वाराणसी से प्रकाशित हृषीकेश पंचांग के अनुसार 19 अगस्त दिन शुक्रवार को सूर्योदय 5 बजकर 35 मिनट पर और अष्टमी तिथि का मान सम्पूर्ण दिन अर्द्धरात्रि के पश्चात एक बजकर 6 मिनट तक (20 अगस्त 1–06 a- m), कृतिका नक्षत्र भी सम्पूर्ण दिन और रात्रिशेष 4 बजकर 58 मिनट पर्यन्त।इस दिन ध्रुव योग सम्पूर्ण दिवस और अर्धरात्रि के पश्चात एक बजकर 06 मिनट तथा छत्र नामक औदायिक योग भी बन रहा है। अर्धरात्रि के समय चन्द्रमा की स्थिति वृषभ राशिगत है। चूंकि सूर्योदय के समय अष्टमी और अर्द्धरात्रि को भी अष्टमी तिथि होने से कृष्ण जन्माष्टमी और व्रतोत्सव के लिए यही दिन शास्त्रोक्त मान्य रहेगा। वैष्णवों में कुछ सम्प्रदाय सूर्योदय के समय रोहिणी नक्षत्र की प्रधानता देते हैं ।इसलिए वे कृष्ण जन्माष्टमी 20 अगस्त को सम्पन्न करेंगे।
कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत धर्मशास्त्र के अनुसार( शिवपुराण, विष्णु पुराण, ब्रह्मपुराण, अग्नि पुराण और भविष्य पुराण इत्यादि सनातन धर्मग्रंथों के अनुसार) भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को किया जाता है। भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि के समय वृष के चन्द्रमा में हुआ था। इसलिए अधिकांश उपासक उक्त तथ्यों में अपने- अपने अभीष्ट योग का ग्रहण करते हैं। शास्त्र में इसके शुद्धा और विद्धा दो भेद है।उदय से उदय पर्यन्त शुद्धा और तदगत सप्तमी या नवमी से विद्धा होती है। शुद्धा या विद्धा भी समा, न्यूना या अधिका के भेद से तीन प्रकार की होती है और इस प्रकार अठारह भेद बन जाते हैं, परन्तु सिद्धांत रूप में तत्काल व्यापिनी ( अर्धरात्रि में रहने वाली तिथि अधिक मान्य है। इस वर्ष 19 अगस्त दिन शुक्रवार को सूर्योदय और अर्धरात्रि के समय अष्टमी तिथि होने से यह पूर्ण मान्य है।
कृष्ण की ऐसी छवि की करें पूजा
मूर्ति या फोटो सद्य। प्रसूत श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी जी और लक्ष्मी जी उनके चरण स्पर्श किए हुए हों- ऐसा भाव प्रकट करता रहे। अर्धरात्रि को भगवान के प्रकट होने की भावना करके वैदिक विधि से या पौराणिक विधि से अथवा अपने सम्प्रदाय की पद्धति से पंचोपचार, दशोपचार या षोडशोपचार या केवल नाममन्त्र से ही आवरण पूजा सहित जो बन सके,वहीं प्रीति पूर्वक करें। पूजन में देवकी, वसुदेव,बलदेव,नन्द,यशोदा और लक्ष्मी — इन सबका नाम निर्दिष्ट करना चाहिए।– अन्त में –” प्रणमे देवजननी त्वया जातस्तु वामन:। वसुदेव तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।सपुत्रार्घं प्रदतं में गृहाणेमं नमोस्तुते।”- से देवकी को अर्घ्य दें। पश्चात – धर्माय धर्मेश्वराय धर्मसम्भवाय गोविन्दाय नमो नमः “- से श्रीकृष्ण को पुष्पांजलि अर्पण करें।
तत्पश्चात जातकर्म,नालच्छेदन, षष्ठी पूजन आदि करके चन्द्रमा का पूजन करें। पुनः शंख में जल, फल,कुश, पुष्प, गन्ध डालकर दोनों घुटनों को जमीन पर लगावें और चन्द्रमा को भी अर्घ्य प्रदान करें। इसमें प्रतीक रुप में खीरे का प्रयोग किया जाता है।रात्रि के शेष भाग में स्त्रोत्र पाठ या श्रीकृष्ण जी के मन्त्र का जप करते हुए व्यतीत करें।इसमें प्रसाद में धनियां से निर्मित पंजीरी का प्रयोग किया जाता है। दूसरे दिन पूर्वाह्न में स्नानादि करके जिस तिथि या नक्षत्रादि के योग में व्रत किया हो ,उसका अन्त होने पर पारणा करें।यह भी कहा गया है कि यदि अभीष्ट तिथि या नक्षत्रादि के समाप्त होने में विलम्ब हो तो जल पीकर पारणा कर लें।
जन्माष्टमी व्रत से नष्ट होते हैं सभी पाप
यह व्रत सर्वमान्य और पाप को नष्ट रहने वाला व्रत बाल, कुमार,प्रौढ़,युवा, वृद्ध और इसी अवस्था वाले नर नारियों के करने योग्य है।इससे उनके पापों की निवृत्ति और सुखादि की वृद्धि होती है।सनातन धर्म की व्यवस्था के अनुसार जो इस व्रत को नहीं करते हैं, उन्हें पाप लगता है।इसमें अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के तिथि मात्र के स्पर्श से व्रत की पूर्ति होती है।
अपनी राशि के अनुसार करें भगवान श्रीकृष्ण की पूजा
