
देश की कुल 32 करोड़ 90 लाख हेक्टेयर भूमि में से 12.95 करोड़ हेक्टेयर भूमि बंजर है। क्षेत्रफल के लिहाज से सर्वाधिक बंजर जमीन मध्य प्रदेश में है। उसके बाद राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक का नंबर आता है। छठे नंबर पर यूपी है जहां लगभग 80.61 लाख हेक्टेयर जमीन उर्वरता खो चुकी है। नौवें नंबर पर बिहार है जहां 94.98 लाख हेक्टेयर भूमि उपजाऊ नहीं रह गई। हरियाणा 11 वें नंबर पर है, जहां 24.18 लाख हेक्टेयर जमीन बंजर है।
भारत में भूमि सुधार
- 1985 में भारत में राष्ट्रीय बंजर भूमि विकास बोर्ड ने बीस सूत्रीय कार्यक्रम शुरू किया
- 2015 में केंद्र सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की शुरुआत की
- 2030 तक बंजर जमीन बढ़ने की समस्या पर काबू पाने की योजना है
ऐसे बंजर हो जाती है जमीन
अलग-अलग कारणों से जमीन में सोडियम, पोटेशियम एवं मैग्नीशियम की मात्रा बढ़ने से वह अनुपजाऊ हो जाती है। ऐसी जमीन का पीएच फैक्टर 8.5 से अधिक हो जाता है। गर्मियों में ऐसी जमीन की ऊपरी सतह पर सफ़ेद पर्त बन जाती है। जिप्सम के वैज्ञानिक ढंग से उपयोग के बाद कई चरणों में जमीन का बंजरपन खत्म किया जा सकता है।
ये हैं प्रमुख कारण
- असंतुलित फसल प्रणाली : बढ़ती आबादी की जरूरत पूरा करने के लिए किसान उन्हीं फसलों की खेती करने लगे जिनका बाजार में अच्छा मूल्य मिलता हो। इस प्रकार पेट के लिए नहीं बल्कि बाजार के लिए खेती की शुरुआत हुई।
- रासायनिक खाद : उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बढ़ा और हरी खाद, कंपोस्ट आदि भुला दिए गए। रासायनिक खादों व कीटनाशकों के प्रयोग से शुरू में तो उत्पादकता बढ़ी लेकिन आगे चलकर उसमें गिरावट आने लगी।
- शहरीकरण : शहरों का फैलाव भी उपजाऊ मिट्टी के लिए काल बन गया है। शहरी आबादी में दस लाख की बढ़ोतरी चालीस हजार हेक्टेयर कृषिभूमि को निगल जाती है। एक अन्य अनुमान के मुताबिक औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण दुनिया में हर साल करीब 24 अरब टन उपजाऊ मिट्टी नष्ट हो रही है।
- ईंट निर्माण : मिट्टी की र्इंट बनाने वाले देशों में दूसरे नंबर पर गिने जाने वाले भारत में हर साल लगभग 265 अरब ईंटें बनती हैं। इन ईंटों को बनाने में 54 करोड़ टन उपजाऊ मिट्टी इस्तेमाल की जाती है। नतीजतन हर साल उपजाऊ जमीन का 50 हजार एकड़ रकबा हमेशा के लिए परती में तब्दील हो जाता है।
- अन्य कारक : भारतीय जैसे विकासशील देशों में औद्योगिकीकरण, बिजलीघरों से निकलने वाली राख और नदियों-नहरों से होने वाले कटान से भी उपजाऊ जमीन को सीधा नुकसान होता है।