जन्माष्टमी के दिन अपने राशि के अनुसार मंत्र जप करें तो अत्यंत सफलता और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। मेष राशि वाले जातक कृष्ण जन्माष्टमी के दिन -ओम कमलनाथाय नमः -मंत्र का जप करें। वृष राशि वाले इस दिन प्रभु की भक्ति में- कृष्णाष्टक -का पाठ करें । इसी तरह से मिथुन राशि वाले जातकों को तुलसी पत्र अर्पण करना चाहिए और -ॐ गोविंदाय नमः -मंत्र का जप करना चाहिए। कर्क राशि वाले व्यक्ति इस दिन भगवान श्री कृष्ण को गुलाब का पुष्प चढ़ाने और -राधाष्टक -का पाठ करें। सिंह राशि वालों को इस दिन -ओंम कोटि सूर्य समप्रभाय नमः-मंत्र का जप बताया गया है ।कन्या राशि वालों के बारे में कहा गया है कि वे इस दिन भगवान के बाल स्वरूप का ध्यान कर ओंम देवकीनंदनाय नमः- मंत्र का जप करें ।तुला राशि वाले को -ओंम लीलाधराय नमः- तथा वृश्चिक राशि वाले- वाराहाय नमः -मंत्र का जप करें। वृश्चिक राशि वालों को प्रभु के गुरु स्वरूप का स्मरण करना चाहिए -ओंम जगद् गुरुवे नमः- मंत्र का जप करें तो हितकर रहेगा। मकर राशि वालों को भगवान के सुदर्शन धारी स्वरूप का ध्यान करना चाहिए और- ओंम पूतना जीवितापहराय नमः -मंत्र का जप करें ।इसी तरह कुंभ राशि वाले प्रभु के दयारूप का ध्यान करते हुए -ओंम दयानिधाय नमः -मंत्र का जप करें और मीन राशि वालों के बारे में बताया गया है भगवान के बाल स्वरूप का स्मरण करके-ओंम यशोदानन्दाय नमः -मन्त्र का जप करें। इस प्रकार बारह राशियों के लिए 12 मंत्रों का निर्धारण किया गया है।
भगवान श्री कृष्ण का जीवन अलौकिक लीलाओं से परिपूर्ण है। उनमें आदर्श जीवन के साथ मानवता के सभी गुणों का पूर्ण विकास है। विज्ञान ,विद्या और नृत्य कला के महान मनीषी तो थे ही, साथ ही वे अपने काल के सृष्टि समाज सुधारक भी थे। भगवान श्री कृष्ण आदर्श राजनीतिज्ञ भी रहे। उनके व्यक्तित्व में मानवतावादी दृष्टिकोण पवित्र राजनीतिज्ञ का समावेश है। उनके जीवन में आदर्श ,त्याग ,न्याय ,सत्य दया, उदारता, यथार्थ ज्ञान लोकहित तथा शिक्षण एवं कल्याण का परम भाव परिलक्षित होता है। उनमें कहीं भी व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं है। कौन नहीं चाहेगा कि उनका प्रभावशाली व्यक्तितत्व दूसरों को प्रभावित या सम्मोहित कर सके । हमें भगवान श्रीकृष्ण के चरित्र का अनुसरण करना चाहिए। वे महायोगेश्वर थे। वास्तव में उनका जीवन एक योगी का जीवन रहा है. व्रत करने वालों को चाहिए कि उपवास के पहले दिन लघु भोजन करें।रात्रि में जितेन्द्रिय रहें और उपवास के दिन प्रातः काल स्नान करके नित्य कर्म सम्पादित करें।
पुनः सूर्य,सोम,काल,सन्धि,भूत,पवन, दिकपाल,भूमि, आकाश, खेचर, ब्रह्म आदि को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर मुख बैठे। हाथ में जल,फल,कुश, फूल और गन्ध लेकर–“ममाखिल पापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये ” यह कहकर संकल्प करें और मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल से स्नान करके देवकी जी के लिए सूतिका गृह नियत करें। उसे स्वच्छ और सुशोभित करके उसमें सूतिका के उपयोगी सब सामग्री तथा स्थान रख दें।यदि सामर्थ्य हो तो गाने बजाने या भजन का भी आयोजन करे। सूतिका गृह के सुखद विभाग में सुंदर और सुकोमल बिछौने के सुदृढ़ मंच पर अक्षतादि का मण्डल बनाकर,उस पर शुभ्र कलश स्थापित करें और उसी पर सोना, चांदी,ताम्बा,पीतल, मणि, वृक्ष, मिट्टी की बनी श्रीकृष्ण चन्द्र की मूर्ति स्थापित करे। अभाव में चित्रमयी मूर्ति ही स्थापित की जाए।
कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर गृहस्थ सुख प्राप्ति के लिए अनेक साधनाएं की जाती हैं ।जिन लोगो को संतान की प्राप्ति में बाधाएं आती हैं, वह इस दिन बाल गोपाल श्री कृष्ण जी की विशेष आराधना करे तो हितकर रहेगा। साधक को चाहिए कि वह संतान गोपाल यंत्र स्थापित करें और लड्डू गोपाल जी स्थापना कर उसकी विधि पूजन करें ।पूजन से पूर्व दाएं हाथ में जल लेकर अपना नाम, पिता का नाम, स्थान आदि का उच्चारण कर संकल्प करें। और यदि गोत्र ज्ञात हो तो उसका भी उच्चारण करें। अपने मनोकामना का उच्चारण कर जल छोड़ दें। यदि संतान की उन्नति के लिए साधना कर रहे हैं या उसकी प्राप्ति के लिए ही साधना कर रहे हैं, तो भोजपत्र पर संतान गोपाल का मंत्र लिखकर और संतान प्राप्ति यंत्र का निर्माण कर संतान गोपाल मंत्र का जप करें ।इससे संतान प्राप्ति में आने वाले आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं।